जोधपुर. अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या-4 जोधपुर महानगर ने पुलिस थाना मथानिया के ग्राम नेवरा निवासी समा राम की ओर से दायर इस्तगासा पर प्रसंज्ञान लेते हुए जातीय पंचायत के सभी पंचों सहित कुल 15 प्रथम दृष्टया आरोपियों को समन भेज कर अदालत में तलब किया है। यह आदेश एसीजेएम मोहिता भटनागर ने परिवादी समा राम की ओर से अधिवक्ता विशाल सारस्वत की ओर से की गई बहस प्रसंज्ञान सुनने के बाद दिए।यह सब 2 जुलाई 2007 को देने के बाद 8 अगस्त 2007 मुकलावे की तारीख तय की गई।परिवादी को 20 जुलाई को बताया गया कि पंचों ने धापुड़ी का विवाह कहीं और तय कर दिया है।इसके बाद 7 सितंबर 2007 को परिवादी के ससुर धन्ना राम, तिलकराम और अन्य लोग आए व परिवादी के साथ उसके पिता व भाई को जबरन जीप में डाल कर ले गए।नेवरा में जहां जाति पंचायत जुटी थी, इन सभी को हाथ पांव बांध कर गर्म रेत में डाल दिया।पंचायत ने परिवादी व उनके परिजनों को परिवादी की पत्नी का कहीं और विवाह करने, उसके गहने, रुपए नहीं लौटाने सहित परिवादी के परिवार को 10 वर्ष के लिए समाज से बहिष्कृत करने और सवा लाख रुपए का जुर्माना लगाने के फरमान सुनाए गए।
बुधवार, 26 दिसंबर 2012
पंचायत ने लगाई बीवी की कीमत, गरीब न चुका सका तो...!
जोधपुर. अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या-4 जोधपुर महानगर ने पुलिस थाना मथानिया के ग्राम नेवरा निवासी समा राम की ओर से दायर इस्तगासा पर प्रसंज्ञान लेते हुए जातीय पंचायत के सभी पंचों सहित कुल 15 प्रथम दृष्टया आरोपियों को समन भेज कर अदालत में तलब किया है। यह आदेश एसीजेएम मोहिता भटनागर ने परिवादी समा राम की ओर से अधिवक्ता विशाल सारस्वत की ओर से की गई बहस प्रसंज्ञान सुनने के बाद दिए।यह सब 2 जुलाई 2007 को देने के बाद 8 अगस्त 2007 मुकलावे की तारीख तय की गई।परिवादी को 20 जुलाई को बताया गया कि पंचों ने धापुड़ी का विवाह कहीं और तय कर दिया है।इसके बाद 7 सितंबर 2007 को परिवादी के ससुर धन्ना राम, तिलकराम और अन्य लोग आए व परिवादी के साथ उसके पिता व भाई को जबरन जीप में डाल कर ले गए।नेवरा में जहां जाति पंचायत जुटी थी, इन सभी को हाथ पांव बांध कर गर्म रेत में डाल दिया।पंचायत ने परिवादी व उनके परिजनों को परिवादी की पत्नी का कहीं और विवाह करने, उसके गहने, रुपए नहीं लौटाने सहित परिवादी के परिवार को 10 वर्ष के लिए समाज से बहिष्कृत करने और सवा लाख रुपए का जुर्माना लगाने के फरमान सुनाए गए।
ब्वॉयफ्रेंड के साथ घूमने गई युवती के साथ 6 दरिंदों ने की गैंगरेप की कोशिश
आगरा। कोचिंग के टूर के बहाने ब्वायफ्रेंड और उनके दोस्तों के साथ 12वीं क्लास की छात्रा फतेहपुर सीकरी चली गई। तीन दोस्तों के साथ घूमते हुए हिरण मिनार के पास पहुंची। मंगलवार की शाम साढ़े छह बजे अंधेरा छाने लगा। सन्नाटे के बीच छह मनचले आ गए। हड़काया तो ब्वायफ्रेंड और उसके दो दोस्त भाग गए। इसके बाद अकेली लड़की पर मनचले टूट पड़े। कपड़े फाड़ डाले। गैंगरेप की कोशिश की।
लड़की चिल्लाई तो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का सुरक्षा कर्मी ओमपाल सिंह आ गए। उसके साहस दिखाया और तुरंत भागकर गांववालों को बुला लिया। भीड़ को आते देखकर मनचले भाग खड़े हुए। लड़की बाल-बाल बच गई। सुरक्षाकर्मी ने गांववालों की मदद से लड़की को फतेहपुर सीकरी थाना में भेज दिया। पुलिस ने उसके कोचिंग सेंटर रॉयल कोचिंग के शिक्षक को बुलाया। तब शिक्षक ने बताया कि सभी स्टूडेंट को सुबह मथुरा और वृंदावन में टूर के राम नगर पुलिया स्थित सेंटर पर बुलाया गया था। लेकिन यह छात्रा टूर की टीम में शामिल नहीं हुई थी।
लड़की चिल्लाई तो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का सुरक्षा कर्मी ओमपाल सिंह आ गए। उसके साहस दिखाया और तुरंत भागकर गांववालों को बुला लिया। भीड़ को आते देखकर मनचले भाग खड़े हुए। लड़की बाल-बाल बच गई। सुरक्षाकर्मी ने गांववालों की मदद से लड़की को फतेहपुर सीकरी थाना में भेज दिया। पुलिस ने उसके कोचिंग सेंटर रॉयल कोचिंग के शिक्षक को बुलाया। तब शिक्षक ने बताया कि सभी स्टूडेंट को सुबह मथुरा और वृंदावन में टूर के राम नगर पुलिया स्थित सेंटर पर बुलाया गया था। लेकिन यह छात्रा टूर की टीम में शामिल नहीं हुई थी।
बलात्कार पीडिता मासूम ने दम तोड़ा
बलात्कार पीडिता मासूम ने दम तोड़ा
वड़ोदरा। दिल्ली गेंग रेप को लेकर देशभर में विरोध जताया जा रहा है वहीं गुजरात के पंचमहाल जिले के हालोल में गत शुक्रवार को बलात्कार की शिकार हुई ढाई वर्ष की बालिका की मंगलवार तड़के यहां सयाजी अस्पताल में उपचार के दौरान मौत हो गई। मृतका के परिजनों ने आरोपी को फांसी की सजा देने की मांग की है। मूल नेपाल और हाल में हालोल स्थित वैशाली सोसायटी में चौकीदार के रूप में नौकरी करने वाले गोरखा युवक के घर शुक्रवार को उनका रिश्तेदार केशव जयराम जोशी (34) अतिथि बनकर आया, वह खेड़ा जिले में बालासिनोर के निकट वीरपुर में चौकीदार के रूप में नौकरी करता है।
शुक्रवार को खाना खाने के बाद केशव मेजबान की ढाई वर्ष की बालिका को बिस्किट दिलाने के बहाने घर से ले गया और झाडियों में ले जाकर बालिका से दुष्कर्म किया। इस करतूत के चलते खून से लथपथ हुई बालिका को उपचार के लिए वड़ोदरा स्थित सयाजी अस्पताल में भर्ती करवाया गया।
बालिका की हालत नाजुक होने के कारण ऑपरेशन करने की नौबत आई और सोमवार को ऑपरेशन थिएटर में ले जाकर चिकित्सकों ने एनेस्थिसिया की प्रक्रिया शुरू की लेकिन बालिका की स्थिति और खराब होने के कारण ऑपरेशन टाल दिया गया। इसके बाद बालिका को पीडियाट्रिक विभाग में ऑक्सीजन पर रखा गया और मंगलवार तड़के बालिका की मौत हो गई।
आरोपी को उन्हें सौंपे
मंगलवार सुबह बालिका का शव पोस्टमार्टम के बाद परिजनों को सौंप दिया गया। मृतक बालिका के शव को लेकर परिजन हालोल पहुंचे, उसके अंतिम संस्कार के दौरान बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे। इस घटना से शोक में डूबे बालिका के पिता व अनेक लोगों ने आरोपी को फांसी की सजा देने की मांग की है। गुस्साए लोगों का कहना था कि यदि सरकार के पास इस तरह का प्रावधान नहीं हो तो आरोपी को उन्हें सौंप दिया जाए। गौरतलब है कि आरोपी को शुक्रवार को ही लोगों ने दबोच कर पुलिस के हवाले कर दिया था। बालिका के मौत के बाद पुलिस ने मंगलवार को हत्या का मामला भी दर्ज किया है।
वड़ोदरा। दिल्ली गेंग रेप को लेकर देशभर में विरोध जताया जा रहा है वहीं गुजरात के पंचमहाल जिले के हालोल में गत शुक्रवार को बलात्कार की शिकार हुई ढाई वर्ष की बालिका की मंगलवार तड़के यहां सयाजी अस्पताल में उपचार के दौरान मौत हो गई। मृतका के परिजनों ने आरोपी को फांसी की सजा देने की मांग की है। मूल नेपाल और हाल में हालोल स्थित वैशाली सोसायटी में चौकीदार के रूप में नौकरी करने वाले गोरखा युवक के घर शुक्रवार को उनका रिश्तेदार केशव जयराम जोशी (34) अतिथि बनकर आया, वह खेड़ा जिले में बालासिनोर के निकट वीरपुर में चौकीदार के रूप में नौकरी करता है।
शुक्रवार को खाना खाने के बाद केशव मेजबान की ढाई वर्ष की बालिका को बिस्किट दिलाने के बहाने घर से ले गया और झाडियों में ले जाकर बालिका से दुष्कर्म किया। इस करतूत के चलते खून से लथपथ हुई बालिका को उपचार के लिए वड़ोदरा स्थित सयाजी अस्पताल में भर्ती करवाया गया।
बालिका की हालत नाजुक होने के कारण ऑपरेशन करने की नौबत आई और सोमवार को ऑपरेशन थिएटर में ले जाकर चिकित्सकों ने एनेस्थिसिया की प्रक्रिया शुरू की लेकिन बालिका की स्थिति और खराब होने के कारण ऑपरेशन टाल दिया गया। इसके बाद बालिका को पीडियाट्रिक विभाग में ऑक्सीजन पर रखा गया और मंगलवार तड़के बालिका की मौत हो गई।
आरोपी को उन्हें सौंपे
मंगलवार सुबह बालिका का शव पोस्टमार्टम के बाद परिजनों को सौंप दिया गया। मृतक बालिका के शव को लेकर परिजन हालोल पहुंचे, उसके अंतिम संस्कार के दौरान बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे। इस घटना से शोक में डूबे बालिका के पिता व अनेक लोगों ने आरोपी को फांसी की सजा देने की मांग की है। गुस्साए लोगों का कहना था कि यदि सरकार के पास इस तरह का प्रावधान नहीं हो तो आरोपी को उन्हें सौंप दिया जाए। गौरतलब है कि आरोपी को शुक्रवार को ही लोगों ने दबोच कर पुलिस के हवाले कर दिया था। बालिका के मौत के बाद पुलिस ने मंगलवार को हत्या का मामला भी दर्ज किया है।
दिखावा बनी सरकार की शराब नीति व पाबंदी
दिखावा बनी सरकार की शराब नीति व पाबंदी
बालोतरा। रात आठ बजे तक शराब की नीति बालोतरा सहित उपखंड क्षेत्र के गांवों में दिखावा बनकर रह गई है। रात आठ बजे के बाद अधिकृत शराब की दुकानों पर शराब नहीं बेचने के लिए सख्त हिदायत के बाद भी नियम व नीतियो की हर दिन सरेआम अवहेलना हो रही है। पुलिस व आबकारी विभाग के अधिकारी मौन साधे तमाशा देख रहे है। रात आठ बजे के बाद भी अधिकृत शराब की दुकानों पर बेरोकटोक शराब का कारोबार देखा जा सकता है।
राज्य सरकार ने रात आठ बजे के बाद अधिकृत दुकानों पर शराब की बिक्री पर पाबंदी घोषित कर रखी है, लेकिन जवाबदार महकमों की चलताऊ नीति के चलते सरकारी आदेशों की पालना नहीं हो रही है। रात आठ बजते ही दुकानों पर ताले जरूर लग जाते हैं, लेकिन कारोबार देर रात तक बदस्तूर चलता रहता है। दुकानदारों व सेल्समैन द्वारा बंद शटर के पीछे दुकान में बैठकर ग्राहकों को देर रात तक शराब थमाई जाती है।
सहूलियत के लिहाज से इन दुकानों के शटर के ऊपरी हिस्से में इस तरह झिरी बनाई गई हैं कि बंद दुकान के भीतर बैठा सेल्समैन बाहर खड़े ग्राहक को उसके इच्छित ब्राण्ड की शराब थमा देता है। बाहर से भले ही दुकान बंद नजर आती हो, लेकिन कारोबार पर किसी भी प्रकार का असर नहीं है। यह बात भी नहीं है कि वस्तुस्थिति की सत्यता से पुलिस व आबकारी विभाग के अधिकारी वाकिफ नहीं है। पुलिस व आबकारी विभाग के कर्मचारियों व अधिकारियों तथा गश्ती वाहनों का भी इन दुकानों के आगे से देर रात तक आवागमन रहता है।
बढ़ा अवैध शराब का कारोबार
सरकार की शराब नीति से कारोबार पर तो ज्यादा असर नहीं हुआ है। बहरहाल अवैध शराब के कारोबारियों का धंधा जरूर चेत गया है। शहर में आबादी इलाकों में ऎसे कई ठिकाने हैं, जहां रहवासीय मकानों में अवैध शराब का कारोबार चल रहा है। रात आठ बजे के बाद शराब की इन अवैध दुकानों पर ग्राहकों की रेलमपेल लगी रहती है। इसके अलावा अधिकृत शराब की दुकानों के आस-पास भी अवैध शराब का कारोबार करने वाले लोग ग्राहकों की टोह में खड़े रहते है।
मोबाइल पर डिलीवरी
शहर के शराब कारोबार में एक नया चलन इजाद हुआ है। अवैध शराब का कारोबार करने वाले लोगों ने पियक्कड़ों को अपने मोबाइल नम्बर दे रखे है। ग्राहकों द्वारा इनके मोबाइल पर कॉल कर ब्राण्ड व मात्रा बता दी जाती है और अवैध कारोबारी या उसके आदमी दुपहिया वाहन लेकर ग्राहक के बताए पते पर शराब पहुंचा देते हैं। इस सुविधा के लिए अवैध शराब का कारोबार करने वाले लोगों द्वारा अतिरिक्त चार्ज भी नहीं लिया जाता।
बालोतरा। रात आठ बजे तक शराब की नीति बालोतरा सहित उपखंड क्षेत्र के गांवों में दिखावा बनकर रह गई है। रात आठ बजे के बाद अधिकृत शराब की दुकानों पर शराब नहीं बेचने के लिए सख्त हिदायत के बाद भी नियम व नीतियो की हर दिन सरेआम अवहेलना हो रही है। पुलिस व आबकारी विभाग के अधिकारी मौन साधे तमाशा देख रहे है। रात आठ बजे के बाद भी अधिकृत शराब की दुकानों पर बेरोकटोक शराब का कारोबार देखा जा सकता है।
राज्य सरकार ने रात आठ बजे के बाद अधिकृत दुकानों पर शराब की बिक्री पर पाबंदी घोषित कर रखी है, लेकिन जवाबदार महकमों की चलताऊ नीति के चलते सरकारी आदेशों की पालना नहीं हो रही है। रात आठ बजते ही दुकानों पर ताले जरूर लग जाते हैं, लेकिन कारोबार देर रात तक बदस्तूर चलता रहता है। दुकानदारों व सेल्समैन द्वारा बंद शटर के पीछे दुकान में बैठकर ग्राहकों को देर रात तक शराब थमाई जाती है।
सहूलियत के लिहाज से इन दुकानों के शटर के ऊपरी हिस्से में इस तरह झिरी बनाई गई हैं कि बंद दुकान के भीतर बैठा सेल्समैन बाहर खड़े ग्राहक को उसके इच्छित ब्राण्ड की शराब थमा देता है। बाहर से भले ही दुकान बंद नजर आती हो, लेकिन कारोबार पर किसी भी प्रकार का असर नहीं है। यह बात भी नहीं है कि वस्तुस्थिति की सत्यता से पुलिस व आबकारी विभाग के अधिकारी वाकिफ नहीं है। पुलिस व आबकारी विभाग के कर्मचारियों व अधिकारियों तथा गश्ती वाहनों का भी इन दुकानों के आगे से देर रात तक आवागमन रहता है।
बढ़ा अवैध शराब का कारोबार
सरकार की शराब नीति से कारोबार पर तो ज्यादा असर नहीं हुआ है। बहरहाल अवैध शराब के कारोबारियों का धंधा जरूर चेत गया है। शहर में आबादी इलाकों में ऎसे कई ठिकाने हैं, जहां रहवासीय मकानों में अवैध शराब का कारोबार चल रहा है। रात आठ बजे के बाद शराब की इन अवैध दुकानों पर ग्राहकों की रेलमपेल लगी रहती है। इसके अलावा अधिकृत शराब की दुकानों के आस-पास भी अवैध शराब का कारोबार करने वाले लोग ग्राहकों की टोह में खड़े रहते है।
मोबाइल पर डिलीवरी
शहर के शराब कारोबार में एक नया चलन इजाद हुआ है। अवैध शराब का कारोबार करने वाले लोगों ने पियक्कड़ों को अपने मोबाइल नम्बर दे रखे है। ग्राहकों द्वारा इनके मोबाइल पर कॉल कर ब्राण्ड व मात्रा बता दी जाती है और अवैध कारोबारी या उसके आदमी दुपहिया वाहन लेकर ग्राहक के बताए पते पर शराब पहुंचा देते हैं। इस सुविधा के लिए अवैध शराब का कारोबार करने वाले लोगों द्वारा अतिरिक्त चार्ज भी नहीं लिया जाता।
माजीसा मंदिर में उमड़े हजारों श्रद्धालु
माजीसा मंदिर में उमड़े हजारों श्रद्धालु
बालोतरा। मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी को जसोल माता राणी भटियाणी के दर्शन के लिए प्रदेश भर से हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। श्रद्धालुओं ने मां के दरबार में शीश नवा, प्रसाद चढ़ा परिवार में खुशहाली की कामना की। दिन भर श्रद्धालुओं की आवाजाही से यहां मेले सा माहौल दिखाई दिया। शुक्ल पक्ष की शुरूआत के साथ माता राणी भटियाणी मंदिर जसोल में दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालुओं के पहुंचने का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह अनवरत रूप से जारी है।
प्रदेश व क्षेत्र से अब तक हजारों श्रद्धालुु मां के दरबार में सिर नवा व प्रसाद चढ़ाकर मन्नतें मांग चुके हैं। द्वादशी को मां के दर्शन व आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रदेश के कोने कोने से हजारों की संख्या में पहुंचे। इसके अलावा बालोतरा सहित क्षेत्र के गांवों से अलसुबह बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां के जयकारे लगाते व भजन गाते हुए पैदल जत्थों के रूप में मंदिर पहुंचे। उन्होंने मां की मंगला आरती उतार व प्रसाद चढ़ाकर परिवार में खुशहाली की कामना की। इस दिन मांजीसा की प्रतिमा का नए वस्त्रों, गहनों व फूलमालाओं से श्रृंगार किया गया। दिन निकलने के बाद दूर दूर से रेलों, बसों व निजी साधनों में सवार होकर हजारों श्रद्धालु मंदिर पहुंचे।
