बुधवार, 28 नवंबर 2012

वीर भूमि मेवाड़ जौहर: चित्तौड़गढ़ (मेवाड़)


वीर भूमि मेवाड़ जौहर: चित्तौड़गढ़ (मेवाड़)
चित्तौड़गढ़ राजस्थान राज्य का प्रमुख शहर है । वीर भूमि मेवाड़ का यह प्रसिद्ध नगर रहा है, जो भारत के इतिहास में सिसोदिया राजपूतों की वीरगाथाओं के लिए अमर है । प्राचीन नगर चित्तौड़गढ़ रेल्वे जंक्शन से चार कि.मी. दूर है । भूमितल से 508 फुट एवं समुद्रतल से 1338 फुट की ऊँचाई पर एक विशाल ह्वेल आकार का दुर्ग इस नगर के गौरव का प्रमुख केन्द्र है । दुर्ग के भीतर ही चित्तौड़गढ़ का प्राचीन नगर बसा है। जिसकी लम्बाई साढ़े तीन मील और चौड़ा है एक मील है । किले के परकोटे की परिधि 12 मील है । कहा जाता है कि चित्तौड़गढ़ से 8 मील उत्तर की ओर नगरी नामक प्राचीन बस्ती है जो महाभारतकालीन माध्यमिका है । चित्तौड़गढ़ का निर्माण इसी के खंडहरों से प्राप्त सामग्री से किया गया था ।

चित्तौड़गढ, वह वीरभूमि है, जिसने समूचे भारत के सम्मुख अपूर्व शौर्य, विराट बलिदान और स्वातंत्र्य प्रेम का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया । बेड़च की लहरों में यहाँ के असंख्य राजपूत वीरों ने अपने देश तथा धर्म की रक्षा के लिए असिधारा रूपी तीर्थ में स्नान किया । वहीं राजपूत वीरांगनाओं ने कई अवसर पर अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अपने बाल-बच्चों सहित जौहर की अग्नि में प्रवेश कर आदर्श उपस्थित किए । स्वाभिमानी देशप्रेमी योद्धाओं से भरी पड़ी यह भूमि पूरे भारत वर्ष के लिए प्रेरणा स्रोत बनकर देश प्रेम का ज्वार उत्पन्न करने में अपनी भूमिका आज भी अदा करती है । वीरांगनाओं की स्मृति स्वरूप खड़े दुर्ग के ये स्मारक अपनी मूक भाषा में अतीत की गौरव गाथाएँ सुनाते दिखाई पड़ते हैं ।


प्रथम जौहर:- रानी पद्मिनी ने चित्तौड़गढ़ में दुर्ग स्थित विजय स्तम्भ व गौ-मुख कुण्ड़ के पास विक्रम संवत् 1360 भादवा शुक्ला तेरस 25 अगस्त 1303 में सौलह हजार क्षत्राणियों के साथ अग्नि प्रवेश किया।

