धर्माऽऽख्याने श्मशाने च रोगिणां या मतिर्भवेत्।
सा सर्वदैव तिष्ठेच्चेत् को न मुच्येत बंधनात्।।
व्याख्या :प्रस्तुत श्लोक में आचार्य चाणक्य ने सांसारिक मोह-माया से बचने के लिए मन को दृढ़ बनाने की बात कही है। उनके अनुसार अस्थिर मन से संसार से विमुक्त होने की कामना करना कभी सुखकारी नहीं होता।
धार्मिक कथा सुनने पर,श्मशान में चिता को जलते देखकर,रोगी को कष्ट में पड़े देखकर जिस प्रकार वैराग्य भाव उत्पन्न होता है,वह यदि स्थिर रहे तो यह सांसारिक मोह-माया व्यर्थ लगने लगे, परंतु अस्थिर मन श्मशान से लौटने पर फिर से मोह-माया में फंस जाता है।