कोटा.कभी नहीं देखा ऐसा मंजर, मुझे भेज दो घर...
शहर के हर थाने में तैनाती रही...बड़े-बड़े आंदोलन देखे... 89 में दंगे भी हुए, लेकिन पूरी नौकरी में कभी ऐसा मंजर नहीं देखा कि थाने में घुसी भीड़ ने सीआई और पुलिस कर्मियों के साथ मारपीट की हो। जनप्रतिनिधियों ने अपनी गलती छिपाने के लिए झूठे मुकदमे दर्ज कराए और सरकार ने जांच किए बिना ही पुलिस कर्मियों को लाइन हाजिर कर दिया। पूरी वारदात ने इतना धक्का पहुंचाया है कि नौकरी करने की चाहत खत्म हो गई। आला अफसरों से गुजारिश है कि मुझे वीआरएस देकर अब घर भेज दो।
यह मजमून महावीर नगर थाने में तैनात एएसआई अशोक कुमार की उस चिट्ठी का है, जिसे समय से पहले सेवानिवृत्ति मांगने के लिए उन्होंने पुलिस के आला अफसरों को लिखा है।
' अशोक कुमार ने कहा कि विधायक चंद्रकांता मेघवाल और उनके पति नरेंद्र मेघवाल ही नहीं, उनके साथ आई भीड़ ने सोमवार को सीआई से लेकर थाने में मौजूद हर पुलिस कर्मी के साथ अभद्रता-मारपीट की। पुलिस ने शांति-व्यवस्था कायम करने के लिए कार्रवाई की तो उन्हें अपराधी बताकर उन्हीं के थाने में मुकदमे दर्ज करा दिए।
सरकार ने भी भाजपाइयों को बचाकर और पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर करके एकतरफा कार्रवाई की। पूरे दिन चले घटनाक्रम ने इस कदर आहत किया कि नौकरी करने की चाहत ही खत्म हो गई। इसलिए अब स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने का फैसला कर रहा हूं।
सम्मानों की लाट हैं 'अशोक'
11 दिसंबर 1980 के दिन पुलिस की वर्दी पहनने वाले एएसआई अशोक कुमार का ट्रेक रिकॉर्ड शानदार है। 36 साल की नौकरी में उन्हें पुलिस सेवा के उत्तम, अति उत्तम और सर्वोत्तम पुरस्कारों से लेकर दो दर्जन से ज्यादा रिवार्ड मिल चुके हैं। शानदार ट्रेक रिकॉर्ड को देखते हुए उन्हें कोटा के तकरीबन हर थाने से लेकर आईजी दफ्तर तक में सेवाएं देने का अवसर मिला, लेकिन उन्होंने कभी सोचा न था कि पुलिस की नौकरी को भारी मन के साथ छोडऩे का फैसला लेना पड़ेगा।
चिट्ठी मिलेगी तभी कुछ कहेंगे
एएसआई अशोक कुमार के स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के फैसले से पुलिस महकमे में हड़कंप मच गया है। हर पुलिस कर्मी इसी चर्चा में मशगूल है कि पुलिस का मनोबल टूटेगा तो लोग समय से पहले सेवानिवृत्ति तो लेंगे ही। पूरे घटनाक्रम पर पुलिस के आला अफसर भी नजर गड़ाए हुए हैं। एसपी सिटी सवाई सिंह गोदारा ने बताया कि क्षुब्ध एएसआई के वीआरएस लेने की बात सामने जरूर आई थी, लेकिन अभी तक उन्होंने इस बाबत कोई आधिकारिक पत्र नहीं सौंपा है। जब तक चिट्ठी नहीं आती, कुछ भी नहीं कह सकते।