अरबपति डिजाइनर है रूश्दी की लेडी लव
लंदन। विवादित लेखक सलमान रूश्दी की जिंदगी में नया चैप्टर शुरू हो गया है। खबर है कि रूश्दी इन दिनों न्यूयॉर्क की अरबपति फैशन डिजाइनर व सोशलाइट मिसी ब्रॉडी के साथ रोमांस कर रहे हैं। पिछले कुछ दिनों में रूश्दी को मिसी के साथ कई पॉश आयोजनों में देखा गया है।
हाल ही उन्हें पिछले सप्ताह वैनिटी फेयर के ट्रिबेका फिल्म फेटिस्वल बैश में भी मिसी के साथ देखा गया था। दोनों की करीबियों को देखते ही उनकी कैमिस्ट्री समझ आ रही थी। वैसे मिसी की शक्ल रूशदी की पूर्व पत्नी पद्मा लक्ष्मी में काफी मेल खाती है।
उम्र में मिसी रूश्दी से 20 साल छोटी हैं और पति व बिजनेसमैन ब्रेन क्रॉस को तलाक दे चुकी हैं। रूशदी के वक्ता ने खबर की पुष्टि करते हुए कहा कि दोनों डेटिंग कर रहे हैं। मीडिया रिपोट्र्स के मुताबिक सलमान और मिसी एक म्यूचुअल फ्रेंड के जरिए मिले थे और एक दूसरे को लम्बे अरसे से जानते हैं।
उन्होंने गुरूवार को आयोजित हुए न्यूयॉर्क सिटी ओपेरा स्प्रिंग गाला की तस्वीरें भी शेयर की हैं,इस गाला में वे एक साथ हाथ पकड़ कर एंटर हुए थे। गौरतलब है कि मिसी मशहूर फैंशन मर्चेट और मारक्राफ्ट एपेरल ग्रुप के अध्यक्ष शेल्डन ब्रॉडी की बेटी हैं।
पिछले वर्ष सलमान ने पांचवी शादी रचाने को कोशिश की थी, लेकिन उनकी पूर्व लेडी लव ने उनका प्रपोजल ठुकरा दिया था। "मिडनाइट चिल्ड्रन" के लेखक रूशदी को मिशेल बेरिश ने ठुकरा दिया था और सात कैरेट एम्रल्ड-कट हीरे की अंगूठी भी लौटा दी थी।
बुधवार, 1 मई 2013
भूकंप के झटकों से हिला पूरा उत्तर भारत
नई दिल्ली।। पूरा उत्तर भारत एक बार फिर भूकंप के झटकों से हिल उठा। दिल्ली और नोएडा में भी भूकंप के झटके महसूस किए गए। भूकंप के झटकों से कई जगहों पर दहशत फैल गई। लोग अपने घरों से बाहर निकल आए। जम्मू-कश्मीर से नुकसान की खबरें भी आ रही हैं। भूकंप का केंद्र कश्मीर के डोडा में जमीन से 10 किलोमीटर नीचे था। रिक्टर पैमाने पर भूकंप की तीव्रता 5.7 मापी गई।
बुधवार की दोपहर करीब 12.30 बजे पूरा उत्तर भारत भूकंप के झटकों से हिल उठा। भूकंप के झटके काफी देर तक महसूस किए गए और लोग अपने दफ्तरों से बाहर निकल आए। भूकंप को पूरे उत्तर भारत में महसूस किया गया। पाकिस्तान के भी बड़े इलाके में झटकों को महसूस किया गया है।
भूकंप का केंद्र हिमालय के इलाके में था। केंद्र कश्मीर के डोडा जिले के भदरवाह में बताया जा रहा है। कश्मीर के कई इलाकों में मकानों के ढहने की खबरें आ रही हैं। हालांकि, अब तक किसी के हताहत होने की कोई खबर नहीं मिली है।
गौरतलब है कि पिछले हफ्ते अफगानिस्तान, पाकिस्तान सहित उत्तर भारत के बड़े हिस्से भूकंप के झटकों से हिल गए उठे थे। पिछले एक महीने में यह तीसरी बार है जब उत्तर भारत में भूकंप के झटके महसूस किए हैं।
इलाहाबाद में छात्रा से गैंग रेप, मुरादाबाद में युवक की हत्या
