जोधपुर किले की तोपें गरजी, छीतर महल में गूंजी थाली
मारवाड़ के राठौड़ राजवंश के 765 साल के इतिहास में 242 साल बाद यह पहला मौका है जब भाग्यशाली दादा अपने पोते को अपनी गोद में खिलाएगा। तत्कालीन महाराजा विजयसिंह ने सन 1773 में अपने पोते भीमसिंह को अपनी गोद में खिलाया था।
अब 242 साल बाद राजवंश के गजसिंह अपने पोते भंवरसा का मुंह देखने वाले राठौड़ वंश के दूसरे भाग्यशाली (पूर्व महाराजा) होंगे।
सुबह 10.15 बजे नई दिल्ली के निजी अस्पताल में शिवराजसिंह की पत्नी गायत्रीदेवी के पुत्र जन्म की सूचना मिलते ही किले में 101 तोपें छोड़कर व मिठाई वितरण कर जश्न मनाया गया। उम्मेद भवन में गजसिंह के साथ उनकी पत्नी हेमलता राज्ये व पुत्र शिवराज सिंह को बधाई देने वालों का सिलसिला देर शाम तक अनवरत जारी रहा। मारवाड़ राजपूत सभा की ओर से आतिशबाजी कर खुशियां जाहिर की गई।
केवल चार जन्म दिन सन 1250 में मारवाड़ राज्य के संस्थापक राव सीहा से आरंभ हुआ उत्तराधिकारी का क्रम काफी विचित्र रहा। करीब 8 सदियों में अधिकांश शासकों की अल्पायु में ही दिवंगत होने का इतिहास मिलता है। अब तक के इतिहास में 38 महाराजाओं ने मारवाड़ पर शासन किया।
मारवाड़ के 30 वें शासक महाराजा विजयसिंह (1752 से 1793 ) तक मारवाड़ के शासक रहे। उन्होंने अपने पौत्र महाराजा भीमसिंह (1793 से 1803 ) को गोद में खिलाया था। उन्ही के दूसरे पौत्र मानसिंह 1803 में मारवाड़ के शासक हुए। दोनों ही पौत्र के पुत्र नहीं होने के कारण अहमदनगर से महाराजा तख्तसिंह को गोद लिया गया जिन्होंने 1843 से 1873 तक मारवाड़ पर शासन किया।
उनके पुत्र जसवंत सिंह (द्वितीय ) ने 1873 से 1895 तक, सरदारसिंह ने 1895-1911, सुमेरसिंह 1911-1918, उम्मेदसिंह 1918 से 1947 एवं महाराजा हनवंत सिंह ने 1947 से 1952 तक रहे। महाराजा हनवंतसिंह ने अपने पुत्र गजसिंह के केवल चार जन्मदिन ही मना पाए थे। चौथी वर्षगांठ मनाने के बाद 26 जनवरी 1952 को महाराजा हनवंतसिंह की विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी।