प्रेम का अभाव भूलों को माफ नहीं करने देता- साध्वी प्रियरंजना
बच्चों का पांचवा रविवारीय षिविर सम्पन्न
बाड़मेर 25.08.2013
थार नगरी बाड़मेर में श्री जिनकानितसागर सूरी आराधना भवन में चातुर्मासिक विराजित साध्वीवर्या प्रखरव्याख्यात्री श्री प्रिय रजना श्री जी मसा ने अपने 35 वें दिन प्रवचन माला में कहा कि यदि मन सदगुण वासित नही ंतो सुख का कोर्इ अनुभव नहीं और मन यदि दुर्गण वासित नही ंतो सकलेष का कोर्इ अनुभव नहीं। मन को सदगुणों से वासित करने के लिए क्या करें इसके लिए तीन सुंदर उपाय है -
प्रथम उपाय बुरा भुलना सीखों मनुष्य दु:खी है दुध्र्यानग्रस्त है दोषीत है इसके अनेक कारणों में से एक कारण यह है कि कटु अनुभवों को याद रखने मनुष्य बहुत ताकतवर बना है भले ही दस वर्ष पहले किसी ने उसका अपमान किया हो आज भी उसे वह उसे बराबर याद है। व कटु अनुभव उसके स्मृति पटल पर बराबर अंकित है भले ही तीन वर्ष पहले की ठण्ड में हैरान परेषान हुआ हो तो आज भी उस ठण्ड में चमक उसके दिमाग में बराबर सायी हुर्इ है। वर्तमान सुखद है अनुकुल है संतोषप्रद है उसके बावजूद मनुष्य दु:खी है भूतकाल के कटू अनुभवों की स्मृति के कारण। कटु स्मृति मनुष्य को न तो स्वस्थ रहने देती है न ही प्रसन रहने देती है न तो सामने वाले व्यकित के साथ प्रेममय व्यवहार करने देती है न ही उस व्यकित को क्षमा प्रदान करने देती है। स्मृति यह शायद वरदान है परन्तु विस्मृति र्इष्वरीय देन है स्मृति शायद सम्पति है परन्तु विस्मृति तो ज्वाहरात है स्मृति शायद चना है परन्तु विस्मृति तो बादाम है।
वास्तव में प्रत्येक क्षण जीवन नया है पुरानें नाम के आधार पर यदि जीवन जीने जाये तो भाग्य दु:ख एंव हताषा के अलावा दुसरा मिलेगा भी क्या। भूतकाल को भी निर्णायक बनाकर वर्तमान में जीवन जीया जाये तो वेदन एवं व्यथा के सिवाया दुसरा अनुभव भी होगी क्या ? जीवन गतिषील है उपर से नीचे की ओर आ रहे पत्थर के समान जीवन प्रवाहषील है सागर की ओर जा रही नदी के समान जीवन परिवर्तनषील है सतत रंग बदल रहे है गिरगिट के समान एसें स्थायी जीवन को कटु स्मृतियों के संग्रह द्वारा दु:खद त्रासदायक एवं सकलेषकारक बना देने की भुल हमें हरगिज नहीं करनी चाहिए।
जीवन को सदगुणों से सुवासित करने का दुसरा उपाय है सभी को साथ में रखना सीखोर्ं। पे्रम पूर्ण हदय होता है दूध में डाले गये थोड़े जामन के समान जिस प्रकार दूध को दही में रूपानितरित कर देता है उसी प्रकार जिन संबंधों का आधार प्रेम होता है वे संबंध जमें बिना नहीं रहते। जबकि द्वेषपूर्ण हदय होता है दूध में डालते एसिड के समान दूध में दो तीन एसिड की बूंदे डालते ही जिस प्रकार दूध को फाड़ देती है उसी प्रकार संबंधों में शामिल होने वाले द्वेष वर्षो पुराने मीठे संबंधों की होली सुलगाकर ही रहता है प्रेम का अभाव सामने वाले की भुलों को माफ नहंी करने देते है। जबकि अंहकार का प्रभाव स्वयं की भूलों को कबूल नहीं करने देता है।
तीसरा उपाय - भगवान में समा जाना चाहिए समर्पण रेगिस्तान में जाती नदी जैसा ही है परन्तु सागर में समा जाती नदी जैसा है भगवान में समा जाने का र्इनाम है अपने समस्त क्षु्रदता समाप्त हो जाये और प्रभु की समस्त महानता हमें मिल जाये अपने समस्त दोष नष्ट हो जायें और प्रभु के समस्त गुण अपने हो जाये अपने समस्त दु:ख विलीन हो जाये और प्रभु के समस्त सुख हमारे हो जायें।
जीवन जीने की तीन जड़ीबूटिया है
1. दुखी व्यकित की दुआ लेना सीखों दुसरों के दु:खों को दूर करने से दुआ मिलती है।
2. जीवन में संतो का आषीर्वाद लेना सीखोर्ं। इसके लिए पाप कम करेंगें तो पाप मिलेगा।
3. परमात्मा की कृपा लेना सीखो पाप की प्रवृति से निवृति लेगें तभी परमात्मा का अनुग्रह होगा।
साध्वी प्रिय दिव्याजना जी ने कहा कि द्रव्य प्राण हमारा भाव प्राण पर ही टिका हुआ है भाव प्राण का मतलब आंतरिक जीवन सुखमय शातिमय एवं निर्मल होना। केवल प्रषनल्टी अच्छी होने से आपकी आत्मा का कल्याण नहीं हो सकता है दुखी व्यकित की दुआ से उम्र बढती है तन-मन धन सहायता करों उसकी दुआ से हमारा भव सुधरेगा। भीखारी का तिरस्कार मत करेां उसकी दुआ से सुहाग अमर रहेगा। संतो का आषीर्वाद सिंतामयी रत्नों से बढकर है।
बच्चों का रविवारीय षिविर सम्पन -
खरतरगछ चतुर्मास कमेटी के अध्यक्ष मांगीलाल मालू एवं भूरचंद संखलेषा ने बताया कि स्थानीय आराधना भवन में साधवीवर्या प्रियरजना श्री मा सा की पावन प्रेरणा से एवं साध्वी प्रिय दिव्याजना एवं साध्वी प्रिय शुभाजना के सानिध्य में बच्चों का पांचवा रविवरीय षिविर सम्पन्न हुआ। साध्वी जी ने षिविर में बच्चों को सुसंस्कार के साथ पानी का अपव्यय नहीं करें इसमें जीव जन्तुओं की हत्या से आषातना होती है इससे हमारा पर्यावरण गड़बड़ा जाता है प्रदूषित वातावरण बनता है अनछना पानी नहीं पीना चाहिए। इसके साथ मंदिर विधि,जूठा भोजना, धार्मिक पाठषाला, इत्यादि के बारे में विस्तार से समझाया। आज षिवरार्थी बच्चों के एकासना की व्यवस्था एवं प्रभावना की व्यवस्था संघ की ओर से थी। षिविर में अध्यक्ष मागींलाल मालू, उपाध्यक्ष भूरचंद संखलेषा, सोहन अरटी, बाबूलाल छाजेड़, पारसमल मेहता, मदनलाल बोथरा, विरचंद भंसाली, खेतमल तातेड़, उदयगुरू सहित षिविर में सेवाएं दी।
बाबुलाल छाजेड़ ने बताया कि साध्वी वर्या की पावन प्रेरणा से अक्षय निधि तप, समोवसरण तप सहित आयमिबल, लड़ी तेला तप, सहित पूज्य साध्वी वर्या प्रिय रजना श्री जी के आयमिबल की तपास्या नियमित रूप स चल रही है।
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