द्वितीय जौहर:- महाराणा संग्रामसिंह (महाराणा सांगा) की पत्नी राजमाता महाराणा विक्रमादित्य की माता कर्णावती का विक्रम संवत 1592 में चैत्र शुक्ल चतुर्थी सोमवार, 8 मार्च 1535 को 23,000 क्षत्राणियों के साथ अग्नि प्रवेश किया। यह जौहर चित्तौड़गढ़ में दुर्ग स्थित विजय स्तम्भ व गौ-मुख कुण्ड़ के पास हुआ।
तृतीय जौहर:- महाराणा उदयसिंह के समय जयमल मेड़तिया राठौड़ फत्ताजी के नेतृत्व में चार माह के युद्ध के बाद सांवतों की स्त्रियों ने फत्ताजी की पत्नी ठकुराणी
फूलकंवर जी के नेतृत्व में विक्रम संवत 1624 चैत्र कृष्णा एकादशी सोमवार 13 फरवरी सन् 1568 को सात हजार क्षत्राणियों के साथ चित्तौड़गढ़ में दुर्ग स्थित विजय स्तम्भ व गौ-मुख कुण्ड़ के पास अपनी-अपनी हवेलियों में अग्नि प्रवेश किया। फत्ताजी वंशज मुख्य ठिकाना आमेर आदि ठिकाने में जयमल जी चित्तौड़गढ़ के सेनानायक अथवा किले के दरवाजों के चाबीदार थे। इनको महाराणा संग्रामसिंह जी ने बदनोर, माही गांव दिये। जयमल जी को उनके चाचा रतनसिंह जी की पुत्री मीराबाई का विवाह महाराणा सांगा के ज्येष्ठ कुंवर भोजराज के साथ हुआ। मीराबाई पूर्ण रूप से भगवान कृष्ण की सेविका थी। मीराबाई का जन्म कुड़की बाजोली में हुआ। इनकी माता कुसुम कंवर का स्वर्गवास मीराबाई के बाल्यकाल में ही हो गया था। मीरा राव दूदा मेड़तिया के पौत्री थी। राव दूदा का ज्येष्ठ पुत्र विरमदेव जी थे और विरमदेव जी के ज्येष्ठ पुत्र जयमल जी थे। राव दूदाजी के पांच संतानें थी। विरमदेव जी के 10 पुत्र और 3 पुत्रियां थीं।
राव दूदाजी के वंशजों के नाम:- रावदूदा की दो रानियां थीं जिनमें प्रथम रानी देवलिया प्रतापगढ़ के नरसिंह की पुत्री सिसोदणी चंद्र कुंवरी और दूसरी रानी बबावदा के मानसिंह की पुत्री चौहान मृगकुंवरी। इन दोनों रानियों से राव दूदा के पांच पुत्र और एक पुत्री गुलाब कुंवरी उत्पन्न हुई। राव दूदा के पुत्रों में प्रथम विरमदेव, दूसरे रायमल, ये रायसलोत शाखा के मूल पुरूष थे। इनके वंशजों में अधिकार में मारवाड़ के भण्डाणा, बांसणी, जीलारी आदि ठिकाने हैं तथा मेवाड़ राज्य में हुरड़ा प्रांत के कुछ ग्रामों में भौम है। तीसरे पुत्र पंचायणजी, जिनके कोई संतान नहीं थी और इनका कोई वृतान्त उपलब्ध नहीं हो सका। चौथा पुत्र रतनसिंह थे, जिनके सिर्फ एक पुत्री थी जो मीराबाई के नाम से विख्यात हुई। मीराबाई का विवाह चित्तौड़ के प्रसिद्ध महाराणा संग्रामसिंह के युवराज भोजराज से हुआ। रतनसिंह को निर्वाह के लिये मेड़ता राज्य से कुड़की, बाजोली सहित कुल 12 गांव दिये गये।
विक्रम संवत् 1584 चैत्र शुक्ला चतुर्दशी, 17 मार्च सन् 1527 को महाराणा संग्रामसिंह का मुगल बादशाह बाबर से जो प्रसिद्ध युद्ध हुआ
था, उसमें मुसलमानों से बड़ी वीरता से लड़ते हुए रतनसिंह वीरगति को प्राप्त हुआ। मीराबाई के पिता रतनसिंह के पांचवे पुत्र रायमल थे, जो जोधपुर नरेश राव गंगाजी ने बयाने के युद्ध में महाराणा की सहायता के लिये जो सेना भेजी थी, उसके प्रधान सेनापति थे। ये भी उस युद्ध में बड़ी बहादुरी से लड़कर मारे गये। मारवाड़ में इनके वंशजों के अधिकार में मुख्य ठिकाने रेण और रायरा थे। वीरमदेव की रानियों में प्रथम रानी निवरवाड़ा के राणा केशवदास की पुत्री चालुक्य सोलंकी कल्याण कुंवरी, दूसरी रानी निवरवाड़ा अथवा बीसलपुर के राव फतहसिंह की पुत्री चालुक्या गंग कुंवरी, तीसरी रानी चित्तौड़ के महाराणा रायमल की पुत्री सिसोदिनी गोरज्या कुंवरी, चौथी रानी जयपुर राज्य के कालवाड़ा के महाराजा किशनदास की पुत्री कछवाहा रानी मान कुंवरी थी।
