बुधवार, 2 जून 2010

बारमेर न्यूज़ track



दहेज दानव के कहर से कराह रही है रेखा

बाडमेर। दहेज के दानव ने रेखा के तन-मन को जख्मी को कर दिया है। अस्पताल में दर्द से कराह रही रेखा के हाथों की दोनों कोहनियों व छाती पर पॉलीथिन से जलाने के निशान स्थाई हो चुके हैं। ससुराल के नाम से ही उसे कंपकंपी होने लगती है। पीहर वाले उसके जख्मों पर मरहम लगाने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं।
शहर कोतवाली थाने में दर्ज एफआईआर के अनुसार जूना किराडू मार्ग बाडमेर निवासी रेखा का विवाह आठ वर्ष पहले खत्रियों का ऊपरला वास (बाडमेर) निवासी रविन्द्र पुत्र नथमल के साथ हुआ। रेखा के पिता अनंतलाल ने दस तोला सोना, एक किलो चांदी के गहने व घरेलू सामान दहेज में दिया। विवाह के बाद करीब तीन वर्ष तक उसका गृहस्थ जीवन हंसी-खुशी से गुजरता रहा। इस दौरान उसे संतान का सुख नहीं मिला। फिर दहेज प्रताडना का दौर शुरू हो गया। तीन वर्ष से वह घर से बाहर नहीं निकली।
उसे खाना भी एक ही समय दिया गया। उसके पीने के पानी की मटकी अलग कर दी गई। उसे जबरन नींद की गोलियां दी जाती और शारीरिक यातानाएं दी जाती। पति, सास व ससुर ने उस पर पीहर से पांच तोला सोना लाने के लिए दवाब बनाया। रेखा ने अपनी पीडा पीहर वालों को बताई। रेखा के पिता व चाचाओं ने उसके ससुराल वालों से समझाइश की और बात आई गई हो गई। लेकिन प्रताडना का दौर जारी रहा।
चिल्लाते हुए चाचा को आवाज दी
रेखा ने बताया कि तीन दिन पहले उसके भाई की शादी का निमंत्रण देने के लिए चाचा चेतनकुमार उसके ससुराल आए। तब उसके पति, सास व ससुर ने उसे भेजने से मना किया। चाचा की आवाज सुनकर रेखा चिल्लाते हुए घर के चौक में आई। चेतनकुमार ने देखा कि रेखा की हालत बहुत खराब है और उसके शरीर पर जलने के निशान हैं। रेखा ने चाचा से अनुरोध किया कि वह उसे यहां से ले जाएं अन्यथा उसे मार दिया जाएगा।
अस्पताल में भर्ती करवाया
पीहर वाले रेखा को ससुराल से घर लाए और उसे राजकीय चिकित्सालय में भर्ती करवाया। रेखा के पिता ने शहर कोतवाली थाने में दहेज प्रताडना व मारपीट का मामला भी दर्ज कराया है। पुलिस ने आरोपी ससुर नथमल व पति रविन्द्रकुमार को गिरफ्तार कर लिया है।
जांच की जा रही है
आरोपी ससुर व पति को गिरफ्तार किया गया है। मामले की जांच सब-इंस्पेक्टर निरंजनप्रतापसिंह को सौंपी गई है।
बुधाराम विश्नोई, शहर कोतवाल बाडमेर

