उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 को संषोधन कर बनावे प्रभावी- अर्जुन मेघवाल
लोक सभा मे तारंाकित प्रष्न के माध्यम से उठाया उपभोक्ताओं का मुद्दा
नई दिल्ली। 18 दिसम्बर 2012। मंगलवार को लोक सभा में बीकानेर सांसद अर्जुन राम मेघवाल ने तारांकित प्रष्न संख्या 343 के द्वारा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 में देष में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने में ओर अधिक प्रभावी बनाने के लिए संषोधन विधेयक 2011 को पारित किया जावें। सांसद मेघवाल ने कहा कि देष का प्रत्येक नागरिक किसी न किसी रूप में उपभोक्ता होता है। जब कोई व्यक्ति अपनी आवष्यकता के अनुरूप कोई सामान खरीदता है तो वह उपभोक्ता की श्रेणी मे आता है और यदि वह किसी संस्थान की सेवाऐं लेता है तो भी वह उपभोक्ता की श्रेणी मे सम्मिलित होता है। उपभोक्ता उचित गुणवक्ता वाला उत्पाद नहीं मिलने पर , मिलावटी सामान प्राप्त होने पर , नापतौल मे कम सामान प्राप्त होने पर , उचित मुल्य के बजाय सौदेबाजी के आधार पर अधिक मुल्य पर सामान मिलने पर अपने आपको ठगा सा महसूस करता है।
उपभोक्ताओं की हितो की रक्षा के लिए 1986 में उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम बनाया गया , इसके बाद 2011 में संषोधन करने का प्रयास किया। इस सब के बावजूद भी अभी भी उपभोक्ता ठगासा महसूस करता है। जिला , प्रदेष व राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ताओं के प्रकरण को निस्तारण करने के लिए एक तंत्र बना हुआ है, लेकिन क्या कभी सरकार ने यह जानने का प्रयास किया है कि यह तंत्र समुचित ढं़ग से काम नहीं कर रहा है तथा उपभोक्ताओं के प्रकरण निस्तारण नहंी होने से इस तंत्र के प्रति उपभोक्ताओं की रूचि कम होती जा रही है, तो इस तंत्र को ठीक करने के लिए सरकार क्या कदम उठाने जा रही है?
जब महात्मा गांधी ने आजादी के आंदोलन के दौरान ही यह कह दिया था कि उपभोक्ता को भगवान समझों , तो फिर सरकार ने 1986 तक कानून बनाने का इंतजार किया एवं संषोधन करने के लिए इतने साल लगाने पडे। इससे प्रतीत होता है कि सरकार की नजरों मे उपभोक्ता हित कोई विषेष प्राथमिकता नहीं रखता है। उपभोक्ता न्यायालयों में जो प्रकरण लम्बित है उनका निस्तारण करने के लिए कोई सरकार फास्ट ट्रेक कोर्ट या टाईम बाउन्ड मैनर मे प्रकरणो का निस्तारण करने के लिए कोई न्यायिक तंत्र विकसित करने का विचार है?
सांसद अर्जुन मेघवाल के प्रष्न का जवाब देते हुये उपभोक्ता मामलात राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रो. के.वी. थॉमस ने बताया कि उपभोक्ता सरंक्षण प्रणाली को सुदृढ करने और वर्तमान परिदृष्य में इसे अधिक सुग्राही बनाने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 में संषोधन का प्रस्ताव संषोधित विधेयक, 2011 को संसदीय स्थायी समिति को भेजा गया है। प्रस्तावित संषोधन की मुख्य बाते निम्नलिखित है:-
1. कनफोनेट स्कीम के माध्यम से डिजिटल न्यायनिर्णय प्रणाली प्रारंभ करना।
2. 28 दिनांे के उपरांत षिकायत को स्वीकृत समझना।
3. निकटवर्ती जिला मंचों को इकटठा करने का प्रावधान करना।
4. जिला स्तर पर सर्किट बैंचो का प्रावधान करना।
5. अपील दायर करने के लिए जमा कराई जाने वाली राषि मे बढ़ोतरी करना।
उपभोक्ताओं की हितो की रक्षा के लिए 1986 में उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम बनाया गया , इसके बाद 2011 में संषोधन करने का प्रयास किया। इस सब के बावजूद भी अभी भी उपभोक्ता ठगासा महसूस करता है। जिला , प्रदेष व राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ताओं के प्रकरण को निस्तारण करने के लिए एक तंत्र बना हुआ है, लेकिन क्या कभी सरकार ने यह जानने का प्रयास किया है कि यह तंत्र समुचित ढं़ग से काम नहीं कर रहा है तथा उपभोक्ताओं के प्रकरण निस्तारण नहंी होने से इस तंत्र के प्रति उपभोक्ताओं की रूचि कम होती जा रही है, तो इस तंत्र को ठीक करने के लिए सरकार क्या कदम उठाने जा रही है?
जब महात्मा गांधी ने आजादी के आंदोलन के दौरान ही यह कह दिया था कि उपभोक्ता को भगवान समझों , तो फिर सरकार ने 1986 तक कानून बनाने का इंतजार किया एवं संषोधन करने के लिए इतने साल लगाने पडे। इससे प्रतीत होता है कि सरकार की नजरों मे उपभोक्ता हित कोई विषेष प्राथमिकता नहीं रखता है। उपभोक्ता न्यायालयों में जो प्रकरण लम्बित है उनका निस्तारण करने के लिए कोई सरकार फास्ट ट्रेक कोर्ट या टाईम बाउन्ड मैनर मे प्रकरणो का निस्तारण करने के लिए कोई न्यायिक तंत्र विकसित करने का विचार है?
सांसद अर्जुन मेघवाल के प्रष्न का जवाब देते हुये उपभोक्ता मामलात राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रो. के.वी. थॉमस ने बताया कि उपभोक्ता सरंक्षण प्रणाली को सुदृढ करने और वर्तमान परिदृष्य में इसे अधिक सुग्राही बनाने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 में संषोधन का प्रस्ताव संषोधित विधेयक, 2011 को संसदीय स्थायी समिति को भेजा गया है। प्रस्तावित संषोधन की मुख्य बाते निम्नलिखित है:-
1. कनफोनेट स्कीम के माध्यम से डिजिटल न्यायनिर्णय प्रणाली प्रारंभ करना।
2. 28 दिनांे के उपरांत षिकायत को स्वीकृत समझना।
3. निकटवर्ती जिला मंचों को इकटठा करने का प्रावधान करना।
4. जिला स्तर पर सर्किट बैंचो का प्रावधान करना।
5. अपील दायर करने के लिए जमा कराई जाने वाली राषि मे बढ़ोतरी करना।