रविवार, 5 मई 2013

बंसल के मंत्री पद पर संकट की आहट

बंसल के मंत्री पद पर संकट की आहट

नई दिल्ली। 90 लाख के घूसखोरी कांड में संलिप्त भांजे विजय सिंगला की करतूतने "मामा" रेलमंत्री पवन कुमार बंसल की मुश्किल बढ़ा दी है। बंसल पर इस्तीफे का दबाव बढ़ गया है। हालांकि,शनिवार को बंसल की प्रधानमंत्री से हुई मुलाकात और देर शाम हुई कांग्रेस कोर ग्रुप की बैठक के बाद ये बात साफ हो गई कि सरकार फिलहाल इस्तीफे की बात को नजरंदाज करेगी। कर्नाटक में मतदान को देखते हुए पार्टी इस मामले में रविवार शाम तक कोई निर्णय ले सकती है।


सूत्रों के मुताबिक,सोनिया गांधी की मौजूदगी में करीब दो घंटे तक चली बैठक में ये तय हुआ कि जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती और सीधे-सीधे बंसल का नाम घूसकांड में नहीं आ जाता, तब तक उनका इस्तीफा लिया जाना उचित नहीं है। उधर, कांग्रेस में बंसल के इस्तीफे को लेकर एक राय नहीं है। आधिकारिक रूप से पार्टी ने उनके इस्तीफे की मांग को भले ही खारिज कर दिया है। लेकिन कुछ नेताओं का मानना है कि बंसल को फिलहाल इस्तीफा दे देना चाहिए और जांच में बेदाग साबित होने पर उन्हें फिर से मंत्री पद दे दिया जाए।


इस्तीफा क्यों नहीं?

इधर,घूसकांड में बंसल को घेरते हुए भाजपा ने सरकार से पूछा कि रेलमंत्री का इस्तीफा क्यों नहीं लिया जाए? भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि रेलवे बोर्ड में किसी सदस्य की नियुक्ति और उसके प्रमोशन पर अंतिम मुहर रेलमंत्री लगाते हैं। ऊपर से मामले में सीधे तौर पर शामिल बंसल के भांजे सीबीआई गिरफ्त में हैं। इतने तथ्य स्पष्ट हैं तो फिर बंसल से इस्तीफा क्यों नहीं लिया जा रहा?

शरद यादव ने किया बंसल का बचाव

इस बीच, जदयू अध्यक्ष और राजग संयोजक शरद यादव ने नाटकीय मोड़ दिखाते हुए रेल मंत्री पवन कुमार बंसल का बचाव किया है। यादव ने कहा कि रिश्वत रेल मंत्री के भांजे ने लिया है, रेल मंत्री ने नहीं। मामले की सीबीआई जांच कर रही है। मैं बंसलजी को जानता हूं। वे ईमानदार व्यक्ति हैं और उनके इस्तीफे की मांग करना बेतुका है।

मेरा लेना-देना नहीं: बंसल

उधर,मुद्दे पर शुक्रवार रात तक चुप्पी साधे रहे बंसल ने शनिवार को सुबह सफाई पेश की। उन्होंने कहा कि मेरा मामले से कोई लेना-देना नहीं है। कोई रिश्तेदार मेरे कामकाज में दखल नहीं दे सकता और न ही मेरे फैसलों को प्रभावित कर सकता है। वहीं, जद-यू अध्यक्ष शरद यादव बंसल के बचाव में आए हैं। उन्होंने शनिवार को कहा कि रिश्वत रेलमंत्री के भांजे ने ली है, रेल मंत्री ने नहीं। मैं बंसल को जानता हूं। वे ईमानदार हैं। कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि बंसल इस्तीफा नहीं देंगे।


दो करोड़ पहले ही लिए

इस बीच, शनिवार को सीबीआई ने मामले से जुड़ी रिपोर्ट दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में पेश की। जांच एजेंसी ने कोर्ट को बताया कि सिंगला डील के 2 करोड़ रूपए पहले ही मुकेश से ले चुके हैं।


भांजे की...