मुरादाबाद/इलाहाबाद।। उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार में कानून व्यवस्था की स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। विशेषकर महिलाओं के प्रति हिंसा के मामले में। इलाहाबाद में एक कॉलेज स्टूडेंट को कुछ छात्रों ने जबरन चलती गाड़ी से उठा लिया और उसके साथ गैंग रेप किया। सदमे के कारण छात्रा बेहोश हो गई। फिलहाल छात्रा की हालत नाजुक बनी हुई है। वहीं, मुरादाबाद के छजलैट के किशनपुर गांव में मंगलवार रात बहन से छेड़छाड़ का विरोध करने पर बीएससी के छात्र की गोली मारकर हत्या कर दी गई। पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है। आरोपी फरार बताए जा रहे हैं।
इलाहाबाद में सरेराह एक एक छात्रा का अपरहण कर लिया गया। उससे चलती गाड़ी में गैंग रेप किया गया। सदमे के कारण लड़की बेहोश हो गई। बाद में उसे गंभीर हालत में अस्पताल ले जाया गया है। होश आने पर उसने बताया है कि 4 लड़कों ने उसके साथ गैंग रेप किया है। यही नहीं छात्रा ने आरोप लगाए हैं कि पुलिस आरोपियों के दबाव में है। फिलहाल छात्रा की हालत नाजुक बनी हुई है। कहा जा रहा है कि सदमे के कारण छात्रा 2 बार कोमा में जा चुकी है।
जांच में जुटे एसपी क्राइम अरुण पांडेय का कहना है कि छात्रा के बयान पर रेप की धाराएं जोड़कर आरोपियों की तलाश की जा रही है। मामले में मंगलवार को पीड़ित परिवार ने आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर जमकर हंगामा भी किया।
वहीं मुरादाबाद में एक दूसरी घटना में छजलैट के किशनपुर गांव में मंगलवार रात बहन से छेड़छाड़ का विरोध करने पर बीएससी के छात्र की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस सनसनीखेज वारदात की रिपोर्ट पड़ोसी युवकों के विरुद्ध दर्ज कराई गई। आरोपी फरार बताए जा रहे हैं।
किशनपुर में ओमेंद्र उर्फ मल्लू (22) बीएससी के छात्र थे। मंगलवार की रात करीब 8 बजे वह घर के पीछे पशुओं को चारा डालने गए थे। वहां पहले से घात लगाए बैठे पड़ोस के विनोद और रणजीत से गोली मार दी। गोली की उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। हत्या की पृष्ठभूमि में बताया जाता है कि दोनों आरोपी ओमेंद्र के घर के बाहर बैठकर उनकी बहन पर फब्तियां कसते थे। कुछ दिन पहले इसकी शिकायत पीड़ित परिवार ने छजलैट थाने में की थी। पुलिस ने दोनों से पूछताछ की, मगर कार्रवाई करने के बजाय दोनों को थाने से ही छोड़ दिया गया। छात्र के पिता जयपाल ने बताया कि इससे आरोपियों के हौसले बढ़ गए। मंगलवार रात उन्होंने मौका पाकर ओमेंद्र की हत्या कर दी।
लीबिया की जेल से भागे 170 कैदी
लीबिया की जेल से भागे 170 कैदी
त्रिपोली। लीबिया की राजधानी त्रिपोली से लगभग 800 किलोमीटर दूर सेभा में 170 कैदी कारावास तोड़कर भाग गए।
सेभा के स्थानीय परिषद के प्रवक्ता अबोबकर हम्जा ने कहा कि यह घटना उस वक्त हुई जब कैदियों के बीच शुरू हुए विवाद ने बड़े झगड़े का रूप ले लिया। इस झगड़े के दौरान कुछ को चोटें भी आई हैं।
उन्होंने कहा कि स्थानीय परिषद के सदस्यों ने इस स्थिति से निबटने के लिए दक्षिण लीबिया के सैन्य गवर्नर रामादान बरासी से मुलाकात की है। सेभा कारावास की सुरक्षा की बदतर होती स्थिति के बीच पिछले दो महीने में इस तरह की चार घटनाएं सामने आ चुकी हैं।
त्रिपोली। लीबिया की राजधानी त्रिपोली से लगभग 800 किलोमीटर दूर सेभा में 170 कैदी कारावास तोड़कर भाग गए।
