बाड़मेर। भगु, टीला और साहू की एक छोटी-सी गलती वर्षाें की सजा बन गई। वे पाकिस्तान की जेलों में सजा भुगत रहे हैं और उनके परिजन यहां हिन्दुस्तान में जुदाई की पीड़ा भोग रहे हैं। परिजनों की पीड़ा यह जानकर और बढ़ जाती हैकि उनकी पैरोकारी करने वाला कोई नहीं है। हालत यह हैकि राज्य सरकार ने इन मामलों को इस तरह केन्द्र सरकार के भरोसे छोड़ दिया है, जैसे उसे इनसे कोई सरोकार ही नहीं है।
केस-1
चौहटन तहसील के धनाऊ गांव का रहने वाला भगुसिंह पुत्र होथीसिंह रावणा राजपूत वर्ष 1984 से पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में निरूद्ध है। बॉर्डर पर तारबंदी होने से करीब एक दशक पहले वह गलती से पाक सीमा में चला गया। पाक रैंजर्स ने उसे पकड़ लिया और जेल में डाल दिया।
केस-2
चौहटन तहसील के ही बींजराड़ थाना क्षेत्र के निम्बाला गांव का रहने वाला टीलाराम पुत्र किरताराम भील वर्ष 198 7 में अपनी बकरियां ढूंढते हुए पाक सीमा में चला गया। पाक रैंजर्स ने उसे पकड़ लिया। उसके बाद उसका क्या हुआ, वह किस जेल में बंद है, इसे लेकर कोई जानकारी नहीं है।
केस-3
बींजराड़ थाना क्षेत्र के सरूपे का तला गांव का रहने वाला साहूराम पुत्र रूपाराम मेघवाल वर्ष 1992 में जंगल में लकडियां लेने के लिए गया था। वह पाकिस्तान सीमा में चला गया। पाक रैंजर्स ने उसे पकड़ लिया। साहूराम की कहानी भी टीलाराम की ही तरह है। वह किस जेल में है, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।
राज्य सरकार ने पल्ला झाड़ा
बायतु विधायक कर्नल सोनाराम चौधरी ने इन मामलो को लेकर विधानसभा में प्रश्न उठाया तो राज्य सरकार अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ दिया। जवाब में बताया कि पाकिस्तान की जेलों में बंद भारतीय नागरिकों को पुन: देश लाने संबंधी कार्यवाही भारत सरकार के स्तर पर सम्पादित की जाती है। 21 मई 2008 को भारत व पाक सरकार के मध्य हुए अनुबंध के तहत दोनों देशों की सरकारों द्वारा प्रतिवर्ष एक जनवरी व एक जुलाई को दोनों देशों के बंदियों की सूचियो का आदान-प्रदान किया जाता है। सूची में अंकित बंदियों की सजा समाप्त होने एवं नागरिकता निर्घारित होने के बाद उन्हें अपने देश में प्रत्यावर्तित किए जाने का निर्णय संबंधित देश की सरकार द्वारा किया जाता है।
टीला व साहू सूची में नहीं
हैरत की बात यह हैकि टीलाराम व साहूराम पाकिस्तान सरकार की सूची में ही नहीं है। पाकिस्तान सरकार भारतीय बंदियों की जो सूची भारत सरकार को उपलब्ध करवाती है, उसमें टीला व साहू का कभी नाम नहीं आया। आश्चर्यजनक पहलू है कि राजस्थान की सरकारों ने अपने इन नागरिकों का पता लगाने के लिए कभी ठोस पैरवी नहीं की। जहां तक भगुसिंह का प्रश्न हैतो राज्य का गृह विभाग प्रवासी भारतीय कार्य मंत्रालय को वर्ष में एकाध बार पत्र भेजकर अपने कत्तüव्य की इतिश्री कर रहा है।
मजबूत पैरवी करे सरकार
पाक जेलों में निरूद्ध निर्दाेष भारतीय नागरिकों की रिहाई के लिए राज्य सरकारों को मजबूत पैरवी करनी चाहिए। जिनके बारे में कोईजानकारी नहीं है, उनका पता लगाना चाहिए।
-कर्नल सोनाराम चौधरी, विधायक, बायतु
पैरवी करता रहा हूं
