गुरुवार, 13 मई 2010

BARMER NEWS TRACK



बाडमेर। बाडमेर शहर में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या पंद्रह पर शहीद चौराहे के पास बुधवार दोपहर एक ह्वदयविदारक हादसा हुआ। मां की आंखों के सामने ही उसके आठ वर्षीय मासूम लाडले को ट्रक ने कुचल डाला। जिससे उसकी तत्काल मृत्यु हो गई, लेकिन अभागी मां ने उसे जिंदा समझकर बीच सडक से उठाया और वह करीब दो-ढाई सौ मीटर की दूरी तक तेज गति से दौडती हुई अपने ही परिवार के सदस्य की दुकान पर पहुंची और कलेजा कंपा देने वाली चीत्कारों के बीच मासूम को तत्काल अस्पताल ले जाने को कहा। बेटे को लेकर दौडती हुई मां को जिसने भी देखा, उसकी आंखें फटी रह गईप्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार शहीद चौराहे से करीब दो ढाई सौ मीटर दूर बी एन सी चौराहे की तरफ सडक किनारे एक टैक्सी रूकी, जिसमें से तीन-चार महिलाएं व एक बालक उतरे। इन्हें हाइवे क्रॉस कर बलदेवनगर स्थित अपने घर जाना था। आठ वर्षीय बालक सुमेर (8) पुत्र सुजानसिंह निवासी बलदेवनगर टैक्सी से उतरकर सीधा ही हाइवे के बीच डिवाइडर पर चला गया। महिलाएं सडक किनारे ही रही। इस दौरान शहीद चौराहे की तरफ से एक ट्रक आया, जिसकी टक्कर से डिवाइडर पर खडा सडक पर गिर गया।ट्रक चालक ने बे्रक लगाए, तब तक बालक ट्रक के बीच में आ गया। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक बालक ट्रक के नीचे सुरक्षित था, लेकिन ट्रक चालक को लगा कि बालक कुचला जा चुका है। भयभीत ट्रक चालक ने ट्रक को तेजी से गियर में डाला और रवाना कर दिया, जिससे बालक ट्रक के पिछले टायर के नीचे आ गया और ट्रक उसके ऊपर से गुजर गया। ट्रक चालक ट्रक लेकर फरार हो गया। बालक की अंतडियां बाहर आ गई और उसकी मृत्यु हो गई। मां की ममता को नहीं दिखी मौत ट्रक के गुजरने के तत्काल बाद जोर-जोर से चीखती हुई एक महिला मासूम के शव के पास पहुंची और उसे उठाकर सीने से लगाया। यह अभागी महिला सुमेर की मां थी। पलक झपकते ही यह मां अपने बेटे को लेकर शहीद चौराहे की ओर दौड पडी। करीब दो ढाई सौ मीटर तक तेज गति से दौडती हुई महिला चौराहे पर पहुंची। यहां उसके परिवार की एक दुकान है। दुकान पर खडे परिवार के सदस्य को मां ने अपना बेटा सुुपुर्द किया और उसे तत्काल अस्पताल ले जाने को कहा। अभागी मां बेटे को अभी भी जिंदा समझ रही थी। यहां पर महिला गिर पडी। बाद में उसे घर ले जाया गया और बालक के शव को मोर्चरी भिजवाया गया। हाइवे जाम कियाहादसे में बालक की दर्दनाक मौत के बाद आक्रोशित भीड ने राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या पंद्रह पर जाम लगा दिया। भीड ने हाइवे पर टायर जलाकर गुस्सा प्रकट किया। करीब एक घण्टे तक यातायात अवरूद्ध रहने के बाद पुलिस ने समझाइश कर जाम खुलवाया। शहीद चौराहे से करीब दो सौ मीटर की दूरी पर बी एन सी चौराहे की तरफ दोपहर करीब सवा दो बजे यह हादसा हुआ। हादसा होते ही ट्रक चालक ट्रक लेकर फरार हो गया, लेकिन आस-पास के दुकानदार सडक पर आ गए। भीड ने हाइवे जाम कर दिया। हाइवे जाम के काफी देर बाद पुलिस मौके पर पहुंची।सदर थानाघिकारी रमेशकुमार शर्मा के नेतृत्व में पुलिस ने समझाइश कर यातायात सुचारू करने का प्रयास किया, लेकिन आक्रोशित लोगों का कहना था कि हाइवे पर आए दिन दुर्घटनाएं होती है और लम्बे समय से यह मांग कर रहे हैं कि शहर के भीतर हाइवे पर ब्रेकर बनाए जाए।उनकी इस मांग की निरंतर अनदेखी हो रही है, जिसके परिणामस्वरूप दुर्घटनाओं से मौतें हो रही है। भीड के बढते हुए आक्रोश के बीच पुलिस उप अधीक्षक बाडमेर जसाराम बोस घटनास्थल पर पहुंचे और उन्होंने ब्रेकर बनाने की मांग पूरी करवाने का भरोसा दिलाया। करीब एक घण्टे के जाम के बाद यातायात सामान्य हुआ।