प्रमोशन कराने के लिए मुकेश और सिंगला में पांच करोड़ की डील हुई थी। 90 लाख की रकम उसी डील का हिस्सा है। कोर्ट ने सिंघला समेत चार अन्य को चार दिन की सीबीआई रिमांड पर भेज दिया। मामले में जांच एजेंसी ने छह लोगों को गिरफ्तार और आठ पर केस दर्ज किया है।


ये है मामला

शुक्रवार को सीबीआई ने सिंगला को चंडीगढ़ स्थित उनके घर से 90 लाख की घूस लेते गिरफ्तार किया था। ये घूस उन्हें रेलवे बोर्ड में सदस्य बने मुकेश कुमार ने प्रमोशन कराने के लिए भेजी थी। मुकेश इलेक्ट्रिक बोर्ड में नियुक्ति चाहते थे,जिसके लिए उन्होंने सिंगला से पांच करोड़ रू. रिश्वत देने की डील की थी।


सीबीआई कर सकती है पूछताछ

माना जा रहा है कि इस मामले में सीधे तौर पर यदि रेल मंत्रालय की संलिप्तता सामने आती है,तो सीबीआई रेल मंत्री बंसल से पूछताछ कर सकती है। हालांकि मामले में बंसल का नाम अब तक नहीं आया है। सीबीआई ने इस मामले में गिरफ्तार चार आरोपियों की दिल्ली की एक स्थानीय अदालत से पुलिस रिमांड और मुम्बई की एक विशेष अदालत से महेश कुमार की ट्रांजिट रिमांड हासिल करने के बाद अपनी सूचना रिपोर्ट रेल मंत्रालय को देर शाम भेजी जिसके बाद मंत्रालय ने रेलवे बोर्ड के सदस्य (स्टाफ) महेश कुमार को सस्पेंड कर दिया।


मामा-भांजे की जोड़ी - बंसल का विश्वस्त है सिंगला

सिंगला पेशे से बिजनेसमैन हैं और उनका रेलवे बोर्ड से कोई लेना-देना नहीं है। बावजूद इसके वे बोर्ड में मुकेश का प्रमोशन कराना चाहते थे। सिंगला बंसल की बहन के बेटे हैं और उनके बेहद विश्वस्त माने जाते हैं। वे ही चंडीगढ़ से सांसद बंसल का सारा कामकाज संभालते हैं। सिंगला ने हाल ही में आवासीय योजना के लिए डेरा बासी में 100 एकड़ जमीन खरीदी है।

भारतीय छात्र ने जीता पुरस्कार

भारतीय छात्र ने जीता पुरस्कार

न्यूयॉर्क। भारतीय मूल के एक अमेरिकी छात्र ने अमेरिका के एक विश्वविद्यालय में उद्यमशीलता में बदलाव और उत्कृष्ट शिक्षण के पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्हें एक वार्षिक समारोह में एक कंपनी की सह-संस्थापना के लिए यह पुरस्कार दिया गया। कंपनी ऎसा उपकरण बनाती है जो कि पानी में बैक्टिीरिया का पता लगा सकती है।


समाचार पत्र "कॉलेज टाइम्स" में शुक्रवार को प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार एरिजोना विश्वविद्यालय (एएसयू) के छात्र निसर्ग पटेल को "हाइड्रोजीन बॉयोटेक्नोलॉजीस" कंपनी की सह-संस्थापना के लिए वार्षिक "पिचफॉर्क-अवाड्र्स" समारोह में सम्मानित किया गया। पटेल के मुताबिक उनका समूह "बॉयोसेंसर्स" बनाता है जो पानी में बैक्टिीरिया का पता लगा सकता है।


समाचार पत्र के अनुसार,""उन्होंने चीनी के क्यूब की शक्ल में उसका निर्माण किया है जो पानी में घुल जाता है। इसके बाद पानी में अगर बैक्टीरिया है तो उसे प्रोटीन घेर लेती है। ऎसे में पानी का रंग लाला हो जाता है,जो इस बात की चेतावनी है कि पानी को न पिया जाए।"" इस प्रौद्योगिकी का विचार तब आया जब पटेल के साथ प्रयोगशाला में काम करने वाले एक मित्र ग्वाटेमाला गए और उन्होंने देखा कि बच्चे ऎसा पानी पी लेते हैं जो बस दिखने में साफ लगे।

दनकौर में है भारत का एकमात्र द्रोणाचार्य मंदिर!