वीरमदेव के तीन पुत्रियां थी जिनमें प्रथम पुत्री राजकुमारी श्यामकुंवरी, जिनका विवाह मदारिया के रावत सागाजी शिशोदिया से हुआ। दूसरी पुत्री राजकुमारी फुलकुंवरी, इनका विवाह केलवा के सुविख्यात वीर सामंत रावत फत्ताजी शिशोदिया से किया गया। वीरवर रावत फत्ताजी ने चित्तौड़ के युद्ध में अकबर के विरूद्ध बड़ी बहादुरी से लड़कर वीरगति प्राप्त की। आजकल मेवाड़ में रावत फत्ताजी के वंशजों का मुख्य ठिकाना आमेट है। तीसरी राजकुमारी अभयकुंवरी का विवाह गंगराव के राव राघवदेव चौहान से हुआ था।
जयमल निवरवाड़ा के भाणेज और जयलोत राजपूतों के मूल पुरूष थे। प्रथम पुत्र जयमल जी, दूसरे पुत्र ईसरदास जी थे। जयमल जी के दूसरे नम्बर के भाई चित्तौड़ में संवत् 1624 में वीरगति को प्राप्त हुए। वे मुसलमानों के विरूद्ध लड़ाई में सुरजपोल पर काम आ गये। तीसरा पुत्र जगमाल जी, चौथा पुत्र चांदाजी, पांचवां पुत्र करण जी, छठा पुत्र अचला जी, सातवां पुत्र बिकाजी, आठवां पुत्र पृथ्वीराज जी, नोवां पुत्र सारंगदेव जी, दसवां पुत्र प्रतापसिंह जी।
जयमल जी का जन्म विक्रम संवत् 1564 आश्विन शुक्ला एकादशी, 17 सितम्बर सन् 1507 को शुक्रवार के दिन रात्रि दस ृृबजकर दस मिनट पर हुआ, तब राव दूदा और प्रथम कुंवर विरमदेव जिन्दा थे। जयमल जी की प्रथम रानी लुणावाड़ा के राणा रणधीर सिंह जी की पुत्री थी, दूसरी रानी खंड़ेला के राजा केशवदास जी की पुत्री विनयकुंवरी, तीसरी रानी देसुरी के राव केसरीसिंह जी की पुत्री सोलंकी पद्मकुंवरी थी।
जयमल की पुत्रियों का विवाह:- प्रथम राजकुमारी गुमानकुंवर का विवाह गंगरार राव बख्तावर सिंह जी चौहान से हुआ। दूसरी राजकुमारी गुलाब कुंवरी का पाणिग्रहण शिशोदिया रावत पंचायणजी के साथ हुआ।
जयमल जी के प्रथम पुत्र सुलतान सिंह को संवत् 1631, सन् 1574 को बादशाह अकबर ने इनको बीकानेर के राजा रायसिंह जी के साथ जोधपुराधीश राव चंद्रसेनजी के विरूद्ध करने के लिये भेजा और दूसरे ही वर्ष बादशाह अकबर ने गुजरात पर चढ़ाई की, उसमें सुलतान सिंह जी ने वीरगति पाई।
जयमलजी का दूसरा पुत्र शार्दुलजी, तीसरा पुत्र केशवदास जी, चौथा माधवदास जी, पांचवां मुकुंद दास जी, छठा हरिदासजी, सातवां कल्याणदास जी, आठवां रामदास जी, जो कि महाराणा प्रताप की सेना में थे और अकबर की सेना से लड़ते हुए हल्दीघाटी के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। नौवां पुत्र गोचंद दास जी, दसवां विट्ठलदास जी, ग्यारहवां नरसिंहदास जी, बारहवां श्यामदास जी, तेरहवां द्वारिकादास जी, चौदहवां अनोपसिंहजी, पंद्रहवां नारायणदासजी, सोलहवां अचलदास जी थे। इस प्रकार जयमलजी के दो राजकुमारियां और सोलह पुत्र थे।
जयमल फत्ता चित्तौड़गढ़ के सेनानायक थे। विदेशी हमलावर ने मांड़लगढ़ की ओर कूच किया। विक्रम संवत् 1624, माघ कृष्णा छठ, 23 अक्टूबर सन् 1567, गुरूवार को चित्तौड़ से तीन कोस दूरी पर उत्तर में स्थित नगरी गांव में ड़ेरा ड़ाला। उस समय आकाश मेघाच्छन्न हो रहा था। बादलों की भीषण गर्जना से पृथ्वी कम्पायमान हो रही थी। बिजलियां झकाझक चमक रहीं थी और बड़ी तेज हवा चल रही थी। इसी कारण बादशाह को किला दिखाई नहीं दिया परंतु आधे घण्टे बाद आकाश के मेघरहित हो जाने पर बादशाह को चित्तौड़ का गगन सुगढ़ दुर्ग दिखाई दिया। बादशाह ने दुर्ग के समीप पहुंच कर पहाड़ी के नीचे ड़ेरा ड़ाल दिया। किले पर घेरा ड़ालने का काम बरिन्शयों को सौंपा गया जो एक महीने में समाप्त हुआ। इसी माह के अंत में बादशाह ने आसफ खां को रामपुरा के दुर्ग पर भेजा जिसको उसने विजय कर लिया। महाराणा के उदयपुर, अजमेर या कुंभलगढ़ की ओर चले जाने की खबर पाकर अकबर ने हुसैन कुली खां को बड़ी सेना देकर उधर भेजा। हुसैन कुली खां ने उदयपुर पहुंचकर बहुत लुटमार की। उसने आसपास के प्रदेश में महाराणा का पता लगाने की बहुत कोशिश की परंतु कहीं भी पता नहीं लगने से अंत में वह निराश होकर बादशाह के पास लौट गया। इधर बादशाह ने चित्तौड़ पर अपना अरमान पूरा न होता देखकर साबात और सुरंगें बनाने का हुक्म दिया तथा जगह-जगह मोर्चा कायम करके तोपखाने से उनकी रक्षा की गई।