समूचा मंदिर खचाखच भर गया। यहां लगी लंबी कतारों में श्रद्धालुओं ने घंटों खड़े रहकर आई बारी पर मां के दरबार में शीश नवाया, चुंदड़ी, कुंकुंम, श्रीफल, मांजीसा का बागा, धूप, अगरबत्ती, प्रसाद चढ़ाकर परिवार में खुशहाली की कामना की। सुखमय जीवन की कामना को लेकर वर वधू ने सेड़ा बंधी बांधकर मंदिर की परिक्रमा लगाई। अपने नौनिहालों के दीघार्यु जीवन की कामना को लेकर अभिभावकों ने उनके झडूले उतवाए। संतान कामना को लेकर नि:संतान दम्पतियों ने बायोसा की खेजड़ी के तांती व झूला बांधा।
इसके अलावा कई श्रद्धालुओं ने अपनी मनोकामनाओं के पूरा होने पर परिवार सदस्यों व रिश्तेदारों के साथ मांजीसा के नाम रातीजोगा दिया। श्रद्धालुओं ने परिसर में स्थित सवाईसिंहजी, लालसिंहजी व बायोसा के मंदिर में भी पूजा अर्चना कर परिवार में खुशहाली की कामना की। श्रद्धालुओं द्वारा लगाए जाने वाले जयकारो व गाए जाने वाले भक्तिगीतों से पूरे दिन माहौल धर्ममय बना रहा। इसके बाद मंदिर के बाहर लगे हाट बाजार में खरीदारी की। दिन भर श्रद्धालुओं की आवाजाही लगी रहने से यहां मेले सा माहौल नजर आया। मंदिर ट्रस्ट द्वारा श्रद्धालुओं की सुविधार्थ छाया, पानी, चिकित्सा एवं सुरक्षा का व्यापक इंतजाम किया गया।
बालोतरा। मार्गशीर्ष शुक्ल द्वादशी को जसोल माता राणी भटियाणी के दर्शन के लिए प्रदेश भर से हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। श्रद्धालुओं ने मां के दरबार में शीश नवा, प्रसाद चढ़ा परिवार में खुशहाली की कामना की। दिन भर श्रद्धालुओं की आवाजाही से यहां मेले सा माहौल दिखाई दिया। शुक्ल पक्ष की शुरूआत के साथ माता राणी भटियाणी मंदिर जसोल में दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालुओं के पहुंचने का जो सिलसिला शुरू हुआ था, वह अनवरत रूप से जारी है।
प्रदेश व क्षेत्र से अब तक हजारों श्रद्धालुु मां के दरबार में सिर नवा व प्रसाद चढ़ाकर मन्नतें मांग चुके हैं। द्वादशी को मां के दर्शन व आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रदेश के कोने कोने से हजारों की संख्या में पहुंचे। इसके अलावा बालोतरा सहित क्षेत्र के गांवों से अलसुबह बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां के जयकारे लगाते व भजन गाते हुए पैदल जत्थों के रूप में मंदिर पहुंचे। उन्होंने मां की मंगला आरती उतार व प्रसाद चढ़ाकर परिवार में खुशहाली की कामना की। इस दिन मांजीसा की प्रतिमा का नए वस्त्रों, गहनों व फूलमालाओं से श्रृंगार किया गया। दिन निकलने के बाद दूर दूर से रेलों, बसों व निजी साधनों में सवार होकर हजारों श्रद्धालु मंदिर पहुंचे।
समूचा मंदिर खचाखच भर गया। यहां लगी लंबी कतारों में श्रद्धालुओं ने घंटों खड़े रहकर आई बारी पर मां के दरबार में शीश नवाया, चुंदड़ी, कुंकुंम, श्रीफल, मांजीसा का बागा, धूप, अगरबत्ती, प्रसाद चढ़ाकर परिवार में खुशहाली की कामना की। सुखमय जीवन की कामना को लेकर वर वधू ने सेड़ा बंधी बांधकर मंदिर की परिक्रमा लगाई। अपने नौनिहालों के दीघार्यु जीवन की कामना को लेकर अभिभावकों ने उनके झडूले उतवाए। संतान कामना को लेकर नि:संतान दम्पतियों ने बायोसा की खेजड़ी के तांती व झूला बांधा।
इसके अलावा कई श्रद्धालुओं ने अपनी मनोकामनाओं के पूरा होने पर परिवार सदस्यों व रिश्तेदारों के साथ मांजीसा के नाम रातीजोगा दिया। श्रद्धालुओं ने परिसर में स्थित सवाईसिंहजी, लालसिंहजी व बायोसा के मंदिर में भी पूजा अर्चना कर परिवार में खुशहाली की कामना की। श्रद्धालुओं द्वारा लगाए जाने वाले जयकारो व गाए जाने वाले भक्तिगीतों से पूरे दिन माहौल धर्ममय बना रहा। इसके बाद मंदिर के बाहर लगे हाट बाजार में खरीदारी की। दिन भर श्रद्धालुओं की आवाजाही लगी रहने से यहां मेले सा माहौल नजर आया। मंदिर ट्रस्ट द्वारा श्रद्धालुओं की सुविधार्थ छाया, पानी, चिकित्सा एवं सुरक्षा का व्यापक इंतजाम किया गया।
मंगलवार, 25 दिसंबर 2012
पिता ने सुपारी देकर कराई बेटे की हत्या
पिता ने सुपारी देकर कराई बेटे की हत्या
भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के एक व्यापारी ने अपने पुत्र की हरकतों से परेशान होकर तीन लाख रूपए की सुपारी देकर उसकी हत्या करा दी। इस मामले में पुलिस ने पिता और तीन अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस सूत्रों के अनुसार पुराने शहर के अजय अग्रवाल का शव बैैरसिया थाना क्षेत्र के जंगल में एक सप्ताह पहले मिला था। उसके शरीर पर धारदार हथियारों के निशान थे। वहीं अजय के पिता रमेशचंद्र अग्रवाल ने पुत्र के लापता होने के बाद यहां कोतवाली थाना क्षेत्र में उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई।
सूत्रों ने कहा कि प्रारंभिक पड़ताल में लूटपाट के इरादे से हत्या की वारदात की बात सामने आई थी लेकिन कुछ सूचनाओं के आधार पर पुलिस ने काम किया तो मामला सामने आ गया। व्यापारी ने अपने मुनीम उत्तमचंद जैन के माध्यम से एक कर्मचारी मान सिंह को पुत्र की हत्या की सुपारी तीन लाख रूपए में दी थी। मान सिंह अपने एक रिश्तेदार लाखन के साथ अजय को घुमाने के बहाने शहर से बाहर ले गया और पहले तीनों ने शराब का सेवन किया। इसके बाद जंगल में ले जाकर अजय की धारदार हथियार से हत्या कर दी। आरोपियों ने इस काम को अंजाम देने के पहले ही 60 हजार रूपए ले लिए थे और शेष रूपए काम को अंजाम देने के बाद देना तय हुआ था।
सूत्रों ने कहा कि चारों आरोपियों को सोमवार को गिरफ्तार करके अदालतमें पेश किया गया जहां से मान सिंह और लाखन को दो दिन की पुलिस रिमांड पर लिया गया है ताकि 60 हजार रूपए के बारे में पता लगाया जा सके। दो अन्य आरोपी रमेशचंद्र अग्रवाल और उत्तमचंद जैन को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया है। बताया गया है कि अजय बुरी सौबत में आ गया था और प्रति दिन घर से पैसे लेकर मौज-मस्ती के लिए निकल जाता था। मना करने पर वह पिता और अन्य परिजनों से अक्सर मारपीट करता था।
भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के एक व्यापारी ने अपने पुत्र की हरकतों से परेशान होकर तीन लाख रूपए की सुपारी देकर उसकी हत्या करा दी। इस मामले में पुलिस ने पिता और तीन अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस सूत्रों के अनुसार पुराने शहर के अजय अग्रवाल का शव बैैरसिया थाना क्षेत्र के जंगल में एक सप्ताह पहले मिला था। उसके शरीर पर धारदार हथियारों के निशान थे। वहीं अजय के पिता रमेशचंद्र अग्रवाल ने पुत्र के लापता होने के बाद यहां कोतवाली थाना क्षेत्र में उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई।
सूत्रों ने कहा कि प्रारंभिक पड़ताल में लूटपाट के इरादे से हत्या की वारदात की बात सामने आई थी लेकिन कुछ सूचनाओं के आधार पर पुलिस ने काम किया तो मामला सामने आ गया। व्यापारी ने अपने मुनीम उत्तमचंद जैन के माध्यम से एक कर्मचारी मान सिंह को पुत्र की हत्या की सुपारी तीन लाख रूपए में दी थी। मान सिंह अपने एक रिश्तेदार लाखन के साथ अजय को घुमाने के बहाने शहर से बाहर ले गया और पहले तीनों ने शराब का सेवन किया। इसके बाद जंगल में ले जाकर अजय की धारदार हथियार से हत्या कर दी। आरोपियों ने इस काम को अंजाम देने के पहले ही 60 हजार रूपए ले लिए थे और शेष रूपए काम को अंजाम देने के बाद देना तय हुआ था।
सूत्रों ने कहा कि चारों आरोपियों को सोमवार को गिरफ्तार करके अदालतमें पेश किया गया जहां से मान सिंह और लाखन को दो दिन की पुलिस रिमांड पर लिया गया है ताकि 60 हजार रूपए के बारे में पता लगाया जा सके। दो अन्य आरोपी रमेशचंद्र अग्रवाल और उत्तमचंद जैन को न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया है। बताया गया है कि अजय बुरी सौबत में आ गया था और प्रति दिन घर से पैसे लेकर मौज-मस्ती के लिए निकल जाता था। मना करने पर वह पिता और अन्य परिजनों से अक्सर मारपीट करता था।
जैसलमेर न्यूज़ बॉक्स ....आज की खबरे
जैसलमेर न्यूज़ बॉक्स ....आज की खबरे
ग्रामीण समस्याओं के निराकरण में तेजी लाएं - शाले मोहम्मद
पोकरण विधायक ने किया दर्जन भर ढांणियों का दौरा
जैसलमेर, 25 दिसंबर/पोकरण विधायक शाले मोहम्मद ने ग्रामीणों की समस्याओं के शीघ्र समाधान के लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिए हैं और कहा है कि ग्राम्य विकास की गतिविधियों तथा ग्रामीणों की समस्याओं के समाधान के लिए त्वरित गति से प्रयास किए जाएं।
पोकरण विधायक ने मंगलवार को जैसलमेर जिले के विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा करते हुए ग्रामीण विकास की गतिविधियों का अवलोकन किया और ग्रामीणों से चर्चा करते हुए समस्याएं सुनने के बाद संबंधित अधिकारियों को दूरभाष पर यह निर्देश दिए।
विधायक शाले मोहम्मद ने नेड़ान और मदासर क्षेत्र में पुंजराजसिंह की ढांणी, चारणों की ढांणी, राजपूतों की ढांणी, भीमसिंह गणपतसिंह परिहार की ढांणी, हाथीसिंह अनोपिंसंह की ढांणी, मंगलियों की ढांणी सहित दर्जन भर ढांणियों का दौरा किया और सभी स्थानों पर ग्रामीणों से चर्चा की।
नेड़ान क्षेत्र की ढांणियों में ग्रामीणों ने पर्याप्त संख्या में हैण्डपंप खुदवाने तथा खराब हैण्डपंपों को ठीक कराने और पिछले आठ माह से घरेलू कनेक्शन के लिए डिमाण्ड राशि जमा करा चुकने के बाद भी बिजली कनेक्शन नहीं मिल पाने की जानकारी विधायक को दी।
इस पर विधायक ने पानी और बिजली से संबंधित अधिकारियों को दूरभाष पर निर्देश दिए कि इन मामलों में तत्काल कार्यवाही कर ग्रामीणों को राहत पहुंचायें। उनके साथ पंचायत समिति सदस्य शिवदानसिंह नेडान तथा अन्य ग्रामीण समाजसेवी भी थे।
मदासर क्षेत्र में पानी के टांकों तक पाईप लाईन जोड़ने का आग्रह ग्रामीणों ने किया। इस पर अधिकारियों से चर्चा कर जल्द से जल्द ऎसा किए जाने के निर्देश दिए।
गुजरात के राष्ट्रीय आपदा मोचन बल द्वारा आपदाओं से बचने की जानकारी दी गई
जैसलमेर, 25 दिसम्बर/ गुजरात राज्य की राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एन.डी.आर.एफ.) की छठी बटालियन द्वारा जैसलमेर शहर स्थित अमर शहीद सागरमल गोपा राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में मंगलवार को विद्यालयी छात्र-छात्राओं एवं विद्यालयी परिवार तथा जिले की विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं के सदस्यों को आपदा आधारित जन जागरुकता अभियान के अन्तर्गत विभिन्न प्राकृतिक एवं अन्य आपदाओं से बचाव के तरीकों एवं प्राथमिक उपचारों की जानकारी दी गई।
प्रधानाचार्य बंशीलाल सोनी ने बताया कि इस आपदा बचाव कार्यक्रम के दौरान सड़क दुर्घटना के समय रक्त स्राव को प्रभावी ढंग से रोकने, सांप के काटे जाने पर, नुकीली वस्तु के लगने पर, बाढ़, आग और भूकम्प के दौरान किए जाने वाले बचाव कार्यक्रम के के बारे में बल के जाबांज जवानों द्वारा बेहतर जानकारी प्रदान की गई।
इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय सेवा योजना के छात्रों ने बढ़-चढ़ कर सक्रिय योगदान दिया। इस कार्यक्रम के अवसर पर जिला प्रशासन की ओर से लेखाकार जगदीश खत्री एवं अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधिगण भी उपस्थित थे। आपदा प्रबंधन एवं बचाव के कार्यक्रमों के प्रति लोगों की बहुत ही अच्छी रुचि देखी गयी।
जैसलमेर तहसील में डिजीटल जमाबंदी का शुभारंभ
जैसलमेर, 25 दिसम्बर/जैसलमेर तहसील में डिजीटल जमाबंदी का शुभांरभ सोमवार को किया गया जिसके अन्तर्गत जैसलमेर तहसील के नागरिक सेवा केन्द्रों एवं ई-मित्र केन्द्रों को जिला कलक्ट्री परिसर में स्थित डीआरडी हॉल में एक दिवसीय प्रशिक्षण का कार्यक्रम आयोजित किया गया।
इस कार्यक्रम के अन्तर्गत वक्रांगी के जिला समन्वयक संजय छंगाणी एवं ई-मित्र सोसायटी के सूचना सहायक विनोद छंगाणी ने सभी वीएलई को जमाबंदी सम्बंधी तकनीक का प्रशिक्षण दिया। इस से पूर्व जमाबंदी की सेवाएँ स्थानीय साईबर कियोस्क द्वारा दी जाती थीं। अब यह सेवा केवल ई-मित्र एवं नागरिक सेवा केन्द्रों द्वारा ही प्रदान की जायेगी। इस सेवा के लिए प्रति पेज 30 रुपये निर्धारित किये गये हैं। प्रशिक्षण में जमाबंदी के लिए नागरिकों में जागरूकता पर जोर दिया गया और कहा गया कि इसका लाभ लेने के लिए व्यापक प्रचार-प्रसार जरूरी है। इस प्रशिक्षण में 11 कियोस्क संचालकों ने भाग लिया।
उप खंड अधिकारी विनीता सिंह विशाला में रात्रि चौपाल में ग्रामीणों से हुई रूबरू
उप खंड अधिकारी विनीता सिंह विशाला में रात्रि चौपाल में ग्रामीणों से हुई रूबरू
बाड़मेर बाड़मेर उप खंड अधिकारी विनीता सिंह ने सोमवार को ग्राम पंचायत विशाल मुख्यालय पर रात्री चौपाल में ग्रामीणों को समस्याओ को सूना तथा समस्याओ के निराकरण के सम्बंधित विभाग के अधिकारियो को निर्देश दिए ,सोमवार रार्त्र चौपाल में विशाल के ग्रामीणों ने बताया की पिछले लम्बे समय से बिजली के बिल खपत से कहीं अधिक आ रहे हें ,बिजली विभाग के अधिकारियो को इस सम्बन्ध में लिखित और मौखिक रूप से कई बार बताने के बावजूद कोई कार्यवाही नहीं हुई ,ग्रामीणों की समस्या को गंभीरता से लेते हुए उप खंड अधिकारी ने समबन्धित विभाग के अधिकारियों को बिजली के बिल शीघ्र दुरुस्त करने के निर्देश दिए ,ग्रामीणों ने क्षेत्र में पेयजल समस्या को भी प्रमुखता से रखा ,दुदाबेरी पंच्जायत के नया मालवा मलवा गाँव के ग्रामीणों ने समस्या के बारे में बताया की पिछले साल भर से पेयजल समस्या से जूझ रहें हें विभाग के अधिकारियो सहित जनप्रतिनिधियों को भी बताया मगर समाधान नहीं हो रहा ,उप खंड अधिकारी विनीता सिंह ने क्षेत्र की पेयजल समस्याओ के शीघ्र निस्तारण के निर्देश सम्बंधित विभाग को दिए ,विनीता सिंह ने ग्रामीणों की जन समस्याओ को गंभीरता से सूना तथा समस्याओ के शीघ्र निस्तारण का विशवास दिया ,रात्री चौपाल में उप खंड अधिकारी के साथ कई विभागों के अधिकारियो सहित सरपंच बलवंत सिंह भाटी भी मौजूद थे
बाड़मेर बाड़मेर उप खंड अधिकारी विनीता सिंह ने सोमवार को ग्राम पंचायत विशाल मुख्यालय पर रात्री चौपाल में ग्रामीणों को समस्याओ को सूना तथा समस्याओ के निराकरण के सम्बंधित विभाग के अधिकारियो को निर्देश दिए ,सोमवार रार्त्र चौपाल में विशाल के ग्रामीणों ने बताया की पिछले लम्बे समय से बिजली के बिल खपत से कहीं अधिक आ रहे हें ,बिजली विभाग के अधिकारियो को इस सम्बन्ध में लिखित और मौखिक रूप से कई बार बताने के बावजूद कोई कार्यवाही नहीं हुई ,ग्रामीणों की समस्या को गंभीरता से लेते हुए उप खंड अधिकारी ने समबन्धित विभाग के अधिकारियों को बिजली के बिल शीघ्र दुरुस्त करने के निर्देश दिए ,ग्रामीणों ने क्षेत्र में पेयजल समस्या को भी प्रमुखता से रखा ,दुदाबेरी पंच्जायत के नया मालवा मलवा गाँव के ग्रामीणों ने समस्या के बारे में बताया की पिछले साल भर से पेयजल समस्या से जूझ रहें हें विभाग के अधिकारियो सहित जनप्रतिनिधियों को भी बताया मगर समाधान नहीं हो रहा ,उप खंड अधिकारी विनीता सिंह ने क्षेत्र की पेयजल समस्याओ के शीघ्र निस्तारण के निर्देश सम्बंधित विभाग को दिए ,विनीता सिंह ने ग्रामीणों की जन समस्याओ को गंभीरता से सूना तथा समस्याओ के शीघ्र निस्तारण का विशवास दिया ,रात्री चौपाल में उप खंड अधिकारी के साथ कई विभागों के अधिकारियो सहित सरपंच बलवंत सिंह भाटी भी मौजूद थे
श्रीगंगानगर पति ने बीवी को देह व्यापार में धकेला!