सेभा के स्थानीय परिषद के प्रवक्ता अबोबकर हम्जा ने कहा कि यह घटना उस वक्त हुई जब कैदियों के बीच शुरू हुए विवाद ने बड़े झगड़े का रूप ले लिया। इस झगड़े के दौरान कुछ को चोटें भी आई हैं।
उन्होंने कहा कि स्थानीय परिषद के सदस्यों ने इस स्थिति से निबटने के लिए दक्षिण लीबिया के सैन्य गवर्नर रामादान बरासी से मुलाकात की है। सेभा कारावास की सुरक्षा की बदतर होती स्थिति के बीच पिछले दो महीने में इस तरह की चार घटनाएं सामने आ चुकी हैं।
भारत के गुजरात प्रान्त जूनागढ एक नगर ,
जूनागढ एक नगर , भारत के गुजरात प्रान्त में एक नगर पालिका एवं जनपद मुख्यालय है। यह शहर गिरनार पहाड़ियों के निचले हिस्से पर स्थित है।मंदिरों की भूमि जूनागढ़ गिरनार हिल की गोद में बसा हुआ है। यह मुस्लिम शासक बाबी नवाब के राज्य जूनागढ़ की राजधानी था। गुजराती भाषा में जूनागढ़ का अर्थ होता है प्राचीन किला। इस पर कई वंशों ने शासन किया। यहां समय-समय पर हिंदू, बौद्ध, जैन और मुस्लिम, इन चार प्रमुख धर्मों का प्रभाव रहा है। विभिन्न राजनीतिक और धार्मिक शाक्तियों के समन्वय के कारण जूनागढ़ बहुमूल्य संस्कृति का धनी रहा है। इसका उदाहरण है जूनागढ़ की अनोखी स्थापत्य कला, जिसकी झलक जूनागढ़ में आज भी देखी जा सकती है।
जूनागढ़ दो भागों में विभक्त है। एक मुख्य शहर है जिसके चारो ओर दीवारों से किलेबन्दी की गई है। दूसरा पश्िचम में है जिसे अपरकोट कहा जाता है। अपरकोट एक प्राचीन दुर्ग है जो शहर से बहुत ऊपर स्थित है। यह किला मौर्य और गुप्त शासकों के लिए बहुत मजबूत साबित हुआ क्योंकि इस किले ने विशिष्ट स्थान पर स्थित होने और दुर्गम राह के कारण पिछले 1000 वर्षो से लगभग 16 आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना किया। अपरकोट का प्रवेशद्वार हिंदू तोरण स्थापत्य कला का अच्छा नमूना है। बौद्ध गुफा और बाबा प्यारा की गुफा (दूसरी शताब्दी), अड़ी-काड़ी वाव, नवघन कुआं और जामी मस्जिद यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल है।
जूनागढ़ के प्राचीन शहर का नामकरण एक पुराने दुर्ग के नाम पर हुआ है। यह गिरनार पर्वत के समीप स्थित है। यहाँ पूर्व-हड़प्पा काल के स्थलों की खुदाई हुई है। इस शहर का निर्माण नौवीं शताब्दी में हुआ था। यह चूड़ासमi राजपूतों की राजधानी थी। यह एक रियासत थी। गिरनार के रास्ते में एक गहरे रंग की बेसाल्ट चट्टान है, जिस पर तीन राजवंशों का प्रतिनिधित्व करने वाला शिलालेख अंकित है। मौर्य शासक अशोक (लगभग 260-238 ई.पू.) रुद्रदामन (150 ई.) और स्कंदगुप्त (लगभग 455-467)। यहाँ 100-700 ई. के दौरान बौद्धों द्वारा बनाई गई गुफ़ाओं के साथ एक स्तूप भी है। शहर के निकट स्थित कई मंदिर और मस्जिदें इसके लंबे और जटिल इतिहास को उद्घाटित करते हैं। यहाँ तीसरी शताब्दी ई.पू. की बौद्ध गुफ़ाएँ, पत्थर पर उत्कीर्णित सम्राट अशोक का आदेशपत्र और गिरनार पहाड़ की चोटियों पर कहीं-कहीं जैन मंदिर स्थित हैं। 15वीं शताब्दी तक राजपूतों का गढ़ रहे जूनागढ़ पर 1472 में गुजरात के महमूद बेगढ़ा ने क़ब्ज़ा कर लिया, जिन्होंने इसे मुस्तफ़ाबाद नाम दिया और यहाँ एक मस्जिद बनवाई, जो अब खंडहर हो चुकी है।
कृषि और खनिज