साबात और सुरंगें बनाने के काम में शाही सैनिक बड़ी मुस्तैदी के साथ कटिबद्ध होकर लग गये। अनेक स्थानों पर मोर्चाबंदी की गई। दो सुरंगें किले की दीवार के नीचे तक पहुंच गईं जिनमें से एक में 120 मन और दूसरी में 80 मन बारूद भर दिया गया। विक्रम संवत् 1624, माघ कृष्णा एकम्, 17 दिसम्बर सन् 1567 को एक सुरंग में आग ड़ाली गई जिससे 50 राजपूतों सहित किले की एक बुर्ज उड़ गई फिर दूसरी सुरंग भी उड़ गई जिसमें 500 शाही सैनिक जो दुर्ग में प्रवेश कर रहे थे और कुछ दुर्ग के राजपूत तत्काल मारे गये।
सुरंग के विस्फोट का धमाका 50 कोस तक सुनाई दिया। इस धमाके में मारे गये लगभग 100 राजपूत सैनिकों में से 20 प्रसिद्ध तोपची और अन्य उच्च सैनिक कर्मचारी थे जिन्हें स्वयं बादशाह भी अच्छी तरह से जानता था।
राव जयमलजी ने दुर्ग का प्रबंध ऐसी तरीकेबद्ध योजना से कर रखा था कि किले की जो दीवारें विपक्षियों के द्वारा गिराई गई थी उसी जगह पर तुरंत पहले जैसी नई दीवार बना ली गई। उसी दिन बीका खोह और मोहर मंगरी की तरफ आसफ खां के मोर्चे में जो एक तीसरी सुरंग खुदी हुई थी, वह भी उड़ गई परंतु उससे किले के केवल 30 सैनिक ही मारे गये और दुर्ग को कोई विशेष क्षति नहीं पहुंची। बादशाह को उस समय तक भी कोई विशेष सफलता नहीं मिल पाई।
जयमलजी राठौड बदनोरा मेड़तिया़ की आयु उस समय 60 वर्ष 5 माह और 17 दिन थी। इस अवस्था में भी चित्तौड़ के प्रसिद्ध संग्राम में आर्य जाति की स्वाधीनता की रक्षा करते हुए वीरगति प्राप्त की। इन्होंने 24 वर्ष राज्य किया।
राव जयमल जी का कद लम्बा, शरीर पुष्ट, विशाल नेत्र, चौड़ा वक्षस्थल, गेहुंआ रंग और प्रतिभाशाली चेहरा था। इनकी बड़ी-बड़ी मुंछें थी परंतु ये दाढ़ी नहीं रखते थे।
अकबर के साथ युद्ध के समय राव जयमल जी को रात्रि के समय लाकोटा दरवाजे के पास दीवार की मरम्मत कराते समय अकबर ने संग्राम नाम की बंदुक से गोली चलाई जो जयमलजी की जांघ में लगी और वो जख्मी हो गये। इसके बाद सामंतों ने आपस में सलाह कर चित्तौड़ दुर्ग के दरवाजे खोल दिये। दशामाता के दूसरे दिन एकादशमी को केसरिया बाना धारण करके बड़ी बहादुरी से लड़ते हुए जयमल फत्ता, जो कि कलाकुंवर जयमलजी के कुटुंब के थे, ने अपनी पीठ पर बिठाकर चारों हाथों में तलवारें चलाते हुए हनुमान पोल और भैडू पोल के बाच वीरगति पाई।
विक्रम संवत् 1927 में आसोज सुदी एकम्, सोमवार को इनकी छतरी पर श्री प्रतापसिंह जी राठौड़ ने आगे वाले खंभे पर एक खिलालेख खुदवाया जो आज भी मौजूद है। इनके वंशज बदनोर, मेड़ता अजमेर भीलवाड़ा आदि में है जिनमें धौली कुंवर उम्मेदसिंह जी आदि का ठिकाना है। जयमल वंशावली प्रथम भाग अथवा दूसरे भाग में कर्नल डाड के द्वारा उल्लेख किया गया है।