चोरी कर भाग रहा था ट्रेन के नीचे आ गया
सिटी कोतवाली अन्तर्गत एक घर में चोरी करके भागे युवक की ट्रेन से टकराने से मौत होने का मामला दर्ज हुआ है। पुलिस ने बताया कि ग्राम पंचायत उण्डू स्थित धीरजी की ढाणी निवासी थानाराम पुत्र चेतनराम जाट (21) की बुधवार सुबह लगभग पांच बजे बीएसएफ के सामने स्थित रेलवे ट्रेक पर बाड़मेर से जोधपुर जा रही साधारण ट्रेन की चपेट में आने से मौत हो गई। बाद में पुलिस की जांच में सामने आया कि यह युवक बलदेव नगर स्थित अर्जुनराम के घर से चोरी करके इसी ट्रेन से भागने की फिराक में था लेकिन ट्रेन की चपेट में आने से इसकी मौत हो गई। पुलिस को मृतक के पास से डेढ़ किलो चांदी व सोने के टोपस बरामद हुए है। पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
बाल विवाह रोकथाम की अलख जगाई
बाड़मेर शुभम संस्थान की ओर से बुधवार को महावीर नगर व लोहार बस्ती नेहरू नगर में बाल विवाह अभिशाप है नुक्कड़ नाटक का प्रदर्शन कर आमजन को बाल विवाह रोकने का संदेश दिया गया। इस अवसर पर क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी नरेन्द्र तनसुखानी ने कहा कि राज्य सरकार ने बाल विवाह रोकथाम अधिनियम 2006 लागू किया किया हुआ है, जिसके तहत बाल विवाह करने वालों को दो साल की सजा व एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया जाता है। नाटक के निर्देशक गोपीकिशन शर्मा थे। शुभम संस्थान के व्यवस्थापक मुकेश व्यास ने बताया कि इस नाटक में नरेश गोस्वामी, गौरव ईश्वरानी, करण सेन, विनोद चौहान, अरविंद जयपाल, हीरालाल बोस, हेमंत कुमार व लक्ष्मण बोस आदि ने भूमिका निभाई।
ऑरकुट पर जोधपुर की छात्रा की अश्लील क्लिपिंग
जोधपुर. सोशियल साइट ऑरकुट पर शहर की एक छात्रा की अश्लील क्लिपिंग चल रही है। छात्रा के भाई ने जब उसे देखा तो वह हैरत में पड़ गया। किसी ने छात्रा का फोटो लेकर उसे अश्लील क्लिपिंग पर पेस्ट कर दिया। अब सरदारपुरा पुलिस आईटी एक्ट में दर्ज इस मामले की छानबीन कर यह कारस्तानी करने वाले की तलाश कर रही है।
सरदारपुरा पुलिस ने बताया कि नेहरू पार्क क्षेत्र में रहने वाली एक छात्रा के भाई ने यह मुकदमा दर्ज करवाया। उसने बताया कि ऑरकुट पर उसकी बहन की अश्लील वीडियो क्लिपिंग चल रही है। किसी ने उसकी बहन का फोटो लेकर उसे अश्लील फोटो व वीडियो पर पेस्ट कर दिया। जोधपुर की इस छात्रा का ऑरकुट पर यह अकाउंट भी फर्जी नाम से खोला गया है। उधर, अश्लील क्लिपिंग का पता चलने के बाद छात्रा की मानसिक स्थिति बिगड़ गई है। उसके परिवार की प्रतिष्ठा को भी ठेस लगी है।छात्रा के भाई ने पुलिस अधीक्षक से कार्रवाई की गुहार की है। साथ ही वह साइट से अश्लील क्लिपिंग हटवाने का प्रयास कर रहा है। पुलिस अधीक्षक साइबर एक्सपर्ट से बात कर यह क्लिपिंग बंद कराने का प्रयास कर रहे हैं। पुलिस ने आईटी एक्ट की धारा 67 व आईपीसी की धारा 292 और 499 में मुकदमा दर्ज कर अज्ञात आरोपी की छानबीन शुरू की है। मामले की जांच वृत्ताधिकारी नरपतसिंह को सौंपी गई है।

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बाडमेर। रामसर क्षेत्र के गागरिया गांव की एक महिला के साथ नौ लोगों ने बलात्कार किया, पुलिस ने घर में घुसने और अपहरण का मामला दर्ज कर संगीन वारदात को दिया। दबा देने का प्रयास किया। लेकिन घटना के 18 दिन बाद विवाहिता ने मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए बयानों में आपबीती सुनाई तो रोंगटे खडे हो गए।
विवाहिता ने अदालत में बयान में बताया कि वह गागरिया में अपनी सास व पुत्र-पुत्री के साथ रहती है। उसका वाहन चालक पति काम पर गया हुआ था तब 21 अप्रेल की रात बारह व एक बजे के बीच गागरिया के ही नबिया, मिस्त्री, अलीया, सलीया, धन्ना व रियाद उसके घर में घुसे और उसे घर से उठाकर एक किलोमीटर दूर एक टांके के पास ले गए।
वहां एक गाडी खडी थी जिसमें रमदा, हयात व हमला बैठे थे। इन्होंने उसे गाडी में डाला और खुद भी सवार हो गए। गाडी को मापुरी गांव की सरहद में ले गए। वहां नबिया, मिस्त्री, अलीया व सलीया ने उसके साथ बलात्कार किया। इसके बाद तडके करीब चार बजे उसे एक सुनसान ढाणी में ले जाया गया, वहां पर धन्ना ने उसके साथ बलात्कार किया।
दूसरे दिन वह ढाणी में ही रही। रात करीब ग्यारह बजे फिर रमदा, हयात व हमला ने उसके साथ बलात्कार किया। बाद में उसे रात को ही एक गाडी में बिठाकर गागरिया बस स्टैण्ड के पास कच्ची सडक पर छोड दिया गया। अगले दिन सुबह करीब आठ-नौ बजे गंभीर हालत में दो जनों ने उसे रामसर अस्पताल पहुंचाया। जहां 24 अप्रेल को रामसर थाना पुलिस व 28 अप्रेल को पुलिस उप अधीक्षक चौहटन ने उसके बयान लिए।
पुलिस ने बताया अपहरण
चौबीस अप्रेल के बयानों के आधार पर रामसर थाने में घर में अनघिकृत प्रवेश व अपहरण का मामला दर्ज कर चार जनों को आरोपी बनाया गया। पुलिस उप अधीक्षक के बयान लेने के बाद के चारों आरोपियों को गिरफ्तार किया गया। लेकिन सामूहिक बलात्कार का तथ्य पुलिस की कार्यवाही में नहीं आने पर पीडिता पुलिस अधीक्षक से मिली और मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान करवाने की गुहार की। सोमवार को मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान में पुलिस की पोल खुल गई।
अपहरण की घटना बताई थी
पीडिता ने अपने बयानों में बलात्कार जैसी कोई बात नहीं बताई। पुलिस ने अपहरण प्रकरण के आधार पर कार्यवाही की।
-कजोडमल मीणा, पुलिस उप अधीक्षक चौहटन
Man mows down two teachers with tractor

JAISALMER: Two school teachers were brutally killed by a fellow villager who ran a tractor over them at a village in Jaisalmer district on Tuesday. The accused was arrested immediately after the incident.

According to the police, the incident took place near Pakher village in the district. The murdered — Deep Singh (55) and Kalyan Singh (40) — both belonging to Pakher village, were teachers at a school in a nearby village called Leela Parivar. The accused has been identified as Indra Singh.