जूनागढ़ के प्रमुख कृषि उत्पादों में कपास, ज्वार-बाजरा, दलहन, तिलहन और गन्ना शामिल हैं। वेरावल तथा पोरबंदर यहाँ के प्रमुख बंदरगाह हैं और यहाँ मछली पकड़ने का काम भी होता है। इस नगर में वाणिज्यिक एवं निर्माण केंद्र हैं।
जूनागढ़ के प्रमुख कृषि उत्पादों में कपास, ज्वार-बाजरा, दलहन, तिलहन और गन्ना शामिल हैं। वेरावल तथा पोरबंदर यहाँ के प्रमुख बंदरगाह हैं और यहाँ मछली पकड़ने का काम भी होता है। इस नगर में वाणिज्यिक एवं निर्माण केंद्र हैं।
शिक्षा
यहाँ गुजरात कृषि विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालय हैं। यहाँ के शैक्षणिक संस्थानों में कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नोलॉजी और द जे.सी ई. टी. एस. कामर्स कॉलेज शामिल हैं।
यहाँ गुजरात कृषि विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालय हैं। यहाँ के शैक्षणिक संस्थानों में कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नोलॉजी और द जे.सी ई. टी. एस. कामर्स कॉलेज शामिल हैं।
प्रमुख आकर्षण
अशोक के शिलालेख (आदेशपत्र)
गिरनार जाने के रास्ते पर सम्राट अशोक द्वारा लगवाए गए शिलालेखों को देखा जा सकता है। ये शिलालेख विशाल पत्थरों पर उत्कीर्ण हैं। अशोक ने कुल चौदह शिलालेख लगवाए थे। इन शिलालेखों में राजकीय आदेश खुदे हुए हैं। इसके अतिरिक्त इसमें नैतिक नियम भी लिखे हुए हैं। ये आदेशपत्र राजा के परोपकारी व्यवहार और कार्यो का प्रमाणपत्र है। अशोक के शिलालेखों पर ही शक राजा रुद्रदाम तथा स्कंदगुप्त के खुदवाये अभिलेखों को देखा जा सकता है। रुद्रदाम ने 150 ई. में तथा स्कंदगुप्त ने 450 ई. में ये अभिलेख खुदवाये थे। इस अभिलेख की एक विशेषता यह भी है कि रुद्रदाम के अभिलेख को ही संस्कृत भाषा का प्रथम शिलालेख माना जाता है।
गिरनार जाने के रास्ते पर सम्राट अशोक द्वारा लगवाए गए शिलालेखों को देखा जा सकता है। ये शिलालेख विशाल पत्थरों पर उत्कीर्ण हैं। अशोक ने कुल चौदह शिलालेख लगवाए थे। इन शिलालेखों में राजकीय आदेश खुदे हुए हैं। इसके अतिरिक्त इसमें नैतिक नियम भी लिखे हुए हैं। ये आदेशपत्र राजा के परोपकारी व्यवहार और कार्यो का प्रमाणपत्र है। अशोक के शिलालेखों पर ही शक राजा रुद्रदाम तथा स्कंदगुप्त के खुदवाये अभिलेखों को देखा जा सकता है। रुद्रदाम ने 150 ई. में तथा स्कंदगुप्त ने 450 ई. में ये अभिलेख खुदवाये थे। इस अभिलेख की एक विशेषता यह भी है कि रुद्रदाम के अभिलेख को ही संस्कृत भाषा का प्रथम शिलालेख माना जाता है।
अपरकोट किला
माना जाता है कि इस किले का निर्माण यादवों ने द्वारिका आने पर करवाया था (जो कृष्ण भगवान से संबंधित थे)। अपरकोट की दीवारें किसी-किसी स्थान पर 20 मीटर तक ऊंची है। किले पर की गई नक्काशी अभी भी सुरक्षित अवस्था में है। इस किले में बहुत सी रूचिजनक और दर्शनीय वस्तुओं में पश्चिमी दीवार पर लगी दो तोपे हैं। इन तोपों का नाम नीलम और कांडल है। इन तोपों का निर्माण मिस्र में हुआ था। इस किले के चारों ओर 200 ईस्वी पूर्व से 200 ईस्वी तक की बौद्ध गुफाएं है।