पति ने बीवी को देह व्यापार में धकेला!
श्रीगंगानगर। राजस्थान के गंगानगर में सनसनीखेज मामला सामने आया है। यहां एक युवती ने स्थानीय नेता सहित 9 प्रभावशाली लोगों के खिलाफ यौन शोषण का मामला दर्ज कराया है।
पुलिस सूत्रों के मुताबिक युवती तीन चार दिन पहले पुलिस अधीक्षक संतोष चालके के समक्ष पेश हुई थी। उसने अपने पति संदीप बजाज पर दिखावे के लिए शादी कर जबरन देह व्यापार में धकेलने का आरोप लगाते हुए शिकायत की।
युवती का आरोप है कि संदीप ने उसकी अश्लील फिल्म बना ली और उसे जबरन एक नेता "एक कॉलोनाइजर" एक सरकारी कर्मचारी सहित कु छ सम्पन्न लोगों के साथ संबंध बनाने के लिए मजबूर किया। युवती अपनी छोटी बहन को बचाने के लिए यह सब करती रही लेकिन जब संदीप के अत्याचारों की हद हो गई तब उसने पुलिस अधीक्षक को आप बीती सुनाई।
युवती मूलरूप से सीकर जिले के फ तेहपुर शेखावाटी क्षेत्र की रहने वाली है। उसके माता-पिता का कुछ समय पहले देहांत हो गया था।
पीडिता का आरोप है कि संदीप और कुछ लोगों का एक गिरोह है,जिसने सात अन्य युवतियों को भी फंसाकर रखा है। गिरोह के सदस्यों ने इन युवतियों के प्रभावशाली लोगों के साथ अश्लील चित्र बना लिए। इसके जरिए वे उन लोगों को ब्लैक मेल कर रहे है। पुलिस ने एसपी के आदेश पर संदीप बजाज को गिरफ्तार कर लिया है। अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी की कोशिशें जारी है।
श्रीगंगानगर। राजस्थान के गंगानगर में सनसनीखेज मामला सामने आया है। यहां एक युवती ने स्थानीय नेता सहित 9 प्रभावशाली लोगों के खिलाफ यौन शोषण का मामला दर्ज कराया है।
पुलिस सूत्रों के मुताबिक युवती तीन चार दिन पहले पुलिस अधीक्षक संतोष चालके के समक्ष पेश हुई थी। उसने अपने पति संदीप बजाज पर दिखावे के लिए शादी कर जबरन देह व्यापार में धकेलने का आरोप लगाते हुए शिकायत की।
युवती का आरोप है कि संदीप ने उसकी अश्लील फिल्म बना ली और उसे जबरन एक नेता "एक कॉलोनाइजर" एक सरकारी कर्मचारी सहित कु छ सम्पन्न लोगों के साथ संबंध बनाने के लिए मजबूर किया। युवती अपनी छोटी बहन को बचाने के लिए यह सब करती रही लेकिन जब संदीप के अत्याचारों की हद हो गई तब उसने पुलिस अधीक्षक को आप बीती सुनाई।
युवती मूलरूप से सीकर जिले के फ तेहपुर शेखावाटी क्षेत्र की रहने वाली है। उसके माता-पिता का कुछ समय पहले देहांत हो गया था।
पीडिता का आरोप है कि संदीप और कुछ लोगों का एक गिरोह है,जिसने सात अन्य युवतियों को भी फंसाकर रखा है। गिरोह के सदस्यों ने इन युवतियों के प्रभावशाली लोगों के साथ अश्लील चित्र बना लिए। इसके जरिए वे उन लोगों को ब्लैक मेल कर रहे है। पुलिस ने एसपी के आदेश पर संदीप बजाज को गिरफ्तार कर लिया है। अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी की कोशिशें जारी है।
मुंहासे की क्रीम से सावधान रहें गर्भवती महिलाएं
मुंहासे की क्रीम से सावधान रहें गर्भवती महिलाएं
गर्भधारण करने की योजना बना रही या गर्भवती अथवा स्तनपान कराने वाली महिलाएं मुंहासों से निजात दिलाने वाली क्रीम चेहरे पर लगाना तो दूर उंगली से भी न छुएं क्योंकि इसका उनका गर्भस्थ शिशु हमेशा के लिए न सिर्फ पंगु हो सकता है, बल्कि उसके दिल में छेद तक होने का खतरा पैदा हो सकता है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की स्त्री रोग विभाग की पूर्व प्रमुख डाक्टर कमल बख्शी तथा फिनिक्स अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ शिवानी सचदेव समेत अनेक स्त्री रोग विशेषज्ञों का मानना है कि मुंहासों की क्रीम कैमिस्टों के पास खुले आम काउन्टर पर नहीं, बल्कि डाक्टर की सलाह पर ही पर्ची दिखा कर ही मिलनी चाहिए।
सचदेव का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान अकसर उन महिलाओं को भी मुंहासे निकल आते हैं जिन्हें इसके पहले कभी नहीं निकले हों। इसलिए महिलाएं बिना सोचे समझे सीधे कैमिस्ट की सलाह से या विज्ञापनों पर भरोसा कर मुंहासों की क्रीम लगाना शुरू देती हैं। उन्होंने कहा कि न सिर्फ गर्भवती या स्तनपान कराने वाली, बल्कि गर्भधारण की योजना बना रही महिलाओं तक को मुंहासे से छुटकारा दिलाने वाली क्रीमें चेहरे पर ही नहीं लगानी चाहिए बल्कि उंगली से भी नहीं छूनी चाहिए।
डाक्टर सचदेव ने बताया कि दरअसल मुंहासों से छुटकारा दिलाने वाली क्रीमों में एजेलेक एसिड एडेपलेन, ट्रेटिनोइन, सोडियम सल्फासेटेमाइड, किलनडामाइसिन एरथ्रोमाइसिन, सेलीसाइलिक एसिड, हाइड्रोकाटिजोन तथा बेंजोइल पेरौक्साइड जैसे तत्व होते हैं। जिनके रक्त में पहुंचने के बाद इनसे गर्भस्थ शिशु के हाथ पैर सामान्य से छोटे होना, दिल में छेद, मानसिक रूप से विक्षिप्त, होंठ या तालु कटे होना, आंखों व कानों में दोष तथा मूत्राशय से संबंधित दोष हो सकते हैं।
उन्होंने बताया कि खासतौर पर ऐसी क्रीम जिसमें ट्रेटिनोइन तत्व मौजूद हो, उसे गर्भवती या स्तन पान कराने वाली महिलाएं या फिर गर्भधारण करने की योजना बनाने वाली महिलाएं इसलिए नहीं छुएं क्योंकि क्रीम लगाने के बाद उसके तत्व त्वचा के भीतर पहुंच कर रक्त में शामिल हो जाते हैं और फिर प्लेसेंटा के माध्यम से गर्भसथ शिशु के रक्त में पहुंच जाते हैं।
डाक्टर बख्शी ने कहा कि कई क्रीमें गर्भावस्था के प्रारंभिक दौर में इस्तेमाल करना घातक नहीं होता लेकिन ट्रेटिनोइन तत्व मौजूद होने वाली क्रीम लगाने से शिशु में जन्मजात विकृतियां पैदा हो जाने का खतरा रहता है। उन्होंने कहा कि सोडियम सल्फासेटेमाइड युक्त क्रीम भी गर्भावस्था के दूसरे महीने के बाद इस्तेमाल नहीं करनी चाहिए।
विशेषज्ञों का कहना है कि मुंहासों की क्रीमों में विश्वस्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित 'सी' तथा 'एक्स' श्रेणी की दवाएं होती हैं। जिनसे गर्भस्थ शिशु में विकृतियां पैदा हो सकती हैं। जबकि कुछ का मानना है कि इनके नियमित इस्तेमाल से गर्भपात तक होने की आशंका होती है। अमेरिका में कई ऐसे अध्ययन किए जा चुके हैं जिनसे पता चलता है कि मुंहासे दूर करने क्रीम बिना डाक्टर की सलाह के तो कभी नहीं लगानी चाहिए, क्योंकि इनके तत्व रक्त में पहुंचते हैं और गर्भस्थ शिशु के लिए खतरा बन सकते हैं।
डाक्टर शिवानी ने कहा कि मुंहासों की जिन क्रीमों में ट्रेटिनोइन हो उसे तो गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान के अलावा गर्भधारन करने की योजना बनाने के दौरान भी नहीं प्रयोग में लाना चाहिए। क्योंकि इस्तेमाल बंद कर देने के बाद भी इसका असर कम से कम एक माह तक रहता है। अमेरिकन एसोसिएशन आफ फिजीशियन्स का कहना है डाक्टरों को किसी भी महिला को मुंहासों की क्रीम लगाने की सलाह देने से पहले उनकी उम्र का ध्यान अवश्य करना चाहिए तथा गर्भधारण करने वाली उम्र (चाइल्ड बियरिंग एज) की महिलाओं को तो खासतौर पर ये क्रीम लगाने की सलाह नहीं देनी चाहिए। इसके अलावा जिस दौरान महिलाओं को ये क्रीमें लगाने की सलाह दी जाती है उस दौरान उन्हें कडा़ई से गर्भनिरोधक उपायों का इस्तेमाल करने की भी सलाह देनी चाहिए।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की स्त्री रोग विभाग की पूर्व प्रमुख डाक्टर कमल बख्शी तथा फिनिक्स अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ शिवानी सचदेव समेत अनेक स्त्री रोग विशेषज्ञों का मानना है कि मुंहासों की क्रीम कैमिस्टों के पास खुले आम काउन्टर पर नहीं, बल्कि डाक्टर की सलाह पर ही पर्ची दिखा कर ही मिलनी चाहिए।
सचदेव का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान अकसर उन महिलाओं को भी मुंहासे निकल आते हैं जिन्हें इसके पहले कभी नहीं निकले हों। इसलिए महिलाएं बिना सोचे समझे सीधे कैमिस्ट की सलाह से या विज्ञापनों पर भरोसा कर मुंहासों की क्रीम लगाना शुरू देती हैं। उन्होंने कहा कि न सिर्फ गर्भवती या स्तनपान कराने वाली, बल्कि गर्भधारण की योजना बना रही महिलाओं तक को मुंहासे से छुटकारा दिलाने वाली क्रीमें चेहरे पर ही नहीं लगानी चाहिए बल्कि उंगली से भी नहीं छूनी चाहिए।
डाक्टर सचदेव ने बताया कि दरअसल मुंहासों से छुटकारा दिलाने वाली क्रीमों में एजेलेक एसिड एडेपलेन, ट्रेटिनोइन, सोडियम सल्फासेटेमाइड, किलनडामाइसिन एरथ्रोमाइसिन, सेलीसाइलिक एसिड, हाइड्रोकाटिजोन तथा बेंजोइल पेरौक्साइड जैसे तत्व होते हैं। जिनके रक्त में पहुंचने के बाद इनसे गर्भस्थ शिशु के हाथ पैर सामान्य से छोटे होना, दिल में छेद, मानसिक रूप से विक्षिप्त, होंठ या तालु कटे होना, आंखों व कानों में दोष तथा मूत्राशय से संबंधित दोष हो सकते हैं।
उन्होंने बताया कि खासतौर पर ऐसी क्रीम जिसमें ट्रेटिनोइन तत्व मौजूद हो, उसे गर्भवती या स्तन पान कराने वाली महिलाएं या फिर गर्भधारण करने की योजना बनाने वाली महिलाएं इसलिए नहीं छुएं क्योंकि क्रीम लगाने के बाद उसके तत्व त्वचा के भीतर पहुंच कर रक्त में शामिल हो जाते हैं और फिर प्लेसेंटा के माध्यम से गर्भसथ शिशु के रक्त में पहुंच जाते हैं।
डाक्टर बख्शी ने कहा कि कई क्रीमें गर्भावस्था के प्रारंभिक दौर में इस्तेमाल करना घातक नहीं होता लेकिन ट्रेटिनोइन तत्व मौजूद होने वाली क्रीम लगाने से शिशु में जन्मजात विकृतियां पैदा हो जाने का खतरा रहता है। उन्होंने कहा कि सोडियम सल्फासेटेमाइड युक्त क्रीम भी गर्भावस्था के दूसरे महीने के बाद इस्तेमाल नहीं करनी चाहिए।
विशेषज्ञों का कहना है कि मुंहासों की क्रीमों में विश्वस्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित 'सी' तथा 'एक्स' श्रेणी की दवाएं होती हैं। जिनसे गर्भस्थ शिशु में विकृतियां पैदा हो सकती हैं। जबकि कुछ का मानना है कि इनके नियमित इस्तेमाल से गर्भपात तक होने की आशंका होती है। अमेरिका में कई ऐसे अध्ययन किए जा चुके हैं जिनसे पता चलता है कि मुंहासे दूर करने क्रीम बिना डाक्टर की सलाह के तो कभी नहीं लगानी चाहिए, क्योंकि इनके तत्व रक्त में पहुंचते हैं और गर्भस्थ शिशु के लिए खतरा बन सकते हैं।
डाक्टर शिवानी ने कहा कि मुंहासों की जिन क्रीमों में ट्रेटिनोइन हो उसे तो गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान के अलावा गर्भधारन करने की योजना बनाने के दौरान भी नहीं प्रयोग में लाना चाहिए। क्योंकि इस्तेमाल बंद कर देने के बाद भी इसका असर कम से कम एक माह तक रहता है। अमेरिकन एसोसिएशन आफ फिजीशियन्स का कहना है डाक्टरों को किसी भी महिला को मुंहासों की क्रीम लगाने की सलाह देने से पहले उनकी उम्र का ध्यान अवश्य करना चाहिए तथा गर्भधारण करने वाली उम्र (चाइल्ड बियरिंग एज) की महिलाओं को तो खासतौर पर ये क्रीम लगाने की सलाह नहीं देनी चाहिए। इसके अलावा जिस दौरान महिलाओं को ये क्रीमें लगाने की सलाह दी जाती है उस दौरान उन्हें कडा़ई से गर्भनिरोधक उपायों का इस्तेमाल करने की भी सलाह देनी चाहिए।
मिनी स्कर्ट पहनीं महिलाएं स्विटजरलैंड में होंगी गिरफ्तार
स्विटजरलैंड में महिलाओं को चेतावनी दी गई है कि मिनी स्कर्ट और टॉप पहनने पर उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है, क्योंकि ऐसे परिधान से महिलाओं के पेट का हिस्सा दिखाई देता है। स्विटजरलैंड दक्षिण अफ्रीका की सीमा से सटा एक साम्राज्य है, जो चारों ओर अन्य देशों से घिरा हुआ है।
पुलिस प्रवक्ता वेंडी लेटा ने कहा कि पुलिस 1889 के एक कानून को लागू करेगी, जिसमें शिकायत मिलने पर अनैतिक तरीके से कपड़े पहनने के आरोप में गिरफ्तारी का प्रावधान है। समाचार पत्र टाइम्स ऑफ स्वाजीलैंड के मुताबिक लेटा ने कहा कि बलात्कारियों का काम आसान हो जाता है, क्योंकि आधे अधूरे वस्त्र पहनी महिलाओं के कपड़े हटाना आसान होता है।
लेटा के मुताबिक कम वस्त्र पहनने वाली महिलाएं अनावश्यक रूप से दूसरों का ध्यान खींचती हैं। नवंबर में दुष्कर्म के खिलाफ मिनी स्कर्ट में प्रदर्शन करने वाली महिलाओं को पुलिस ने आगे बढ़ने से रोक दिया था।
2000 में सरकार ने एक कानून बनाया था, जिसके मुताबिक 10 वर्ष या इससे अधिक उम्र की महिलाओं के लिए कम से कम घुटनों तक लंबी स्कर्ट पहनना अनिवार्य है। यह कानून व्यभिचार तथा एड्स का प्रसार रोकने के उद्देश्य से बनाया गया है। हालांकि स्तनपान या सांस्कृतिक परिधान पहनने को कानून के दायरे से बाहर रखा गया है।