गुजिश्ता जमाने की हरदिल अजीज शमशाद बेगम

गुजिश्ता जमाने की हरदिल अजीज शमशाद बेगम
गुजिश्ता जमाने की हरदिल अजीज पा‌र्श्व गायिका शमशाद बेगम को कभी इस बात का मलाल नहीं रहा कि जिन संगीतकारों के करियर को बनाने में उनका हाथ रहा। उन्होंने कामयाबी की मंजिलें तय करने के बाद उनसे किनारा कर लिया। गायकी के उच्चतम शिखर पर पहुंचकर लगभग चालीस साल पहले फिल्मी दुनिया को अलविदा कहने के बाद खामोशी के साथ जिंदगी बिता रहीं सुरों की मलिका शमशाद बेगम को अब जाकर गणतंत्र दिवस पर पद्म भूषण पुरस्कार देने की घोषणा की गई है।

पा‌र्श्व गायन में उल्लेखनीय योगदान के लिए नब्बे वर्षीय शमशाद बेगम को प्रतष्ठित ओ. पी. नैयर पुरस्कार प्रदान किए जाने की घोषणा भी हुई है, जो उन्हें मुंबई के पोवई में उनके घर पर 29 जनवरी को प्रदान किया जाएगा, लेकिन उन्होंने पुरस्कार की पच्चीस हजार रुपये की राशि लेने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि इस राशि को धर्मार्थ कार्यो में लगा दिया जाए। पंजाब के अमृतसर में 1919 में जन्मी शमशाद बेगम 1937 में लाहौर रेडियो से अपनी गायकी का सफर शुरू करने के बाद निर्माता-निर्देशक महबूब खान के अनुरोध पर 1944 में मुंबई पहुंचीं और संगीत की विधिवत् तालीम नहीं लेने के बावजूद शीशे जैसी साफ, सुरीली और खनकती आवाज के दम पर सभी संगीतकारों की पहली पसंद बन गई। खेमचंद प्रकाश, श्याम सुंदर, ओ.पी.नैयर, राम गांगुली, मदन मोहन, सचिन देव बर्मन, नौशाद, सी.रामचंद्र आदि सभी संगीतकारों की स्वर-रचनाओं पर गाए उनके गीत बेहद मकबूल रहे। उन्होंने पांच भाषाओं में पांच हजार से अधिक गीतों को अपने स्वरों से सजाया। इनमें लगभग सभी गीत सुपर हिट रहे और बालीवुड के पा‌र्श्व गायन के सिंहासन पर उन्होंने लगभग छब्बीस साल तक एकछत्र राज किया।
शमशाद बेगम के लिए चित्र परिणाम
शमशाद बेगम के गाए गीत आज भी उतने ही मकबूल हैं जितने उनके जमाने में थे। उनके कई गीत रीमिक्स होकर लोगों की जुबां पर आज भी चढे़ हुए हैं, लेकिन उन्हें इस बात पर कोई एतराज नहीं है बल्कि उनका मानना है कि इसी बहाने लोग उन्हें याद तो करते हैं। वर्षो की खामोशी के बाद हाल में दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया था कि निर्माता-निर्देशक राजकपूर और संगीतकार मदनमोहन के करियर के शानदार आगाज में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी, लेकिन मदन मोहन ने अपनी पहली फिल्म आंखें में उनके गाए गीतों से कामयाबी के कदम चूमने के बाद उनसे आंखें चुराना शुरू कर दिया। इसी तरह राजकपूर की निर्माता-निर्देशक के रूप में पहली फिल्म आग की कामयाबी में भी उनके गाए गीतों का योगदान रहा, लेकिन इस फिल्म के बाद उन्होंने अपनी कुछ ही फिल्मों में उन्हें गायन का मौका दिया। अलबत्ता शमशाद बेगम को इस बात का कोअी रंज नहीं है। उनका कहना था कि उन्होंने मेरे साथ ऐसा कोई करार तो किया नहीं था कि मकबूल होने और दौलतमंद बन जाने के बाद वह उन्हें साइन करेंगे।
शमशाद बेगम के लिए चित्र परिणाम
हालांकि शमशाद बेगम ने यह भी बताया कि राजकपूर ने सार्वजनिक तौर पर माना था कि वह जो कुछ हैं उन्हीं बदौलत हैं और उन्होंने अफसोस जताया था कि वह उनके लिए कुछ नहीं कर सके क्योंकि संगीत निर्देशक शंकर-जयकिशन उन्हें पसंद नहीं करते थे। शमशाद बेगम बताती हैं कि वह कभी महत्वाकांक्षी नहीं रहीं। यहां तक कि फिल्म इंडस्ट्री की रस्म के मुताबिक उन्हें निर्माता से अपने काम के लिए अधिक धनराशि की मांग करते हुए भी शर्म आती थी। इस सिलसिले में एक दिलचस्प वाकया है कि उन्होंने एक बार निर्माता दलसुख पंचोली से झिझकते हुए अपने हर गाने के लिए पांच सौ रुपये की मांग की थी। इस पर तुरंत राजी होते हुए उन्होंने कहा था कि यदि वह दो हजार रुपये भी मांगतीं तो उन्हें मिल जाते। शमशाद बेगम से जुड़ा एक और दिलचस्प वाकया है। वह देखती थीं कि एक युवक छड़ी लिए हुए दोस्ताना अंदाज में घूमता रहता है। बाद में उन्हें पता चला कि वह अभिनेता अशोक कुमार का भाई किशोर कुमार है। एक दिन किशोर कुमार ने उनसे कहा कि मेरे भाइयों को देखो वे कितने प्रसिद्ध हैं और मैं अभी तक संघर्ष कर रहा हूं। इस पर शमशाद बेगम ने कहा कि हो सकता है कि किसी दिन वह अपने दोनों भाइयों को भी पीछे छोड़ दें। किशोर कुमार ने उनकी बात हंसी में उड़ा दी, लेकिन जल्दी ही उन्हें शमशाद बेगम के साथ गाने का मौका मिला और उनकी बात सही साबित होने पर वह उनके पैरों पर गिर पडे़।
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उन्होंने एक और रोचक किस्सा बयान किया था कि लाहौर में उन्होंने एक ग्रामोफोन रिकार्ड कंपनी के लिए संगीतकार मास्टर जी, गुलाम हैदर के निर्देशन में एक गैर फिल्मी भक्ति रचना तेरे पूजन को भगवान..का गायन इस शर्त पर किया था कि वह गायिका के रूप में उनके नाम का उल्लेख नहीं करेगी। कंपनी ने उनकी बात मानते हुए रिकार्ड पर गायिका का नाम राधारानी और गीतकार का नाम मिस शांति दिया। गीत बेहद लोकप्रिय हुआ, लेकिन उनके अंकल यह बात नहीं जानते थे। उन्होंने गायिका की तारीफें करते हुए शमशाद बेगम से कहा कि वह इस गीत की गायिका से मिलने के लिए बेताब हैं और सलाह भी दी कि उन्हें रिकार्ड को सुनकर उसकी तरह गीत गाना चाहिए। शमशाद बेगम के नाम से कुछ खास उपलब्धियां जुड़ी हुई हैं। वह फिल्म इंडस्ट्री की उन कुछ गायिकाओं में हैं जिन्होंने फिल्मों की पा‌र्श्व गायन की परम्परा की शुरूआत की। उनसे पहले अपनी फिल्मों में नायिकाएं खुद ही गीत गाती थीं। पाश्चात्य असर वाले कुछ प्रारंभिक गीतों में एक गीत आना मेरी जान.., मेरी जान संडे के संडे.. संगीतकार सी रामचंद्र की धुन पर उन्होंने ही गाया था। इसी तरह परदे पर अभिनेत्री नर्गिस की पहली फिल्म तकदीर के लिए पहला गीत शमशाद बेगम ने ही गाया। गीतों के सुरीले सफर में संगीतकार नौशाद और ओ.पी. नैयर से उनका अधिक जुड़ाव रहा। नौशाद के लिए उन्होंने मेला, दुलारी, अंदाज, बाबुल, दीदार, बैजू बावरा, आन, शबाब आदि फिल्मों में गीत गाए, जबकि ओ. पी. नैयर के लिए 23 फिल्मों में लगभग चालीस गीतों को अपना सुरीला स्वर दिया। शमशाद बेगम के कुछ यादगार गीतों में प्रमुख हैं मेरा जीवन पल..(पल जाए रे), काहे कोयल शोर मचाए रे..(आग), काहे जादू किया मुझको इतना बता..(जादूगर बालमा), नगमा. चमन में रहके वीराना मेरा दिल होता जाता है.(दीदार), मेरे घूंघर वाले बाल हो राजा.(परदेस), एक दो तीन आजा मौसम है रंगीन..(आवारा), मेरी नींदों में तुम.., मेरे ख्वाबों में तुम..(नया अंदाज). मिलते ही आंखें दिल हुआ दीवाना किसी का..(बाबुल), जब रात है ऐसी मतवाली फिर सुबह का आलम क्या होगा..(मुगले आजम), मैंने देखी जग की रीत मीत सब झूठे पड़ गए..(सुनहरे दिन), कजरा मोहब्बत वाला अंखियों में ऐसा डाला..(किस्मत) आदि। शमशाद बेगम ने अपने गायन काल के दौरान अपना फोटो कभी नहीं खिंचवाया। लगभग पचास साल पहले तक लोग उन्हें उनकी सुरीली आवाज के जरिए ही पहचानते रहे थे।

