राजस्थानी भाषा ही राजस्थानी संस्कृति की पहचान है।
साधू संतो और मातृ शक्ति ने राजस्थानी भाषा संकल्प हस्ताक्षर किये
अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति बाड़मेर के तत्वाधान में संकल्प पखवाड़े के तहत रविवार को संकल्प हस्ताक्षर अभियान चलाया गया। हस्ताक्षर अभियान में बाड़मेर के लोगो ने विशेष कर मातृ शक्ति ,ने उत्साह और संकल्प के साथ हस्ताक्षर कर राजस्थानी भाषा को संवेधानिक मान्यता पुरजोर तरीके से उठाई। रविवार को साधू संतो और मातृ शक्ति ने राजस्थानी भाषा के लिए संकल्प हस्ताक्षर कर अभियान को गति दी।
इस अवसर स्वामी प्रताप पूरी जी महाराज ने कहा की राजस्थानी अत्यन्त मिठास एवं सम्मान के भाव की भाषा है। हमारी पीढ़ीयों का लोक शिक्षण राजस्थानी भाषा में हुआ है। ऐसी सुन्दर भाषा की संवेधानिक मान्यता आवश्यक है। राजस्थानी राजस्थान के अलावा अन्य प्रान्तों में भी बोली जाती है। महाराणा कुंभा ने रसिक प्रिया टीका राजस्थानी में लिखी। इसी तरह मारवाड़ के लेखकों ,कवियों और साहित्यकारों ने आदिकाल से आधुनिक काल से राजस्थानी भाषा लेखन को समृद्व करने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई।
इस अवसर पर संभाग उप पाटवी चन्दन सिंह भाटी ने कहा की राजस्थानी भाषा राजस्थान के लोगो की मातृभाषा होने के साथ ही राजस्थानी संस्कृति की पहचान है। भाषा लोगो को बान्धे रखती है भाषा ही संस्कृति को आगे ले जाती है और भाषा के बिना राजस्थान की संस्कृति की कल्पना बेमानी है। भाटी ने बताया कि राजस्थानी को आठवी अनूसूची मे जोडने हेतु 25 अगस्त 2003 को विधानसभा में सकल्प प्रस्ताव पास किया गया। जिसे दस साल आज पूर्ण हो गए। दस सालो से राजस्थानी भाषा को मान्यता का मामला संसद में अटका हें।
श्रीमती वर्षा राठी ने कहा की आठवी अनुसूची में जुडने से प्रदेश के बच्चो को राजस्थानी तृतीय भाषा के रूप में लेने की सुविधा मिल जाएगी। भारतीय प्रशासनिक सेवा मे भी हिन्दी अग्रेजी के अलावा राजस्थानी भी माध्यम होगा। प्रदेश के सांसद विधायको को भी राजस्थानी मे शपथ लेने व संवाद की सुविधा मिल सकेगी। इस अवसर पर जिला पाटवी रिडमल सिंह दांता ,इन्द्र प्रकाश पुरोहित रमेश सिंह इन्दा ,दिग्विजय सिंह चुली,स्वामी सत्यशील ,स्वामी अवधेश ,सवाई चावड़ा ,जीतेन्द्र फुलवरिया ,अनवर सिंह बन्धडा ,कैलाश जायडू , वर्षा राठी ,सुधा डांगरा ,बसंती तापडिया ,श्यामा सोनी ,रुख्मानी मूंदड़ा ,कौशल्या चंडक ,ओम प्रकाश त्रिवेदी सहित समिति के कई थे
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