पाक जेलों में निरूद्ध भारतीय नागरिकों की वतन वापसी के लिए पैरवी करता रहा हूं। बाड़मेर-जैसलमेर के कुछ लोगों की वापसीभी हुई है। जिनकी वापसी नहीं हो सकी है, उनकी वापसी के लिए पूरी पैरवी करूंगा।
-मानवेन्द्रसिंह, पूर्व सांसद
केस-1
चौहटन तहसील के धनाऊ गांव का रहने वाला भगुसिंह पुत्र होथीसिंह रावणा राजपूत वर्ष 1984 से पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में निरूद्ध है। बॉर्डर पर तारबंदी होने से करीब एक दशक पहले वह गलती से पाक सीमा में चला गया। पाक रैंजर्स ने उसे पकड़ लिया और जेल में डाल दिया।
केस-2
चौहटन तहसील के ही बींजराड़ थाना क्षेत्र के निम्बाला गांव का रहने वाला टीलाराम पुत्र किरताराम भील वर्ष 198 7 में अपनी बकरियां ढूंढते हुए पाक सीमा में चला गया। पाक रैंजर्स ने उसे पकड़ लिया। उसके बाद उसका क्या हुआ, वह किस जेल में बंद है, इसे लेकर कोई जानकारी नहीं है।
केस-3
बींजराड़ थाना क्षेत्र के सरूपे का तला गांव का रहने वाला साहूराम पुत्र रूपाराम मेघवाल वर्ष 1992 में जंगल में लकडियां लेने के लिए गया था। वह पाकिस्तान सीमा में चला गया। पाक रैंजर्स ने उसे पकड़ लिया। साहूराम की कहानी भी टीलाराम की ही तरह है। वह किस जेल में है, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है।
राज्य सरकार ने पल्ला झाड़ा
बायतु विधायक कर्नल सोनाराम चौधरी ने इन मामलो को लेकर विधानसभा में प्रश्न उठाया तो राज्य सरकार अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ दिया। जवाब में बताया कि पाकिस्तान की जेलों में बंद भारतीय नागरिकों को पुन: देश लाने संबंधी कार्यवाही भारत सरकार के स्तर पर सम्पादित की जाती है। 21 मई 2008 को भारत व पाक सरकार के मध्य हुए अनुबंध के तहत दोनों देशों की सरकारों द्वारा प्रतिवर्ष एक जनवरी व एक जुलाई को दोनों देशों के बंदियों की सूचियो का आदान-प्रदान किया जाता है। सूची में अंकित बंदियों की सजा समाप्त होने एवं नागरिकता निर्घारित होने के बाद उन्हें अपने देश में प्रत्यावर्तित किए जाने का निर्णय संबंधित देश की सरकार द्वारा किया जाता है।
टीला व साहू सूची में नहीं
हैरत की बात यह हैकि टीलाराम व साहूराम पाकिस्तान सरकार की सूची में ही नहीं है। पाकिस्तान सरकार भारतीय बंदियों की जो सूची भारत सरकार को उपलब्ध करवाती है, उसमें टीला व साहू का कभी नाम नहीं आया। आश्चर्यजनक पहलू है कि राजस्थान की सरकारों ने अपने इन नागरिकों का पता लगाने के लिए कभी ठोस पैरवी नहीं की। जहां तक भगुसिंह का प्रश्न हैतो राज्य का गृह विभाग प्रवासी भारतीय कार्य मंत्रालय को वर्ष में एकाध बार पत्र भेजकर अपने कत्तüव्य की इतिश्री कर रहा है।
मजबूत पैरवी करे सरकार
पाक जेलों में निरूद्ध निर्दाेष भारतीय नागरिकों की रिहाई के लिए राज्य सरकारों को मजबूत पैरवी करनी चाहिए। जिनके बारे में कोईजानकारी नहीं है, उनका पता लगाना चाहिए।
-कर्नल सोनाराम चौधरी, विधायक, बायतु
पैरवी करता रहा हूं
पाक जेलों में निरूद्ध भारतीय नागरिकों की वतन वापसी के लिए पैरवी करता रहा हूं। बाड़मेर-जैसलमेर के कुछ लोगों की वापसीभी हुई है। जिनकी वापसी नहीं हो सकी है, उनकी वापसी के लिए पूरी पैरवी करूंगा।
-मानवेन्द्रसिंह, पूर्व सांसद
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