“A property dispute has been going on between the families of Indra Singh and the deceased. Deep Singh and Kalyan Singh were close relatives. A case, registered in this regard in 2008 with Mohangarh police station, is still pending,” said SP, Jaisalmer, S Parimala.

According to the SP, a fight took place between the two sides recently. Many villagers had told the police about the fight which escalated the tension between the two families.

On Tuesday, Deep Singh and Kalyan Singh were returning home on foot from Leela Parivar village at around 2 pm after school hours. “Indra Singh knew the two persons routine and was waiting at an isolated area near Pakher village on their way,” the SP said. As soon as Indra Singh spotted the two approaching, he started his tractor and drove it towards them. Both Deep Singh and Kalyan Singh were caught unaware as the tractor ran over them.

“A villager, who witnessed the incident, rushed to Pakher village and informed the residents there. After that the police were informed,” SP Parimala said.

“We immediately sent a police team in search of Indra Singh and arrested him,” she said. The police handed over the bodies to family members after conducting the postmortem.

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मंगलवार, 11 मई 2010

आगजनी के शिकार दलित परिवारों की सहायता की पुलिस ने

आगजनी के शिकार दलित परिवारों की सहायताआगजनी के शिकार दलित परिवारों की सहायता की पुलिस ने


बाड़मेर: राजस्‍थान के बाड़मेर जिले की पुलिस ने विपरीत बेघर परिवारों की मदद के लिए आगे आकर पुलिस का मानवीय चेहरा उजागर करने की कोशिश की है। बाड़मेर पुलिस ने आम आदमी के मन में बनी पुलिस की बनी कठोर छवि के बावजूद आमजन को अहसास कराया कि पुलिस आम लोगों की मदद के लिए भी तत्पर है।

जिला पुलिस अधीक्षक (एसपी) संतोष चालके को जब यह पता चला कि बाड़मेर जिला मुख्यालय से 12 किमी दूर दलित भील जाति के 10 परिवारों के घर आगजनी के शिकार हो गए हैं और भील परिवार बेघर हो गए हैं, तो उन्होंने तत्काल इन बेघर परिवारों की आर्थिक मदद तथा घरेलू सामग्री वितरण पुलिस विभाग की ओर से करने के निर्देश सदर थानाधिकारी रमेश कुमार शर्मा को दिए। एसपी के निर्देश पर रमेश कुमार ने आगजनी के शिकार परिवारों के लिए अनाज, बर्तन, बिस्तर और चुल्हे-चौके जैसी आवश्यक सामग्री की व्यवस्था कर मानवता का परिचय दिया।

जिले के पुलिस कप्तान संतोष चालके के नेतृत्व में पुलिस बल ने बोला ग्राम पंचायत के भीलों की सहायता की है। इस तरह की पहल पहली बार देखी गई है। बहरहाल, बाड़मेर पुलिस ने मानवता का परिचय देकर अनुकरणीय कार्य किया है। सदर थानाधिकारी रमेश कुमार ने बताया कि गरीब परिवारों की सहायता का उद्देश्य उन परिवारों को पुलिस विभाग की ओर से आश्वस्त करना था कि पुलिस उनके दुख-दर्द में साथ है। दनकी हरसम्भव मदद को तैयार है।

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राजस्‍थान: बाड़मेर के प्रकाश आईएएस में दूसरे स्‍थान पर

राजस्‍थान: बाड़मेर के प्रकाश आईएएस में दूसरे स्‍थान पर


बाड़मेर: संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) द्वारा आयोजित सिविल सेवा परीक्षा-2009 के नतीजे गुरुवार को घोषित कर दिए गए। इसमें राजस्थान के बाड़मेर जिले के छोटे से गांव आराबा के 24 वर्षीय प्रकाश राजपुरोहित दूसरे स्थान पर रहे। देश की सबसे प्रतिष्ठित सेवा ‘भारतीय प्रशासनिक सेवा’ (IAS) में प्रकाश देश में दूसरे व राजस्थान में प्रथम स्थान पर रहे।

आईआईटी, दिल्ली से 2006 में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक. करने वाले प्रकाश का सिविल सेवा परीक्षा के लिए यह दूसरा प्रयास था। इससे पूर्व वे 2008 की परीक्षा में साक्षात्कार तक पहुंचे थे। वर्तमान में गाजियाबाद में अपने परिवार के साथ रह रहे प्रकाश के पिता देवीसिंह राजपुरोहित स्वयं इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग डिग्रीधारी हैं और वर्तमान में गाजियाबाद की एक निजी कंपनी में बतौर मैनेजर कार्यरत हैं। प्रकाश की मां 12वीं पास गृहिणी हैं।

एक सामान्य परिवार के प्रकाश अपने माता-पिता की इकलौती संतान हैं। प्रकाश ने अपने चयन के बाद बातचीत करते हुए कहा, ‘मैंने 2006 में बी.टेक के बाद एक निजी कंपनी में छह माह जॉब किया। उसके बाद विभिन्न जॉब को नजदीक से देखा, लेकिन आईएएस बनकर जनता की सेवा के साथ कई चुनौतियों का सामना करने की मेरी ललक थी।’ प्रकाश ने कहा कि इस बार परीक्षा देने के बाद वे अपने चयन को लेकर आश्वस्त तो थे, लेकिन टॉपर बनेंगे, यह पता नहीं था। प्रकाश ने बताया, ‘आईएएस परीक्षा में इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग व गणित मेरे विषय थे और मेरी विषयों पर काफी अच्‍छी पकड़ थी।’

दिल्ली के दयानंद विहार स्थित डीएवी पब्लिक स्कूल से 12वीं पास प्रकाश शुरू से मेधावी छात्र रहे हैं। प्रकाश राजपुरोहित आईएएस के रूप में अपने मूल प्रदेश राजस्थान में सेवा के इच्छुक हैं। प्रकाश ने कहा, ‘मेरी शुरू से इच्छा रही है कि मैं अपने प्रदेश में ही सेवा करूं।’ अगर राजस्थान में इस बार आईएएस की वेकेंसी होगी, तो प्रकाश को निश्चित रुप से दूसरा स्‍थान हासिल करने के कारण ‘होम कैडर’ यानि राजस्‍थान कैडर मिलेगा।