माना जाता है कि इस किले का निर्माण यादवों ने द्वारिका आने पर करवाया था (जो कृष्ण भगवान से संबंधित थे)। अपरकोट की दीवारें किसी-किसी स्थान पर 20 मीटर तक ऊंची है। किले पर की गई नक्काशी अभी भी सुरक्षित अवस्था में है। इस किले में बहुत सी रूचिजनक और दर्शनीय वस्तुओं में पश्चिमी दीवार पर लगी दो तोपे हैं। इन तोपों का नाम नीलम और कांडल है। इन तोपों का निर्माण मिस्र में हुआ था। इस किले के चारों ओर 200 ईस्वी पूर्व से 200 ईस्वी तक की बौद्ध गुफाएं है।
सक्करबाग प्राणीउद्यान
जूनागढ़ का यह प्राणीउद्यान गुजरात का सबसे पुराना प्राणीउद्यान है। यह प्राणीउद्यान गिर के विख्यात शेर के अलावा चीते और तेंदुआ के लिए प्रसिद्ध है। गिर के शेरों को लुप्तप्राय होने से बचाने के लिए जूनागढ़ के नवाब ने 1863 ईस्वी में इस प्राणीउद्यान का निर्माण करवाया था। यहां शेर के अलावा बाघ, तेंदुआ, भालू, गीदड़, जंगली गधे, सांप और चिड़िया भी देखने को मिलती है। यह प्राणीउद्यान लगभग 500 एकड़ में फैला हुआ है।
जूनागढ़ का यह प्राणीउद्यान गुजरात का सबसे पुराना प्राणीउद्यान है। यह प्राणीउद्यान गिर के विख्यात शेर के अलावा चीते और तेंदुआ के लिए प्रसिद्ध है। गिर के शेरों को लुप्तप्राय होने से बचाने के लिए जूनागढ़ के नवाब ने 1863 ईस्वी में इस प्राणीउद्यान का निर्माण करवाया था। यहां शेर के अलावा बाघ, तेंदुआ, भालू, गीदड़, जंगली गधे, सांप और चिड़िया भी देखने को मिलती है। यह प्राणीउद्यान लगभग 500 एकड़ में फैला हुआ है।
गिर वन्यजीव अभ्यारण्य
वन्य प्राणियों से समृद्ध गिर अभ्यारण्य लगभग 1424 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इस वन्य अभ्यारण्य में अधिसंख्य मात्रा में पुष्प और जीव-जन्तुओं की प्रजातियां मिलती है। यहां स्तनधारियों की 30 प्रजातियां, सरीसृप वर्ग की 20 प्रजातियां और कीडों- मकोडों तथा पक्षियों की भी बहुत सी प्रजातियां पाई जाती है। दक्षिणी अफ्रीका के अलावा विश्व का यही ऐसा एकलौता स्थान है जहां शेरों को अपने प्राकृतिक आवास में रहते हुए देखा जा सकता है। जंगल के शेर के लिए अंतिम आश्रय के रूप में गिर का जंगल, भारत के महत्वपूर्ण वन्य अभ्यारण्यों में से एक है। गिर के जंगल को सन् 1969 में वन्य जीव अभ्यारण्य बनाया गया और 6 वर्षों बाद इसका 140.4 वर्ग किलोमीटर में विस्तार करके इसे राष्ट्रीय उद्यान के रूप में स्थापित कर दिया गया। यह अभ्यारण्य अब लगभग 258.71 वर्ग किलोमीटर तक विस्तृत हो चुका है। वन्य जीवों को सरक्षंण प्रदान करने के प्रयास से अब शेरों की संख्या बढकर 312 हो गई है।
सूखें पताड़ वाले वृक्षों, कांटेदार झाड़ियों के अलावा हरे-भरे पेड़ों से समृद्ध गिर का जंगल नदी के किनारे बसा हुआ है। यहां के मुख्य वृक्षों में सागवान, शीशम, बबूल, बेर, जामुन, बील आदि है।
भारत के सबसे बड़े कद का हिरण, सांभर, चीतल, नीलगाय, चिंकारा और बारहसिंगा भी यहां देखा जा सकता है साथ ही यहां भालू और बड़ी पूंछ वाले लंगूर भी भारी मात्रा में पाए जाते है। कुछ ही लोग जानते होंगे कि गिर भारत का एक अच्छा पक्षी अभ्यारण्य भी है। यहां फलगी वाला बाज, कठफोडवा, एरीओल, जंगली मैना और पैराडाइज फलाईकेचर भी देखा जा सकता है। साथ ही यह अधोलिया, वालडेरा, रतनघुना और पीपलिया आदि पक्षियों को भी देखने के लिए उपयुक्त स्थान है। इस जंगल में मगरमच्छों के लिए फॉर्म का विकास किया जा रहा है जो यहां के आकर्षण को ओर भी बढा देगा।
