बाड़मेर कनाना बने वीर दुर्गादास नगर, सिवाना में लगे मूर्ति, संरक्षण हो दुर्गादास प्रोल का
-सिवाना प्रधान का राज्य की मुखिया को गुजारिश पत्र
-वीरता के प्रतीक की शान बढ़ाने की गुजारिश
बाड़मेर
सिवाना प्रधान गरिमा राजपुरोहित ने राज्य की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को पत्र लिख कर तीन माँगे कर राजस्थान के वीर शिरोमणि की शान को बढ़ाने की गुजारिश की है। राज्य की मुख्यमंत्री के साथ साथ पर्यटन मंत्री, बाड़मेर सांसद, राजस्व मंत्री और जिला कलेक्टर को लिखे पत्र में उन्होंने मुंशी प्रेमचंद की लेखनी का हिस्सा बन चुके बाड़मेर के वीर दुर्गादास के लिए सरकार और जिला प्रशासन से तीन अनुरोध किये है। सिवाना प्रधान गरिमा राजपुरोहित ने अपने पत्र में लिखा है कि बरसो से राजस्थान ही नही देश भर में अपनी वीरता और ओजस्वी व्यक्तित्व की वजह से लाखों लोगो के दिलो में राज करने वाले वीर शिरोमणि दुर्गादास की जन्मस्थली कनाना गाँव प्रशासनिक अनदेखी का शिकार है। यह वही जगह है जहाँ 13 अगस्त 1638 को सालवा कला में द्वितीय सावन सुदी 14 वि.स. 1695 में आसकारण जी के परिवार में वीर दुर्गादास का जन्म हुआ। जोधपुर नरेश जसंवतसिंह के सामान्त एवं सेना नायक का पुत्र होने को गौरव उनके साथ था जिसे बाद में वीर शिरोमणि के ख़िताब से जग में ख्यातनाम किया। एक वीर की जन्मभूमि होने के बावजूद एक सामान्य गाँव की श्रेणी जैसा ही हाल इस गाँव की रज का है जबकि इस रज ने हमे और हमारे राजस्थान को नाज करने वाली शख्शियत दी है। इस सम्बन्ध में मेरा आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप कनाना का नाम बदल कर वीर दुर्गादास नगर करने की अनुकम्पा करावे। गाँव का नाम वीर दुर्गादास नगर होने से बढ़ने वाले गौरव से गाँव का यकीनन स्वरूप बदलेगा। इसी तरह छप्पन की पहाड़ियों की गोद में बसे सिवाना से भी वीर दुर्गादास का बरसो से नाता रहा है और सिवाना आज उपखण्ड मुख्यालय है। बाड़मेर से उदयपुर, जालोर, सिरोही, पाली और गुजरात एवं दक्षिण भारत की तरफ हर साल लाखों लोग सिवाना होकर गुजरते हैं। वही आस पास कई धार्मिक स्थल और जिनालय होने के चलते यहाँ धार्मिक अनुयायी भी इतनी ही तादात में यहाँ आते है ऐसे में सिवाना के ह्रदय स्थल पर वीर शिरोमणि की आदमकद मूर्ति की स्थापना करवाने की अनुकम्पा करावें। उनके पत्र के मुताबित आपके इस कदम से ना केवल इस धरा की शान बढ़ेगी वही यहाँ आने वाली भावी पीढ़ी हमारे ओजस्वी इतिहास से भी रूबरू होगी। अपने पत्र में उन्होंने लिखा है कि वीर दुर्गादास की प्रमुख कर्म स्थली रही है वीर दुर्गादास प्रोल सिवाना यह वही जगह है जहाँ दुर्गादास ने औरगंजेब के पौत्र पोत्री का अपहरण कर कैद कर रखा था। छप्पन पहाड़ियों के सिवाना-हल्देश्वर मार्ग पर स्थित पीपलू गांव की पहाड़ी पर दुर्गादास ने औरगंजेब के पोते पोति का अपहरण कर कैद रखा और दुर्गादास ने औरगंजेब के पोते पोती को जो वात्सल्य दिया वह इतिहास में स्वर्णिम अक्षरो में दर्ज है। पीपलू की पहाड़ी पर स्वंय दुर्गादास द्वारा बनाए ऐतिहासिक भवन खण्डहरो के रुप में तब्दील हो चुका है। सार सम्भाल के अभाव में ऐतिहासिक कमरे जिनमे दुर्गादास ने औरगंजेब के पोते एवं पोती काो शिक्षा दी यहां एक बड़ा कमरा बनाया गया था। जिसके मध्य दीवार कर एक कमरे में औरगजेब के पोते तथा दूसरे कमरे में पोती को कैद रखां कमरे के बाहर बैठकर दुर्गादास ने दोनो को शिक्षा दी। दुर्गादास ने उन दो की शक्ल तक नही देखी थी। शिक्षा देने बाद दुर्गादास ने दोनो को ससम्मान औरगंजेब को सौप दिया था। उस वीर शिरोमणि की यह हाथ से बनी आखिरी निशानियां आज जर्जर हालातो में है। वीर दुर्गादास प्रोल को सर्दी,गर्मी और असमय हुई बारिस से अब तक काफी नुकसान पहुँचा चूका है। प्रोल की मुख्य दिवार बीते कई सालों से कई जगहों से टूट गई है जिसके जीर्णोद्वार की जरूरत है। आपसे विनम्र अनुरोध है कि इसके लिए भी तत्काल बजट एवं अनुभवी कामगारों की देखरेख में इसका पुराना वैभव लौटाने की अनुकम्पा करावे।सिवाना प्रधान ने अपने पत्र में राज्य की मुखिया और जिला प्रशासन को लिखा है कि उन्हें विश्वाश है सरकार वीर शिरोमणि दुर्गादास की जनस्थली कनाना गाँव के नाम परिवर्तन , उनकी कर्मस्थली सिवाना में उनकी आदमकद मूर्ति स्थापित करने एवं वीर दुर्गादास प्रोल का सरंक्षण के लिए जल्द ही अनुकम्पा करेंगे।