पुलिस प्रवक्ता वेंडी लेटा ने कहा कि पुलिस 1889 के एक कानून को लागू करेगी, जिसमें शिकायत मिलने पर अनैतिक तरीके से कपड़े पहनने के आरोप में गिरफ्तारी का प्रावधान है। समाचार पत्र टाइम्स ऑफ स्वाजीलैंड के मुताबिक लेटा ने कहा कि बलात्कारियों का काम आसान हो जाता है, क्योंकि आधे अधूरे वस्त्र पहनी महिलाओं के कपड़े हटाना आसान होता है।
लेटा के मुताबिक कम वस्त्र पहनने वाली महिलाएं अनावश्यक रूप से दूसरों का ध्यान खींचती हैं। नवंबर में दुष्कर्म के खिलाफ मिनी स्कर्ट में प्रदर्शन करने वाली महिलाओं को पुलिस ने आगे बढ़ने से रोक दिया था।
2000 में सरकार ने एक कानून बनाया था, जिसके मुताबिक 10 वर्ष या इससे अधिक उम्र की महिलाओं के लिए कम से कम घुटनों तक लंबी स्कर्ट पहनना अनिवार्य है। यह कानून व्यभिचार तथा एड्स का प्रसार रोकने के उद्देश्य से बनाया गया है। हालांकि स्तनपान या सांस्कृतिक परिधान पहनने को कानून के दायरे से बाहर रखा गया है।
बोलेरो चोरी के दो आरोपी पुलिस की गिरफ्त में
बोलेरो चोरी के दो आरोपी पुलिस की गिरफ्त में
जैसलमेर बीस नवम्बर की रात्रि में इण्डेन गैस एजेन्सी के आगे से चोरी बोलेरो चोरी की वारदात में बोलेरो खरीदने वाले अभियुक्त की पूर्व में गिरफ्तारी की गई थी तथा जिला पुलिस अधीक्षक जैसलमेर ममता राहुल द्वारा उक्त मामले को गम्भीरता से लेते हुए, थानाधिकारी पुलिस थाना जैसलमेर वीरेन्द्रसिंह निपु को बोलेरो चोरी करने वाले चोरो को जल्द से जल्द गिरफतार करने के निर्देश दिये गये। जिसके बाद से बोलेरो चोरी करने वाले मुख्य आरोपीयों की तलाश जारी रखी गई थी। निर्देशानुसार वीरेन्द्र सिंह निपु थानाधिकारी पुलिस थाना जैसलमेर के नेतृत्व में प्रकरण में बोलेरो चोरी की वारदात में शेष अभियुक्त मांगीलाल पुत्र धुमालाराम व जयराम पुत्र नारायणराम जाति विश्नोई निवासीयान नया नगर पुलिस थाना गुड़ा मालानी जिला बाड़मेर को गठित टीम के सदस्य भगवानसिंह सउनि मय जाब्ता द्वारा अलगअलग जगह से गिरफ्तार किया गया हैं। जिनसे अन्य वाहन चोरी के वारदातों के बारे में पुछताछ जारी हैं।
पूर्व पत्नी की नाक काटी
पूर्व पत्नी की नाक काटी
इस्लामाबाद। पाकिस्तान में एक व्यक्ति ने कथित तौर पर एक साल पहले तलाक दे चुकी अपनी पूर्व पत्नी की नाक काट दी। व्यक्ति के बारे में बताया गया है कि वह नशेड़ी है।
उस व्यक्ति ने सोमवार को फैसलाबाद शहर में महिला पर हमला किया था। साजिदा बीबी ने कहा कि उसने फैज रसूल से चार साल पहले निकाह किया था। वह नशे का आदी था तथा उसे प्रताडित करता था इसलिए उसने पिछले साल साजिदा से तलाक ले लिया था।
फैज तभी से महिला को कथित तौर पर धमकी दे रहा था। महिला ने जियो न्यूज को बताया कि उसके पूर्व पति ने अपने एक सहयोगी के साथ उसका अपहरण किया उसके हाथ बांध दिए और उसकी नाक काट कर वह भाग गया।
इस्लामाबाद। पाकिस्तान में एक व्यक्ति ने कथित तौर पर एक साल पहले तलाक दे चुकी अपनी पूर्व पत्नी की नाक काट दी। व्यक्ति के बारे में बताया गया है कि वह नशेड़ी है।
उस व्यक्ति ने सोमवार को फैसलाबाद शहर में महिला पर हमला किया था। साजिदा बीबी ने कहा कि उसने फैज रसूल से चार साल पहले निकाह किया था। वह नशे का आदी था तथा उसे प्रताडित करता था इसलिए उसने पिछले साल साजिदा से तलाक ले लिया था।
फैज तभी से महिला को कथित तौर पर धमकी दे रहा था। महिला ने जियो न्यूज को बताया कि उसके पूर्व पति ने अपने एक सहयोगी के साथ उसका अपहरण किया उसके हाथ बांध दिए और उसकी नाक काट कर वह भाग गया।
जैसलमेर आकाशवाणी केन्द्र में पाँच दिवसीय वाणी कोर्स शुरू
जैसलमेर आकाशवाणी केन्द्र में पाँच दिवसीय वाणी कोर्स शुरू
जैसलमेर, 25 दिसम्बर/आकाशवाणी जैसलमेर में नवचयनित आकस्मिक उद्घोषकों और कम्पीयरों का पाँच दिवसीय वाणी कोर्स प्रशिक्षण सोमवार से प्रारम्भ हुआ।
आकाशवाणी के कार्यक्रम प्रमुख महेन्द्रसिंह लालस ने बताया कि केन्द्र द्वारा नवम्बर माह में स्वर परीक्षण आयोजित कर जिन आकस्मिक उद्घोषकों और कम्पीयरों का चयन किया गया था, उनमें से प्रथम बैच को पाँच दिवसीय वाणी कोर्स प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
लालस ने बताया कि इस प्रशिक्षण में 17 आकस्मिक उद्घोषक और कम्पीयर शामिल किए गए हैं जिन्हें प्रशिक्षण के प्रथम दिवस सुचारू एवं स्पष्ट उच्चारण तकनीक की जानकारी दी गई। उन्होंने बताया कि यह प्रशिक्षण नवचयनित आकस्मिक उद्घोषकों और कम्पीयरों को गुणवत्तायुक्त आकर्षक प्रसारण के योग्य बनने के उपाय सुझाने के लिए आयोजित किया गया है। इसके माध्यम से जैसलमेर अंचल में भाषा के साफ उच्चारण की समझ पैदा करना भी एक उद्देश्य है।
आकाशवाणी आज भी पहली पसन्द है
लालस के अनुसार इन पाँच दिनों में सम्भागियों को प्रसारण पूर्व तैयारियों, स्कि्रप्ट लेखन, सूचनाओं के संग्रहण एवं सम्पादन के साथ-साथ प्रसारण की दृष्टि से अपडेट करने का प्रशिक्षण दिया जाएगा।
उन्होंने संभागियों को बताया कि समय की पाबन्दी, विश्वसनीयता और प्रसारण की गुणवत्ता के कारण ही मनोरंजन,शिक्षा और सूचना के क्ष्ेात्र में आकाशवाणी आज भी श्रोताओं की पहली पसन्द है।
उत्तरदायित्वों की जानकारी दी
प्रशिक्षण सत्र को सम्बोधित करते हुए आकाशवाणी जैसलमेर के वरिष्ठ उद्घोषक सुशील पीटर थॉमस ने आकस्मिक उद्घोषकों और कम्पीयरों को इनके उत्तरदायित्वों की जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि स्थानीय स्तर से लेकर विश्व भर में घटित होने वाली नवीन जानकारियों और सूचनाओं श्रोताओं तक पूरी जिम्मेदारी एवं संजीदगी के साथ प्रसारित करना सबसे बड़ा दायित्व है। उन्होंने अच्छे आकस्मिक उद्घोषक और कम्पीयर की विशेषताओं और गुणों की जानकारी भी दी। मंगलवार को प्रशिक्षण के दौरान उन्होंने क्रिसमस की शुभकामनाएं भी दीं।
ये हैं संभागी
आकाशवाणी जैसलमेर द्वारा आयोजित किए जा रहे पाँच दिवसीय वाणी कोर्स में भाग लेने वाले सम्भागियों में दीपिका जोशी, प्रीति भाटिया, वीणा शर्मा, आरती व्यास, जेठूदान चारण, हनवंतसिंह चारण, सुनीता व्यास और राखी व्यास शमिल है। इनके साथ ही नेहा व्यास, अंकिता शर्मा, कोमल भाटिया, अन्नपूर्णा पुरोहित, आरती मिश्रा, प्रार्थना बिस्सा, मोनिका बिस्सा, प्रीति रामदेव और पूजा पुरोहित भी इस प्रथम प्रशिक्षण में शामिल है।
एक परिचय ..भारत की महान विभूति आमिर खुसरो
.एक परिचय ..भारत की महान विभूति आमिर खुसरो
अमीर खुसरो दहलवी का जन्म उत्तर-प्रदेश के एटा जिले के पटियाली नामक ग्राम में गंगा किनारे हुआ था। गाँव पटियाली उन दिनों मोमिनपुर या मोमिनाबाद के नाम से जाना जाता था। इस गाँव में अमीर खुसरो के जन्म की बात हुमायूँ काल के हामिद बिन फ़जलुल्लाह जमाली ने अपने ऐतिहासिक ग्रंथ 'तज़किरा सैरुल आरफीन' में सबसे पहले कही।
बचपन
अमीर खुसरो की माँ दौलत नाज़ हिन्दू (राजपूत) थीं। ये दिल्ली के एक रईस अमीर एमादुल्मुल्क की पुत्री थीं। ये बादशाह बलबन के युद्ध मंत्री थे। ये राजनीतिक दवाब के कारण नए-नए मुसलमान बने थे। इस्लाम धर्म ग्रहण करने के बावजूद इनके घर में सारे रीति-रिवाज हिन्दुओं के थे। खुसरो के ननिहाल में गाने-बजाने और संगीत का माहौल था। खुसरो के नाना को पान खाने का बेहद शौक था। इस पर बाद में खुसरो ने 'तम्बोला' नामक एक मसनवी भी लिखी। इस मिले जुले घराने एवं दो परम्पराओं के मेल का असर किशोर खुसरो पर पड़ा। जब खुसरो पैदा हुए थे तब इनके पिता इन्हें एक कपड़े में लपेट कर एक सूफ़ी दरवेश के पास ले गए थे। दरवेश ने नन्हे खुसरो के मासूम और तेजयुक्त चेहरे के देखते ही तत्काल भविष्यवाणी की थी - "आवरदी कसे राके दो कदम। अज़ खाकानी पेश ख्वाहिद बूद।" अर्थात तुम मेरे पास एक ऐसे होनहार बच्चे को लाए हो खाकानी नामक विश्व प्रसिद्ध विद्वान से भी दो कदम आगे निकलेगा। चार वर्ष की अल्प आयु में ही खुसरो अपने पिता के साथ दिल्ली आए और आठ वर्ष की अवस्था तक अपने पिता और भाइयों से शिक्षा पाते रहे। अमीर खुसरो के पहले भाई एज्जुद्दीन (अजीउद्दीन) (इजजुद्दीन) अली शाह (अरबी-फारसी विद्वान) थे। दूसरे भाई हिसामुद्दीन कुतलग अहमद (सैनिक) थे। तीन भाइयों में अमीर खुसरो सबसे अधिक तीव्र बुद्धि वाले थे। अपने ग्रंथ गुर्रतल कमाल की भूमिका में अमीर खुसरो ने अपने पिता को उम्मी अर्थात् अनपढ़ कहा है। लेकिन अमीर सैफुद्दीन ने अपने सुपुत्र अमीर खुसरो की शिक्षा-दीक्षा का बहुत ही अच्छा (नायाब) प्रबंध किया था। अमीर खुसरो की प्राथमिक शिक्षा एक मकतब (मदरसा) में हुई। वे छ: बरस की उम्र से ही मदरसा जाने लगे थे। स्वयं खुसरो के कथनानुसार जब उन्होंने होश सम्भाला तो उनके वालिद ने उन्हें एक मकतब में बिठाया और खुशनवीसी की महका के लिए काजी असुदुद्दीन मुहम्मद (या सादुद्दीन) के सुपुर्द किया। उन दिनों सुन्दर लेखन पर काफी बल दिया जाता था। अमीर खुसरो का लेखन बेहद ही सुन्दर था। खुसरो ने अपने फ़ारसी दीवान तुहफतुसिग्र (छोटी उम्र का तोहफ़ा - ६७१ हिज्री, सन १२७१, १६-१९ वर्ष की आयु) में स्वंय इस बात का ज़िक्र किया है कि उनकी गहन साहित्यिक अभिरुचि और काव्य प्रतिभा देखकर उनके गुरु सादुद्दीन या असदुद्दीन मुहम्मद उन्हें अपने साथ नायब कोतवाल के पास ले गए। वहाँ एक अन्य महान विद्वान ख़वाजा इज्जुद्दीन (अज़ीज़) बैठे थे। गुरु ने इनकी काव्य संगीत प्रतिभा तथा मधुर संगतीमयी वाणी की अत्यंत तारीफ की और खुसरो का इम्तहान लेने को कहा। ख्वाजा साहब ने तब अमीर खुसरो से कहा कि 'मू' (बाल), 'बैज' (अंडा), 'तीर' और 'खरपुजा' (खरबूजा) - इन चार बेजोड़, बेमेल और बेतरतीब चीज़ों को एक अशआर में इस्तमाल करो। खुसरो ने फौरन इन शब्दों को सार्थकता के साथ जोड़कर फारसी में एक सद्य:: रचित कविता सुनाई - 'हर मूये कि दर दो जुल्फ़ आँ सनम अस्त, सद बैज-ए-अम्बरी बर आँ मूये जम अस्त, चूँ तीर मदाँ रास्त दिलशरा जीरा, चूँ खरपुजा ददांश मियाने शिकम् अस्त।' अर्थातः उस प्रियतम के बालों में जो तार हैं उनमें से हर एक तार में अम्बर मछली जैसी सुगन्ध वाले सौ-सौ अंडे पिरोए हुए हैं। उस सुन्दरी के हृदय को तीर जैसा सीधा-सादा मत समझो व जानो क्योंकि उसके भीतर खरबूजे जैसे चुभनेवाले दाँत भी मौजूद हैं।
ख्वाजा साहब खुसरो की इस शानदार रुबाई को सुनकर चौंक पड़े और जी भर के खूब तारीफ़ की, फ़ौरन गले से लगाया और कहा कि तुम्हारा साहित्यिक नाम तो 'सुल्तानी' होना चाहिए। यह नाम तुम्हारे लिए बड़ा ही शुभ साबित होगा। यही वजह है कि खुसरो के पहले काव्य संग्रह 'तोहफतुसिग्र' की लगभग सी फ़ारसी गज़लों में यह साहित्यिक नाम हैं। बचपन से ही अमीर खुसरो का मन पढ़ाई-लिखाई की अपेक्षा शेरो-शायरी व काव्य रचना में अधिक लगता था। वे हृदय से बड़े ही विनोदप्रिय, हसोड़, रसिक, और अत्यंत महत्वकांक्षी थे। वे जीवन में कुछ अलग हट कर करना चाहते थे और वाक़ई ऐसा हुआ भी। खुसरो के श्याम वर्ण रईस नाना इमादुल्मुल्क और पिता अमीर सैफुद्दीन दोनों ही चिश्तिया सूफ़ी सम्प्रदाय के महान सूफ़ी साधक एवं संत हज़रत निजामुद्दीन औलिया उर्फ़े सुल्तानुल मशायख के भक्त अथवा मुरीद थे। उनके समस्त परिवार ने औलिया साहब से धर्मदीक्षा ली थी। उस समय खुसरो केवल सात वर्ष के थे। अमीर सैफुद्दीन महमूद (खुसरो के पिता) अपने दोनों पुत्रों को लेकर हज़रत निजामुद्दीन औलिया की सेवा में उपस्थित हुए। उनका आशय दीक्षा दिलाने का था। संत निजामुद्दीन की ख़ानक़ाह के द्वार पर वे पहुँचे। वहाँ अल्पायु अमीर खुसरो को पिता के इस महान उद्देश्य का ज्ञान हुआ। खुसरो ने कुछ सोचकर न चाहते हुए भी अपने पिता से अनुरोध किया कि मुरीद 'इरादा करने' वाले को कहते हैं और मेरा इरादा अभी मुरीद होने का नहीं है। अत: अभी केवल आप ही अकेले भीतर जाइए। मैं यही बाहर द्वार पर बैठूँगा। अगर निजामुद्दीन चिश्ती वाक़ई कोई सच्चे सूफ़ी हैं तो खुद बखुद मैं उनकी मुरीद बन जाऊँगा। आप जाइए। जब खुसरो के पिता भीतर गए तो खुसरो ने बैठे-बैठे दो पद बनाए और अपने मन में विचार किया कि यदि संत आध्यात्मिक बोध सम्पन्न होंगे तो वे मेरे मन की बात जान लेंगे और अपने द्वारा निर्मित पदों के द्वारा मेरे पास उत्तर भेजेंगे। तभी में भीतर जाकर उनसे दीक्षा प्राप्त कर्रूँगा अन्यथा नहीं। खुसरो के ये पद निम्न लिखित हैं -
'तु आँ शाहे कि बर ऐवाने कसरत, कबूतर गर नशीनद बाज गरदद। गुरीबे मुस्तमंदे बर-दर आमद, बयायद अंदर्रूँ या बाज़ गरदद।।'
अर्थात: तू ऐसा शासक है कि यदि तेरे प्रसाद की चोटी पर कबूतर भी बैठे तो तेरी असीम अनुकंपा एवं कृपा से बाज़ बन ज़ाए।