प्रकाश ने कहा, ‘मैं चारों बार सिविल सेवा की परीक्षा देकर आईएएस बनने का भरपूर प्रयास करता, उसके बाद भी अगर आईएएस नहीं मिलता तो आईपीएस बनता।’ उन्‍होंने अपने परीक्षा परिणाम पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा, ‘मैं मई महीने की शुरूआत से रोज यूपीएससी कार्यालय सवेरे फोन कर जानकारी लेता था कि आईएएस का रिजल्ट कब आ रहा है। जब गुरूवार सवेरे रोजाना की तरह फोन किया, तो जानकारी मिली कि आज दोपहर 3 बजे रिजल्ट आ रहा है, तो मैं २ बजे से इंटरनेट पर बैठ गया। जैसे ही मैंने अपना रोल नंबर टाइप किया, तो पूरे देश में दूसरी रैंक देखकर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। लेकिन, मैं यह भी सोचने लगा कि काश पहली रैंक होती! फिर भी मैं संतुष्ट हूं कि आईएएस बन गया।’

संघ लोक सेवा आयोग द्वारा घोषित वर्ष 2009 के सिविल सेवा परीक्षा परिणाम में कुल 875 अभ्‍यर्थी उत्तीर्ण हुए, जिनमें से 680 पुरूष व 195 महिलाएं हैं। इस वर्ष की परीक्षा में टॉपर जम्मू-कश्मीर के कूपवाड़ा के डॉ. शाह फैजल रहे, वहीं तीसरे स्थान पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली की छात्रा इवा सहाय रहीं। कुल 25 टॉपर में से 15 पुरूष व 10 महिलाएं हैं। वर्ष 2009 में 875 पदों के लिए 409101 आवेदन आए, उसमें से 193091 प्रारंभिक परीक्षा में उत्तीर्ण घोषित हुए और 12026 परीक्षार्थी मुख्य परीक्षा में बैठे। इनमें से 2432 को को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया और 875 अभ्‍यर्थी अंतिम रुप से सफल घोषित किए गए।

शनिवार, 8 मई 2010

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बाडमेर- पाकिस्तान में मांगणियार जाति के लोक कलाकारों ने अपनी गायकी से अलग पहचान बना रखी हैं।पाक के सिन्ध प्रान्त के मिटठी,रोहड़ी,गढरा,थारपारकर,उमरकोट,खिंपरो,सांगड आदि जिलों में मांगणियार जाति के लोग निवास करते हैं।पाक में रह रहे मांगणियार मूलतःबाड मेर-जैसलमेर जिलों के हैं,जो भारत-पाक युद्ध 1965 और 1971 में पलायन कर पाक चले गए।थार संस्कृति और परम्परा को लोक गीतों के माध्यम से अपनी छटा बिखेरने वाले मांगणियार कलाकारों की पाक में सम्मान जनक स्थिति नहीं थी।पाक के मांगणियार भी राजपूत जाति के यॅहा यजमानी कर अपना पालन पोद्गाण करते थे।सोढा राजपूतों का सिन्ध में बाहुल्य हैं।सोढा राजपूतों की सिन्ध में जागीरदारी होने के कारण कई मांगणियार परिवार भारत-पाक विभाजन के दौरान पाक में रह गए तो कई परिवार युद्ध के दौरान पाक चले गए।बाड मेर से गये एक परिवार में सन1961में संगीत के कोहिनूर ने जन्म लिया।इस कोहिनूर जिसे पाकिस्तान और विदेशो में उस्ताद सफी मोहम्मद फकीर के नाम से जाना जाता हैं, मोगणियार गायकी को पाक में अलग पहचान और खयाति दिलाई।उनके अलावा अनाब खान, शौकत खान,हयात खान,मोहम्मद रफीक,सच्चु खान,सगीर खान ढोली, ने मांगणियार संस्कृति को पाक में नई पहचान दी हैं।

इसके अलावा बाड़मेर-जैसलमेर सीमा पर स्थित देवीकोट के मूल निचासी फिरोज गुल ने पाक में लुप्त हो चुके हारमोनियम कला को पुर्नजीवित कर काफी नाम कमाया,पाक में आज फिरोज गुल का हारमोनियम बजाने में कोई सानी नहीं हैं।पाक की मद्गाहूर लोक गायिका आबदा परवीन के दल के साथ फिरोज देश -विदेशो में खयाति अर्जित कर रहे हैं।पाक में मारवाडी लोक गीतों की जबरदस्त मांग को मांगणियार लोक कलाकार पूरा कर रहे हैं।वहीं पाक में मांगणियार गायकी को नया आयाम प्रदान किया तथा मारवाडी लोक गीत संगीत को पाक में मान-सम्मान दिलाया।इसके अलावा पाक में कृद्गण भील,सुमार भीलमोहन भगत,जरीना,माई नूरी,माईडडोली,माई सोहनी,सबीरा सुल्तान,दिलबर खान,फरमान अली,आमिर अली असलम खान,लॉग खान सुमार खानमोहम्मद इकबाल जैसे मांगणियार लोक गीत संगीत के पहरुओं ने राजस्थान की लोक कला ,गीत संगीत,संस्कृति और परम्परा को पाक में जिन्दा रखा तथा मान सम्मान दिला रहे हैं।सिन्ध और थार की लोक संस्कृति ,परम्पराओं गीत संगीत ,कला में महज देश का फर्क हैं।

मांगणियार लोक गायकों ने लोक गीत संगीत के जरिए दोनों देशो की सीमाऐं तोड़ दी।पाकिस्तान गए भारतीय मांगणियार परिवारों नें थार शैली के लोक गीत-संगीत कों पाकिस्तान में ना केवल जिन्दा रखा अपितु उसे देनिया भर में नई उचाईयॉ दी।पाकिस्तान में एक वक्त हारमोनियम समाप्त सा हो गया था।ऐसे में फिरोज मांगणियार नें हारमोनियम को नया जन्म देकर पाकिस्तान में हारमोनियम को लोकप्रियता के शिकार पर पहुचाया।फिरोज मांगणियार आज पाकिस्तान की मद्गाहूर लोक गायिका आबिदा परवीन कें दल में शामिल हो कर नयें आयाम छू रहे हैं।पाकिस्तान की मशुर लोक गायिका रेशमा जिन्होंने देश विदेशो में अपनी अलग गायकी से अपना अलग मुकाम बनाया।रेशमा मूलतः राजस्थान के बीकानेर क्षैत्र की निवासी थी,रेशमा का परिवार विभाजन के दौरान पाकिस्तान चला गया।बिना लिखी पढी रेशमा नें विश्व भरमेंअपनी खास पहचान बनाई।दोनों देशो की सरहदें लोक गीत संगीत की सौंधी महक को बांट नहीं सकी।लोक गीत संगीत कें माध्यम सें दोनो देशो की अवाम अपने रिश्ते कायम रखे हुए हैं।