शमशाद बेगम को लगता था कि उनका चेहरा सुंदर नहीं है, इसलिए वह फोटो खिंचवाने से हमेशा बचती रहीं। उनका संभवत: केवल एक फोटो है, जो उनके गीतों के कैसटों पर दिखाई देता है। अपने जमाने के चर्चित गायक, अभिनेता के.एल. सहगल की दीवानी इस गायिका की आवाज के बारे में संगीतकार ओ.पी. नैयर ने एक बार कहा था कि उनके स्वर बिलकुल स्पष्ट होते हैं और मंदिर की घंटियों की तरह सुनाई देते हैं। आज के संगीत के बारे में शमशाद बेगम का विचार है कि उसमें सुरीलापन कम है और शोर ज्यादा है। इस गायिका के बारे में कुछ साल पहले इस तरह की भ्रामक खबरें प्रकाशित, प्रसारित हो गई थीं कि उनका इंतकाल हो गया है। बाद में पता लगा कि जिन शमशाद बेगम का निधन हुआ है। वह गुजरे जमाने की प्रसिद्ध अभिनेत्री नसीम बानो की मां और अभिनेता दिलीप कुमार की पत्नी सायरा बानो की नानी थीं।

राज के खिलाफ कमेंट पर लड़का अरेस्ट

राज के खिलाफ कमेंट पर लड़का अरेस्ट
मुंबई। महाराष्ट्र में ठाकरे परिवार के खिलाफ कुछ भी कमेंट करने वालों को गिरफ्तार किया जा रहा है। शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे के निधन के बाद मुंबई बंद को लेकर फेसबुक पर कमेंट करने वाली दो लड़कियों को गिरफ्तार किया गया। अब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के अध्यक्ष और ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे के खिलाफ फेसबुक पर आपत्तिजनक कमेंट करने पर एक लड़के को गिरफ्तार किया गया है।

एक समाचार पत्र के मुताबिक 19 साल के सुनील विश्वकर्मा को बुधवार सुबह गिरफ्तार किया गया। उसने अपने फेसबुक पेज पर कुछ ऎसा लिखा था जो राज ठाकरे के समर्थकों को रास नहीं आया। सुनील पालघर का रहने वाला है। पहले जिन लड़कियों को गिरफ्तार किया गया था वे भी पालघर की ही रहने वाली थी। सुनील के पोस्ट से गुस्साए मनसे कार्यकर्ताओं ने उसके घर को घेर लिया। वे उस पकड़कर पालघर पुलिस स्टेशन ले गए। सुनील पर अभी तक कोई आरोप नहीं लगाया गया है।

पुलिस किसी भी तरह की कार्रवाई से पहले कानूनी सलाह लेना चाहती है। इससे पहले 17 नवंबर को मुंबई बंद को लेकर फेसबुक पर कमेंट को लेकर दो लड़कियों को गिरफ्तार किया गया था। हालांकि बाद में दोनों को रिहा कर दिया गया था। दोनों को बेल देने वाले जज का ट्रांसफर कर दिया गया।

जेल में मुंबई हमले का आरोपी कैसे बना बाप?

जेल में मुंबई हमले का आरोपी कैसे बना बाप?
इस्लामाबाद। भारत ने पाकिस्तान से पूछा है कि मुंबई हमले का आरोपी और लश्कर ए तैयबा का आतंकी जकी उर रहमान लखवी जेल में कैसे पिता बन गया? भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने यह सवाल सऊदी अरब से गिरफ्तार किए गए अबु जुंदाल के इकबालिया बयान के बाद किया है। पाकिस्तान ने सवाल का अभी तक जवाब नहीं दिया है। पाकिस्तान की एक वेबसाइट यह जानकारी दी है।

पाकिस्तान को लिखे पत्र में भारत ने आरोप लगाया है कि लखवी को जेल में वीवीआईपी की तरह रखा जा रहा है। उसे मोबाइल की भी सुविधा दी गई है ताकि वह आतंकियों के संपर्क में रह सके। लखवी फिलहाल रावलपिंडी की उच्च सुरक्षा वाली अडियाला जेल में कैद है। उसे पिछले साल दिसंबर में गिरफ्तार किया गया था। जुंदाल ने पूछताछ के दौरान बताया है कि वह पाकिस्तान गया था। उसने अजमल आमिर कसाब और लश्कर के अन्य आतंकियों को कराची से मुंबई भेजने के लिए पाक का दौरा किया था।

जुंदाल ने बताया कि 2010 में लखवी ने उसे फोन पर जानकारी दी थी कि अडियाला जेल में रहते हुए वह बाप बन गया। लखवी ने बताया था कि जेल में उसे अपनी अपनी सबसे छोटी पत्नी से मिलने की इजाजत है और वह विशेष इंतजाम के तहत उससे संबंध बना लेता है।

वाहन पिलर से टकराया एक की मौत

वाहन पिलर से टकराया एक की मौत




बाड़मेर जिले के सिंघोदिया गाँव के समीप एक वाहन सड़क किनारे लगे पिलरो से टकरा गया जिससे एक की मौत हो गई .इस आशय का मामला गिडा ठाणे में दर्ज कराया गया हें .पुलिस अधीक्षक राहुल बारहट के अनुसार श्री चेतनराम पुत्र चौखाराम जाट नि. सिघोडीया ने मुलजिम प्रभूराम पुत्र चेतनराम जाट नि. सिघोडीया के विरूद्व मुकदमा दर्ज करवाया कि मुलजिम द्वारा अपनी स्वयं की मोटर साईकल को तेजगति व लापरवाही पूर्वक चलाने से रोड़ के साईड में लगे पीलर से टकराने से लगी चोटो से मृत्यु होना वगेरा पर मुलजिम के विरूद्व पुलिस थाना गिड़ा पर मुकदमा दर्ज किया जाकर अग्रीम अनुसंधान किया जा रहा है।