खुसरो मन में यही सोच रहे थे कि भीतर से संत का एक सेवक आया और खुसरो के सामने यह पद पढ़ा - 'बयायद अंद र्रूँ मरदे हकीकत, कि बामा यकनफस हमराज गरदद। अगर अबलह बुअद आँ मरदे - नादाँ। अजाँ राहे कि आमद बाज गरदद।।'
अर्थात - "हे सत्य के अन्वेषक, तुम भीतर आओ, ताकि कुछ समय तक हमारे रहस्य-भागी बन सको। यदि आगुन्तक अज्ञानी है तो जिस रास्ते से आया है उसी रास्ते से लौट जाए।' खुसरो ने ज्यों ही यह पद सुना, वे आत्मविभोर और आनंदित हो उठे और फौरन भीतर जा कर संत के चरणों में नतमस्तक हो गए। इसके पश्चात गुरु ने शिष्य को दीक्षा दी। यह घटना जाने माने लेखक व इतिहासकार हसन सानी निज़ामी ने अपनी पुस्तक तजकि-दह-ए-खुसरवी में पृष्ठ ९ पर सविस्तार दी है।
इस घटना के पश्चात अमीर खुसरो जब अपने घर पहुँचे तो वे मस्त गज़ की भाँती झूम रहे थे। वे गहरे भावावेग में डूबे थे। अपनी प्रिय माताजी के समक्ष कुछ गुनगुना रहे थे। आज क़व्वाली और शास्रीय व उप-शास्रीय संगीत में अमीर खुसरो द्वारा रचित जो 'रंग' गाया जाता है वह इसी अवसर का स्मरण स्वरुप है। हिन्दवी में लिखी यह प्रसिद्ध रचना इस प्रकार है - "आज रंग है ऐ माँ रंग है री, मेरे महबूब के घर रंग है री। अरे अल्लाह तू है हर, मेरे महबूब के घर रंग है री। मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया, निजामुद्दीन औलिया-अलाउद्दीन औलिया। अलाउद्दीन औलिया, फरीदुद्दीन औलिया, फरीदुद्दीन औलिया, कुताबुद्दीन औलिया। कुताबुद्दीन औलिया मोइनुद्दीन औलिया, मुइनुद्दीन औलिया मुहैय्योद्दीन औलिया। आ मुहैय्योदीन औलिया, मुहैय्योदीन औलिया। वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री। अरे ऐ री सखी री, वो तो जहाँ देखो मोरो (बर) संग है री। मोहे पीर पायो निजामुद्दीन औलिया, आहे, आहे आहे वा। मुँह माँगे बर संग है री, वो तो मुँह माँगे बर संग है री। निजामुद्दीन औलिया जग उजियारो, जग उजियारो जगत उजियारो। वो तो मुँह माँगे बर संग है री। मैं पीर पायो निजामुद्दीन औलिया। गंज शकर मोरे संग है री। मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखयो सखी री। मैं तो ऐसी रंग। देस-बदेस में ढूढ़ फिरी हूँ, देस-बदेस में। आहे, आहे आहे वा, ऐ गोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन। मुँह माँगे बर संग है री। सजन मिलावरा इस आँगन मा। सजन, सजन तन सजन मिलावरा। इस आँगन में उस आँगन में। अरे इस आँगन में वो तो, उस आँगन में। अरे वो तो जहाँ देखो मोरे संग है री। आज रंग है ए माँ रंग है री। ऐ तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन। मैं तो तोरा रंग मन भायो निजामुद्दीन। मुँह माँगे बर संग है री। मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी सखी री। ऐ महबूबे इलाही मैं तो ऐसो रंग और नहीं देखी। देस विदेश में ढूँढ़ फिरी हूँ। आज रंग है ऐ माँ रंग है ही। मेरे महबूब के घर रंग है री।
सन १२६४ ई. में जब खुसरो केवल सात वर्ष के थे तब इनके बहादुर पिता ८५ वर्ष की आयु में एक लड़ाई में शहीद हो गए। तब इनकी शिक्षा का भार इनके रईस नाना अमीर नवाब एमादुलमुल्क रावत अर्ज़ ने अपने ऊपर ले लिया। इनकी माँ न इन्हें नाज़ो नियामत से पाला। वे स्वंय पटियाली में रहती थीं या फिर दिल्ली में अमीर रईस पिता की शानदार बड़ी हवेली में। नाना ने थोड़े ही दिनों में अमीर खुसरो को ऐसी शिक्षा-दीक्षा दी कि ये कई विधाओं में विभूषित, निपुण, दक्ष एवं पारांगत हो गए। युद्ध कला की बारीकियाँ भी खुसरो ने पहले अपने पिता और फिर नाना से सीखीं। इनके नाना भी युद्ध के मैदान में अपना जलवा अनेकों बार प्रदर्शित कर चुके थे। वे स्वंय बहुत ही साहसी, बहादुर और निडर थे और खुसरो को भी वैसी ही शिक्षा उन्होंने दी। एमादुलमुल्क खुसरो से अक्सर कहा करते थे कि डरपोक और कमज़ोर सिपाही किसी देशद्रोही से कम नहीं। यही वह ज़माना अथवा दौर था जब खुसरो अपने समय के बहुत से बुद्धिजीवियों और शासकों से सम्पर्क में आए। खुसरो ने बिना किसी हिचक व संकोच के अनेक सर्वोत्तम गुणों को आत्मसात किया। खुसरो में लड़कपन से ही काव्य रचना की प्रवृत्ति थी। किशोरावस्था में ही उन्होंने फ़ारसी के महान और जानेमाने कवियों का गहन अध्ययन शुरु कर दिया था और उनमें से कुछ के अनुकरण में काव्य रचने का प्रयास भी किया था। अभी वह २० वर्ष के भी नहीं हुए थे कि उन्होंने अपना पहला दीवान (काव्य संग्रह) तुहफतुसिग्र (छोटी उम्र का तोहफ़ा, ६७१ हिज्री सन १२७१, १६-१९ वर्ष) (जवानी के आरंभ काल में रचित यह दीवान फ़ारसी के प्रसिद्ध कवि अनवरी, खाकानी, सनाई आदि उस्तादों से प्रभावित है। इसकी भूमिका में बचपन की बातें, जवानी के हालात का ज़िक्र है तथा प्रत्येक कसीदे के आरम्भ में शेर है जो कसीदे के विषय को स्पष्ट करता है। इन तमाम शेरों को जमा करने से एक कसीदा हो जाता है जो खुसरो की ईजाद है। ये ज़यादातर सुल्तान गयासुद्दीन बलबन और उसके बड़े बेटे सुल्तान नसीरुद्दीन की प्रशंसा में लिखे गए हैं। एक तरक़ीब बंद में अपने नाना इमादुल मुल्क का मर्सिया लिखा है जो सुल्तान गयासुद्दीन के करीबी सलाहकारों और हमराजों में से एक थे। उनके पास कई नाज़ुक व गुप्त सियासी जानकारियाँ व सूचनाएँ रहती थीं। इस ग्रंथ में खुसरो ने अपना तखल्लुस या उपनाम सुल्तानी रखा है।) पूर्ण कर लिया। बावजूद इसके कि अमीर खुसरो ने कुछ फ़ारसी कवियों की शैली का अनुक्रम करने का प्रयत्न किया था उनकी इन कविताओं में भी एक विशेष प्रकार की नवीनता और नूतनता थी। इस पर उनकी अभिनव प्रतिभा की स्पष्ट छाप है। उस समय खुसरो केवल एक होनहार कवि के रुप में नहीं उभरे थे बल्कि उन्होंने संगीत सहित उन तमाम विधाओं का ज्ञान भी भली भाँति प्राप्त कर लिया था जो उस समय और दौर के किसी भी सुसभ्य व्यक्ति के लिए अनिवार्य था। वह एक प्रखर, संवेदनशील, हाज़िर जवाब और जीवन्त व्यक्ति थे। इसी कारण बहुत जल्दी ही, राजधानी में हर एक व्यक्ति के वे प्रेम पात्र बन गए। हर व्यक्ति को उनकी रोचक और आनंदमय संगति प्रिय थी। अमीर खुसरो ने अपनी पुस्तक तुहफतुस्सग्र की भूमिका में स्वंय लिखा है कि - "ईश्वर की असीम कृपा और अनुकंपा से मैं बारह वर्ष की छोटी अवस्था में ही रुबाई कहने लगा जिसे सुनकर बड़े-बड़े विद्वान तक आश्चर्य करते थे और उनके आश्चर्य से मेरा उत्साह बढ़ता था। मुझे और अधिक क्रियात्मक कविता लिखने की प्रेरणा मिलती थी। उस समय तक मुझे कोई काव्य गुरु नहीं मिला था जो मुझे कविता की उच्च शिक्षा देकर मेरी लेखनी को बेचाल चलने से रोकता। मैं प्राचीन और नवीन कवियों के काव्यों का गहराई व अति गम्भीरता से मनन करके उन्हीं से शिक्षा ग्रहण करता रहा।" इससे यह साफ़ स्पष्ट होता है कि कविता करने की प्रतिभा खुसरो में जन्मजात थी तथा इसे उन्होंने स्वंय सीखा, किसी गुरु से नहीं। आशु कविता करना उनके लिए बाँए हाथ का खेल था।
यह भी सर्वमान्य है कि खुसरो सत्रह वर्ष की छोटी आयु में ही एक उत्कृष्ट कवि के रुप में दिल्ली के साहित्यिक क्षेत्र में छा गए थे। उनकी इस अद्भुत काव्य प्रतिभा पर उनके गुरु हज़रत निजामुद्दीन औलिया को भी फक्र था। इनका मधुर कंथ इनकी सरस एवं प्रांजल कविता का ॠंगार था। जिस काव्य गोष्ठी अथवा कवि सम्मेलन में अमीर अपनी कविता सुनाते थे उसमें एक गम्भीर सन्नाटा छा जाता था। निसंदेह अमीर खुसरो दहलवी जन्मजात कवि थे। इन्होंने कविता लिखने व पढ़ने का ढंग किसी से नहीं सीखा, किन्तु इनके काव्य गुरु ख़वाजा शमशुद्दीन माने जाते हैं। इसका कारण यह बताया जाता है कि ख्वारिजी ने खुसरो के विश्व प्रसिद्ध ग्रंथ 'पंचगंज' अथवा ख़म्साऐ खुसरो को शुद्ध किया था।
खम्साऐ खुसरो - या पंचगंज या खुसरो की पंचपदी। अमीर खुसरो की विशाल और सार्वभौमिक प्रतिभा ने 'खुदाए सुखन' अर्थात काव्य कला के ईश्वर माने जाने वाले कवि निजामी गंजवी के खम्स के जवाब में इसे लिखा है। यह उन्होंने ६९८ हिज्री से ७०१ हिज्री के बीच लिखा यानी (१२९८ ई. - १३०१ ई. तक) इसमें कुल पाँच मसनवियाँ हैं – (१) मतला उल अनवार - निजामी के 'मखजनुल असरार' का जवाब है। ६९८ हि. १२९८ ई. (अर्थात रोशनी निकालने की जगह) कवि जामी ने इसी के अनुकरण पर अपना तोहफतुल अबरार (अच्छे लोगों का तोहफा) लिखा था। इसमें अधिकांश धार्मिक, नैतिक तथा आध्यात्मिक बातें हैं। इसमें खुसरों ने अपनी इकलौती लड़की को सीख दी है। उम्र ४५ वर्ष। (२) शीर व खुसरो - निजामी के खुसरो व शीरीं का जवाब है। ६९८ हिज्री। सन १२९८ ई. उम्र ४५। खुसरो ने प्रेम की पीर को तीव्रतर बना दिया है। इसमें खुसरो ने अपने बड़े बेटे को सीख दी है। (३) मजनूँ व लैला - निजामी के लैला मजनूँ का जवाब। ६९९ हिज्री (१२९९ ई.) उम्र ४६ प्रेम तथा ॠंगार की भावनाओं का चित्रण। (४) आइने सिकंदरी - निज़ामी के सिकंदरनामा का जवाब। ६९९ हिज्री। (सन १२९९ ई.) वीर रस। इसमें सिकंदरे आजम और खाकाने चीन की लड़ाई का विस्तृत वर्णन है। इसमें खुसरो अपने सबसे छोटे लड़के को सीख देते हैं। इसमें रोजी कमाने, हुनर (कला) सीखने, मज़हब की पाबंदी करने और सच बोलने की वह तरक़ीब है जो उन्होंने अपने बड़े बेटे को अपनी मसनवी शीरी खुसरो में दी है।
(५) हश्त-बहिश्त - निजामी के हफ्त पैकर का जवाब। (१७०१ हिज्री। १३०१ ई.) फ़ारसी की सर्वश्रेष्ठ कृति। इसमें इरान के बहराम चोर और एक चीनी हसीना (सुन्दरी) की काल्पनिक प्रेम गाथा है। कहानी विदेशी है। अत: भारत से संबंधित बातें बहुत कम हैं। इसका वह भाग बेहद ही महत्वपूर्ण है जिसमें खुसरो ने अपनी बेटी को संबोधित कर उपदेशजनक बातें लिखी हैं। अमीर खुसरो ने स्वंय अपने गुरुओं के नामों का उल्लेख किया है जिनका उन्होंने अनुसरण किया है अथवा उनका प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रुप से इन पर प्रभाव पड़ा है। गज़ल के क्षेत्र में सादी, मसनवी के क्षेत्र में निज़ामी, सूफ़ी और नीति संबंधी काव्यक्षेत्र में खाकानी और सनाई एवं कसीदे के क्षेत्र में कमाल इस्माइल हैं। खुसरो की गज़लें तो भाव और कला की दृष्टि से इतनी उत्तम हैं कि बड़े-बड़े संगीतज्ञ उन्हें गा गा कर लोगों को आनंद विभोर करते थे। उनमें अनेक स्थलों पर उदात्त प्रेम के दर्शन होते हैं। इन सभी काव्यों में काव्य का मनोज्ञ रुप हमें दृष्टिगोचर होता है। खुसरो ने स्वयं अपनी कविता की अनेक स्थलों पर प्रशंसा की है। वे अपने दीवान गुर्रतुल कमाल (शुक्ल पक्ष की पहली कलाम की रात) (६९३ हिज्री। सन १२९३ ई. तीसरा दीवान ३४-४३ वर्ष, सबसे बड़ा दीवान, इसकी भूमिका काफ़ी बड़ी एवं विस्तृत है। इसमें खुसरो ने अपने जीवन संबंधी बहुत सी रोचक बातें दी हैं, कविता के गुण, अरबी से फ़ारसी कविता की श्रेष्ठता, भारत की फ़ारसी अन्य देशों के मुक़ाबले शुद्ध व श्रेष्ठ हैं, काव्य और छंदों के भेद आदि अनेक बातों पर प्रकाश डाला गया है। इस दीवान में व मसनवियाँ, बहुत सी रुबाइयाँ, कते, गज़लें, मरसिये, नता और कसीदे हैं। मसनवियों में मिफताहुल फ़तूह बहुत प्रसिद्ध है। मरसियों में खुसरो के बेटे तथा फ़ीरोज़ खिलजी के बड़े लड़के या साहबज़ादे महमूद ख़ानखाना के मरसिए उल्लेखनीय हैं। एक बड़ी नात (स्तुति काव्य : मुहम्मद साहब की स्तुति) है जो खाकानी से प्रभावित ज़रुर है पर अपना अनोखा व नया अंदाज लिए है। कसीदों में खुसरो का सबसे अधिक प्रसिद्ध क़सीदा 'दरियाए अबरार' (अच्छे लोगों की नदी) इसी में है। इसमें हज़रत निजामुद्दीन औलिया की तारीफ़ है। अन्य कसीदे जलालुद्दीन और अलाउद्दीन खिलजी से संबंधित है। इसमें अरबी - और तुर्की शब्दों का प्रयोग है।)
अमीर खुसरो गुर्रतुल कमाल की भूमिका में गर्व से, शान से लिखते हैं -
"जब मैं केवल आठ बरस का था मेरी कविता की तीव्र उड़ाने आकाश को छू रहीं थीं तथा जब मेरे दूध के दाँत गिर रहे थे, उस समय मेरे मुँह से दीप्तिमान मोती बिखरते थे।" यही कारण है कि वे शीघ्र ही तूत-ए-हिन्द के नाम से मशहूर हो गए थे। यह नाम खुसरो को ईरान देश के लोगों ने दिया है। यों तो खुसरो में प्रतिभा नैसर्गिक थी तथापि कविता में सर्वत: सौंदर्य और माधुर्य ख़वाजा निजामुद्दीन औलिया के वरदान का भी परिणाम माना जाता है। उन्हीं के प्रभाव से खुसरो के काव्य में सूफ़ी शैली एवं भक्ति की गहराई तथा प्रेम की उदात्त व्यंजन उपलब्ध होती है। वास्तव में औलिया साहब के आर्शीवाद ने उन्हें ईश्वरीय दूत ही बना दिया था। इतना असीमित व गहरा प्रेम। अद्भुत।