स्वरूप खान इंडियन आइडल में मचाएगा धूम
अपनी शानदार गायकी से निर्णायकों को किया मंत्रमुग्ध, अंतिम 16 में हुआ चयन
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बईया के रहने वाले स्वरूप खान की संगीत के प्रति दीवानगी देखने लायक है। बचपन से ही अपने परिजनों के साथ लोक संगीत में अपने आप को पारंगत करने में जुटा स्वरूप खान आज इंडियन आइडल के अंतिम 16 प्रतिभागियों में सलेक्ट हो गया है। स्वरूप खान के चयन पर जैसलमेरवासियों में खुशी की लहर दौड़ गई।

स्थानीय लोक कलाकार पूर्व में भी देश-विदेश में अपनी गायकी का लोहा मनवा चुके हैं। बॉलीवुड व हॉलीवुड में परफॉर्मेंस देने के बाद अब इंडियन आइडल भी लोक कलाकारों की गायकी से अछूता नहीं रहा और स्वरूप खान को अंतिम 16 में जगह मिल गई। अहमदाबाद में ऑडिशन देने के बाद स्वरूप का चयन मुम्बई के लिए हुआ। वहां सात दिन के रिहर्सल के बाद 150 में उसने जगह बनाई। उसके बाद 70 प्रतिभागियों में से सलेक्ट कर उसे अंतिम 40 में लिया गया। स्वरूप ने 40 प्रतिभागियों के ऑडिशन में भी अपनी छाप छोड़ी और 25 प्रतिभागियों में सलेक्ट हुआ। आखिर में उसने अंतिम ऑडिशन में निर्णायकों का दिल जीत कर अंतिम 16 में जगह बनाई।

बईया निवासी नियाज खां के 19 वर्षीय पुत्र स्वरूप खान को शुरू से ही गायकी का शौक था। उसने अपने चाचा अनवर खां से यह हुनर सीखा। अनवर खां के साथ स्वरूप खान ने विदेशों में कई प्रोग्राम किए और ख्याति अर्जित की। जैसलमेर के लोक कलाकारों में स्वरूप खान सूफी गायन के जादूगर माने जाते हैं। उनकी गायकी ने निर्णायक अनु मलिक, सुनिधि चौहान व सलीम मर्चेंट को मंत्रमुग्ध कर दिया। स्वरूप खान इससे पूर्व अंग्रेजी फिल्म मिल्क एंड ओपियम में मुख्य किरदार निभा चुका है।

लोक संगीत का परचम

स्थानीय मांगणिहार कलाकारों ने लोक संस्कृति को संगीत के माध्यम से जीवित रखा है। वे निरंतर लोक संगीत को विख्यात करने में लगे हुए हैं। और तो और अब यह संगीत इस जाति के लोगों की आजीविका का साधन बन चुका है। नन्हें कलाकारों से लेकर बुजुर्ग कलाकार आज भी शानदार प्रस्तुतियां देकर दर्शकों को भावविभोर कर रहे हैं।

स्वरूप की आवाज में दम है

गुणसार लोक कला संस्थान के अध्यक्ष बक्श खां ने बताया कि स्वरूप की आवाज में दम है और उसकी संगीत के प्रति दीवानगी उसको आगे तक ले जाएगी। वह लोक संगीत के साथ-साथ फिल्मी गीत भी सधे हुए सुरों में गा सकता है। बक्श खां ने बताया कि स्वरूप खां की हौसला अफजाई के लिए संस्थान उसे वोट करने की अपील करेगा।


तीन दिन से धधक रहा जंगल
आबूरोड

आबूरोड व माउंट आबू के बीच तलेटी बाग नाले की पहाडिय़ों में शनिवार को तीसरे दिन भी आग पर काबू नहीं पाया जा सका। यहां पिछले दो दिनों से जंगल में आग धधक रही है जिससे अमूल्य वन संपदा व वन्य प्राणियों को भारी नुकसान हो रहा है।

गर्मी के साथ बढ़ी घटनाएं : गर्मी के आगमन के साथ क्षेत्र में सूखे पत्तों व पेड़ों में आग लगने की घटनाओं में लगातार इजाफा होता जा रहा है। वन विभाग अपने सीमित संसाधनों से एकतरफ आग बुझाने का प्रयास करता है, तो दूसरी तरफ आग भड़क उठती है।

मानसून आने तक यही स्थिति रही तो अरावली क्षेत्र के सैकड़ों हेक्टयेर क्षेत्र की वन संपदा व हरियाली पूरी तरह नष्ट होकर प्रदेश के एकमात्र पर्यटन स्थल को बदरंग कर देगी। इसको लेकर पर्यावरणविदों से लेकर आबूरोड व माउंट आबू के आम लोग भी चिंतित हैं। आबूरोड व माउंट आबू के बीच तलेटी बाग नाले की पहाडिय़ों में तीन दिन पहले आग लगी है। उस पर काबू पाने के लिए वन विभाग के अधिकारी लगातार प्रयास कर रहे हैं, लेकिन आग बुझाने के ये प्रयास ऊंट के मुंह में जीरे साबित हो रहे हैं। वर्तमान में लगी आग से एक बड़ा क्षेत्र जलकर खाक हो गया

