शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

Khuri...jaisalmer..sand dunes palace...sea best photo grafs of khuri


















Khuri - Surrounded by huge desert hills, the Khuri village is located just 40 kms in the south west of Jaisalmer. Feel the real romance underneath the starlit night at Khuri. Explore the exotic sand dunes on a camel back to witness the spectacular Sunset behind the Golden desert.

At Khuri Village, experience the hospitality that is so much associated with Rajasthan. The warmth of the people is sure to make you feel at home away from home. It will be the most unique and personal way to experience the cultural tours of Rajasthan. The village carries a unique charm that makes it distinct from the other tourist destinations in Rajasthan. Narrow streets of the villages lined with shops selling local handcrafted items and food is a site to behold. Your stay at Khuri village is sure to be an enriching experience that you will cherish for the rest of your life. Just pack your bags and get ready to have an experience of a lifetime.

धोरों की धरती से गोरों के आसमाँ तक पसरा आवाज का जादू जैसाण के अर्जुन ने साधा लक्ष्य, आवाज की दुनिया में लहराया परचम

धोरों की धरती से गोरों के आसमाँ तक पसरा आवाज का जादू
जैसाण के अर्जुन ने साधा लक्ष्य, आवाज की दुनिया में लहराया परचम


भारतीय कला और संस्कृति की परम्पराओं से दुनिया वालों को रूबरू कराने में स्वर्ण नगरी जैसलमेर के एक शख़्स ने वह करिश्मा कर दिखाया है जिसने आवाज की दुनिया में स्वर्णिम इतिहास बना कर यह साबित कर दिखाया है हुनर के मामले में हम भारतीय किसी से उन्नीस नहीं हैं। जैसलमेर की सरजमीं पर जन्मे श्री अर्जुनसिंह भाटी उन कलाकारों में शुमार हो चले हैं जिनकी साख अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज पर पसरती हुई जैसलमेर को गौरव प्रदान कर रही है।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री अर्जुनसिंह भाटी संयुक्त राज्य अमेरिका के नेशनल पब्लिक रेडियो ॔॔रोबिन हुड़ रेडियो’’ से जुड़े हुए ऐसे शख्स हैं जिनके कार्यक्रम दुनिया के लोग सुनते रहे हैं। आगामी नौ फरवरी न सिर्फ श्री भाटी के लिए बल्कि जैसलमेर और मारवाड़ के साथ ही देश के लिए भी गौरव का दिन होगा जब अंग्रेजी भाषा में प्रसारित उनका लाईव शो ॔॔अराउण्ड द वर्ल्ड विथ अर्जुनसिंह भाटी’’ अपना सौवाँ एपीसोड पूरा करेगा। इस रेडियो पर किसी भी भारतीय द्वारा प्रसारित किए जाने वाला यह ऐसा पहला ऐतिहासिक कार्यक्रम होगा जो अपने प्रसारण का यह सफर सफलतापूर्वक पूरा कर रहा है।
रोबिन हुड रेडियो संयुक्त राज्य अमेरिका का नेशनल पब्लिक रेडियो है जिसका मुख्यालय न्यूयार्क से 200 किलोमीटर दूर कनेटीकट प्रान्त के शेरन शहर में है।
रोबिन हुड रेडियो काफी लोकप्रिय प्रसारण सेवा है जिसके द्वारा प्रसारित कार्यक्रम अमेरिका सहित विश्व के 34 देशों में सुने जाते हैं। इस रेडियो पर मनोरंजन, शिक्षा, संस्कृति आदि से संबंधित कार्यक्रम प्रमुखता से प्रसारित होते हैं। सामाजिक और साँस्कृतिक सरोकारों से जुड़ा यह दुनिया का अपनी तरह का पहला प्रसारण है। रेडियो प्रमुख मार्शल माईल्स व प्रमुख उद्घोषक जिल गुडमेन द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रेणी में इस बहुद्देशीय कार्यक्रम की रूपरेखा दो वर्ष पूर्व तैयार की गई। इस कार्यक्रम का उद्देश्य अमेरिका सहित विश्व के अन्य देशों के श्रोताओं को भारत वर्ष की गौरवशाली सँस्कृति, गर्वीली परम्पराओं और मनोहारी रीतिरिवाजों और भारतीय साँस्कृतिक परिवेश की विलक्षणताओं से परिचित कराना था।
