कोटा। निलंबित एसपी से अंतरंगता का फरहीन एक सीमा से ज्यादा ही फायदा उठाने लगी थी। आलम यह था कि वह खुद को कहीं भी एसपी से कमतर नहीं आंकती थी और खुद का परिचय इस तरह से कराती थी, जैसे वह पुलिस में किसी ओहदे पर हो। बाहरी लोगों से उसकी बातचीत कुछ इस अंदाज में होती थी- "फरहीन बोल रही हूं, एसपी ऑफिस से/पुलिस लाइन से"।
इधर, पुलिस बेड़े में यह महिला "मैडम" के नाम से पहचान बढ़ाती जा रही थी। एसीबी ने अपनी चार्जशीट में हर पहलु को करीब से छुआ है और तथ्यों के साथ हर संवाद को जोड़ते हुए मामले को बेनकाब किया है।
लोगों को फांसने में माहिर इस महिला ने अपने पति के साथ मिलकर शहर में सट्टे-जुएं तक चलवाए। अलग-अलग अवसरों पर हुई वार्ताएं, जो इस रैकेट का पर्दाफाश कर रही हैं-
अपन ऎसा करते हैं, सट्टे को जुआ बना देते हैं...
[ 23 अप्रेल : सटोरिए राजेन्द्र अग्रवाल के यहां रेड के बाद फरहीन ने उद्योग नगर सीआई पुष्पेन्द्र आढ़ा को फोन कर वार्ता की। ]
सीआई : वो तो क्या है कि, एक्च्युअली क्या है मैडम, तीन है मैडम, डिप्टी साहब, सीआई साहब, दो-तीन है। टीम उन्हें पकड़कर लाएं हैं, मैडम ये...
फरहीन : अच्छा डीवाईएसपी वगैरह सारे होंगे ये
सीआई : हां सारे ही थे ये, मैं नहीं गया, मैंने तो इनके पास में ही सब कुछ, क्योंकि पांच आदमी लाए हैं, इसी की तो सब है।
फरहीन : तो ये आदेश किसने दिया? एसपी साहब का तो आदेश नहीं था ये, हो ही नहीं सकता, क्योंकि एसपी साहब तो जयपुर है
सीआई : आदेश तो पता नहीं, कोई सूचना होगी, डिप्टी साहब के पास होगा, हां इनके पास ही होगा कोई मैसेज, हां कोई डिप्टी साहब के पास ही कोई फोन-वोन आ गया होगा, हां चलो कोई नहीं अभी कराकर फ्री कर देंगे
फरहीन : आप ऎसा करो, दूसरे के ऊपर जाए, ये (राजेन्द्र) कैसे ना कैसे एडजेस्ट कर दो, इसको तो निकाल दो
सीआई : हां, निकालना तो मैडम वो लेकर आए हैं अपन थोड़े लाए हैं, मैं लियाता तो अपन कर ही लेते, ये तो क्या है ये लोग उनको लेकर आए हैं ना, टीम जैसे, महावीर नगर वाले सीआई साहब, डिप्टी साहब थे, ये सब लाए ना, तो अपन ऎसा करते हैं, सट्टा नहीं बनाकर जुआ बना देते हैं
फरहीन : फिर भी नाम तो आया ना इनका
सीआई : हां नाम तो आएगा, लेकिन सट्टे में नहीं आकर जुआ में आएगा, जुए में तो जैसे चार-पांच आदमियों के ऊपर चला जाएगा, सट्टे पर तो क्या है यह खुद ही पर्टिकूलर विख्यात है, तो ज्यादा सट्टा नहीं होकर, ये हो जाएगा कि सामूहिक ही थे ये लोग
फरहीन : तो ये इन्होंने करा दुष्यंत जी ने... हां मैं बात करती हूं आज उनसे, हाईकमान से बात करेंगे अपन तो
सीआई : नहीं-नहीं, अब तो हो ही गया, अब क्या बात करनी है, बाद में देखेंगे, मैं देख लेता हूं, इनका सट्टा नहीं बनाकर जुआ बना देते हैं, हैं ना!
(आखिरकार सीआई ने फरहीन के प्रभाव में सट्टे को जुआ बना दिया)
बताओ, किसको देनी है जांच?
[ 28 अप्रेल : झूठे परिवाद दिलाकर युवराज व मशरूल से वसूली की साजिश की वार्ता ]
फरहीन : वो युवराज का और मशरूल का... दोनों के भिजवए थे मैंने... नहीं वो थाने पर भिजवा दिया इन लोगों न...