भारत ऐतिहासिक धरोहरों का देश रहा है। हर राज्य में किसी न किसी युग की प्राचीन धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत समाई हुई है। ऐसा ही एक धार्मिक आस्था का केन्द्र है दनकौर। मान्यता है कि पूरे भारत में एक मात्र दनकौर में ही कौरव और पांडवों के गुरू रहे द्रोणाचार्य का मंदिर है। देश-विदेश से लोग इस मंदिर में आते हैं। इस मंदिर की खासियतों के बारे में बता रहै हैं विवेक कुमारः

पहले दनकौर था द्रोणकौरः दनकौर के नामकरण की सार्थकता के संबंध में लोग बताते हैं कि इस स्थान का नाम प्राचीन काल में द्रोणकौर था। जो कि समय बीतने के साथ-साथ दनकौर हो गया। मंदिर के पुजारी विजय शर्मा ने बताया कि मान्यता है कि एकलव्य ने इसी स्थान पर गुरू द्रोणाचार्य की प्रतिमा बनाकर महाभारत काल में धनुर्विद्या का कुशल अभ्यास किया था। गुरू द्रोणचार्य द्वारा शिक्षा-दीक्षा न दिए जाने पर भी एकलव्य ने अपनी आस्था के कारण गुरू द्रोण को अपना गुरू स्वीकार कर लिया था। यहीं पर गुरू द्रोणाचार्य ने अर्जुन के समक्ष एकलव्य से अपनी गुरू दक्षिणा में उसके दाहिने हाथ का अंगूठा मांगा था। एकलव्य ने जिस स्थान पर गुरू द्रोणाचार्य की मूर्ति प्रतिष्ठित की थी उस जगह पर आज भी गुरू द्रोणाचार्य का विशाल मंदिर बना हुआ है।

अनोखा तालाबः मंदिर के पास एक विशाल तालाब है, जिसे द्रोणाचार्य तालाब के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि यह तालाब भी एकलव्य के समय से मौजूद है। बताया जाता है कि अगर इस पूरे तालाब को पानी से भर दिया जाये तो डेढ़ या दो घंटे में ही यह तालाब खाली हो जाता है। कहा जाता है कि अंग्रेजी शासकों ने इस तालाब का बखूबी परीक्षण किया था, लेकिन वे भी इस विशेषता को बाबा द्रोणाचार्य का चमत्कार मानने पर मजबूर हो गए थे।



बाढ़ का पानी भी नहीं पहुंच पाता था मंदिर तकः दनकौर के रहने वाले गुड्डू पंडित बताते हैं कि 30 साल पहले जब यमुना में बाढ़ आ जाती थी तो पूरा कस्बा पानी से लबालब हो जाता था। लेकिन द्रोणाचार्य तालाब का स्तर सामान्य आबादी से नीचा था इसलिए बाढ़ का सारा पानी इस तालाब के माध्यम से सूख जाता था। आस्था है कि गुरू द्रोणाचार्य का आशीर्वाद हमेशा ही इस नगर पर रहा है।

रविवार को होती है विशेष पूजाः मंदिर प्रांगण में बांके बिहारी, राधा कृष्ण, महादेव शंकर, हनुमान, शिव दरबार व राम दरबार सहित अनेक देवी देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर भी बने हुए हैं। इस मंदिर में रविवार को सुबह से ही भारी भीड़ जुटनी शुरू हो जाती है। बताया जाता है कि यहां रविवार का विशेष महत्व है। इस दिन गुरू द्रोण की विशेष पूजा होती है।