बाडमेर जसवंतपुरा (जालोर)। जालोर एसीबी टीम ने मंगलवार को कस्बे स्थित एमजीबी बैंक के मैनेजर को दो हजार रूपए की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकडा। मैनेजर ने यह रकम पुराने ऋण के मामले को सस्ते में निपटाने की एवज में मांगी थी।
एसीबी के पुलिस उप अधीक्षक तुलछाराम ने बताया कि डोरडा निवासी हकमाराम ने एमजीबी बैंक से करीब पांच साल पहले 95 हजार रूपए का ऋण लिया था। इसकी किश्तें समय पर अदा नहीं करने पर बैंक की ओर से उसे नोटिस जारी किया गया था। इस पर उसने बैंक मैनेजर पेपसिंह से इस बारे में सम्पर्क किया।
इस पर उन्होंने दो हजार रूपए की मांग करते हुए मामला सस्ते में निपटाने तथा भविष्य में नोटिस नहीं देने की बात कही। इसके बाद हकमाराम ने इसकी शिकायत जालोर एसीबी चौकी में कर दी। एसीबी की ओर से शिकायत का सत्यापन किया गया। इसके बाद योजना के तहत मंगलवार को साढे ग्यारह बजे हकमाराम दो हजार रूपए लेकर बैंक गया तथा मैनेजर को दे दिए। इशारा पाते ही एसीबी टीम ने बैंक मैनेजर के कब्जे से राशि बरामद कर उन्हें रंगे हाथों पकड लिया। इधर, बैंक मैनेजर का कहना है कि हकमाराम ने जबरदस्ती उसकी जेब में रूपए डाले हैं।
नहर में डूबने से दो भाइयों की मौत
बाडमेर। थाना क्षेत्र के धनेरिया की सरहद में नर्मदा मुख्य नहर पर पांव फिसलने पर नहर में डूबने से दो सगे भाइयों की मौत हो गई। धनेरिया निवासी कृष्णकुमार(22) व प्रहलादराम (20) पुत्र नरींगाराम रेबारी शाम को करीब साढे पांच बजे घर से नहर पर पानी का पाइप भरने आए थे। पाइप में पानी भरते समय एक भाई का पैर फिसलने से वह नहर में डूबने लगा।
उसके चिल्लाने पर दूसरे भाई ने उसको बचाने के लिए अपना हाथ बढाया। लेकिन वह भी नहर में गिर गया। नहर में पानी अघिक होने से दोनो भाई नहर में डूब गए। आस-पास के लोगों के हल्ला मचाने पर गांव के काफी लोग नहर पर इकटे हो गए। बाद में गांव के तैराकों ने रस्सी की सहायता से करीब डेढ घंटे की मशक्कत के बाद उनके शव बाहर निकाले। सूचना मिलने पर थानाप्रभारी सहदेव चौधरी व 108 एम्बुलेंस भी मौके पर पहुंची।
अलग-अलग हादसों में दो मरे
बाडमेर चौहटन कस्बे से एक किलोमीटर दूर स्थित धर्मपुरीजी के मंदिर में मंगलवार को एक निजी बस बेकाबू होकर दीवार तोडकर अन्दर घुस गई। मन्दिर के पुजारी व उसका पुत्र गंभीर रूप से घायल हो गए। पुजारी ने उपचार के लिए जोधपुर ले जाते समय रास्ते में दम तोड दिया। पुलिस के अनुसार चौहटन से मिठडाऊ जा रही एक निजी बस बेकाबू होकर धर्मपुरीजी के मंदिर में घुस गई।
इससे मçन्इर में सो रहे पुजारी रमेश (55)पुत्र मेहराराम व पुजारी का सत्ताइस वर्षीय पुत्र अशोक घायल हो गए। यहां से पुजारी को चौहटन में प्राथमिक उपचार के बाद जोधपुर रैफर किया गया। रास्ते में पचपदरा के पास उनका निधन हो गया। वहीं घायल युवक अशोक का बाडमेर में उपचार चल रहा है। पुलिस ने मामला दर्ज करते हुए बस को कब्जे में ले लिया जबकि चालक रतनसिंह पुत्र चतरसिंह निवासी चौहटन मौके से फरार हो गया। पुलिस थाने में इस आशय का मामला कमलेश पुत्र जयरामदास ने दर्ज करवाया।
सिणधरी.भूंका भगतसिंह गांव में बस स्टेण्ड के पास मोटर साइकिल के पास खडे एक जने को सोमवार शाम एक ट्रक ने चपेट में लिया जिससे उसकी मौके पर ही मृत्यु हो गई। पुलिस के मुताबिक मानाराम (45) पुत्र पूनमाराम निवासी भूंका भगतसिंह मेगा हाइवे के किनारे स्वयं की मोटर साइकिल लेकर बस स्टेण्ड के पास खडा था। इतने में बालोतरा की ओर से तेज गति से आ रहे ट्रक ने मानाराम को चपेट में ले लिया जिससे उसकी मौके पर ही मृत्यु हो गई। ट्रक चालक सांवलाराम पुत्र वेलाराम निवासी गांधव के खिलाफ मामला दर्ज किया।