ऐसे में विविधताओं से भरे हुए भारतवर्ष से ऐसे किसी वक्ता की तलाश शुरू हुई जो भारत के किसी स्थानीय जिले व प्रान्त के बारे में अच्छी जानकारी रखने के साथ ही सम्पूर्ण भारत की संस्कृति, परम्पराओं व रीतिरिवाजों का वर्णन करने में सक्षम हो। इसके साथ ही रेडियो यू.एस. ए. ऐसे हुनरमंद वक्ता से कार्यक्रम प्रसारित करवाना चाहता था जो कि स्थानीय भारतीय परिवेश और स्थानीय लोक साँस्कृतिक परम्पराओं की जानकारी का अंग्रेजी भाषा में सरल, सहज और प्रभावपूर्ण
अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोतर एवं अंग्रेजी भाषा में लेखन में गहरी रुचि रखने वाले श्री अर्जुनसिंह भाटी पेशे से अध्यापक हैं लेकिन बहुआयामी विधाओं के सृजनात्मक शिल्पी हैं।
उनके द्वारा लिखित आंग्ल कहानी ॔॔माय विडोव्ड आँट’’ हांगकांग की एक प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रमुखता से प्रकाशित की गई। अपनी प्रथम रचना के माध्यम से भारतीय समाज में वैधव्य जीवन का मार्मिक प्रस्तुतीकरण किया गया है जिसमें बताया गया है कि भारतीय समाज में व्याप्त अशिक्षा सामाजिक मूल्यों का किस स्थिति तक अवमूल्यन करती है वहीं शिक्षा के द्वारा वैधव्य का दंश झेल रही महिलाओं के आत्म सम्मान की रक्षा एवं उन्हें यथोचित अवलम्ब प्रदान किया जा सकता है।
इसी कहानी को यू.एस. लेखिका सुजन सिडल द्वारा काफी सराहा गया। साथ ही श्री भाटी का नाम यू.एस. रेडियो को भी प्रस्तावित किया गया। इसी क्रम में दो वर्ष पहले 15 मार्च 2009 को 15 मिनट की एक वार्ता इंटरनेट पर यू.एस. रेडियो की प्रमुख उद्घोषक द्वारा टेप की गई।
रेडियो प्रमुख मार्शल माईन्स इस वार्ता से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इस कार्यक्रम को साप्ताहिक लाईव प्रसारित करने की घोषणा की एवं स्वयं श्री माईल्स भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए। श्री भाटी द्वारा प्रसारित यह कार्यक्रम प्रत्येक मंगलवार भारतीय समयानुसार सांय 6:45 पर प्रसारित किया जाता है। इस कार्यक्रम का नाम पहले दिन से ही ॔॔ अराउण्ड द वर्ल्ड विथ अर्जुनसिंह भाटी’’ रखा।
कार्यक्रम के पंद्रह एपिसोड प्रसारित होने के साथ ही यह कार्यक्रम अमेरीकन रेडियो की रेंकिंग में टॉप पर पहुँच गया। कार्यक्रम की सफलता को देखते हुए यू.एस. रेडियो ने इस कार्यक्रम को अपना ॔मोस्ट पापुलर प्रोग्राम’ घोषित किया।
शेरन के स्थानीय श्रोताओं ने रेडियो प्रमुख से बात कर श्री अर्जुनसिंह भाटी को यू.एस. यात्रा पर आमंत्रित करने की इच्छा जाहिर की। फलस्वरूप यू.एस. रेडियो द्वारा वर्ष 2009 के अगस्त माह में एक महीने की यात्रा के लिए भाटी को आमंत्रित किया गया। चूंकि यू.एस. वीजा की शर्तों के अनुसार श्री भाटी को वीजा स्वीकृति चुनौती प्रतीत हो रही थी, लेकिन रेडियो प्रमुख मार्शल माईल्स के अथक प्रयत्नों से श्री भाटी का आवेदन यू.एस. रेडियो द्वारा स्वीकृत किया गया। हालांकि श्री भाटी ने सिर्फ एक माह वीजा के लिए आवेदन किया था, लेकिन उनके द्वारा प्रसारित कार्यक्रम की अपूर्व सफलता के मद्देनज़र यू.एस. एम्बेसी ने श्री भाटी को 10 वर्ष का वीजा स्वीकृत किया।
अपने महीने भर के यू.एस. प्रवास के दौरान श्री भाटी ने यू.एस. रेडियो पर दर्जन भर से ज्यादा कार्यक्रम प्रस्तुत किए। श्री भाटी यू.एस. के स्थानीय श्रोताओं से मिले जिन्होंने गर्मजोशी से स्वागत किया तथा उनके कार्यक्रम की प्रशंसा की एवं यू.एस. में स्थानीय मीडिया ने श्री भाटी की यात्रा की खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया।

गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

गुडा मेगा हाईवे पर दो वाहनो में लगी आग,दो जिन्दा जले


गुडा मेगा हाईवे पर दो वाहनो में लगी आग,दो जिन्दा जले
बाडमेर बाउमेर जिले के गुडामालानी ळाना क्षैत्र के मेगा हाईवे पर पीपराली गांव के पास एक टैंकर और ट्रक के बीच भिउन्त के बाद दोनो वाहनों में भीशण आग लग जाने से दो जनों की जिन्दा जल जाने से मौत हो गई वही दो जनों को जिन्दा बचाया।पुलिस थानाधिकारी ताराराम बैरवा नें बताया कि जिले के गुडा थाना क्षैत्र के मेगा हाईवे पर स्थित पीपराली गांव के समीप दोपहर बाद भीशण भिडन्त कें बाद आग लग गई जिसके कारण दोनो वाहनों में सवार चार जनों में से दो जने जिन्दा जल गऐ।जबकि ग्रामीणों ने दो को बचा दियां।घायलों को बाडमेर अस्पताल उपचार के लिऐ लाया जा रहा हैं।घटना की जानकारी मिलने पर जिला प्रासन और पूलिस प्रासन घटनास्थल के लिऐ पवाना हुऐ हैं।समाचार लिखे जाने तक कार्यवाही जारी थी।मुतकों की पहचान भाखराराम विनोई निवासी खारा तथा गोगाराम विनोई निवासी कोजा कें रूप में की गई।