अमीर खुसरो बहुमुखी प्रतिभा संपन्न व्यक्ति थे। वे एक महान सूफ़ी संत, कवि (फारसी व हिन्दवी), लेखक, साहित्यकार, निष्ठावान राजनीतिज्ञ, बहुभाषी, भाषाविद्, इतिहासकार, संगीत शास्री, गीतकार, संगीतकार, गायक, नृतक, वादक, कोषकार, पुस्तकालयाध्यक्ष, दार्शनिक, विदूषक, वैध, खगोल शास्री, ज्योतषी, तथा सिद्ध हस्त शूर वीर योद्धा थे। सन १२७३ ई. में खुसरो जब बीस वर्ष के थे तब ११३ वर्ष की आयु में उनके नाना एमादुलमुल्क रावत अर्ज़ का स्वर्गवास हो गया। ऐसे समय में जब कि खुसरो को इतनी अधिक लोकप्रियता मिल रही थी, उनके नाना के देहावसान से उन्हें जीवन का एक अति प्रचंड आघात पहुँचा क्योंकि उनके वालिद तो पहले ही परलोक सिधार चुके थे। अब खुसरो को अपनी रोज़ी रोटी की चिन्ता हुई। अत: अब उन्हें अपने लिए एक स्थाई रोज़गार खोजने पर विवश होना पड़ा। शीघ्र ही खुसरो को एक स्नेही और उदारचेता संरक्षक प्राप्त हो गया। ये था दिल्ली का सुलतान गयासुद्दीन बलबन का भतीजा अलाउद्दीन मुहम्मद किलशी खाँ उर्फ़े मलिक छज्जू। (सन १२७३ ई. कड़ा इलाहबाद का हाकिम) ये अपनी वीरता और उदारता के लिए विख्यात था। इसकी वीरता के चर्चे सुनकर और वर्च के दवाब के कारणवश प्रसिद्ध और शक्ति संपन्न मंगोल हलाकू ने उसे आधे इराक की गर्वनरी प्रस्ताव दिया था और उसकी स्वीकृति चाही थी। अमीर खुसरो ने उसे एक आदर्श व्यक्ति तथा शासक पाया और दो वर्ष वे उसके राजदरबार में शान बने रहे। मलिक छज्जू भी खुसरो से बड़ी कृपा और प्रेम का व्यवहार करता था। एक बार अमीर खुसरो उसके दरबार में बहुत ही देर से पहुँचे। बादशाह बहुत गुस्से में था क्योंकि कुछ चुगलखोर व खुसरो से जलने वाले दरबारियों ने खुसरो के ख़िलाफ़ बादशाह के कान भर दिए थे। इन दरबारियों ने बादशाह को भड़का दिया कि आजकल खुसरो अपने गुरु निजामुद्दीन औलिया की सेवा में अधिक समय व्यतीत करते हैं और राजदरबार से उन्हें कोई मतलब नहीं। बादशाह ने जरा सख्ती से खुसरो से दरबार में देर से आने का कारण पुछा। खुसरो ने अपने विनोद प्रिय, चुलबुले स्वभाव व हाज़िर जवाबी का सबूत देते हुए तुरन्त बादशाह की तारीफ़ और प्रश्न के जवाब में एक फ़ारसी का चुलबुला व हास्यजनक क़सीदा सुनाया। ये है - "सुभा राव गुफ्तम कि खुर्शीद अद खुजास्त, आस्मां रुहे मलिक छज्जो नमोद।"
अर्थात - आज जब मैं घर से दरबार के लिए बाहर निकला तो मेरी सुबह से मुलाक़ात हो गई। मैंने सुबह से पूछा कि बता तेरा सूरज कहाँ है? तो आसमान ने मुझे मलिक छज्जू की सूरत दिखा दी।" यह वाक़या कसीदे के रुप में सुनकर बादशाह के चेहरे पर अचानक ही मुस्कुराहट आ गई और उसका सारा गुस्सा काफ़ेूर हो गया। दरबारियों के मुँह से भी वाह निकली। अमीर खुसरो से जलने वाले समस्त दरबारी बहुत ही मायूस हुए तथा हतप्रभ रह गए। बादशाह ने प्रसन्न होकर अमीर खुसरो को दरबार में देर से आने के लिए माफ़ ही नहीं किया बल्कि इस हास्यजनक क़िस्से को सुनाकर हँसाने के लिए इनाम भी दिया। मलिक छज्जू के राजदरबार में खुसरो केवल दो वर्ष ही टिक पाए। हुआ यूँ कि एक रात शहनशाह हिन्दुस्तान गयासुद्दीन बलबन का बड़ साहबज़ादा, 'बुगरा खाँ' मिलने आया मलिक छज्जू से। उसने तत्काल फ़रमाइश की, "मेरे अज़ीज़ भाई छज्जू तुम्हारा बड़ा नाम है। अरे एक से एक नामवर तुम्हारे सामने गर्दन झुका कर बैठता है। सूरमाँ, गवैये और शायर भी। हम भी तो ज़रा इसकी झलक देखें।" यह सुनकर मलिक छज्जू ने हुक्म दिया - "यमीनुद्दीन खुसरो अपना कलाम पेश करें, हमारे मेहमाने अजीज के सामने"। तब अमीर खुसरो ने अपनी एक ताजा फ़ारसी की गज़ल सुनाई – "सर इन खदुदु जुई न दौरत की तिदौरी। इन नरगिसी जौबई न दौलत कि तिदौरी। इ नुशते अमा जुल खबमा श्यास खरामा इन हल्केई गेसूई न दौरत की तिदौरी।"
अर्थात - तेरी इन नरगिसी आँखों और काली हसीन जुल्फों के आगे दौलत क्या चीज है। यह मधुर व कर्णप्रिय गज़ल सुनकर बुगरा खाँ बोला - "वाह ! अरे ऐसे हीरे लिए बैठे हो जाने ब्रादर। अरे ऐसे आबदार हीरे मोती तो हमारे खजाने में भी नहीं। हम बहुत ख़ुश हुए। अशर्किफ़यों का ये थाल हमारी ओर से शायर खुसरो को ससम्मान दिया जाए। खुसरो अभी तो हम सफ़र में हैं, खुद ही मेहमान हैं। कभी हमारी तरफ़ समाना आओ तो तुम्हें और भी इनाम देंगे। क्यों मेरे भाई छज्जो तुम्हें नागवारा तो नहीं गुज़रा कि तुम्हारे दरबारी शायर को हमारी सरकार की ओर से इनाम दिया जाए। और वो भी तुम्हारी मौजूदगी में तथा तुमसे बिना पूछे।" ऊपर से तो मलिक छज्जू ने कह दिया कि उसे बुरा नहीं लगा पर अंदर से उसे अमीर खुसरो पर बेहद गुस्सा आया कि उसके दरबार में बिना उसकी इजाज़त के अमीर खुसरो ने दूसरी सरकार से ईनाम लिया। कड़ा के होने वाले सूबेदार मलिक छज्जू की कड़ी नज़रें अमीर खुसरो ने पहचान ली थीं। इससे पहले कि मलिक छज्जू के गुस्से का तीर, खुसरो को निशाना बनाता, वे तीर की तरह उसकी कमान से निकल गए। और सीधे बलबन के छोटे लड़के बुगरा खाँ (सन १२७६ ई.) के यहाँ गए जो मुलतान (पंजाब) के निकट सामाना में बलबन की छावनी का शासक व संरक्षक था जो अब मौजूदा दौर में पटियाला (पंजाब) में है। बुगरा खाँ ने अमीर खुसरो को अपना 'नमीदे खास' (मित्र) बना कर रखा। बुगरा खाँ ने खुसरो को बुलबले-हजार-दास्तान की उपाधि दी। मौज़-मस्ती, शरो-शायरी, किताबखानी और शग्ले जवानी के रात-दिन चल रहे थे कि अचानक ही बंगाल से बगावत की खबर आई। बुगरा खाँ ने कहा - "सामाने शफर को रुख करो। तख्ते देहली से यह हुक्म पहुँचा है कि पंजाब की फौज ले कर बंगाल पहुँचो। हम खुद लश्कर ले कर जाएँगे। शायर खुसरो साथ जाऐगा। फिर सामाना से लखनऊ की ओर कूच करेंगे।" मैदाने जंग में भयंकर युद्ध हुआ। जितनी जबरदस्त बगावत थी उतनी ही बेरहमी से कुचली गयी। देहली और पंजाब की फौजों ने खड़े खेत जला दिए। बागियों को गधे की खाल में भरवाकर सरे बाज़ार जलाया गया। फाँसियाँ, कत्लगाहें हुई। खुद शहज़ादा बुगरा खाँ ने अपने पिता बलबन से इस बेदर्द, चीड़-फाड़ और अंधाधुंध लूटमार की शिकायत की। अमीर खुसरो ने अपनी जिंदगी में पहली बार इतने करीब से जंग को देखा तथा उसके दर्द को गहराई से महसूस किया। उन्होंने बड़े पैमाने पर तबाही को महसूस किया। एक कलाकार, शायर, लेखक के नाते उनके नाजुक व भावुक दिल को बहुत दुख हुआ। परन्तु खुसरो के होंठ सिले रहे। इस दर्दनाक मं पर खुसरो ने कुछ नहीं लिखा। उनकी लेखनी मौन रही। खुसरो जैसे प्रेमी जीव को शायरी का कहाँ होश था? इस खूनी मं में। लखनौती में विजय प्राप्त करने के पश्चात बलबन ने बुगरा खाँ को लखनौती व बंगाल का मार्शल लौ (एडमिनिस्ट्रेटर) मुकरर्र कर के वहीं छोड़ दिया। शाहजादे को सलाह और राय देने के लिए प्रसिद्ध कवि शमशुद्दीन दबीर को नियुक्त किया गया था। उसने व बुगरा खाँ ने दरबारी शायर खुसरो को बहुत रोका मगर वो हज़ार बहाने कर के शाही लश्कर के साथ दिल्ली चले आए। अपनी माँ दौलत नाज और गुरु निजामुद्दीन औलिया के कदमों में। खुसरो ने बुगरा खाँ और कलशी खाँ की शत्रुता के कारण वहाँ रहना उचित न समझा और तत्काल सरकारी सेना के साथ दिल्ली चले आए। दिल्ली में इस विजय की खुशी में घर-घर दीप जलाए गए थे। स्वंय अमीर खुसरो अपने एक दीवान में, इस विषय में विस्तार से लिखते हैं कि - "माँ की ममता, गुरु का आध्यात्मिक लगाव, और देहली की मोहब्बत, गंगा-जमुना के किनारे मुझे हर जगह से, हर एक कदरदान से खेंच लाती थी। मेरी शायरी तो उड़ी फिरती थी और मैं खुद उड़ फिर कर देहली या पटियाल चला आता था। मगर आखिर घर बढ़ा, खर्चे बढ़े, और दरबारी आना-बान व ठाट-बाट के तो कहने ही क्या?"
इस दौरान अमीर खुसरो की मित्रा हसन सिज्जी देहलवी से हुई। हसन भी फारसी में किवता करता था। उसकी नानबाई की दुकान थी। वह खुसरो की तरह रईस नहीं था पर फिर भी खुसरो ने उसके नैसर्गिक गुण देख कर उससे मित्रता की। ये जग प्रसिद्ध कृष्ण और सुदामा की मित्रता से किसी भी प्रकार कम न थी। समय-समय पर खुसरो ने अपने मित्र के लिए कपट सहे। इसका ज़िक्र आगे करेंगे। पहले यह देखें कि यह मित्रता व मुलाकात कैसे हुई? हसन अपनी दुकान पर रोटियाँ बेच रहा था। तँदूर से गरम-गरम गदबादी रोटियाँ थाल में आ रहीं थीं। ग्राहक हाथों हाथ खरीद रहे थे। अमीर खुसरो दुकान के सामने से गुजरे तो उनकी दृष्टि हसन सिज्जी पर पड़ी। अमीर खुसरो बचपन से ही हँसी-मज़ाक़ व शरारत में आनंद लेने वाले बेहद ही विनोद प्रिय व्यक्ति थे। उन्होंने हँसते हुए हसन से पूछा - 'नानबाई रोटियाँ क्या भाव दी हैं?' हसन ने भी बहुत सोच समझ कर तत्काल उत्तर दिया - 'मैं एक पलड़े में रोटी रखता हूँ और ग्राहक से कहता हूँ दूसरे पलड़े में सोना रख। सोने का पलड़ा झुकता है तो रोटी ख़रीददार को देता हूँ।' खुसरो ने प्रश्न किया कि ग्राहक गरीब हो तब? हसन ने बेहद ही सहजता से जवाब दिया - 'तब आर्शीवाद के बदले रोटी बेचता हूँ।' इस प्रश्नोत्तर के परिणामस्वरुप हसन और खुसरो में ऐसी घनिष्ठ व अटूट मित्रता हुई कि वे जन्म भर साथ-साथ रहे। शरीर दो थे पर आत्मा एक। इस मित्रता के लिए खुसरो को अनेक लांछन सहने पड़े पर मित्रता में किसी प्रकार की कोई कमी न आई। दोनों मित्रों को गयासुद्दीन बलबन के दरबार में उच्च स्थान मिला।
प्रारंभिक दिनों में खुसरो ने बलबन की प्रशंसा में अनेक कसीदे लिखे। दिल्ली लौटने पर गयासुद्दीन बलबन ने अपनी जीत के उपलक्ष्य में उत्सव मनाया। उसका बड़ा लड़का सुल्तान मोहम्मद अहमद (मुल्तान, दीपालपुर की सरहदी छावनी) भी उत्सव में सम्मलित हुआ। खुसरो को अब दूसरे आश्रयदाता की ज़रुरत थी। उन्होंने सुल्तान मुहम्मद को अपनी कविता सुनाई। उसने खुसरो की कविताएँ बहुत पसंद की और उन्हें अपने साथ मुलतान ले गया। यह सन १२८१ का वाक़या है। वहाँ सिंध के रास्ते सूफ़ियों, दरवेशों, साधुओं और कवियों का अच्छा आना जाना था। मुल्तान में पंजाबी-सिन्धी बोलियाँ मिली-जुली चलती थीं। खुसरो ने यहाँ लगभग पाँच साल शायरी और संगीत के नए-नए तजुर्बे किए। शहज़ादे की परख गज़ब की थी। हर कमाल की जी खोल कर तारीफ़ करता, दिल बढ़ाता था। सुल्तान मोहम्मद ने ईरान के प्रसिद्ध फ़ारसी कवि शेख़ सादी को अपने दरबार में आने के लिए आमंत्रित किया। शेख़ सादी ने अपनी वृद्धावस्था के कारण आने में असमर्थता व्यक्त की और कहा कि हिन्दुस्तान में अमीर खुसरो जैसा कमाल का शायर मौजूद है। उनकी जगह अत: खुसरो को बुलाया जाए। खुसरो के लिए सादी की यह सिफ़ारिश उनकी महानता का ही परिचायक है। इससे पता चलता है कि उस समय खुसरो की ख्याति व प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली थी। बीच में खुसरो प्रति वर्ष दिल्ली आते जाते रहे। अंतिम वर्ष मंगोलों के एक लश्कर ने अचानक ही हमला कर दिया। बादशाह के साथ अमीर खुसरो भी अपने मित्र हसन सिज्जी के साथ लड़ाई में सम्मलित हुए। कितनी रोचक बात है कि एक शायर युद्ध के मैदान में जंग लड़ रहा है। कहते हैं कि अमीर खुसरो जंग के मैदान में एक हाथ में तलवार तो दूसरे हाथ में किताबदान लिए बड़ी शान से निकला करते थे। खैर, इस युद्ध में दुश्मन की ताक़त का पता बहुत देर से चला। हिन्दुस्तानी फ़ौज बेख़बरी का शिकार हो गई। हवा पलट गई। शाहज़ादा जंग के मैदान में मारा गया। खुसरो और हसन भी मैदाने जंग में गिरफ्तार हुए। एक मंगोल सरदार खुसरो को घोड़े के पीछे दौड़ाता हुआ और फिर घसीटता हुआ हिरात और बलख ले गया। वहाँ खुसरो को क़िले में बंदी बना लिया गया। कारागार में रहते समय खुसरो ने अनेक शोक गीत (मर्सिये) लिखे जिनमें मंगोलों के साथ युद्ध करते समय राजकुमार सुलतान मोहम्मद की वीरतापूर्ण मृत्यु का उल्लेख था। खुसरो ने अपनी कारावास कथा बड़ी ही मार्मिक शैली में लिखी है - "शहीदों के रक्त ने जल की तरह धरती को लीप दिया। क़ैदियों के चेहरों को रस्सियों से इस तरह बाँध दिया जैसे हार में फूल गूँदे जाते हैं। ज़ीन के तस्मों की गाँठ से उनके सिर टकराते थे और लगाम के फन्दे में उनकी गर्दन घुटती थी। मुझे जल प्रवाह के समान तेज़ी से भागना पड़ा और लम्बी यात्रा के कारण मेरे पैरों में बुदबदों की तरह फफोले उठ आए तथा पैर छलनी हो गए। इन मुसीबतों के कारण जीवन तलवार की मूठ की तरह कठोर जान पड़ने लगा। और शरीर कुल्हाड़ी के हत्थे के समान सूख गया।" दो वर्ष पश्चात किसी प्रकार अपने कौशल और साहस के बल पर अमीर खुसरो शत्रुओं के चुंगल से छूट कर वापस दिल्ली लौटे। लौटने पर वे गयासुद्दीन बलबन के दरबार में गए और सुलतान मोहम्मद की मृत्यु पर बड़ा करुण मर्सिया पढ़ा। इसे सुनकर बादशाह इतना रोये कि उन्हें बुखार आ गया और तीसरे दिन उसका देहांत हो गया। (सन १२८७)।