सत्यवीर : डाक में आते हैं ना लेटर, उनका मेरे ध्यान में नहीं रहता, सैकड़ों चिटि्ठयां आती है... मुझे पर्सनली देना चाहिए था ना... मैं सारे कागज थोड़े ही पढ़ता हूं...
फरहीन : नहीं तो अब मेरी बात तो सुन लो, अब तो वहां गया है कागज, रतन सिंह जी के पास जांच चली गई, आप मंगवा लो ना
सत्यवीर : एक कागज और दे देना मेरे को... उसको कॉपी दे दो मेरे को... किसी से भी कोई लिफाफा मुझे दे जाए..
फरहीन : दोनों की.. कोई आपको डायरेक्ट देनी पड़ेगी
(इसी संबंध में फिर 2 मई को फिर दोनों के बीच वार्ता होती है)
सत्यवीर : तुम तो ये बताओ वो जांच किसको देनी है, वो कागज मंगवा लिए थे मैंने.. वो जो हिस्ट्रीशीटर युवराज वाली
फरहीन : उसकी जांच तो आपके ऑफिस में कोई विश्वासपात्र आदमी को दो
सत्यवीर : भाई मुझे तो बताओ ना, वो तुम्हारा कौन है, कराएगा, उसी को दे देता हूं कि भाई तू कर, मैं क्या जानूं कौन है, कैसा है?
फरहीन : नहीं तो वो तो आप बुलाओगे ना उसको तो डायरेक्ट ही... मतलब जैसे आपने ये कागज बुलाए हैं
सत्यवीर : आप बताओ किसको देनी है, उसी को दे दें... जो मजबूत हो, कोई आदमी विश्वास का हो.. हां बताओ, किसको दें, जो काम करें..
फरहीन : वैसे क्या है, मैं मेरी तरफ से रख रही हूं बात... वैसे पुष्पेन्द्र जी है, जो है ना, वो भी ठीक आदमी है और ये जो हिस्ट्रीशीटर है ना... वो उसी थाने का है... वो जिसमें पुष्पेन्द्र जी हैं... या सुनो-सुनो, कृष्णियां जी को... दूसरे थाने में नहीं दे सकते?
मुझे मकान लेना है
[ 2 मई : बोरखेड़ा के प्रोपर्टी व्यवसायी जगदीश उर्फ डाबर के संबंध में सत्यवीर-फरहीन ]
फरहीन : सलाम के साथ वाले डाबर के मामले में ठीक से जांच कराने के लिए डाबर के आदमी मेरे पास आ रहे हैं...
सत्यवीर : तुम्हें कह देना चाहिए कि हमारी इतनी हम बात नहीं करते हैं, तुम मना कर देते ना कि हमारी नहीं सुनते, हमने पहले ही कह दिया कि तुम सब को मना कर दो, मेरी कोई बात नहीं होती
फरहीन : वो तो पैसे दे रहे हैं ना...
सत्यवीर : कितने? 50 लाख...
फरहीन : वो आया था और वो 10 के लिए हां कर रहा है... 10-10 करके डाउन पेमेंट तो इकट्ठा कर लें यार...
सत्यवीर : छोड़ो इन चक्करों में नहीं पड़ेंगे, उसको तो मैंने टाइट करने के लिए बोला है इनको, ढीला करने के लिए नहीं बोला, टाइट करने के लिए बोला है
फरहीन : कर लेने दो मुझे देवाशीष (कॉलोनी) में मकान लेना है।
मैडम कहां आऊं मिठाई लेकर
[ 6 मई : पुलिसकर्मी जसवंत सिंह के तबादले के संबंध में फरहीन की किसी अन्य व्यक्ति से ]
फरहीन : बिल्कुल वो जसवंत जी को वापस टेलीफोन करवा दिया, वो सस्पेंड कर दिया था ना फिर क्या मेरे मुंह जुबानी आदेश पे उनको है ना जो बोलने भी नहीं दिया और पक्का काम भी नहीं होने दिया, वापिस है ना जो उसमें लगवा दिया ट्रैफिक में
अन्य व्यक्ति : किसने लगवाया ट्रैफिक में?
फरहीन : अप्पन ने ही करवाया, सस्पेंड कर रखा था ना उसको... कर दिया था..
अन्य व्यक्ति : हां, किसे?