पर्यटन स्थल घोषित करने की मांगः द्रोणाचार्य मंदिर के कारण इसे पर्यटन स्थल घोषित किए जाने की मांगकई बार शासन से की जा चुकी है , लेकिन इस पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। श्री द्रोण पर्यटन संघर्ष समिति केपदाधिकारियों का कहना है कि दनकौर की आबादी 3 लाख के करीब है , किंतु इस कस्बे को अभी तक तहसील कादर्जा भी नहीं मिल सका है।









जयपुर के डॉक्टर की सर्जरी गिनीज बुक में



जयपुर। 23 साल की एक लड़की जब पेट दर्द की शिकायत लेकर डॉक्टर के पास पहुंची तो किसी को नहीं पता था कि उसका इलाज कर डॉक्टर गिनीज वल्र्ड रिकॉर्ड बुक में शुमार हो जाएंगे। दरअसल, इस युवती(मेनका) के पित्ताशय में 20-25 स्टोन्स(पथरी) मिले और जब इलाज के दौरान उसका पित्ताशय निकाला गया तो वह दुनिया का सबसे बड़ा(25.8 सेंटीमीटर) पित्ताशय निकला। इसे अब गिनीज वल्र्ड रिकॉर्ड में शामिल कर प्रमाणित कर दिया गया है।

राजस्थान के सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर और लेप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ.जीवन कांकरिया ने यह ऑपरेशन पिछले साल 29 नवम्बर को किया था। ऑपरेशन के बाद पित्ताशय का आश्चर्यजनक आकार देखकर डॉ.कांकरिया ने गिनीज वल्र्ड रिकॉर्ड लिमिटेड से सम्पर्क किया। इसके बाद फरवरी और मार्च में गिनीज वल्र्ड रिकॉर्ड की टीमें जयपुर पहुंची और मामले की तथ्यात्मक जांच-पड़ताल की। इसमें खरा पाए जाने पर करीब 5 महीने बाद ऑपरेशन के बाद मेनका के पेट से बाहर निकाले गए पित्ताशय को विश्व का सबसे बड़े पित्ताशय करार देते हुए इसे वल्र्ड रिकॉर्ड में शामिल कर लिया।


ऑपरेशन और परिस्थितियां भी अनूठी


इस ऑपरेशन के बाद गिनीज वल्र्ड रिकॉर्ड में शामिल हुए डॉ.कांकारिया ने पत्रिका डॉट कॉम से बातचीत में बताया कि महज पित्ताशय ही नहीं इस मामले में ऑपरेशन और परिस्थितियां भी अनूठी थी। दरअसल,25.8 एमएम बड़े इस पित्ताशय को महज 1.2 सेंटीमीटर का चीरा लगाकर दूरबीन की सहायता से बाहर निकाला गया था। इतने बड़े पित्ताशय को इतने से चिरे से बाहर निकालना आम नहीं है। यही नहीं पित्ताशय की शरीर में मौजूदगी भी कुछ हटकर थी। डॉक्टर ने बताया कि मोनिका का पित्ताशय असामान्यतौर पर बांयी ओर से शुरू होकर कुंडलीनुमा बनकर दांयी ओर पित्त वाहिनी से जुड़ा हुआ था। ऎसी स्थिति करीब 10 लाख लोगों में से एक के शरीर में पाई जाती है।


टूट गया पाकिस्तान का रिकॉर्ड


डॉक्टर कांकरिया ने बताया कि सबसे बड़े पित्ताशय का वल्र्ड रिकॉर्ड अब तक पाकिस्तान के डॉक्टर मोहम्मद नईम ताज के नाम था। उन्होंने 14 जून 2011 में एक ओपन सर्जरी में तब तक का सबसे बड़ा पित्ताशय(25 सेंटीमीटर) निकला था। लेकिन अब यह रिकॉर्ड टूट गया है। जयपुर में 29 नवम्बर2012 को हुए ऑपरेशन में इससे 8 सेंटीमीटर लम्बा पित्ताशय निकला है।