इसके पश्चात खुसरो दिल्ली में नहीं रहे। अपनी माँ के पास पटियाली ग्राम चले गए। वहाँ कुछ समय चिंतन में बिताया। स्वंय खुसरो लिखते हैं-"मैं इन्हीं अमीरों की सोहबत से कट कर माँ के साए में रहा। दुनियादारी से आँख मूँद कर गरमा गरम गजल लिखी, दोहे लिखे। अपने भाई के कहने से पहला दीवान तोहफतुस्सिग्र तो तैयार हो चुका था। दूसरा दीवान वस्तुल हयात (जिंदगी के बीच का भाग - ६८४ हिज्री सन १२८४) पूरा करने में लगा था। एक तरफ किनारे पड़ा हुआ दिलों को गरमाने वाली गजलें लिखता रहता था। राग-रगानियाँ बुझाता था।" वसतुल हयात में १८-२४ वर्ष और बत्तीस से तैंतीस साल की उम्र तक का कलाम है। कसीदे ज्यादातर सुलतान मोहम्मद, ह. निजामुद्दीन औलिया, कशलू खाँ, बलबन, कैकुबाद, बुगरा खाँ, शमशुद्दीन दबीर तथा जलालुद्दीन खिलजी की तारीफ में हैं। सुल्तान मोहम्मद पर मर्सिया भी है। कसीदों में खाकानी और कमाल अस्फहानी की काव्य शैली को अपनाने की कोशिश की गई है।
इसके बाद सन १२८६ ई. में खुसरो अवध के गवर्नर (सूबेदार) खान अमीर अली सृजनदार उर्फ हातिम खाँ के यहाँ दो वर्ष तक रहे। यहाँ खुसरो ने इन्हीं अमीर के लिए 'अस्पनामा' नामक पुस्तक लिखी। खुसरो लिखते हैं - "वाह क्या सादाब सरजमीं है ये अवध की। दुनिया जहान के फल-फूल मौजूद। कैसे अच्छे मीठी बोली के लोग। मीठी व रंगीन तबियत के इंसान। धरती खुशहाल जमींदार मालामाल। अम्मा का खत आया था। याद किया है। दो महिने हुए पाँचवा खत आ गया। अवध से जुदा होने को जी तो नहीं चाहता मगर देहली मेरा वतन, मेरा शहर, दुनिया का अलबेला शहर और फिर सबसे बढ़कर माँ का साया, जन्नत की छाँव। उफ्फो ओ दो साल निकल गए अवध में। भई बहुत हुआ। अब मैं चला। हातिमा खाँ दिलो जान से तुम्हारा शुक्रिया मगर मैं चला। जरो माल पाया, लुटाया, खिलाया, मगर मैं चला। वतन बुलाता धरती पुकारती है। अब तक अमीर खुसरो की भाषा में बृज व खड़ी (दहलवी) के अतिरिक्त पंजाबी, बंगला और अवधी की भी चाश्नी आ गई थी। अमीर खुसरो की इस भाषा से हिन्दी के भावी व्यापक स्वरुप का आधार तैयार हुआ जिसकी सशक्त नींव पर आज की परिनिष्ठित हिन्दी खड़ी है। सन १२८८ ई. में खुसरो दिल्ली आ गए और बुगरा खाँ के नौजवान पुत्र कैकुबाद के दरबार में बुलाए गए। कैकुबाद का पिता बुगरा खाँ बंगाल का शासक था। जब उसने सुना कि कैकुबाद गद्दी पर बैठने के बाद स्वेच्छाचारी और विलासी हो गया है तो अपने पुत्र को सबक सिखाने के लिए सेना ले कर दिल्ली पहुँचा। लेकिन इसी बीच अमीर खुसरो ने दोनों के बीच शांति संधि कराने में एक महत्वपूर्ण भूमिक निभाई। इसी खुशी में कैकुबाद ने खुसरो को राजसम्मान दिया। खुसरो ने इसी संदर्भ में किरानुस्सादैन (दो शुभ सितारों का मिलन) नाम से एक मसनवी लिखी जो ६ मास में पूरी हुई। (६८८ हिज्री। सन १२८८ उम्र ३५ वर्ष, मूल विषय है बलबन के पुत्र कैकुबाद का गद्दी पर बैठना, फिर पिता बुगरा खाँ से झगड़ा और अंत में दोनों में समझौता। उस समय के रहन सहन, तत्कालीन इमारतें, संगीत, नृत्य आदि कि चित्रण। इसमें दिल्ली की विशेष रुप से तारीफ है। अत: इसे मसनवी दर सिफत-ए-देहली भी कहते हैं। शेरों की भरमार है। अमीर खुसरो अपनी इस मसनवी में लिखते हैं कि कैकुबाद को उनके गुरु निजामुद्दीन औलिया का नाम भी सुनना पसंद नहीं था। खुसरो आगे लिखते हैं - "क्या तारीखी वाकया हुआ। बेटे ने अमीरों की साजिश से तख्त हथिया लिया, बाप से जंग को निकला। बाप ने तख्त उसी को सुपुर्द कर दिया। बादशाह का क्या? आज है कल नहीं। ऐसा कुछ लिख दिया है कि आज भी लुत्फ दे और कल भी जिंदा रहे। अपने दोस्तों, दुश्मनों की, शादी की, गमी की, मुफलिसों और खुशहालों की, ऐसी-ऐसी रंगीन, तस्वीरें मैंने इसमें खेंच दी है कि रहती दुनिया तक रहेंगी। कैसा इनाम? कहाँ के हाथी-घोड़े? मुझे तो फिक्र है कि इस मसनवी में अपनी पीरो मुरशिद हजरत ख्वाजा निजामुद्दीन का जिक्र कैसे पिरोऊँ? मेरे दिल के बादशाह तो वही हैं और वही मेरी इस नज्म में न हों, यह कैसे हो सकता है? ख्वाजा से बादशाह खफा है, नाराज हैं, दिल में गाँठ है, जलता है। ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया ने शायद इसी ख्याल से उस दिन कहा होगा कि देखा खुसरो, ये न भूलो कि तुम दुनियादार भी हो, दरबार सरकार से अपना सिलसिला बनाए रखो। मगर दरबार से सिलसिला क्या हैसियत इसकी। तमाशा है, आज कुछ कल कुछ।" खुसरो को किरानुस्सादैन मसनवी पर मलिकुश्ओरा की उपाधि से विभूषित किया गया। सन १२९० में कैकुबाद मारा गया और गुलाम वंश का अंत हो गया।
बीच में कुछ समय के लिए शमशुद्दीन कैमुरस बादशाह बना पर अंतत: सत्तर वर्षीय जलालुद्दीन खिलजी सन १२९० में दिल्ली के तख़त पर आसीन हुआ। खुसरो से इसका संबंध पहले से ही था। इन्होंने भी अपने दरबार में खुसरो को सम्मान दिया। ये प्रेम से खुसरो को हुदहुद (एक सुरीला पक्षी) कह कर पुकारते थे। इन्होंने अमीर की पदवी खुसरो को दी। अब अबुल हसन यमीनुद्दीन 'अमीर खुसरो' बन गए। इनका वज़ीफ़ा १२,००० तनका सालाना तय हुआ और बादशाह के ये ख़ास मुहासिब हो गए। जलालुद्दीन सत्य, निष्ठा, साधु प्रकृति, विधा एवं कला प्रेमी तथा पारखी था। फ़ारसी कवि ख़वाजा हसन, संगीतज्ञ मुहम्मद शाह, इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी, संगीतज्ञाएँ फुतूहा, नुसरत नर्तकी, शम्शा खातून और तुर्मती आदि का उनके दरबार से संबंध था। जालालुद्दीन की तारीफ़ में अमीर खुसरो ने कसीदे लिखे जो गुर्रतुल कमाल में हैं। खुसरो ने अपनी प्रसिद्ध मसनवी मफ्ताहुल फ़तूह (विजयों की कंजी) (६९० हिज्री/ सन १२९० ई., उम्र ३७ में जलालुद्दीन की चार विजयों का वर्णन, मलिक छज्जू की बगावत और उसको सजा, अवध की जीत, मुगलों को हराना, छाइन की विजय आदि का वर्णन है। इसमें शेरों की भरमार है। जलालुद्दीन खिलजी ने खुसरो को मुसहफदार (प्रमुख लाइब्रेरियन) और क़ुरान की शाही प्रति का रक्षक बना दिया। जलालुद्दीन ने अपनी इस अधिक आयु में भी अपनी रुचियों को नहीं बदला था। खुसरो हर शाम उसकी महफ़िल में एक गज़ल प्रस्तुत करते और जब साक़ी जाम भर देता, सुन्दर किशोरी ललनाएँ नृत्य करने लगती तो अमीर खुसरो की गज़लें मधुर स्वर लहरियों पर उच्चारित हो उठतीं। लेकिन इसके बावजूद भी खुसरो अपनी सूफ़ी वाले पक्ष से पूर्णत: न्याय करते। खुसरो अपेक्षाकृत एक धार्मिक व्यक्ति थे। उन्हीं के एक कसीदे से यह विदित होता है कि वे मुख्य-मुख्य धार्मिक नियमों का पालन करते थे, नमाज पढ़ते थे तथा उपवास रखते थे। वे शराब नहीं पीते थे और न ही उसके आदि थे। बादशाहों की अय्याशी से उन्होंने अपने दामन को सदा बचाए रखा। वे दिल्ली में नियमित औलिया साहब की ख़ानक़ाह में जाते थे फिर भी वे नीरस संत नहीं थे। वे गाते थे, हँसते थे, नर्तकियों के नृत्य एवं गायन को भी देखते थे और सुनते थे, तथा शाहों और शहजादों की शराब-महफ़िलों में भाग ज़रुर लेते थे मगर तटस्थ भाव से। यह कथन खुसरो के समकालीन इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी का है। खुसरो अब तक अपने जीवन के अड़तीस बसंत देख चुके थे। इस बीच मालवा में चित्तौड़ में रणथम्भोर में बगावत की ख़बर बादशाह जलालुद्दीन को एक सिपाही ने ला कर दी। बगावत को कुचलने के लिए बादशाह स्वंय मैदाने जंग में गया। बादशाह ने जाने से पूर्व भरे दरबार में ऐलान किया-'हम युद्ध को जाएँगे। तलवार और साज़ों की झंकार साथ जाएगी। कहाँ है वो हमारा हुदहुद। वो शायर। वो भी हमारे साथ रहेगा साये की तरह। क्यों खुसरो?' खुसरो अपने स्थान से उठ खड़े हुए और बोले-"जी हुजूर। आपका हुदहुद साये की तरह साथ जाएगा। जब हुक्म होगा चहचहाएगा सरकार। जब तलवार और पायल दोनों की झंकार थम जाती है, जम जाती है तब शायर का नगमा गूँजाता है, कलम की सरसराहट सुनाई देती है। अब जो मैं आँखों देखी लिखूँगा वो कल सैकड़ों साल तक आने वाली आँखें देखेंगी हुजूर।" बादशाह ख़ुश हुए और बोले-शाबाश खुसरो। तुम्हारी बहादुरी और निडरता के क्या कहने। मैदाने जंग और महफ़िलें रंग में हरदम मौजूद रहना। तुम को हम अमीर का ओहदा देते हैं। तुम हमारे मनसबदार हो। बारह सौ तनगा सालाना आज से तुम्हारी तन्ख्वा होगी। सन १२९६ ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने राज्य के लोभ और लालच में अपने चाचा जलालुद्दीन खिलजी की हत्या कर दी और दिल्ली का राज सिंहासन हड़प लिया। स्वंय अमीर खुसरो ने एक इतिहासकार के नाते अपने ग्रंथ में इसका वर्णन इस प्रकार किया है-"अरे कुछ सुना अलाउद्दीन खिलजी सुलतान बन बैठा। सुलतान बनने से पहले इसने क्या-क्या नए करतब दिखाए। हाँ वहीं कड़ा से देहली तक सड़क के दोनों तरफ़ तोपों से दीनार और अशर्किफ़याँ बाँटता आया। लोग कहते हैं अलाउद्दीन ख़ून बरसाता हुआ उठा और ख़ून की होली खेलता हुआ तख़ते शाही तक पहुँच गया। हाँ भई, खल्के खुदा को राजा प्रजा को देखो। लोग अशर्किफ़यों के लिए दामन फैलाए लपके और ख़ून के धब्बे भूल गए। हे लक्ष्मी सब तेरी माया है।" अलाउद्दीन रिश्ते में जलालुद्दीन का भतीजा और दामाद था। अलाउद्दीन ने खुसरो के प्रति बड़ा उदार दृष्टिकोण अपनाया। खुसरो ने उस काल की ऐतिहासिक घटनाओं का आँखों देखा उल्लेख अपनी गद्य रचना खजाइनुल फतूह (तारीखे-अलाई, ६९५ हिज्री/७११ हिज्री, कन १२९५-सन-१३११ ई. तक की घटनाएँ। अर्थात फ़तहों का ख़ज़ाना। (इस ग्रंथ में देवगिरी, देहली, गुजरात, मालवा, चितौड़ आदि के आक्रमणों एवं विजयों का वर्णन है। साथ ही अलाउद्दीन का शासन प्रबंध, भवन निर्माण, जनता की सुख शांति हेतु उसके द्वारा किए गए यत्न आदि का उल्लेख है। अमीर खुसरो की विशाल और सार्वभौमिक प्रतिमा ने 'खुदाए सुखन' अर्थात 'काव्य कला के ईश्वर माने जाने वाले कवि निजामी गंजवी के खम्स का जवाब लिखा है। जो खम्साए खुसरो के नाम से मशहूर है। खम्स का अर्थ है पाँच। खुसरो ने यह उन्हीं छंदों में, उन्हीं विषयों पर लिखा है। खुसरो अपने इस खम्से को निजामी के खम्से से अच्छा मानते हैं। कुछ ने इसे एक शेर को निजामी के पूरे खम्से से अच्छा माना है। इसे पंचगंज भी कहते हैं। इसमें कुल मिलाकर १८,००० पद हैं। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि इसे खुसरो ने सुलतान अलाउद्दीन खिलजी के कहने पर लिखा है। इसमें बादशाहों की प्रशंसा भी है। इतना ही नहीं इसमें खुसरो ने अपने कवि उचित कर्तव्यों का पालन करते हुए अलुउद्दीन जैसे धर्माद, सनकी, जालिम व हठी बादशाह को जनता की भलाई और उदारता का व्यवहार करने का सुझाव दिया है। एक स्थान पर खुसरो ने लिखा है कि जब खुदा ने तुझे यह शाही तख्त प्रदान किया तो तुझे भी जनता के कल्याण का ख्याल रखान चाहिए। ताकि तू भी प्रसन्न रहे और खुदा भी तुझसे प्रसन्न रहे। यदि तू अपने खास लोगों पर कृपा करता है तो कर किन्तु उन लोगों की भी उपेक्षा मत कर जो लोग बेचारे भूखे-प्यासे सोते हैं। खुसरो की जलालुद्दीन खिलजी जैसे बादशाहों को ऐसी हिदायद करना निश्चित ही खुसरो के नैतिक बल का प्रतीक है तथा उनकी दिलेरी का पिरचायक है। अमीर खुसरो ने अपना पंचगंज ६९८ हिज्री से ७०१ हिज्री के बीच लिखा यानि सन १२९८ ई. से १३०१ ई. तक। इसमें पाँच मसनवियाँ हैं। इन्हें खुसरो की पंचपदी भी कहते हैं। ये इस प्रकार है –
(१) मतला-उल-अनवार : निजामी के मखजनुल असरार का जवाब है। (६९८ हि./सन १२९८ ई.) अर्थात रोशनी निकलने की जगह। उम्र ४५ कवि जामी ने इसी के अनुकरण पर अपना 'तोहफतुल अबरार' (अच्छे लोगों का तोहफा) लिखा था। इसमें खुसरो ने अपनी इकलौती लड़की को सीख दी है जो बहुत सुन्दर थी। विवाह के फस्चात जब बेटी विदा होने लगी तो खुसरो ने उसे उपदेश दिया था - खबरदार चर्खा कभी न छोड़ना। झरोखे के पास बैठकर इधर-उधर न झाँकना।
प्राचीन काल में यह रिवाज़ था कि जब कोई बादशाह अथवा शाहज़ादा अपने हमराहों के साथ सैर-सपाटा करने को निकलते थे तो जो भी युवती अथवा कन्या पसंद आ जाती थी तो वह अपने सिपहसालारों के माध्यम से उनके अभिभावक अथवा पति अथवा कन्या के पिता के पास भेज कर कहलवाते थे कि उनकी पुत्री, कन्या अथवा पत्नी को राजदरबार में भेज दें। यदि कोई तैयार नहीं होता था तो अपने सिपहसालारों के ज़रिये उसको उठवाकर अपने हरम में डाल देते थे तथा वह पहले बाँदियों के रुप में और बाद में रखैल बन कर रखी जाती थी। अत: वह बादशाहों व शाहजादों की बुरी नज़र से उसे बचा कर रखना चाहते थे। अमीर खुसरो ने अपनी बेटी को फ़ारसी के निम्न पद में सीख दी है -
