बुधवार, 29 मई 2013
शाही हमाम में मुमताज संग नहाते थे शाहजहां, आज भी भटकती है बेगम की आत्मा
इंदौर। प्रेम के सबसे बड़े प्रतीक ताजमहल को बनवाने वाले शाहजहां और बेगम मुमताज महल की बेहद रोमांटिक यादें मध्यप्रदेश के बुरहानपुर से भी जुड़ी हैं। शाहजहां ने आगरा का ताजमहल तो अपनी प्रिय बेगम की मौत के बाद उनकी याद में बनवाया था, लेकिन शाहजहां और मुमताज बेगम का प्यार तो बुरहानपुर में बने फारुखी काल के शाही किले में ही परवान चढ़ा था। इस किले की दरों-दीवारें ही नहीं कमरों से लेकर दालान और हमाम तक आज भी शाहजहां और मुमताज के हसीन प्यार के गवाह हैं। बतौर बुरहानपुर गर्वनर शाहजहां इस किले में लगभग पांच वर्ष तक रहे। यह किला शाहजहां को इतना पसंद था कि अपने कार्यकाल के पहले तीन वर्षों में ही उन्होंने किले की छत पर दीवाने आम और दीवाने खास नाम से दो दरबार बनवा दिए थे। शाहजहां ने किले में इस सबसे अलहदा एक ऐसी चीज बनवाई थी, जहां वे अपनी बेगम के साथ सुकून के पल बिताते थे। मुमताज की मौत भी बुरहानपुर में ही हुई थी। शायद बहुत कम लोग यह जानते होंगे की ताजमहल बनने तक मुमताज का मृत शरीर यहीं दफनाया गया था।
कहते हैं कि आज से 400 वर्ष पूर्व जब मुगलिया सल्तनत की बेगम मुमताज की मौत बुलारा महल में हुई थी, तब शाहजहां बुरहानपुर में ही ताजमहल का निर्माण कराने वाले थे। परंतु किसी कारणवश यह संभव न हो सका और जब आगरा में ताजमहल बनकर तैयार हुआ तो वहां मुमताज की देह को ले जाकर दफनाया गया। यहां के रहवासियों का मानना है कि मुमताज की देह तो यहां से निकाल ली गई पर आत्मा आज भी इसी महल में है। लोगों की मानें तो इन खंडहरों में आज भी मुमताज की आत्मा भटकती है।
रहवासियों के अनुसार उन्हें अक्सर महल से चीखने-चिल्लाने की आवाजें आती हैं। इन आवाजों का आना यहां के लोगों के लिए आम बात है।हालांकि आज तक यहां आने वाले किसी भी शख्स को मुमताज की आत्मा ने परेशान नहीं किया और न ही नुकसान पहुंचाया है। मौजूद तथ्यों के आधार पर सन 1631 में यहां अपनी बेटी को जन्म देने के कुछ दिनों बाद ही मुमताज चल बसी थी। कहते हैं कि यही वजह है कि उनकी आत्मा इस महल में ही बस गई।
शाहजहां ने बेगम मुमताज महल के लिए शाही किले में एक विशेष प्रकार के हमाम का निर्माण करवाया था। इसकी दीवारों से लेकर छत तक महीन कारीगरी की गई थी, जिस पर जयपुर के आमेर महल की तरह रंगीन कांच के टुकड़े जड़े हुए थे। अंधेरे में केवल एक दीया जलाने मात्र से पूरा हमाम रोशनी से जगमगा जाता था। इस रंग-बिरंगी रोशनी का प्रतिबिंब जब बेगम के जिस्म पर पड़ता था, तो सोने की तरह दमकने वाले मुमताज के शरीर से पन्ना, नीलम और अन्य रत्नों सी चमक बिखर जाती थी।
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