बुधवार, 6 जुलाई 2016

राजस्थान के चेरापूंजी झालावाड़ में मौन जल-क्रांति सम्पन्न धरती के रीते गर्भ को हर साल मिलेगा 67 करोड़ घनफुट जल



राजस्थान के चेरापूंजी झालावाड़ में मौन जल-क्रांति सम्पन्न

धरती के रीते गर्भ को हर साल मिलेगा 67 करोड़ घनफुट जल


सदियों में मरुस्थल के रूप में पहचान रखने वाला राजस्थान, वर्षा जल की बूंदें सहेजने में नया इतिहास रचने जा रहा है जिसका उल्लेख प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी मन की बात में भी कर चुके हैं। इस इतिहास का पहला पन्ना झालावाड़ जिले द्वारा लिखा गया है जो राजस्थान के चेरापूंजी के रूप में जाना जाता है। पश्चिमी राजस्थान में वर्षा का वार्षिक औसत 313 मिलीमीटर तथा पूर्वी राजस्थान में 675 मिलीमीटर है, वहीं झालावाड़ जिले में वर्षा का वार्षिक औसत 950 सेंटीमीट है। झालावाड़ जिले में वर्ष भर में लगभग 40 दिन बरसात होती है। मुकुन्दरा पहाड़ियों की गोद में बसे इस जिले में कालीसिंध, आहू, निवाज, पिपलाज, घोड़ा पछाड़, उजाड़, चंद्रभागा, क्यासरी, परवन और अंधेरी आदि 10 नदियां प्रवाहित होती हैं। जिले में कालीसिंध, छापी, चंवली, भीमसागर, पिपलाद, राजगढ़, भीमनी, गागरीन, मोगरा, सारोला, हरिश्चंद्र सागर आदि लगभग एक दर्जन बड़े एवं मध्यम बांध स्थित हैं।

इतना सब होने पर भी हर साल झालावाड़ के खेत प्यासे रह जाते हैं, गर्मियां आने से पहले ही तालाब सूख जाते हैं और कुंओं में जल का स्तर नीचे चला जाता है जिसके कारण पशुधन पानी के लिये तरसता है, कृषि भी पूरी पैदावार नहीं दे पाती तथा सैंकड़ों गांवों में हर साल टैंकरों के माध्यम से मनुष्यों और पशुओं के लिये पेयजल पहुंचाया जाता है।

मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे ने सुराज-संकल्प यात्रा के दौरान ही जनता की इस तकलीफ को समझ लिया था और सरकार बनाते ही उन्होंने अपना ध्यान जनसामान्य को उनकी आवश्यकतानुसार जल उपलब्ध कराने पर केन्द्रित किया। उन्होंने फोर वाटर कंसेप्ट आधारित काम तथा नदियों को जोड़ने के लिये रीवर बेसिन ऑथोरिटी के गठन का काम जैसे बड़े कदम उठाये किंतु जनवरी 2016 में उन्होंने मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान अभियान आरम्भ करके राज्य में व्यापक जलक्रांति का सूत्रपात कर दिया जिसमें जन-जन की भागीदारी का प्रावधान रखा गया। इस अभियान का सूत्रपात भी राजस्थान के चेरापूंजी अर्थात् झालावाड़ जिले में हुआ।

27 जनवरी से आरम्भ होकर 30 जून 2016 तक चले इस अभियान के अंतर्गत जिले में दिन-रात युद्ध स्तर पर कार्य चला जिसे अपूर्व जनसमर्थन एवं जनसहयोग मिला। लोगों ने स्वेच्छा से आगे आकर हर शनिवार को श्रमदान किया तथा धन एवं मशीनरी उपलब्ध कराई जिसके कारण देखते ही देखते जल संरचनाएं आकार लेने लगीं।

जिले में इस अभियान के तहत 8 लाख 96 हजार 270 स्टैगर्ड ट्रैंचेज, 1 लाख 85 हजार 448 डीप सीसीटी, 13 हजार 40 सीसीटी, 97 हजार 843 फील्ड बंडिंग, 574 मिनी परकोलेशन टैंक, 50 एनीकट, 354 तलाई, 21 माइक्रो स्टोरेज टैंक, 32 फार्म पौण्ड तथा 4 चैकडेम बनाये गये हैं। साथ ही 61 पुराने तालाबों को सुधारा गया है।

जिले में वर्ष 2010 में कालीसिंध बांध का निर्माण किया गया था जिस पर 457.21 करोड़ रुपये की लागत आई थी। इसकी सकल भराव क्षमता 54.37 मिलियन क्यूबिक मीटर अर्थात् 190 करोड़ घनफुट पानी जमा करने की है। इस बांध के डूब क्षेत्र में 1834 हैक्टेयर कृषि योग्य भूमि तथा 26 गांव आये थे। इस कारण बहुत बड़ी संख्या में मानव पलायन हुआ और कृषि भूमि, वनभूमि एवं चारागाह सदैव के लिये पानी में डूब गये। जबकि मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान के अंतर्गत जिले में केवल 76 करोड़ रुपये की लागत में 67 करोड़ घनफुट पानी की भराव क्षमता अर्जित की गई है। इन जल सरंचनाओं के बनने से एक इंच भी कृषि योग्य भूमि बेकार नहीं हुई है तथा एक भी मानव को पलायन नहीं करना पड़ा है।

बड़े बांधों के निर्माण की तुलना में मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान के अंतर्गत बन रहीं छोटी-छोटी जल संचनाएं अत्यंत उपयोगी और सस्ती हैं। इस अभियान में बनी जल संरचनाओं को तीन साल तक देखने की आवश्यकता नहीं है। इनके रख-रखाव के लिये इंजीनियरों और कर्मचारियों के भारी-भरकम लवाजमे की जरूरत नहीं है। तीन साल बाद इन संरचनाओं से केवल मिट्टी निकालने की आवश्यकता होगी। इस प्रकार ये जल संरचनाएं साल दर साल मनुष्यों की सेवा करती रहेंगी।

फायदे का सौदा है स्टैगर्ड ट्रैंच

झालावाड़ जिले में दूर-दूर तक हजारों हैक्टेयर क्षेत्र में पहाड़ियां फैली हुई हैं। अन पहाड़ियों पर जिले के समस्त आठ ब्लॉक में 8 लाख 96 हजार 270 स्टैगर्ड ट्रैंचेज का निर्माण किया गया है। इस ट्रैंच में लगभग 4 से 4.5 हजार लीटर पानी आता है। गांवों में पेयजल आपूर्ति किये जाने वाले टैंकों में भी इतना ही पानी आता है जिसकी लागत लगभग पांच सौ रुपये होती है। इस प्रकार एक ट्रैंच में एक बार वर्षा का जल भरने में लागत के रूप में 500 रुपये का पानी भरता है। एक वर्ष में एक ट्रैंच औसतन छः बार भरती है इस प्रकार एक ट्रैंच वर्ष भर में लगभग 3000 रुपये का पानी बचाती है। एक ट्रैंच लगभग तीन साल तक मिट्टी भरे बिना सही ढंग से काम करती है। इस प्रकार तीन साल में 9000 रुपये का पानी बचता है जबकि एक स्टैगर्ड ट्रैंच बनाने के लिये लगभग 350 रुपये का भुगतान किया गया है। पूरे जिले में 8 लाख 96 हजार 270 टैªंचेज खोदी गई हैं जिन पर लगभग 31.37 करोड़ रुपये व्यय हुआ है जो कि तीन साल में 806 करोड़ रुपये का पानी बचायेंगी।

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