शनिवार, 29 मई 2010

बारमेर न्यूज़ track


इस्लाम धर्म में फतवा
"-इस्लाम धर्म में फतवा उस सलाह अथवा दिशा निर्देश को कहा जाता है जोकि कथित रूप से इस्लामी शरिया तथा इस्लामी कायदे-कानून को मद्देनजर रखते हुए इस्लाम धर्म के किसी विद्वान द्वारा जारी किया जाता है। आमतौर पर फतवा जारी करने का अधिकार मुंफ्ती का पद रखने वाले मुस्लिम विद्वान को ही होता है। जबकि कई इस्लामिक संस्थाओं ने मुस्लिम विद्वानों की फतवा जारी करने वाली एक समिति भी गठित कर रखी है। फतवा के विषय में एक बात और स्पष्ट हो जानी चाहिए कि किसी मुफ्ती या विद्वान द्वारा जारी किया गया कोई भी फतवा मात्र दिशा निर्देश अथवा सलाह की हैसियत ही रखता है इस्लामी आदेश अथवा अध्यादेश की हरगिज नहीं। किसी फतवे की अनुपालना करना या न करना भी किसी संबंधित व्यक्ति अथवा आम मुसलमान की अपनी मर्जी तथा विवेक पर निर्भर करता है। फतवे का पालन करना बाध्यता हरगिज नहीं होती। इस्लामी धर्मगुरुओं द्वारा समय-समय पर विभिन्न सामाजिक सरोकारों से संबंधित फतवे जारी किए जाते रहे हैं। इनमें आर्थिक मामलों के संबंध में, शादी-ब्याह, महिलाओं संबंधी, नैतिकता से संबंधित तथा धार्मिक कार्यकलापों आदि से संबंधित फतवे शामिल हैं।अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सर्वप्रथम फतवा संबंधी विवाद उस समय चर्चा का विषय बना जबकि ईरान की धार्मिक क्रांति के नेता तथा शिया समुदाय के सर्वप्रमुख धार्मिक विद्वान आयतुल्ला रुहल्ला खुमैनी ने 1989 में लेखक सलमान रुश्दी के विरुद्ध मौत का फतवा जारी किया था। सलमान रश्दी पर आरोप था कि उन्होंने अपनी विवादित पुस्तक द सेटेनिक वर्सेस में इस्लाम धर्म के प्रवर्तक हारत मोहम्मद के विरुद्ध अपमानजनक टिप्पणी की है। इस फतवे ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आम लोगों को फतवे के विषय में बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर कर दिया था। अभी कुछ वर्ष पूर्व बंगलादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन के विरुद्ध भी इसी प्रकार का फतवा जारी किया जा चुका है। यहां यह बताता चलूं कि इस्लाम धर्म में धार्मिक मामलों को लेकर बहस तथा आलोचना की कोई गुंजाईश नहीं है। इस्लाम धर्म इस विषय पर सहिष्णुता का कोई प्रदर्शन नहीं करना चाहता। इसीलिए ईश निंदा अथवा पैगंबरों के विरुद्ध किसी प्रकार की टीका-टिप्पणी करने वालों के विरुद्ध अक्सर ऐसे फतवे आते रहते हैं। अभी कुछ वर्ष पूर्व अफगानिस्तान में अब्दुल रहमान नामक एक मुस्लिम युवक द्वारा ईसाई धर्म स्वीकार कर लेने के चलते उसके विरुद्ध भी मौत का फरमान जारी कर दिया गया था। जिसे भारी अंतर्राष्ट्रीय दबाव के बाद बचाया जा सका। यहां यह कहना गलत नहीं होगा कि इस्लाम धर्म में इस प्रकार के मौत के फरमान जारी करने जैसे असहिष्णुतापूर्ण फतवे पूर्णतया मानव अधिकारों के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को प्राप्त होने वाली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे प्रमुख अधिकारों के विरुद्ध हैं।