जब एक वेश्या टीलों ने बनवाया ऐतिहासिक तालाब गढ़ीसर का प्रवेश द्वार










जब एक वेश्या टीलों ने बनवाया ऐतिहासिक तालाब का प्रवेश द्वार

जैसलमेर’देश के सबसे अंतिम छोर पर बसी ऐतिहासिक स्वर्ण नगरी ‘जैसलमेर’ सारे विश्व में अपनी स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। रेत के समंदर में बसे जैसल में तब दूर-दूर तक पानी का नामोनिशान तक न था। राजा और प्रजा बेसब्री से वर्षाकाल का इंतज़ार करते थे। वर्षा के पानी को एकत्र करने के लिए वि. सं. 1391 में जैसलमेर के महारावल राजा जैसल ने किले के निर्माण के दौरान एक विशाल झील का निर्माण करवाया, जिसे बाद में महारावल गढ़सी ने अपने शासनकाल में पूरा करवाकर इसमें पानी की व्यवस्था की। जिस समय महारावल गढ़सी ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था उन्हीं दिनों एक दिन धोखे से कुछ राजपूतों ने ही उनकी हत्या झील के किनारे ही कर दी थी। तब तक यह विशाल तालाब ‘गढ़सीर’ के नाम से विख्यात था जो बाद में ‘गढ़ीसर’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
जैसलमेर शहर के दक्षिण पूर्व में स्थित यह विशाल तालाब अत्यंत ही कलात्मक व पीले पत्थरों से निर्मित है। लबालब भरे तालाब के मध्य पीले पत्थरों से बनी राव जैसल की छतरी पानी में तैरती-सी प्रतीत होती है। गढ़ीसर तालाब 120 वर्ग मील क्षेत्रफल की परिधि में बना हुआ है जिसमें वर्षा के दिनों में चारों तरफ से पानी की आवक होती है। रजवाड़ों के शासनकाल में इसके मीठे पानी का उपयोग आम प्रजा व राजपरिवार किया करते थे। यहां के जल को स्त्रियां बड़े सवेरे सज-धज कर समूहों में लोकगीत गाती हुई अपने सिरों पर देगड़े व चरियां भर कर दुर्ग व तलहटी तक लाती थीं।
एक बार वर्षाकाल में मूसलाधार बारिश होने से गढ़सी तालाब लबालब भर गया और चारों तरफ रेगिस्तान में हरियाली छा गई। इससे राजा व प्रजा इतने रोमांचित हो उठे कि कई दिन तक जैसलमेर में उत्सव-सा माहौल रहा, लेकिन इसी बीच एक दु:खद घटना यह घटी कि अचानक तालाब के एक ओर की पाल ढह गई व पूरे शहर में पानी भर जाने के खतरे से राजा व प्रजा में भय व्याप्त हो गया। सारी उमंग खुशियां काफूर हो गयीं। उन दिनों जैसलमेर के शासक केसरी सिंह थे।
महारावल केसरी सिंह ने यह दु:खद घटना सुनते ही पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवाकर पूरी प्रजा को गढ़सी तालाब पर पहुंचने का हुक्म दिया व स्वयं भी हाथी पर सवार हो तालाब पर पहुंच गए। लेकिन इस बीच उन्होंने अपने नगर के समस्त व्यापारियों से अपने-अपने गोदामों से रूई के भरे बोरों को लेकर आने को कहा। रूई से भरी अनेक गाडिय़ां जब वहां पहुंचीं तो राव केसरी ने अपनी सूझ-बूझ से सबसे पहले बढ़ते पानी को रोकने के लिए हाथियों को कतारबद्ध खड़ा कर दिया और प्रजा से धड़ाधड़ रूई से भरी बोरियां डलवाकर उसके ऊपर रेत की तंगारियां डलवाते गए। देखते ही देखते कुछ ही घंटों में तालाब की पाल को फिर से बांध दिया गया तथा नगर को एक बड़े हादसे से बचा लिया गया।
ऐतिहासिक गढ़ीसर तालाब को बड़े हादसे से भले ही बचा लिया गया लेकिन इसे एक बदनामी के सबब से कोई नहीं बचा सका, क्योंकि यह आज भी एक ‘बदनाम झील’ के नाम से जानी जाती है। गढ़ीसर तालाब दिखने में अत्यंत ही कलात्मक है क्योंकि इस तालाब पर स्थापत्य कला के दर्शन होते हैं। तालाब के पत्थरों पर की गई नक्काशी, बेल-बूटों के अलावा उन्नत कारीगरी, बारीक जालीदार झरोखे व तक्षण कला के नमूने हैं।
गढ़ीसर तालाब को और भी भव्यता प्रदान करने के लिए इसके ‘प्रवेश द्वार’ को यहीं की एक रूपगर्विता टीलों नामक वेश्या ने बनवाया था जिससे यह ‘वेश्या का द्वार’ के नाम से पुकारा जाता है। यह द्वार टीलों ने संवत 1909 में निर्मित करवाया था। लावण्य व सौंदर्य की मलिका टीलों वेश्या के पास बेशुमार दौलत थी जिसका उपयोग उसने अपने जीवनकाल में सामाजिक व धार्मिक कार्यों में किया। टीलों की सामाजिक व धार्मिक सहिष्णुता से बड़े-बड़े व्यापारी, सोनार व धनाढ्य वर्ग के लोग भी प्रभावित थे।
वेश्या टीलों द्वारा बनाये जा रहे द्वार को देखकर जब स्थानीय लोगों में यह कानाफूसी होने लगी कि महारावल के होते हुए भला एक वेश्या तालाब का मुख्य द्वार क्यों बनवाये। बड़ी संख्या में नगर के बाशिंदे अपनी फरियाद लेकर उस समय की सत्ता पर काबिज महारावल सैलन सिंह के पास गये। वहां पहुंच कर उन्होंने महारावल के समक्ष रोष प्रकट करते हुए कहा कि महारावल, टीलों गढ़ीसर तालाब का द्वार बनवा रही है और वह पेशे से वेश्या है। आम जनता को उस बदनाम औरत के बनवाये द्वार से गुजर कर ही पानी भरना पड़ेगा, इससे बढ़कर शर्म की बात और क्या होगी? कहा जाता है कि महारावल सैलन सिंह ने प्रजा की बात को गंभीरता से सुनने के बाद अपने मंत्रियों से सलाह-मशविरा कर तुरंत प्रभाव से ‘द्वार’ को गिराने के आदेश जारी कर दिये।
लेकिन उस समय तक ‘मुख्य द्वार’ का निर्माण कार्य अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका था। जैसे ही टीलों को महारावल सैलन सिंह के आदेश की भनक लगी तो उसने भी अपनी सूझबूझ व बड़ी चालाकी से अपने समर्थकों की सहायता से ‘मुख्य द्वार’ के ऊपर भगवान विष्णु का मंदिर हाथों-हाथ बनवा दिया। मंदिर चूंकि हिन्दुओं की भावना व श्रद्धा का प्रतीक साबित हो गया, अत: किसी ने भी मुख्य द्वार को तोडऩे की हिम्मत न जुटायी। अंतत: वेश्या टीलों द्वारा बनाया गया भव्य कलात्मक द्वार बच गया, लेकिन हमेशा-हमेशा के लिए ऐतिहासिक स्वर्ण नगरी जैसलमेर में गढ़ीसर तालाब के मुख्यद्वार के साथ वेश्या ‘टीलों ’ का नाम भी जुड़ गया।
गढ़ीसर तालाब का मुख्य द्वार गढ़ाईदार पीले पत्थरों से निर्मित है लेकिन इसके ऊपर की गई बारीक कारीगरी जहां कला का बेजोड़ नमूना है वहीं कलात्मक अलंकरण व पत्थरों पर की गई खुदाई विशेष रूप से चिताकर्षक है। जैसलमेर आने वाले हज़ारों देशी-विदेशी सैलानी ऐतिहासिक नगरी व रेत के समंदर में पानी से भरी सागर सदृश्य झील को देखकर रोमांचित हो उठते हैं।