है। इसकी चपेट में आया क्षेत्र

काफी दूर से ही काले रंग का दिखाई दे रहा है।

क्यों लगती है आग

वन सेंचुरी होने की वजह से प्रशासन व वन विभाग क्षेत्र में निर्माण कार्य, पेयजल के स्रोतों, नाड़ी, एनीकट के निर्माणों को अपना विरोध दर्ज कर रूकवा देता है। लेकिन अपने उपलब्ध संसाधनों में क्षेत्र में आग बुझाने के प्रयासों व संसाधनों के प्रति शायद ही कभी उतनी गंभीरता से काम किया गया हो। मानसून के बाद पतझड़ से गिरी पत्तियां मिट्टी के लिए खाद का काम करती है। लेकिन, यहां अगले मानसून आने से पहले ही ये पत्तियां आग लगने का कारण बन जाती है, जिससे पेड़ व पर्यावरण को गंभीर क्षति पहुंचाती है। इस क्षेत्र में आने वाले पर्यटक अपनी मौज मस्ती के कारण पैकिंग कर लाए सामान की थैलियां, बीयर की बोतलें, पानी व शीतलपेय की बोतलें वन क्षेत्र में यूं ही फेंक देते हैं। इसके आगे राह चलते वाहनों से सिगरेट व बीड़ी पीकर बाहर फेंक देते हैं, जो आग लगने का बड़ा कारण बनता है। वन विभाग ने जलती बीड़ी, सिगरेट या माचिस फेंकने के लिए चेतावनी अंकित कर रखी है, लेकिन दंडात्मक कार्रवाई नहीं होने से ऐसा अक्सर होता है कि इस क्षेत्र में लोग धड़ल्ले से बीड़ी-सिगरेट पीते हैं। वन क्षेत्र में निवास कर रहे लोग वन उपज लेने के लिए जंगलों में जाते हैं, जहां लापरवाही पूर्वक बीड़ी या सिगरेट डाल देने से इस तरह से दावानल भड़क उठता है।

आत्महत्या को मजबूर करने का मामला दर्ज


बाडमेर।पुलिस थाना गिडा में आत्महत्या के लिए मजबूर करने का मामला दर्ज किया गया है। पुलिस ने बताया कि सालूराम पुत्र खरथाराम ने मामला दर्ज करवाया कि उसकी बहिन पन्नी देवी पत्नी चनणाराम निवासी बाटाडू की पुत्री कमला व पुत्र बजरंग के साथ सार्वजनिक हौदी में डूबने से 29 अपे्रल को मृत्यु हो गई थी। इसका आत्महत्या का मामला ससुराल पक्ष की ओर से दर्ज करवाया गया है। जबकि उसको आत्महत्या के लिए नणद पूरो पत्नी पन्नाराम व खंगाराराम पुत्र सोनाराम ने मजबूर किया। पुलिस ने इस आशय का मामला दर्ज कर जांच प्रारंभ की।

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शुक्रवार, 7 मई 2010

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<सरहदें लोक गीत संगीत की सौंधी महक को बांट नहीं सकी17 hours ago

चन्दन
बाडमेर- पाकिस्तान में मांगणियार जाति के लोक कलाकारों ने अपनी गायकी से अलग पहचान बना रखी हैं।पाक के सिन्ध प्रान्त के मिटठी,रोहड़ी,गढरा,थारपारकर,उमरकोट,खिंपरो,सांगड आदि जिलों में मांगणियार जाति के लोग निवास करते हैं।पाक में रह रहे मांगणियार मूलतःबाड मेर-जैसलमेर जिलों के हैं,जो भारत-पाक युद्ध 1965 और 1971 में पलायन कर पाक चले गए।थार संस्कृति और परम्परा को लोक गीतों के माध्यम से अपनी छटा बिखेरने वाले मांगणियार कलाकारों की पाक में सम्मान जनक स्थिति नहीं थी।पाक के मांगणियार भी राजपूत जाति के यॅहा यजमानी कर अपना पालन पोद्गाण करते थे।सोढा राजपूतों का सिन्ध में बाहुल्य हैं।सोढा राजपूतों की सिन्ध में जागीरदारी होने के कारण कई मांगणियार परिवार भारत-पाक विभाजन के दौरान पाक में रह गए तो कई परिवार युद्ध के दौरान पाक चले गए।बाड मेर से गये एक परिवार में सन1961में संगीत के कोहिनूर ने जन्म लिया।इस कोहिनूर जिसे पाकिस्तान और विदेशो में उस्ताद सफी मोहम्मद फकीर के नाम से जाना जाता हैं, मोगणियार गायकी को पाक में अलग पहचान और खयाति दिलाई।उनके अलावा अनाब खान, शौकत खान,हयात खान,मोहम्मद रफीक,सच्चु खान,सगीर खान ढोली, ने मांगणियार संस्कृति को पाक में नई पहचान दी हैं।

इसके अलावा बाड़मेर-जैसलमेर सीमा पर स्थित देवीकोट के मूल निचासी फिरोज गुल ने पाक में लुप्त हो चुके हारमोनियम कला को पुर्नजीवित कर काफी नाम कमाया,पाक में आज फिरोज गुल का हारमोनियम बजाने में कोई सानी नहीं हैं।पाक की मद्गाहूर लोक गायिका आबदा परवीन के दल के साथ फिरोज देश -विदेशो में खयाति अर्जित कर रहे हैं।पाक में मारवाडी लोक गीतों की जबरदस्त मांग को मांगणियार लोक कलाकार पूरा कर रहे हैं।वहीं पाक में मांगणियार गायकी को नया आयाम प्रदान किया तथा मारवाडी लोक गीत संगीत को पाक में मान-सम्मान दिलाया।इसके अलावा पाक में कृद्गण भील,सुमार भीलमोहन भगत,जरीना,माई नूरी,माईडडोली,माई सोहनी,सबीरा सुल्तान,दिलबर खान,फरमान अली,आमिर अली असलम खान,लॉग खान सुमार खानमोहम्मद इकबाल जैसे मांगणियार लोक गीत संगीत के पहरुओं ने राजस्थान की लोक कला ,गीत संगीत,संस्कृति और परम्परा को पाक में जिन्दा रखा तथा मान सम्मान दिला रहे हैं।सिन्ध और थार की लोक संस्कृति ,परम्पराओं गीत संगीत ,कला में महज देश का फर्क हैं।