"दो को तोजन गुज़ाश्तन न पल अस्त, हालते-परदा पोकिंशशे बदन अस्त। पाक दामाने आफियत तद कुन, रुब ब दीवारो पुश्त बर दर कुन। गर तमाशाए-रोज़नत हवस अस्त, रोज़नत चश्मे-तोजने तो बस अस्त।।
भावार्थ यह है कि - बेटी! चरखा कातना तथा सीना-पिरोना न छोड़ना। इसे छोड़ना अच्छी बात नहीं है क्योंकि यह परदापोशी का, जि ढकने का अच्छा तरीक़ा है। औरतों को यही ठीक है कि वे घर पर दरवाज़े की ओर पीठ कर के घर में सुकून से बैठें। इधर-उधर ताक-झाँक न करें। झरोखे में से झाँकने की साध को 'सुई' की नकुए से देखकर पूरी करो। हमेशा परदे में रहा करो ताकि तुम्हें कोई देख न सके। उपर्युक्त प्रथम पंक्ति में यह संदेश था कि जब कभी आने जाने वाले को देखने का मन करे तो ऊपरी मंज़िल में परदा डालकर सुई के धागा डालने वाले छेद को आँख पर लगाकर बाज़ार का नज़ारा देखा करो। चरखा कातना इस बात को इंगित करता है कि घर में जो सूत काता जाए उससे कढ़े या गाढ़ा (मोटा कपड़ा) बुनवाकर घर के सभी मर्द तथा औरतें पहना करें। महात्मा गाँधी जी ने तो बहुत सालों के बाद सूत कातकर खादी तैयार करके खादी के कपड़े पहनने पर ज़ोर दिया था। लेकिन हमारे नायक अमीर खुसरो ने बहुत पहले तेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी में ही खादी घर में तैयार करके खादी कपड़े पहनने के लिए कह दिया था। मतला-उल-अनवार मसनवी पंद्रह दिन की अवधी में लिखी बताई जाती है। इसमें ३३२४ पद हैं। इसका विषय नैतिकता और सूफ़ी मत है। खुदाबख्श पुस्तकालय पटना में इसकी एक पांडुलिपि सुरक्षित रखी है।
(२) शीरी व खुसरो - यह कवि निजामी की खुसरो व शीरी का जवाब है। यह ६९८ हिज्री/ सन १२९८ ई., उम्र ४५ वर्ष में लिखी गई। खुसरो ने इसमें प्रेम की पीर को तीव्रतर बना दिया है। इसमें बड़े बेटे को सीख दी है। इस रोमांटिक अभिव्यक्ति में भावात्मक तन्मयता की प्रधानता है। मुल्ला अब्दुल कादिर बादयूनी, फैजी लिखते हैं कि ऐसी मसनवी इन तीन सौ वर्षों में अन्य किसी ने नहीं लिखी। डॉ. असद अली के अनुसार यह रचना अब उपलब्ध नहीं तथा इसकी खोज की जानी चाहिए।
(३) मजनूँ व लैला - निजामी के लैला मजनूँ का जवाब ६९९ हिज्री, सन १२९९ ई. उम्र ४६ वर्ष। प्रेम तथा ॠंगार की भावनाओं का चित्रण। इसमें २६६० पद हैं। इसका प्रत्येक शेर गागर में सागर के समान है। यह पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। कुछ विद्वान इसका काल ६९८ हिज्री भी मानते हैं। कलात्मक दृष्टि से जो विशेषताएँ 'मजनूँ व लैला' में पाई जाती हैं, वें और किसी मसनवी में नहीं हैं। प्रणय के रहस्य, प्रिय व प्रिया की रहस्यमयी बातें, प्रभाव और मनोभाव जिस सुन्दरता, सरलता, सहजता, रंगीनी और तड़प तथा लगन के साथ खुसरो ने इसको काव्य का रुप दिया है, उसका उदाहरण खुसरो के पूर्व के कवियों के काव्यों में अप्राप्य है। हम यहाँ अमीर खुसरो की इस रुमानी मसनवी - 'मजनूँ व लैला' का संक्षिप्त वर्णन करते हैं –
मजनूँ के काल्पनिक होने के संबंध में कई कथन वर्णित हैं। इन सबका तात्पर्य यह है कि बनी उम्मिया के खानदान का कोई शहज़ादा किसी परीरुप सुन्दरी पर आशिक़ था। अपने प्रेम के रहस्य को छिपाने के लिए वह जो अश्आर दीवानगी में कहता, वह 'मजनूँ' के नाम से कहता। यह सत्य है कि लैला और मजनूँ वास्तव में इस दुनिया में थे। नज्द इनका वतन था। यह अरब का एक भाग है जो शाम से मिला हुआ है। यह स्थल बहुत ही हरा-भार तथा खूबसूरत वादियों वाला है। इसके हरे-भरे पहाड़ तरह-तरह की खुशबू में महकते हैं। लैला और मजनूँ दोनों भी बनी अमीर नामक कबीले से संबंधित थे। बचपन में दोनों अपने-अपने घर में मवेशी (पशु) चराया करते थे। इस स्थिति में प्रेम भावना ने सर उठाया। जब दोनो ज़रा बड़े हुए और उसके हुस्न व खूबसूरती की चारों तरफ़ ज़ोर-शोर से चर्चा होने लगी तो लैला पर्दानशीन हो गई। मजनूँ को ये नागवारा गुज़रा। आखिर वह अब कैसे अपनी प्रियतमा को निहारे। उसके विरह ने मजनूँ के पागलपन को और तेज कर दिया जिसके कारण दोनों की प्रेम कहानी भी आग हो गई। यानी कि मशहूर हो गई। मजनूँ के माता-पिता ने ममता के भाव से लैला के घर शादी का पैगाम भेजा लेकिन लैला के माता-पिता ने बदनामी के डर से शादी से इंकार कर दिया। बदनामी का डर यह था कि मजनूँ कुछ रोजी रोटी कमाता न था और एक आवारा के रुप में पूरे शहर में मशहूर था। इस इंकार से मजनूँ के संयम का खलिहान जलकर खाक हो गया। मानों उसके अरमानों का गला घोंट दिया गया हो। अंतत: और कोई सकारात्मक परिस्थिति की कोई गुंजाइश जब नहीं न आई तब मजनूँ अपने सारे कपड़े फाड़कर दीवाना सा जंगल को निकल गया। वह जंगल में मारा-मारा फिरने लगा। जंगल में भ्रमर करते हुए प्रेम के चमत्कार प्रकट हुए। प्रेम अग्नि ने इस दिशा में उससे जो दर्द भरे अशआर कहलवाए हैं वे प्रेम की विविध भावनाओं का दपंण है। इस भ्रमण में सहरा के हिरन मजनूँ के खास राजदार थे। पुत्र की इस तबाही और बरबादी से माता-पिता का दिल कुढ़ता था। एक दफा वह उसको हरमे-मोहतरम में ले गए और कहा कि काबे का गिलाफ थामकर लैला के प्रेम से मुक्ति पाने की प्रार्थना करो। मजनूँ ने गिलाफ पकड़ कर कहा - "ऐ मेरे रब। लैला की मुहब्बत मेरे दिल से कभी न निकालना। खुदा की रहमत हो उस बंदे पर जो मेरी इस दुआ पर आमीन कहे।" (अरबी शेर का रुपांतर) सितम बलाए सितम यह हुआ कि लैला के कठोर माता-पिता ने उसकी शादी किसी और जगह कर दी। उस समय मजनूँ पर जो संकट का पहाड़ टूट गिरा होगा उसका वर्णन जरुरी नहीं। लैला की बेचैनी और विकलता ने उसके पति का जीवन दूभर कर दिया। उसने तंगा आ कर उससे संबंध तोड़ दिया। मजनूँ कभी कभार दीवानगी के जोश में अपनी प्रिया की गली में निकल आता और अपने दर्द भरे अशआर से लैला तथा उसके कबीले वालों को तड़पा जाता। परिणाम स्वरुप लैला ने इसी विरही दशा में अपने प्राण दे दिए। लैला की मृत्यु की दर्द भरी खबर सुनकर मजनूँ कब जीवित रह सकता था। अमीर खुसरो ने अपनी मसनवी में कला की दृष्टि से आवश्यक बातें, हम्द, नात, और मुनाजात आदि के अतिरिक्त कई दिलचस्प शीर्षक कायम किए हुए हैं। इनके किस्से की संक्षिप्त रुपरेखा निम्नलिखित है -
"लैला व मजनूँ का पाठशाला में एकत्रित बैठना, प्रेम पाठ की पुनरावृत्ति भेद प्रकट होना, माँ का लैला को उपदेश, पर्दा-नशीनी, मजनूँ का पागलपन, पिता का मजनूँ को समझाकर जंगल से लाना, लैला के यहाँ शादी का पैगाम भेजना, उसके माता-पिता का इंकार करना, कबीले के सरदार नौफिल का लैला के परिवार से लड़ना, इस लड़ाई में मजनूँ की ओर से कस्बों की दावत, मजनूँ के पागलपन का और बढ़ना, नौफिल की पुत्री से मजनूँ का निकाह, लैला के निकाह की खबर सुनकर मजनूँ को खत लिखना, मजनूँ का उत्तर देना, दोस्तों द्वारा मजनूँ को बाग में ले जाना, परन्तु उसका दीवानगी में भाग खड़ा होना, मजनूँ का बुलबुल से बातें करना, लैला के कुत्ते से मजनूँ की मुलाकात, लैला का सपने में ऊँटनी में सवार हो कर मजनू के पास पहुँचना, लैला का सखियों के साथ बाग में जाना, मजनूँ के एक मित्र का लैला को पहचान कर दर्द भरे स्वर में मजनूँ की गजल गाना, लैला का विकल हो कर घर लौटना और मृत्यु शैय्या पर फँस जाना, लैला की बीमारी का समाचार सुनकर मजनूँ का उसके पुर्से को आना और उसकी अर्थी देखना, मजनूँ का मस्त होकर गीत गाना, लैला के अंतिम संस्कार के समय मजनूँ का दम तोड़ देना और साथ ही दफन होना।" मजनूँ व लैला के क़िस्से की ऊपर दी हुई रुपरेखा में बड़ी ही सरलता और सहजता है, प्रेम अग्नि तथा विरह का यह अफ़साना मन को अति प्रभावित करता है और यह वन भ्रमण की एक आकर्षक दास्तान है। इसके लिए भगवान की ओर से खुसरो को एक दर्द भरा दिल प्राप्त हुआ था। हज़रत निजामुद्दीन औलिया प्रार्थना करते समय उनके हृदय की तड़प का वास्ता देते थे और उनका चिश्ती वंश से संबंधित होना उनके इस उत्साह का कारण था। मजनूँ की इस दास्तान में गज़ल की तमाम विशेषताएँ पाई जाती हैं। अत: वास्तववादिता अमीर खुसरो का वैशिष्टय था। मसनवी के हर क़िस्से पर हमको सत्य का आभास होता है। खुसरो के काव्य में प्राकृतिक चित्रकारी है। उनकी लेखनी ने जो शब्द चित्र खीचें हैं, वे 'माना' तथा बहजाद का चित्र कोष ही तो है।
(४) आइने-सिकंदरी-या सिकंदर नामा - निजामी के सिकंदरनामा का जवाब (६९९ हिज्री/सन १२९९ ई.) इसमें सिकन्दरे आजम और खाकाने चीन की लड़ाई का वर्णन है। इसमें अमीर खुसरो ने अपने छोटे लड़के को सीख दी है। इसमें रोज़ीरोटी कमाने, व कुवते बाज़ू की रोटी को प्राथमिकता, हुनर (कला) सीखने, मज़हब की पाबंदी करने और सच बोलने की वह तरक़ीब है जो उन्होंने अपने बड़े बेटे को अपनी मसनवी शीरी खुसरो में दी है। इस रचना के द्वारा खुसरो यह दिखाना चाहते थे कि वे भी निजामी की तरह वीर रस प्रधान मसनवी लिख सकते हैं। (५) हशव-बहिश्त- निजामी के हफ्त पैकर का जवाब (७०१ हिज्री/सन १३०१ ई.) फ़ारसी की सर्वश्रेष्ठ कृति। इसमें इरान के बहराम गोर और एक चीनी हसीना (सुन्दरी) की काल्पनिक प्रेम गाथा का बेहद ही मार्मिक चित्रण है जो दिल को छू जाने वाली है। इसमें खुसरो ने मानो अपना व्यक्तिगत दर्द पिरो दिया है। कहानी मूलत: विदेशी है अत: भारत से संबंधित बातें कम हैं। इसका वह भाग बेहद ही महत्वपूर्ण है जिसमें खुसरो ने अपनी बेटी को संबोधित कर उपदेशजनक बातें लिखी हैं। मौलाना शिबली (आजमगढ़) के अनुसार इसमें खुसरो की लेखन कला व शैली चरमोत्कर्ष को पहुँच गई है। घटनाओं के चित्रण की दृष्टि से फ़ारसी की कोई भी मसनवी, चाहे वह किसी भी काल की हो, इसका मुक़ाबला नहीं कर सकती।
आज के संदर्भ में खुसरो की कविता का अनुशीलन भावात्मक एकता के पुरस्कर्ताओं के लिए भी लाभकारी होगा। खुसरो वतन परस्तों अर्थात देश प्रेमियों के सरताज कहलाए जाने योग्य हैं। उनका सम्पूर्ण जीवन देश भक्तों के लिए एक संदेश है। देश वासियों के दिलों को जीतने के लिए जाति, धर्म, आदि की एकता की कोई आवश्यकता नहीं। अपितु धार्मिक सहिष्णुता, विचारों की उदारता, मानव मात्र के साथ प्रेम का व्यवहार, सबकी भलाई (कल्याण) की कामना तथा राष्ट्रीय एकता की आवश्यकता होती है। इस लेख में उद्घृत खुसरो की विभिन्न मसनवियों के उद्धरणों से यह बात भली-भाँति प्रभावित होती है तथा उनके भारत विषयक आत्यंतिक प्रेम का परिचय मिलता है।
अमीर खुसरो दरबारों से संबंधित थे और उसी तरह का जीवन भी व्यतीत करते थे जो साधारणतया दरबारी का होता था। इसके अतिरिक्त वे सेना के कमांडर जैसे बड़े-बड़े पदों पर भी रहे किन्तु यह उनके स्वभाव के विरुद्ध था। अमीर खुसरो को दरबारदारी और चाटुकारिता आदि से बहुत चिड़ व नफ़रत थी और वह समय समय पर इसके विरुद्ध विचार भी व्यक्त किया करते थे। उनके स्वंय के लिखे ग्रंथों के अलावा उनके समकालीन तथा बाद के साहित्यकारों के ग्रंथ इसका जीता जागता प्रमाण है। जैसे अलाई राज्य के शाही इतिहासकार अमीर खुसरो ने ६९० हिज्री (१२९१ ई.) में मिफताहुल फुतूह, ७११ हिज्री (१३११-१२ ई.) में खजाइनुल फुतूह, ७१५ हिज्री (१३१६ ई.) में दिवल रानी खिज्र खाँ की प्रेम कथा ७१८ हिज्री (१३१८-१९ ई.) में नुह सिपहर, ७२० हिज्री (१३२० ई.) में तुगलकनामा लिखा। इसके अलावा एमामी ने रवीउल अव्वल ७५१ हिज्री (मई १३५० ई.) ४० वर्ष की आयु में 'फुतूहुस्सलातीन', फिरदौसी का शाहनामा, (एमामी ने अमीर खुसरो के ऐसे ग्रंथ भी पढ़े थे जो इस समय नहीं मिलते। उसने अमीर खुसरो की कविताओं का अध्ययन किया था। जियाउद्दीन बरनी का तारीख़ें फ़ीरोज़शाही ७४ वर्ष की अवस्था में ७५८ हिज्री (१३७५ ई.) में समाप्त की। चौदहवीं शताब्दी ई. के तानजीर का प्रसिद्ध यात्री अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद इब्ने बतूता (७३७ हिज्री / १३३३ई.) में सिंध पहुँचा। भारत वर्ष लौटने पर उसकी यात्रा का वर्णन इब्बे-तुहफनुन्नज्जार फ़ी गराइबिल अमसार व अजाइबुल असफार रखा गया। मेंहंदी हुसैन ने इसका नाम रेहला रखा। (REHLA (BARODA १९५३) अनुवाद में केवल अनाइबुल असफार रखा गया है। मुहम्मद कासिम हिन्दू शाह अस्तराबादी जो फ़रिश्ता के नाम से प्रसिद्ध है सोलहवीं शती का बड़ा ही विख्यात इतिहासकार है। उसने अपने ग्रंथ 'गुलशने इब्राहीमी' (जो तारीख़ें फ़रिश्ता के नाम से प्रसिद्ध है) की रचना १०१५ हिज्री (१६०६-०७ ई.) में समाप्त की।
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