मिर्जा हबीब बेग पारस गालिब के बनारस प्रेम पर आधारित 61 शेरों की एक एग्जीबिशन 18 से 20 जून तक जवाहर कला केंद्र में आयोजित होने वाले मिर्जा गालिब समारोह के दौरान लगाएंगे। इन शेरों का उन्होंने हिंदी रूपांतरण भी किया है, इस एग्जीबिशन में लोगों को समझाने के लिए हिंदी रूपांतरण भी उपलब्ध करवाया जाएगा।
गालिब के शौक भी एक से बढ़कर एक थे। बनारस शहर को भी गालिब की दीवानगी का सौभाग्य मिला। उन दिनों जब यातायात के संसाधन नहीं थे ऐसे में गालिब घोड़ागाड़ी पर महीनों की यात्रा करके बनारस पहुंचे। उन्हें बनारस का जनजीवन, यहां की आब-ओ-हवा और यहां की प्राकृतिक छटा इतनी पसंद आई कि उन्होंने इस पर साठ से अधिक शेर लिख डाले।
जयपुर में गालिब के साहित्य का अकूत भंडार सहेजने वाले शायर मिर्जा हबीब बेग पारस ने गालिब के बनारस प्रेम पर लिखे 61 शेर जुटाकर उन्हें फिर से ड्राइंग शीट पर लिखकर जीवंत किया है। ये शेर उर्दू की खत-ए-शिकस्ता शैली में लिखे गए हैं। मिर्जा बताते हैं कि उर्दू की यह शैली अब लुप्त हो गई है हिंदुस्तान में इसको लिखने और पढ़ने वाले चार-पांच लोग ही रह गए हैं।
उन्होंने इस शैली को लिखने और पढ़ने की बरसों पहले ट्रेनिंग ली थी और उसके बाद से वे निरंतर गालिब के साहित्य पर शोध करते रहते हैं। उनके पास उर्दू अदब की बीस हजार से अधिक पुस्तकों का संकलन है।
चार शैलियां हैं उर्दू भाषा की
उन्होंने बताया कि उर्दू को लिखने और पढ़ने की चार शैलियां हैं। गालिब खत-ए-शिकस्ता शैली में लिखते थे। यह शैली राजा-महाराजाओं के शासन काल में शाही फरमान जारी करने में काम में ली जाती थी। रियासत काल की समाप्ति के साथ ही यह शैली भी लुप्त हो गई। वर्तमान में उर्दू की नस्तलीक शैली प्रचलन में है। इसके अलावा सुल्स और खत-ए-बहार शैली भी हिंदुस्तान से लुप्त हो गई है।
एक बानगी गालिब के बनारस प्रेम की
गालिब ने लिखा बनारस शंख फूंकने वालों की इबादत गाह है और मेरा यकीन है ये हिंदुस्तान का काबा है। यहां के बुतों यानी हसीनों का बदन शौला-ए-तूर से बना हुआ है, हर पैकर सर से पांव तक चश्मे बद्दूर यानी खुदा का नूर है। सुबहान अल्लाह चश्मे बद्दूर बनारस मसरतों की जन्नत और बहीशत का शबाब यानी पूरा फिरदौस है।
गालिब के शौक भी एक से बढ़कर एक थे। बनारस शहर को भी गालिब की दीवानगी का सौभाग्य मिला। उन दिनों जब यातायात के संसाधन नहीं थे ऐसे में गालिब घोड़ागाड़ी पर महीनों की यात्रा करके बनारस पहुंचे। उन्हें बनारस का जनजीवन, यहां की आब-ओ-हवा और यहां की प्राकृतिक छटा इतनी पसंद आई कि उन्होंने इस पर साठ से अधिक शेर लिख डाले।
जयपुर में गालिब के साहित्य का अकूत भंडार सहेजने वाले शायर मिर्जा हबीब बेग पारस ने गालिब के बनारस प्रेम पर लिखे 61 शेर जुटाकर उन्हें फिर से ड्राइंग शीट पर लिखकर जीवंत किया है। ये शेर उर्दू की खत-ए-शिकस्ता शैली में लिखे गए हैं। मिर्जा बताते हैं कि उर्दू की यह शैली अब लुप्त हो गई है हिंदुस्तान में इसको लिखने और पढ़ने वाले चार-पांच लोग ही रह गए हैं।
उन्होंने इस शैली को लिखने और पढ़ने की बरसों पहले ट्रेनिंग ली थी और उसके बाद से वे निरंतर गालिब के साहित्य पर शोध करते रहते हैं। उनके पास उर्दू अदब की बीस हजार से अधिक पुस्तकों का संकलन है।
चार शैलियां हैं उर्दू भाषा की
उन्होंने बताया कि उर्दू को लिखने और पढ़ने की चार शैलियां हैं। गालिब खत-ए-शिकस्ता शैली में लिखते थे। यह शैली राजा-महाराजाओं के शासन काल में शाही फरमान जारी करने में काम में ली जाती थी। रियासत काल की समाप्ति के साथ ही यह शैली भी लुप्त हो गई। वर्तमान में उर्दू की नस्तलीक शैली प्रचलन में है। इसके अलावा सुल्स और खत-ए-बहार शैली भी हिंदुस्तान से लुप्त हो गई है।
एक बानगी गालिब के बनारस प्रेम की
गालिब ने लिखा बनारस शंख फूंकने वालों की इबादत गाह है और मेरा यकीन है ये हिंदुस्तान का काबा है। यहां के बुतों यानी हसीनों का बदन शौला-ए-तूर से बना हुआ है, हर पैकर सर से पांव तक चश्मे बद्दूर यानी खुदा का नूर है। सुबहान अल्लाह चश्मे बद्दूर बनारस मसरतों की जन्नत और बहीशत का शबाब यानी पूरा फिरदौस है।