इस्लामी फतवे प्राय: विवादों से घिरे रहते हैं। उदाहरणतया नवंबर 2008 में मलेशिया में एक फतवा जारी किया गया जिसमें स्वास्थ संबंध योग क्रिया को हराम तथा प्रतिबंधित क़रार दिया गया। भारत में विश्व के सबसे बड़े इस्लामी केंद्र समझे जाने वाले दारुल उलूम देवबंद ने पिछले दिनों कुछ ऐसे फतवे जारी कर दिए जो मानवाधिकारों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन करते हैं। इनके फतवों के अंतर्गत मुस्लिम औरतों का सरकारी अथवा गैर सरकारी नौकरी पर जाना गैर इस्लामी बताया गया है। मुस्लिम औरतों को सलाह दी गई कि वे घर के अंदर ही रहें और यदि नौकरी अथवा किसी अन्य कार्य हेतु बाहर जाएं भी तो बुंर्का पहन कर ही जाएं। औरतों को गैर मर्दों के साथ बात करने के लिए भी मना किया गया है। ख़ुशबू, इत्र अथवा परफ्यूम महिलाओं को इस्तेमाल न करने की सलाह दी गई है। खनकती हुई चूड़ियां तथा पायल आदि पहनने को भी गैर इस्लामी बताया गया है। फतवे के अनुसार इन सब वस्तुओं के प्रयोग से मर्द औरतों की ओर आकर्षित होते हैं। मर्द व औरत की तुलना पैट्रोल तथा माचिस से की गई है जिनके एक होने पर सब कुछ भस्म हो जाने की संभावना तक व्यक्त की गई है। यहां तक कि औरत को बकरी की तरह रखे जाने की सलाह दी गई है। अर्थात् मर्द जहां जाए अपनी औरत को बकरी की तरह उसके गले में रस्सी डालकर ले जाए तथा यदि औरत को घर पर अकेला छोड़े भी तो उसे ताले में बंद कर जाए ताकि कोई ‘भेड़िया’ उस औरत तक न पहुंच पाए।भारत में प्रसिद्ध फिल्म स्टार सलमान ख़ान ने अपनी इच्छा तथा पारिवारिक रजामंदी के अनुसार हिंदु धर्म के देवता भगवान गणेश की पूजा अपने घर पर क्या आयोजित कर डाली कि तथाकथित मुस्लिम मुल्लाओं ने उनके विरुद्ध भी फतवा जारी कर दिया। एक और प्रमुख अभिनेता शाहरुख़ ख़ान के विरुद्ध भी इसी प्रकार का इस्लामी फतवा जारी हो चुका है। भारत में राष्ट्रभक्ति के गीत के रूप में गाए जाने वाले वंदेमात्रम के गाए जाने के विरुद्ध भी फतवा जारी किया जा चुका है। भारत के केरल राज्‍य में मुस्लिम मौलवियों द्वारा मुस्लिम महिलाओं को कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों के साथ विवाह न करने का फतवा भी जारी किया जा चुका है। संगीत सुनने, टी वी देखने तथा नाच गाने आदि के विरुद्ध भी कई बार फतवे आ चुके हैं। यहां तक कि क्रेडिट कार्ड रखने, कैमरायुक्त मोबाईल फोन को इस्तेमाल करने के विरुद्ध भी फतवे जारी हो चुके हैं। इस्लामी विद्वान बैंक में काम करने को भी गैर इस्लामी मानते हैं। इनके फतवे के अनुसार बीमा करना या कराना अथवा इस विभाग में नौकरी करना भी गैर इस्लामी है। क्योंकि इनके अनुसार यह व्यवस्था पूर्णतया ब्याज तथा जुए पर आधारित है।उपरोक्त सभी फतवे इस्लामी नजरिए के लिहाज से भले ही अपनी कोई अहमियत क्यों न रखते हों परंतु आज के सामजिक परिवेश में तथा वास्तविक जीवन में उपरोक्त सभी फतवे न केवल बेमानी और निरर्थक प्रतीत होते हैं बल्कि उपरोक्त सभी फतवे मानवाधिकारों तथा मानवीय मूल्यों का सरासर उल्लंघन करते हुए भी दिखाई पड़ते हैं। हां यदि यही फतवे संसार की तथा समाज की वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप हों तथा इनमें सामाजिक उत्थान निहित हो तो ऐसे फतवों का न केवल मुसलमानों द्वारा स्वागत किया जाता है बल्कि अन्य धर्मों के अनुयायी भी ऐसे सकारात्मक फतवों से प्रभावित होते हैं। ऐसे सकारात्मक फतवे जहां इस्लाम धर्म की छवि को सांफ-सुथरा तथा उज्‍जवल बनाते हैं वहीं इनसे मानवाधिकारों की रक्षा होती भी दिखाई देती है।