मांगणियार लोक गायकों ने लोक गीत संगीत के जरिए दोनों देशो की सीमाऐं तोड़ दी।पाकिस्तान गए भारतीय मांगणियार परिवारों नें थार शैली के लोक गीत-संगीत कों पाकिस्तान में ना केवल जिन्दा रखा अपितु उसे देनिया भर में नई उचाईयॉ दी।पाकिस्तान में एक वक्त हारमोनियम समाप्त सा हो गया था।ऐसे में फिरोज मांगणियार नें हारमोनियम को नया जन्म देकर पाकिस्तान में हारमोनियम को लोकप्रियता के शिकार पर पहुचाया।फिरोज मांगणियार आज पाकिस्तान की मद्गाहूर लोक गायिका आबिदा परवीन कें दल में शामिल हो कर नयें आयाम छू रहे हैं।पाकिस्तान की मशुर लोक गायिका रेशमा जिन्होंने देश विदेशो में अपनी अलग गायकी से अपना अलग मुकाम बनाया।रेशमा मूलतः राजस्थान के बीकानेर क्षैत्र की निवासी थी,रेशमा का परिवार विभाजन के दौरान पाकिस्तान चला गया।बिना लिखी पढी रेशमा नें विश्व भरमेंअपनी खास पहचान बनाई।दोनों देशो की सरहदें लोक गीत संगीत की सौंधी महक को बांट नहीं सकी।लोक गीत संगीत कें माध्यम सें दोनो देशो की अवाम अपने रिश्ते कायम रखे हुए हैं।

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गुरुवार, 6 मई 2010

BARMER NEWS TRACK



बाड़मेर: सारे मानवाधिकार कार्यकर्ता छुपे बैठे हैं बिलों में या फ़िर लगे हैं अत्याचारियों को बचाने में। 1947-48 में पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या कुल जनसंख्‍या का 16 से 20 फीसदी थी। ये मैं नहीं कह रहा, ये पाकिस्तान की जनगणना के आंकड़ें बताते हैं। लेकिन, हिंदुओं पर इन 63 सालों में पाकिस्तान में इतने जुल्म ढाये गए कि उन्हें या तो वहां से भाग कर अपनी जान और अपने परिजनों की जान बचानी पड़ी, या फिर मौत को गले लगाना पड़ा। उन्‍हें एक और रास्ता चुनना पड़ता था, जो पाकिस्तान के कठमुल्ले जबरन थोपते थे… इस्लाम अपनाने का रास्‍ता। हिंदुओं को जबरन मुस्लिम बनाया जाता… वहां इन सब जुल्मों के चलते हालात ये हो गये हैं कि पाकिस्तान में हिंदुओं की जनसंख्या घटकर 1.6 फीसदी से भी कम रह गयी है। वहां हिंदुओं को अपनी सम्पति छोड़ कर भागना पड़ा है, अपनी बहु-बेटियों की इज्जत खोनी पड़ी है। लेकिन, इस पर दुनिया में तो क्या भारत में भी कोई हल्ला नहीं बोलेगा।

पिछले चार सालों में पाकिस्तान से करीब पांच हजार हिंदू तालिबान के डर से भारत आ गए, कभी वापस न जाने के लिए। अपना घर, अपना सबकुछ छोड़कर, यहां तक की अपना परिवार तक छोड़कर। हालांकि, इस तरह सब कुछ छोड़ कर आना आसान नहीं है। लेकिन, इन लोगों का कहना है कि उनके पास वहां से भागने के अलावा कोई चारा नहीं था। 2006 में पहली बार भारत-पाकिस्तान के बीच थार एक्सप्रेस की शुरुआत की गई थी। हफ्ते में एक बार चलनी वाली यह ट्रेन कराची से चलती है और भारत में राजस्‍थान के बाड़मेर जिले के मुनाबाओ बॉर्डर से दाखिल होकर जोधपुर तक जाती है। पहले साल में 392 हिंदू इस ट्रेन के जरिए भारत आए। 2007 में यह आंकड़ा बढ़कर 880 हो गया। पिछले साल कुल 1240 पाकिस्तानी हिंदू भारत आए, जबकि इस साल अगस्त तक एक हजार लोग भारत आए और वापस नहीं लौटे। वे इस उम्मीद में यहां रह रहे हैं कि शायद उन्हें भारत की नागरिकता मिल जाए, इसलिए वह लगातार अपने वीजा की अवधि बढ़ा रहे हैं।

गौर करने लायक बात यह है कि ये आंकड़े आधिकारिक हैं, जबकि सूत्रों का कहना है कि ऐसे लोगों की संख्या कहीं अधिक है, जो पाकिस्तान से यहां आए और स्थानीय लोगों में मिल कर अब स्थानीय निवासी बन कर रह रहे हैं। अधिकारियों का इन विस्थापितों के प्रति नरम व्यवहार है क्योंकि इनमें से ज्यादातर लोग पाकिस्तान में भयावह स्थिति से गुजरे हैं। वह दिल दहला देने वाली कहानियां सुनाते हैं।

रेलवे स्टेशन के इमिग्रेशन ऑफिसर हेतुदन चरण का कहना है, ‘भारत आने वाले शरणार्थियों की संख्या अचानक बढ़ गई है। हर हफ्ते 15-16 परिवार यहां आ रहे हैं। हालांकि, इनमें से कोई भी यह स्वीकार नहीं करता कि वह यहां बसने के इरादे से आए हैं। लेकिन, आप उनका सामान देखकर आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि वह शायद अब वापस नहीं लौटेंगे।’ राना राम पाकिस्तान के पंजाब में स्थित रहीमयार जिले में अपने परिवार के साथ रहते थे। अपनी कहानी सुनाते हुए वे कहते हैं कि वे तालिबान के कब्जे में थे। उनकी बीवी को तालिबान ने अगवा कर लिया। उसके साथ रेप किया और जबरदस्ती इस्लाम कबूल करवाया। इतना ही नहीं, उसकी दोनों बेटियों को भी इस्लाम कबूल करवाया। यहां तक की जान जाने के डर से उन्‍होंने भी इस्लाम कबूल कर लिया। इसके बाद उसने वहां से भागना ही बेहतर समझा और वह अपनी दोनों बेटियों के साथ भारत भाग आया। उसकी पत्नी का अभी तक कोई अता-पता नहीं है। एक और विस्थापित डूंगाराम ने बताया कि पिछले दो सालों में हिंदुओं के साथ अत्याचार की घटनाएं बढ़ी हैं, खासकर परवेज़ मुशर्रफ के जाने के बाद।