दर्शकों के लिए गिर वन्य अभ्यारण्य मध्य अक्टूबर महीने से लेकर मध्य जून तक खोला जाता है लेकिन मानसून के मौसम में इसे बन्द कर दिया जाता है।
वन्य प्राणियों से समृद्ध गिर अभ्यारण्य लगभग 1424 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। इस वन्य अभ्यारण्य में अधिसंख्य मात्रा में पुष्प और जीव-जन्तुओं की प्रजातियां मिलती है। यहां स्तनधारियों की 30 प्रजातियां, सरीसृप वर्ग की 20 प्रजातियां और कीडों- मकोडों तथा पक्षियों की भी बहुत सी प्रजातियां पाई जाती है। दक्षिणी अफ्रीका के अलावा विश्व का यही ऐसा एकलौता स्थान है जहां शेरों को अपने प्राकृतिक आवास में रहते हुए देखा जा सकता है। जंगल के शेर के लिए अंतिम आश्रय के रूप में गिर का जंगल, भारत के महत्वपूर्ण वन्य अभ्यारण्यों में से एक है। गिर के जंगल को सन् 1969 में वन्य जीव अभ्यारण्य बनाया गया और 6 वर्षों बाद इसका 140.4 वर्ग किलोमीटर में विस्तार करके इसे राष्ट्रीय उद्यान के रूप में स्थापित कर दिया गया। यह अभ्यारण्य अब लगभग 258.71 वर्ग किलोमीटर तक विस्तृत हो चुका है। वन्य जीवों को सरक्षंण प्रदान करने के प्रयास से अब शेरों की संख्या बढकर 312 हो गई है।
सूखें पताड़ वाले वृक्षों, कांटेदार झाड़ियों के अलावा हरे-भरे पेड़ों से समृद्ध गिर का जंगल नदी के किनारे बसा हुआ है। यहां के मुख्य वृक्षों में सागवान, शीशम, बबूल, बेर, जामुन, बील आदि है।
भारत के सबसे बड़े कद का हिरण, सांभर, चीतल, नीलगाय, चिंकारा और बारहसिंगा भी यहां देखा जा सकता है साथ ही यहां भालू और बड़ी पूंछ वाले लंगूर भी भारी मात्रा में पाए जाते है। कुछ ही लोग जानते होंगे कि गिर भारत का एक अच्छा पक्षी अभ्यारण्य भी है। यहां फलगी वाला बाज, कठफोडवा, एरीओल, जंगली मैना और पैराडाइज फलाईकेचर भी देखा जा सकता है। साथ ही यह अधोलिया, वालडेरा, रतनघुना और पीपलिया आदि पक्षियों को भी देखने के लिए उपयुक्त स्थान है। इस जंगल में मगरमच्छों के लिए फॉर्म का विकास किया जा रहा है जो यहां के आकर्षण को ओर भी बढा देगा।
दर्शकों के लिए गिर वन्य अभ्यारण्य मध्य अक्टूबर महीने से लेकर मध्य जून तक खोला जाता है लेकिन मानसून के मौसम में इसे बन्द कर दिया जाता है।
बौद्ध गुफा
बौद्ध गुफा चट्टानों को काट कर बनायी गई है। इस गुफा में सुसज्जित खंभे, गुफा का अलंकृत प्रवेशद्वार, पानी के संग्रह के लिए बनाए गए जल कुंड, चैत्य हॉल, वैरागियों का प्रार्थना कक्ष, चैत्य खिडकियां स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण पेश करती हैं। शहर में स्थित खापरा-कोडिया की गुफाएं भी देखने लायक है।
बौद्ध गुफा चट्टानों को काट कर बनायी गई है। इस गुफा में सुसज्जित खंभे, गुफा का अलंकृत प्रवेशद्वार, पानी के संग्रह के लिए बनाए गए जल कुंड, चैत्य हॉल, वैरागियों का प्रार्थना कक्ष, चैत्य खिडकियां स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण पेश करती हैं। शहर में स्थित खापरा-कोडिया की गुफाएं भी देखने लायक है।
अड़ी-काड़ी वेव और नवघन कुआं