उदाहरण के तौर पर 9 अगस्त 2005 को ईरान के धार्मिक नेता आयतुल्ला अली खमीनी ने एक फतवा जारी किया था जिसके अंतर्गत परमाणु हथियारों के उत्पादन, इसके भंडारण तथा इसके प्रयोग को गैर इस्लामी करार दिया गया था। इसी प्रकार मार्च 2004 में स्पेन के मुस्लिम विद्वानों द्वारा अलकायदा प्रमुख आतंकवादी ओसामा बिन लादेन तथा उसकी हिंसक गतिविधियों के विरुद्ध फतवा जारी किया गया। इसी प्रकार विश्व प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान डाक्टर ताहिर-उल-कादिरी ने इसी वर्ष मार्च 2010 में 600 पृष्ठों पर आधारित एक विस्तृत फतवा अथवा धार्मिक दिशा निर्देश जारी किया है। जिसमें न केवल ओसामा बिन लाडेन, अलक़ायदा तथा इनके द्वारा चलाई जा रही हिंसक गतिविधियों को गैर इस्लामी बताया गया है बल्कि इसी फतवे ने आत्मघाती बमों के रूप में प्रयोग में आने वाले मुस्लिम युवकों की इन अमानवीय हरकतों को भी पूरी तरह गैर इस्लामी व गैर इंसानी बताते हुए ख़ारिज किया गया है। डा. कादरी ने अपने इस विस्तृत फतवे में आतंकवादी ओसामा बिन लाडेन के उन एक-एक बिंदु का इस्लामी शरिया की रोशनी में अक्षरश: जवाब देकर यह प्रमाणित किया है कि लाडेन तथा उसकी प्रत्येक बात तथा जेहाद के नाम पर रचा जाने वाला उसका ढोंग सब कुछ किस तरह गैर इस्लामी व गैर इंसानी है। डा. कादरी ने अपने इस फतवे में आत्मघाती बने बैठे युवकों की उस सोच को भी ख़ारिज किया है जिसके अंतर्गत वे शहीद होने अथवा जन्नत में जाने की आस लगाए बैठे रहते हैं। इसी प्रकार पाकिस्तान में पिछले दिनों बिजली चोरी रोके जाने के संबंध में भी फतवा जारी किया गया है।इस्लामी फतवे के संबंध में एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि चूंकि इस्लाम धर्म में 73 अलग-अलग फिरके(वर्ग)हैं तथा प्रत्येक फिरके के लगभग तमाम अलग-अलगा दिशा निर्देश हैं। प्रत्येक वर्ग के अपने अलग-अलग मौलवी, मौलाना तथा मुंफ्ती जैसे अधिकारी भी होते हैं। अत: यह बात भी कोई जरूरी नहीं कि किसी एक मुस्लिम वर्ग के विद्वान द्वारा जारी किए गए किसी फतवे का पालन किसी दूसरे वर्ग का मुसलमान भी करे। अर्थात् प्रत्येक वर्ग का मौलवी केवल अपने ही वर्ग से संबंधित मुसलमानों को ही कोई दिशा निर्देश जारी करने का अधिकार रखता है। बहरहाल, फतवों के विषय में आम लोगों की नकारात्मक धारणा अथवा नकारात्मक छवि बदलने का जिम्मा उन कठमुल्लाओं पर जाता है जो आज के सामाजिक परिवेश के प्रति अपनी आंखें मूंद कर तथा कुंए के मेंढक बनकर बेतुके तथा मानवाधिकारों का हनन करने वाले फतवे जारी करते रहते हैं। आज के प्रगतिशील युग में न केवल इस्लाम बल्कि सभी धर्मों के धर्मगुरुओं की सोच वर्तमान सामाजिक परिवेश तथा वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप होनी चाहिए। ऐसे सकारात्मक फतवे निश्चित रूप से इस्लाम धर्म की छवि को बेहतर बनाने में कारगर सिद्ध होंगे