बाड़मेर दो विवाहितो को दहेज़ के लिए किया प्रताड़ित











बाड़मेर दो विवाहितो को दहेज़ के लिए किया प्रताड़ित 

अब पुलिस का डंडा आरोपियों पर

बाड़मेर जिले में दो अलग अलग मामलो में दो विवाहितो को दहेज़ के कारन प्रताड़ित करने के मामले दर्ज हुए .पुलिस अधीक्षक राहुल बारहट ने बताया की श्रीमति संगीता पुत्री जोराराम भील नि. बालोतरा ने मुलजिम गोविन्दराम पुत्र थानाराम भील नि. सिवाना वगेरा 3 के विरूद्व मुकदमा दर्ज करवाया कि मुलजिमान द्वारा मुस्तगीसा को दहेज की मांग को लेकर मारपीट करना वगेरा पर मुलजिमान के विरूद्व पुलिस थाना बालोतरा पर मुकदमा दर्ज किया जाकर अग्रीम अनुसंधान किया जा रहा है।इसी तरह श्रीमति पदमोदेवी पत्नि पूर्णाराम जटीया नि. दिनग ने मुलजिम पूर्णाराम पुत्र प्रभुराम जटीया नि. सिणधरी वगेरा 3 के विरूद्व मुकदमा दर्ज करवाया कि मुलजिमान द्वारा मुस्तगीसा को दहेज की मांग को लेकर तंग परेशान कर मारपीट करना वगेरा पर मुलजिमान के विरूद्व पुलिस थाना चौहटन पर मुकदमा दर्ज किया जाकर अग्रीम अनुसंधान किया जा रहा है।

जैसलमेर मोबाईल पर अनावश्यक कॉल एवं एसएमएस करना पडा महंगा

जैसलमेर मोबाईल पर अनावश्यक कॉल एवं एसएमएस करना पडा महंगा

जैसलमेर जैसलमेर पुलिस ने एक जने को अनाव्यस्क मोबाइल कल कर महिला को परेशान करने वाले को सबक सिखाते हुए गिरफ्तार कर न्यायलय में पेश किया .पुलिस अधीक्षक के अनुसार मंगलवार को पुलिस अधीक्षक कार्यालय जैसलमेर में एक महिला गुलशन जो कि होटल सुर्याग में कार्यरत है, ने पुलिस अधीक्षक जिला जैसलमेर ममता राहुल के समक्ष रिपोर्ट पेश कि की दिनांक 26.11.2012 को रात्रि में एक मोबाईल धारक द्वारा बारबार मेरे मोबाईल पर कॉल एवं एसएमएम कर परेशान कर रहा है, जिसको मना करने पर भी वह माना नहीं तथा अनावश्यक कॉल एवं एसएमएस करता रहा। जिससे मेरे द्वारा नाम पुछा गया तो उसने अपना नाम महेन्द्रसिंह निवासी खाभा बताया। उक्त रिपोर्ट को पुलिस अधीक्षक जिला जैसलमेर ममता राहुल द्वारा गम्भीरता से लेते हुए, किशोरसिंह थानाधिकारी पुलिस थाना खुहडी को शक्स को गिरफतार कर अग्रिम कार्यवाही करने के निर्देश दिये। जिस पर थानाधिकारी पुलिस थाना खुहडी मय जाब्ता द्वारा महेन्द्रसिंह पुत्र भगवानसिंह निवासी खाभा को गिरफतार कर आज दिनांक 28.11.2012 को न्यायालय में पेश किया गया। जहॉ से उसे जमानत पर रिहा किया गया।

कार्तिक पूर्णिमा पर गरीबो को कराया भोजन

युवाओं की अनूठी और अनुकरणीय पहल 


कार्तिक पूर्णिमा पर गरीबो को कराया भोजन


गुरु नानक जयंती और कार्तिक पूर्णिमा के पावन पर्व पर बाड़मेर के युवाओं ने अनूठी पहल करते हुए आज गरीब व्यक्तियों को भोजन कराया ,समाजसेवी और राजस्थानी मोटियार परिषद् और भारतीय जनता युवा न्मोर्चा के नगर अध्यक्ष रमेश सिंह इन्दा ने अपने युवा साथियो के साथ अंहिंसा सर्किल और रेलवे स्टेशन पर रह रहे गरीब व्यक्तियों को निशुल्क्ल भोजन कराया .कार्तिक पूर्णिमा के पर्व के उपलक्ष में रमेश सिंह इन्दा ,अशोक सारला ,दिग्विजय सिंह चुली ,ॐ प्रकाश त्रिवेदी ,तेजाराम हुड्डा सहित कई युवाओं ने मानव सेवा का अनुकरणीय उदाहरण पेश कर गरीब व्यक्तियों को भोजन करा उनका आशीर्वाद लिया ,रमेश सिंह इन्दा ने बताया की कार्तिक पूर्णिमा पर समस्ज सेवा का कार्य करने की प्रेरणा मिली .उसू अनुरूप कार्य करने का प्रयास जिया जा रहा हें

जिसने पानी बचाओ का नारा बुलंद किया उनपे ही गिरा रही हे गाज

सरकार को रास नही आ रहे कीर्तिमान ...