फरहीन : जसवंत सिंह जी को जो फिर करवा दिया उसका तिया पांचा और अभी नौकरी कर रहे हैं, कह रहे थे मैडम कहां आऊं काजू कतली लेकर.. मैंने कहा - आ जाना जहां भी आओ।
बोल देना, एसपी साहब की फैमिली में हूं
[ 13 मई : अन्वेषण भवन में मेहमान ठहराने के संबंध में सत्यवीर-फरहीन ]
सत्यवीर : कोई व्यवस्था कराऊं यहां, कोई व्यवस्था... क्या-क्या करानी है, बता देना मुझे..
फरहीन : यहां तो ये... छोटे वाले भाई है, उनकी वाइफ, बड़े वाले भाई की एक बेटी, मम्मी... मनीषा और उसके दो बच्चे, मनीषा के हसबैंड नहीं है। मैं अलग से मम्मी के साथ रूक गई थी।
सत्यवीर : कितने कमरे लिए?
फरहीन : तीन कमरे लिए हैं।
सत्यवीर : तो तुम घर पर हो अभी?
फरहीन : नहीं मैं तो यहीं हूं, अन्वेषण भवन में ही।
(इसी बीच फरहीन का बेटा उसे कॉल कर बात करता है।) फरहीन अपने बेटे से कहती है : "सुन-सुन तू अंदर एंट्री मारेगा तो कह देना, जो एसपी साहब की फैमिली गई है ना, उन्हीं का बेटा हूं मैं"
एक सस्पेंड किया, दो को नहीं
[ 16 मई : अपने नौकर की गाड़ी पकड़ने
वाले दो ट्रैफिक पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई के संबंध में एसपी-फरहीन की वार्ता ]
फरहीन : आप करो तो दोनों का करना, और गलत नहीं और प्रेस्टीज का भी सवाल है, देखो- उन्होंने बहुत बुरा किया है... इतना गुस्सा आ रहा है उन लोगों पर सच्ची में... उनको सजा भी जल्दी मिलनी चाहिए, सारा मामला ठण्डा होने पर उनको सजा मिली तो कोई सजा नहीं है.. हालत ऎसी थी उनकी ऑन स्पॉट होना चाहिए था उनके साथ... मैं क्या मेरा दिमाग भी काम नहीं कर रहा, करो तो दोनों के साथ ही कर देना मतलब...
एसपी : कर दूंगा... मैं मण्डे को कर दूंगा... कल और परसों तो छुट्टी है.. सोमवार को कर दूंगा।
[चार दिन बाद 20 मई को]
फरहीन : पेपर पढ़ रही थी... गुस्सा भी आ रहा था... आप ऑफिस बैठे हो.. एक को सस्पेंड किया, दो को नहीं किया। मेरा क्या खून जला-जलाकर मारकर करोगे क्या? मत करना अब। भाड़ में जाने दो उसको.. मतलब यह मानो.. इस व्यवहार के लिए मेरा रोज खून जल रहा है.. उसके साथ ही हटा देते ना जल्दी...
सत्यवीर : हट जाएंगे आज
काम भी नहीं, पैसे भी नहीं
[ 21 मई : व्यवसायी मशरूल हसन और निसार में बातचीत ]
मशरूल : अरे भाई जान एसपी साहब ने तो अपनी पॉजिटिव रिपोर्ट करी है तो रिपोर्ट पॉजिटिव भेजी है, लैटर आ गया.. मेरे पास अभी खारिज करी.. उन्होंने बताया कि एसपी साहब की रिपोर्ट पॉजिटिव है।
निसार : पॉजिटिव खराब है.. यूं
मशरूल : हां, खराब है..
निसार : तो एसपी साहब से मैंने बात ही कहां करी
मशरूल : नहीं तो अपण ने तो पैसे दिए थे तब बात तो करी थी आपने 50 हजार
निसार : यार उस टाइम मैंने तुम्हारा काम करवाया, तुम्हें पता है कि तुम्हारी रिपोर्ट पॉजिटिव है, लिखकर गई थी उस टाइम बात खत्म हो चुकी अपनी
[अपने रिवॉल्वर लाइसेंस का आवेदन निरस्त होने पर मशरूल निसार के रेस्टोरेंट पर अपने 50 हजार रूपए लेने गया। इसके बाद फोन पर हुई वार्ता]
निसार : पैसे खत्म हो गए, मतलब कुल मिलाकर कि भई काम भी नहीं, पैसे भी नहीं। -