गुरुवार, 27 मई 2010

लाजवाब हैं बाड़मेर की मृण्कलाएं


लाजवाब हैं बाड़मेर की मृण्कलाएं

बाडमेर: सिंधु नदी और लूणी नदी के मध्य स्थित बाड़मेर का थार क्षेत्र मृण्कलाओं के वैविध्य का प्रमुख केन्द्र रहा है। नदी के पेटे मगरे की जमीन पर तैयार खेत, तालाबों और थार की धरा के बीच के तालरों की मिट्टी मृण्कलाओं का प्राण रही है। मिट्टी को प्राणवान बनाने वाली जातियां- हिन्दू कुम्हार और मोयले कुम्हार ने क्षेत्र की मृण्कलाओं को एक खूबसूरत आयाम दिया है।मिट्टी-पानी से एक मेल होकर लोक रसकता की सृष्टि के सृजक इन कुम्हार शिल्पकारों ने मृण (मिट्टी) कला के कद्रदानों की कला पिपासा को शांत किया। गांव के गरीब से लेकर उच्च वर्ग के लोगों के लिए मृण यानि मिट्टी के बर्तनों की आवश्यकताओं को पूरा करते हुए इस क्षेत्र के मृण्‍कला सृजक अपनी श्रेष्ठता को कायम रखे हुए हैं। बाड़मेर जिले की मृण्कला में दैनिक आवश्यकताओं के कलात्मक बर्तन, मामाजी की मूर्तियां, पचपदरा तथा मोकलसर की मटकियां और परम्परागत शैली की पवाड की नलियां प्रमुख हैं।मुसलमानों में मोयला शैली में महज सोलह बर्तन ही बनाये जाते हैं। इन कलात्मक बर्तनों में प्रमुख रूप से मटकी, तबाक (परात), कड़ली (आटा रखने हेतु), करी (सुराई), दोझाणी (दूध दुहने के लिए), धांगी (रोटी पकाने के लिए), परोटी (दूध जमाने के लिए), कूपा, ओलचवी मटूरा, कुण्डजा कुलड़ी, ताणी, फलमा, गगरी, तसियां हैं। मोयला शैली में कलात्मक बर्तनों में मिट्टी की खुदाई कर कूट-कूट कर भिगो दिया जाता हैं। उसमें बाद में मिट्टी की गढ़े हुए मूरर बर्तनों को पकाने के लिए न्याव के कचरे के ऊपर बर्तनों को ठिकरियों से ढक कर रख दिया जाता है।