पितृपक्ष के दौरान वैदिक परंपरा के अनुसार ब्रह्म वैवर्त पुराण में यह निर्देश है कि इस संसार में आकर जो सद्गृहस्थ अपने पितरों को श्रद्धा पूर्वक पितृपक्ष के दौरान पिंडदान, तिलांजलि और ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं उनको इस जीवन में सभी सांसारिक सुख और भोग प्राप्त होते हैं। शास्त्रों में मनुष्यों पर तीन प्रकार के ऋण कहे गए हैं – देव ऋण ,ऋषि ऋण एवम पितृ ऋण। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पितरों की तृप्ति के लिए उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करके पितृ ऋण को उतारा जाता है। श्राद्ध में तर्पण ,ब्राह्मण भोजन एवं दान का विधान है।
द्वादशी श्राद्ध महत्व: इस तिथि को परिवार के उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है जिन्होंने संयास लिया हो। इस दिन पितृगणों के अलावा साधुओं व संयासियों का भी श्राद्ध किया जाता है। यह श्राद्ध मूलतः उन पितृगणों के निमित किया जाता है जिन्होनें अपने जीवन में सन्यास का मार्ग धारण किया हो अथवा जो सन्यास आश्रम की ओर अग्रसर हुए हों। श्राद्धकर्ता द्वारा पितृगणों के निमित द्वादशी तिथि का श्राद्ध करने से राष्ट्र का कल्याण होता है तथा प्रचुर अन्न की प्राप्ति होती है।
द्वादशी श्राद्ध का ज्योतिषीय कर्क: आज शनिवार दिनांक 20.09.14 है। आज चंद्रमा कर्क राशि में गोचर कर रहे हैं तथा पुष्य नक्षत्र में रहेंगे। आज राहुकाल सुबह 09:00 बजे से सुबह 10:30 बजे तक। आज यमगंडक काल दिन में 01:30 बजे से शाम 03:00 बजे तक है। राहुकाल और यमगंडक काल में श्राद्धकर्म और तर्पण वर्जित है। अतः दोपहर 12:00 बजे से दोपहर 1:30 बजे के बीच गज छाया में ही तर्पण और पिंडदान करें। अतः द्वादशी तिथि का श्राद्ध कर्म शनिवार दिनांक 20.09.14 को शनि के नक्षत्र पुष्य में मनाया जाएगा।
द्वादशी तिथि का श्राद्ध कर्म: शास्त्रों के अनुसार द्वादशी तिथि के श्राद्धकर्म में सात ब्राह्मणों को भोजन कराने का विधान है। सर्वप्रथम नित्यकर्म से निवृत होकर घर की दक्षिण दिशा में सफेद वस्त्र बिछाएं। पितृगण के चित्र अथवा प्रतीक हरे वस्त्र पर स्थापित करें। पितृगण के निमित, तिल के तेल का दीपक जलाएं, सुगंधित धूप करें, जल में चंदन और तिल मिलाकर तर्पण करें। चंदन और तुलसी पत्र समर्पित करें। कुशासन पर बैठाकर भागवत गीता के बारहवें अध्याय का पाठ करें। इसके उपरांत ब्राह्मणों को मखाने की खीर, पूड़ी, सब्जी, साबूदाने से बने पकवान, लौंग-ईलायची तथा मिश्री अर्पित करें। भोजन के बाद सभी को यथाशक्ति वस्त्र, धन दक्षिणा देकर उनको विदा करने से पूर्व आशीर्वाद लें।
द्वादशी श्राद्ध महत्व: इस तिथि को परिवार के उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है जिन्होंने संयास लिया हो। इस दिन पितृगणों के अलावा साधुओं व संयासियों का भी श्राद्ध किया जाता है। यह श्राद्ध मूलतः उन पितृगणों के निमित किया जाता है जिन्होनें अपने जीवन में सन्यास का मार्ग धारण किया हो अथवा जो सन्यास आश्रम की ओर अग्रसर हुए हों। श्राद्धकर्ता द्वारा पितृगणों के निमित द्वादशी तिथि का श्राद्ध करने से राष्ट्र का कल्याण होता है तथा प्रचुर अन्न की प्राप्ति होती है।
द्वादशी श्राद्ध का ज्योतिषीय कर्क: आज शनिवार दिनांक 20.09.14 है। आज चंद्रमा कर्क राशि में गोचर कर रहे हैं तथा पुष्य नक्षत्र में रहेंगे। आज राहुकाल सुबह 09:00 बजे से सुबह 10:30 बजे तक। आज यमगंडक काल दिन में 01:30 बजे से शाम 03:00 बजे तक है। राहुकाल और यमगंडक काल में श्राद्धकर्म और तर्पण वर्जित है। अतः दोपहर 12:00 बजे से दोपहर 1:30 बजे के बीच गज छाया में ही तर्पण और पिंडदान करें। अतः द्वादशी तिथि का श्राद्ध कर्म शनिवार दिनांक 20.09.14 को शनि के नक्षत्र पुष्य में मनाया जाएगा।
द्वादशी तिथि का श्राद्ध कर्म: शास्त्रों के अनुसार द्वादशी तिथि के श्राद्धकर्म में सात ब्राह्मणों को भोजन कराने का विधान है। सर्वप्रथम नित्यकर्म से निवृत होकर घर की दक्षिण दिशा में सफेद वस्त्र बिछाएं। पितृगण के चित्र अथवा प्रतीक हरे वस्त्र पर स्थापित करें। पितृगण के निमित, तिल के तेल का दीपक जलाएं, सुगंधित धूप करें, जल में चंदन और तिल मिलाकर तर्पण करें। चंदन और तुलसी पत्र समर्पित करें। कुशासन पर बैठाकर भागवत गीता के बारहवें अध्याय का पाठ करें। इसके उपरांत ब्राह्मणों को मखाने की खीर, पूड़ी, सब्जी, साबूदाने से बने पकवान, लौंग-ईलायची तथा मिश्री अर्पित करें। भोजन के बाद सभी को यथाशक्ति वस्त्र, धन दक्षिणा देकर उनको विदा करने से पूर्व आशीर्वाद लें।