अड़ी-काड़ी वेव और नवघन कुआं का निर्माण चूडासमा राजपूतों ने कराया था। इन कुओं की संरचना आम कुओं से बिल्कुल अलग तरह की है। पानी के संग्रह के लिए इसकी अलग तरह की संरचना की गई थी। ये दोनों कुएं युद्ध के समय दो सालों तक पानी की कमी को पूरा कर सकते थे। अड़ी-कड़ी वाव तक पहुंचने के लिए 120 पायदान नीचे उतरना होता है जबकि नवघन कुंआ 52 मीटर की गहराई में है। इन कुओं तक पहुंचने के लिए गोलाकार सीढियां बनी हुई है।
अड़ी-काड़ी वेव और नवघन कुआं का निर्माण चूडासमा राजपूतों ने कराया था। इन कुओं की संरचना आम कुओं से बिल्कुल अलग तरह की है। पानी के संग्रह के लिए इसकी अलग तरह की संरचना की गई थी। ये दोनों कुएं युद्ध के समय दो सालों तक पानी की कमी को पूरा कर सकते थे। अड़ी-कड़ी वाव तक पहुंचने के लिए 120 पायदान नीचे उतरना होता है जबकि नवघन कुंआ 52 मीटर की गहराई में है। इन कुओं तक पहुंचने के लिए गोलाकार सीढियां बनी हुई है।
जामी मस्जिद
जामी मस्जिद मूलत: रानकीदेवी का निवास स्थान था। मोहम्मद बेगड़ा ने जूनागढ़ फतह के दौरान (1470 ईस्वी) अपनी विजय की याद में इसे मस्जिद में तब्दील कर दिया था । यहां अन्य आकर्षणों में नीलम तोप है जिसे तुर्की के राजा सुलेमान के आदेश पर पुर्तगालियों से लड़ने के लिए बनवाया गया था। यह तोप मिस्र से दीव के रास्ते आई थी।
जामी मस्जिद मूलत: रानकीदेवी का निवास स्थान था। मोहम्मद बेगड़ा ने जूनागढ़ फतह के दौरान (1470 ईस्वी) अपनी विजय की याद में इसे मस्जिद में तब्दील कर दिया था । यहां अन्य आकर्षणों में नीलम तोप है जिसे तुर्की के राजा सुलेमान के आदेश पर पुर्तगालियों से लड़ने के लिए बनवाया गया था। यह तोप मिस्र से दीव के रास्ते आई थी।
अन्य दर्शनीय स्थल
अम्बे माता का मंदिर
अम्बे माता का मंदिर पहाड़ की चोटी पर स्थित है। यहां पर नवविवाहित जोड़े शादी के बाद अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए माता का आशीर्वाद लेने आते है।
अम्बे माता का मंदिर पहाड़ की चोटी पर स्थित है। यहां पर नवविवाहित जोड़े शादी के बाद अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए माता का आशीर्वाद लेने आते है।
मल्लिनाथ का मंदिर
9वें जैन तीर्थंकर मल्लिनाथ की याद में 1177 ईस्वी पूर्व में दो भाईयों ने इस त्रिमंदिर का निर्माण करवाया था। उत्सवों के समय यह मंदिर साधुओं के रहने का पंसदीदा स्थान होता है। नवंबर-दिसम्बर महीने की कार्तिक पूर्णिमा पर यहां बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।
9वें जैन तीर्थंकर मल्लिनाथ की याद में 1177 ईस्वी पूर्व में दो भाईयों ने इस त्रिमंदिर का निर्माण करवाया था। उत्सवों के समय यह मंदिर साधुओं के रहने का पंसदीदा स्थान होता है। नवंबर-दिसम्बर महीने की कार्तिक पूर्णिमा पर यहां बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।
जूनागढ संग्रहालय
जू में स्थित इस संग्रहालय में हस्तलिपि, प्राचीन सिक्के, चित्रकला और पुरातत्वीय साहित्य के साथ-साथ प्राकृतिक इतिहास का एक विभाग है।
जू में स्थित इस संग्रहालय में हस्तलिपि, प्राचीन सिक्के, चित्रकला और पुरातत्वीय साहित्य के साथ-साथ प्राकृतिक इतिहास का एक विभाग है।
