रायपुर। यहां न सांप्रदायिकता के नाम पर वोट बैंक की राजनीति करने का छलावा है, न जाति और धर्म के नाम पर लोग लड़ाईयां लड़ते हैं, क्योंकि यहां मानवता सबसे बड़ा धर्म है, हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के पिनकापार गांव की जहां "जलालुद्दीन बगदाद वाले बाब की मजार" है, जो पिछले 10 दशक से दुनिया को एकता का संदेश दे रही है।
क्या है इस मजार की खासियत, क्या है यहां की परंपरा, आईए देखते हैं-
बालोद जिले के पिकनापार गांव में "जलालुद्दीन वाले बाबा की मजार" वो स्थान है, जहां पिछले 100 साल से मजार की देखभाल हिंदू कर रहे हैं, पैसा इक ट्ठा करने से लेकर व्यवस्था के तमाम कामों को करने के लिए एक समिति भी काम करती है। खास बात यह है कि लगभग 440 परिवारों के इस गांव में एक ही मुस्लिम परिवार रहता है, अमन-चैन का संदेश देते हुए यहां के हिंदू परिवार मजार पर अगरबत्ती और धूपबत्ती जलाकर इबादत करते हैं।
विश्वास करते हैं लोग
गांव के प्रेमपाल, देवांगन, झाड़ूराम, बसंत देशमुख ने बताया कि 1905 में मिट्टी से बनी मजार को अब सीमेंट और पत्थर से बना दिया गया है। दूसरे स्थानीय लोगों का कहना है कि संकट के समय जो लोग फरियाद लेकर यहां आते हैं, उनकी मुराद जरूर पूरी होती है।
होटल में दानपात्र
पिकनापार के पास जेवरतला गांव के रहने वाले धनराज ढोबरे का कहना है कि मैं सुकून पाने के लिए पिछले 26 सालों से इस मजार पर मत्था टेकने जाता हूं, वहीं इतवारी रजक ने इस मजार के लिए अपने होटल में दानपात्र बना रखा है।
यहां के हिंदू परिवार मंदिर के प्रति जितना समर्पण रखते हैं, उसी तरह मजार पर इबादत करने में भी पीछे नहीं हैं। यहां के हिंदू समूचे देश को प्यार और इंसानियत का बड़ा पाठ पढ़ा रहे हैं।
क्या है इस मजार की खासियत, क्या है यहां की परंपरा, आईए देखते हैं-
बालोद जिले के पिकनापार गांव में "जलालुद्दीन वाले बाबा की मजार" वो स्थान है, जहां पिछले 100 साल से मजार की देखभाल हिंदू कर रहे हैं, पैसा इक ट्ठा करने से लेकर व्यवस्था के तमाम कामों को करने के लिए एक समिति भी काम करती है। खास बात यह है कि लगभग 440 परिवारों के इस गांव में एक ही मुस्लिम परिवार रहता है, अमन-चैन का संदेश देते हुए यहां के हिंदू परिवार मजार पर अगरबत्ती और धूपबत्ती जलाकर इबादत करते हैं।
विश्वास करते हैं लोग
गांव के प्रेमपाल, देवांगन, झाड़ूराम, बसंत देशमुख ने बताया कि 1905 में मिट्टी से बनी मजार को अब सीमेंट और पत्थर से बना दिया गया है। दूसरे स्थानीय लोगों का कहना है कि संकट के समय जो लोग फरियाद लेकर यहां आते हैं, उनकी मुराद जरूर पूरी होती है।
होटल में दानपात्र
पिकनापार के पास जेवरतला गांव के रहने वाले धनराज ढोबरे का कहना है कि मैं सुकून पाने के लिए पिछले 26 सालों से इस मजार पर मत्था टेकने जाता हूं, वहीं इतवारी रजक ने इस मजार के लिए अपने होटल में दानपात्र बना रखा है।
यहां के हिंदू परिवार मंदिर के प्रति जितना समर्पण रखते हैं, उसी तरह मजार पर इबादत करने में भी पीछे नहीं हैं। यहां के हिंदू समूचे देश को प्यार और इंसानियत का बड़ा पाठ पढ़ा रहे हैं।
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