- जिसने पानी बचाओ का नारा बुलंद किया उनपे ही गिरा रही हे गाज

- केंद्र के बजट के बावजूद राज्य सरकार का तुगलकी फरमान  

किसी भी सरकार के लिए उसके वह कार्मिक सबसे ज्यादा अजीज होते हे जिनके द्वारा अपने काम को बखूबी अंजाम दिया जाता हो . कई मोके में अपने लक्ष्य को पूरा करने वालो को इनामो से नवाजा जाता है लेकिन राजस्थान में यह बात बिलकुल विपरीत नजर आ रही है . राजस्थान सरकार के मुखिया अशोक गहलोत जिस पानी बचाओ के नारे को देते आये है उस नारे को बुलंद करने वाले सेकड़ो क्रमिको को अब सरकार के तुगलकी फरमान का सामना करना पद रहा है . जानकारी के मुताबित राज्य भर में राश्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के तहत जिला स्तर पर जिला जल एवं स्वच्छता मिशन में सलाहाकारों का चयन जिला कलक्टर की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा किया गया था। इन जिला स्तर से जारी नियुक्ति आदेश की शर्तों के अनुसार एक साल की कार्यावधि पूर्ण होने पर सलाहकारों की कार्यदक्षता मूल्यांकन के आधार पर प्रतिवश्र 10 प्रतिशत मानदेय वृद्धि करते हुए कार्यावधि बढ़ाना सुनिश्चित किया गया था। योजना निरन्तर प्रगतिरत है तथा साहयक राशी में केन्द्र सरकार की ओर से वित्तीय वर्ष 201213 में सपोर्ट गतिविधियों के क्रियान्वयन हेतु राशि 63.71 करोड़ एवं 23.11 करोड़ अलग से जल गुणवत्ता के लिये राजस्थान के लिये स्वीकृत की गई है। इस राशी से झा राज्य भर में पानी को लेकर जनचेतना का एक ख़ास माहोल तेयार करना है और कई महत्वपूर्ण कार्यो को पूरा किया जाना है जिसके आधार जिला स्तर पर काम करने वाले सलाहकारों ही रहेंगे लेकिन सरकार को अब यह लोग और इनका काबिल इ तारीफ किया गया काम अब रास नही आ रहा . जानकारी के मुताबित समस्त सलाहकारों के एक वर्ष पूर्ण होने के पश्चात अनुबंध अवधि ब़ाने के संबंध में प्रमुख शासन सचिव, मुख्य अभियंता जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग, राजस्थान एवं अधिशाशी निदेशक सीसीडीयू द्वारा तीन माह सितम्बर 2012 तक के लिए अनुबंध अवधि बढाने के साथ ही शीघ्र ही 1 वर्ष के लिये अनुबंध अवधि ब़ाने का आदेश जारी करने संबंधी आश्वासन दिया गया गया था। लेकिन एसा कुछ भी नही हो पाया . इस मामले में सबसे रोचक बात यह है की वर्ष 201112 में मार्च 2012 तक इन सलाहकारों की कार्यावघि में राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत राजस्थान राज्य पुरे देश में प्रथम स्थान पर काबिज हुआ था । लेकिन माह अगस्त 2012 के बाद हमारे लिये संशय की स्थिति उत्पन्न होने के बाद राजस्थान की स्थिति देश में गिर रही है । और वर्तमान में राजस्थान राज्य से इस कार्यक्रम के तहत काफी राज्य उच्च स्थान पर काबिज हो गये है, हालाँकि इस कार्यक्रम के तहत समस्त फंड केन्द्र सरकार द्वारा दिया जा रहा है । इन सब बातों के बावजूद योजना से संबंधित समस्त कार्य एन.जी.ओ. द्वारा संपादित करवाये जाकर सलाहकारो के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है, जिससे एन.जी.ओ द्वारा करवाये गये समस्त कार्यो में काफी अनियमितताएं भी सामने आयी है । लेकिन सरकार फिर भी इस काम को एन जी ओ को सोपने की तेयारी में है . इस मामले में पूर्व में जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के मंत्री जितेन्द्र सिंह जी से समस्त कंसलटेंटस के मिलने पर उनके द्वारा संबंधित विभाग को निर्देश दिये गये। लेकिन विगत 30 सितम्बर 2012 को कंसलटेंटस की अनुबंध अवधि समाप्त हो चुकी है और इस संबंध में समस्त कंसलटेंटस ने उमेश धींगड़ा, मुख्य अभियंता (ग्रामीण) जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग एवं हेमन्त जोशी, अधिशाशी निदेशक, सी सी डी यू से भी व्यक्तिगत वार्ता की लेकिन किसी भी अग्रिम आदेश के अभाव में समस्त सलाहकारो में एक बार फिर से संशय की स्थिति पैदा हो चुकी है। साथ ही कार्यरत समस्त सलाहकारों को सेवा प्रदाता एजेन्सी/एन.जी.ओ. के अन्तर्गत अनुबंध के लिये बाध्य करने हेतु कार्यवाही अमल में लाई जा रही है जिससे इन सलाहकारों का शोषण होने की सम्भावनाओ से इंकार नही किया जा सकता । इस संशय की स्थिति में यह रोजगार भी कुछ अधिकारियों के निहित स्वार्थ के कारण बलि चढ़ रहा है और इस तरह की कार्यवाही के बाद कई युवा बैरोजगार होने को बाध्य हो जाएंगे।
एक तरफ जहा राजस्थान की सरकार पानी को बचाने और इसके कम उपयोग की बात कहती है वही सरकार की इस बात को जो लोग हर आम ओ ख़ास तक पहुचने का जरिया बन रहे है उनके साथ हो रही इस तरह की कार्यवाही सरकार के काम और उसकी नीतियों पर ही सवालिया निशान लगती नजर आती है।