आयुर्वेदिक कॉलेज
जूनागढ़ के पूर्व नवाब के राजमहल सदरबाग में स्थित यह महाविद्यालय आयुर्वेदिक दवाईयों का एक छोटा संग्रहालय है।
जूनागढ़ के पूर्व नवाब के राजमहल सदरबाग में स्थित यह महाविद्यालय आयुर्वेदिक दवाईयों का एक छोटा संग्रहालय है।
दरबार हॉल संग्रहालय
यह वह हॉल है जहां जूनागढ़ के नवाब अपने दरबार का आयोजन करते थे। यहां पर चित्रों, पालकियों और शस्त्रों के प्रर्दशन के बहुत से विभाग बने हुए है।
यह वह हॉल है जहां जूनागढ़ के नवाब अपने दरबार का आयोजन करते थे। यहां पर चित्रों, पालकियों और शस्त्रों के प्रर्दशन के बहुत से विभाग बने हुए है।
नरसिंह मेहता चोरो
यह एक विशाल स्थान है। यह सादगीपूर्ण तरीके से बना हुआ है। इसी जगह पर 15वीं शताब्दी में महान संत कवि नरसिंह मेहता के प्रवचनों और सभाओं का आयोजन होता था। यहां पर गोपनाथ का एक छोटा मंदिर तथा श्री दामोदर राय जी और नरसिंह मेहता की प्रतिमाएं भी है।
यह एक विशाल स्थान है। यह सादगीपूर्ण तरीके से बना हुआ है। इसी जगह पर 15वीं शताब्दी में महान संत कवि नरसिंह मेहता के प्रवचनों और सभाओं का आयोजन होता था। यहां पर गोपनाथ का एक छोटा मंदिर तथा श्री दामोदर राय जी और नरसिंह मेहता की प्रतिमाएं भी है।
दामोदर कुंड
इस पवित्र कुंड के चारों ओर घाट (नहाने के लिए) का निर्माण किया गया है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस घाट पर भगवान श्री कृष्ण ने महान संत कवि नरसिंह मेहता को फूलों का हार पहनाया था।
इस पवित्र कुंड के चारों ओर घाट (नहाने के लिए) का निर्माण किया गया है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इस घाट पर भगवान श्री कृष्ण ने महान संत कवि नरसिंह मेहता को फूलों का हार पहनाया था।
आवागमनहवाई मार्ग
जूनागढ़ से तकरीबन 40 किलोमीटर की दूरी पर केशोढ और 113 किलोमीटर की दूरी पर पोरबन्दर एयरपोर्ट है। राजकोट भी हवाई मार्ग से इससे जुड़ा हुआ है।रेल मार्ग
जूनागढ़ रेलवे स्टेशन अहमदाबाद और राजकोट रेलवे लाईन पर पड़ता हैसड़क मार्ग
जूनागढ़ राजकोट से (102 किलोमीटर), पोरबंदर से (113 किलोमीटर) और अहमदाबाद से (327 किलोमीटर) की दूरी पर स्थित है। साथ ही यह वरावल से भी जुड़ा हुआ है। स्थानीय परिवहन: ऑटो रिक्शा और स्थानीय बसों से आसानी से जूनागढ़ पहुंचा जा सकता है। प्राइवेट और राज्य परिवहन की लक्जरी बसें आसानी से उपलब्ध हो जाती है और विभिन्न प्रकार की कार भी किराये पर मिलती
जूनागढ़ से तकरीबन 40 किलोमीटर की दूरी पर केशोढ और 113 किलोमीटर की दूरी पर पोरबन्दर एयरपोर्ट है। राजकोट भी हवाई मार्ग से इससे जुड़ा हुआ है।रेल मार्ग
जूनागढ़ रेलवे स्टेशन अहमदाबाद और राजकोट रेलवे लाईन पर पड़ता हैसड़क मार्ग
जूनागढ़ राजकोट से (102 किलोमीटर), पोरबंदर से (113 किलोमीटर) और अहमदाबाद से (327 किलोमीटर) की दूरी पर स्थित है। साथ ही यह वरावल से भी जुड़ा हुआ है। स्थानीय परिवहन: ऑटो रिक्शा और स्थानीय बसों से आसानी से जूनागढ़ पहुंचा जा सकता है। प्राइवेट और राज्य परिवहन की लक्जरी बसें आसानी से उपलब्ध हो जाती है और विभिन्न प्रकार की कार भी किराये पर मिलती
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