उल्लेखनीय है कि इस रिकॉर्ड से पूर्व भी जयपुर के नाम गिनीज बुक में कई वल्र्ड रिकॉर्ड दर्ज हैं। इनमें गोविंद देवजी का सत्संग भवन गिनीज वल्र्ड रिकॉर्ड में शामिल है। यह आठ कॉलम पर खड़े इस भवन की 119 फुट लंब्ाी छत बिना खंभे के है। डिजाइनर अमित पाबूवाल भी गिनीज वल्र्ड रिकॉडधारी हैं उनके पास सबसे बड़ी और भारी स्पोट्र्स ट्रॉफी बनाने का रिकॉर्ड है। साथ ही जयपुर फुट के सह आविष्कारक पीके सेठी को भी ऎसे ही रिकॉर्ड के धनी रहे। उन्हें सबसे अधिक लोगों को फिर से चलने लायक बनाने का रिकॉर्ड प्राप्त था।

राजस्थान का दिल जोधपुर



आज हम आपको राजस्थान के दूसरे बड़े शहर जोधपुर लेकर चलते हैं। राजस्थान की राजधानीजयपुर के बाद सर्वाधिक चहल-पहल वाला शहर है जोधपुर। 1459 में राठौड़ वंश के प्रमुख राव जोधा ने जोधपुर की स्थापना की। राजस्थान के बीचोंबीच होने से इस शहर को राजस्थान का दिल भी कहते हैं।

राठौड़ वंश के मुगलों के साथ अच्छे संबंध थे। महाराजा जसवंतसिंह (1678) ने शाहजहाँ को सम्राट के सत्तायुद्ध में मदद की थी। औरंगजेब के काल में मुगलों के साथ इनके संबंध बिगड़ गए। औरंगजेब की मृत्यु के बाद महाराजा अजीतसिंह ने मुगलों को अजमेर से खदेड़ दिया। महाराजा उमेदसिंह के काल में जोधपुर एक आधुनिक शहर के रूप में विकसित हुआ। मध्ययुगीन काल से जोधपुर के शाही परिवारों का पारंपरिक खेल पोलो रहा है। जोधपुर में थलसेना और वायुसेना की बड़ी छावनी है।

प्रमुख पर्यटन स्थल

उमेद भवन पैलेस : महराजा उमेदसिंह (1929-1942) ने उमेद भवन पैलेस बनवाया था। यह महल छित्तर महल के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह महल वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है। हाथ से तराशे गए पत्थरों के टुक़डे अनोखे ढंग से एक-दूसरे पर टिकाए गए हैं। इनमें दूसरा कोई पदार्थ नहीं भरा गया है। महल के एक हिस्से में होटल और दूसरे में संग्रहालय है, जिसमें आधुनिक हवाई जहाज, शस्त्र, पुरानी घड़ियाँ, कीमती क्रॉकरी तथा शिकार किए जानवर रखे गए हैं।

मेहरानगढ़ किला : 150 मीटर ऊँचे टीले पर स्थित मेहरानगढ़ किला राजस्थान का बेहतरीन और अजेय किला है। राव जोधा ने 1459 में इसका निर्माण किया, लेकिन समय-समय पर शासकों ने उसमें बढ़ोतरी की। शहर से 5 किमी दूर घुमावदार रास्ते से किले में प्रवेश किया जा सकता है।

जयपुर की सेना के दागे तोपगोलों के निशान आज भी दिखाई देते हैं। बाईं ओर किरतसिंह सोड़ा नामक सिपाही की छतरी है, जिसने आमेर की सेना के खिलाफ लड़ते हुए प्राण त्याग दिए थे। विजय द्वार महाराजा अजीतसिंह ने मुगलों को मात देने की स्मृति में बनवाया था।

यहाँ फूल महल, झाँकी महल भी दर्शनीय है। किले से नीचे जाते हुए महाराजा जसवंतसिंह द्वितीय की संगमरमर की छतरी है। यहाँ तक जाने का रास्ता पथरीले टीलों से होकर गुजरता है।