अब कट्टरपंथी काफी सक्रिय हो गए हैं। हम लोगों को तब स्थायी नौकरी नहीं दी जाती थी, जब तक हम इस्लाम कबूल नहीं कर लेते थे। बाड़मेर और जैसलमेर में शरणार्थियों के लिए काम करने वाले ‘सीमांत लोक संगठन’ के अध्यक्ष हिंदू सिंह सोढ़ा कहते हैं, ‘भारत में शरणार्थियों के लिए कोई पॉलिसी नहीं है। यही कारण है कि पाकिस्तान से भारी संख्या में लोग भारत आ रहे हैं।’ सोढ़ा ने कहा, ‘पाकिस्तान के साथ बातचीत में भारत सरकार शायद ही कभी पाकिस्तान में हिदुंओं के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार व अत्याचार का मुद्दा उठाती है।’ उन्होंने कहा, ‘2004-05 में 135 शरणार्थी परिवारों को भारत की नागरिकता दी गई, लेकिन बाकी लोग अभी भी अवैध तरीके से यहां रह रहे हैं। यहां पुलिस इन लोगों पर अत्याचार करती है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘पाकिस्तान के मीरपुर खास शहर में दिसंबर 2008 में करीब 200 हिदुओं को इस्लाम धर्म कबूल करवाया गया। बहुत से लोग ऐसे हैं, जो हिंदू धर्म नहीं छोड़ना चाहते, लेकिन वहां उनके लिए सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं हैं।’

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बुधवार, 5 मई 2010

विकलांगता से नहीं, मुफलिसी से हारीं माण्ड गायिका रुकमा देवी

विकलांगता से नहीं, मुफलिसी से हारीं माण्ड गायिका रुकमा देवी


: बाड़मेर: दलित समाज की परम्पराओं को तोड़ कर माण्ड गायिकी को थार के मरुस्थल से सात समंदर पार विदेशों में ख्याति दिलाने वाली क्षेत्र की पहली माण्ड गायिका रुकमा देवी, जिन्‍हें ‘थार की लता’, कहा जाता है, आर्थिक अभाव में मुफलिसी के दौर से गुजर रही हैं। संदुक भरे सम्मान और पुरस्कार उन्‍हें दो वक्त की रोटी नहीं दे पा रहे हैं। रुकमा विकलांगता के आगे कभी नहीं हारी, मगर अब मुफलिसी के आगे हार बैठी हैं।


अपने सुरीले कण्ठों से सात समंदर पार थार मरुस्‍थल के लोक गीतों की सरिता बहाने वाली रुकमा को दाद तो खूब मिली, मगर दो वक्त चुल्हा जल सके, इतनी कमाई नहीं। दोनों पैरों से विकलांग 55 वर्षीया रुकमा की गायिकी में गजब की कशिश है।


रुकमा देवी इस वक्त बाड़मेर से पैंसठ किलोमीटर दूर रामसर गांव के छोर पर बिना दरवाजों के कच्चे झोपड़े में रह रही हैं। लोक गीत-संगीत की पूजा करने वाली रुकमा देवी ने अपने जीवन के पचास साल माण्ड गायिकी को परवान चढाने में खर्च कर दिए। विकलांग, विधवा, पिछड़ी और दलित र्वग की इस महिला कलाकार को देश-विदेश में मान-सम्मान खूब मिला। ‘राष्‍ट्रीय देवी अहिल्या सम्मान’, ‘सत्य शांति सम्मान’, ‘भोरुका सम्मान’, ‘कर्णधार सम्मान’ सहित अनेक सम्मान प्रमाण पत्रों, ताम्र पत्रों, लौह पत्रों से रुकमा का संदूक भरा पड़ा है। कला के कद्रदानों ने उन्‍हें दाद तो खूब दी, मगर जीवन निर्वाह के लिए किसी ने मदद नहीं की।


अन्तराष्‍ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित करने वाली रुकमा देवी के नाम से इन्टरनेट पर साईटें भरी पड़ी हैं। इतना नाम होने के बावजूद रुकमा अपने रहने के लिये एक आशियाना नहीं बना सकीं। कला के नाम पर उनका आर्थिक शोषण ही हुआ। अन्तराष्‍ट्रीय महिला कलाकार रुकमा ने विकलांगता की परवाह किए बिना माण्ड गायिकी को नई उंचाईयां दीं। उम्र के इस पड़ाव में रुकमा अपने यजमानों के यहां भी नहीं जा सकती।


मांगणियार जाति में आज भी महिलाओं के स्टेज पर गाने पर प्रतिबन्ध हैं। सामाजिक परम्पराओं के विरुद्ध रुकमा ने साहस दिखा कर अपनी कला को सार्वजनिक मंच पर प्रदर्शित किया। यह भी विडंबना ही है कि उनके अपने समाज ने माण्ड गायिकी में क्षेत्र का नाम उंचा करने की सजा उन्‍हें दी।






एक खाट और कुछ गुदड़ों की पूंजी के साथ रह रही रुकमा को इस बात की पीड़ा है कि उनकी कला को जिन्दा रखने के कोई प्रयास नहीं हो रहे हैं। लुप्त होती माण्ड गायिकी के सरंक्षण के लिए कोई संस्था या प्रशासन आगे नहीं आ रहा है। रुकमा को कला के सरंक्षण की चिन्ता के साथ साथ विरासत को सरंक्षित रखने की चिन्ता भी सता रही हैं। लेकिन, आर्थिक अभावों में अपना जीवन गुजार रही रुकमा को विश्‍वास है कि कोई तो उनकी सुध लेगा। कहने को रुकमा के दो जवान बेटे हैं, मगर दोनों बेटे अपने घर-परिवार के पालण-पोषण में इस कदर उलझे हैं कि उन्हें अपनी मां की देखभाल की परवाह नहीं। रुकमा की देखभाल उनकी विधवा पुत्री फरीदा करती हैं।


मुफलिसी में अपना जीवन गुजार रही रुकमा को बीपीएल में चयनित नहीं किया गया। विकलांग और विधवा होने के बावजूद उन्‍हें पेंशन योजना का लाभ नहीं मिल रहा। लोक कलाकारों के पुर्नवास और उत्थान के लिए सरकारें कई योजनाएं चला रही हैं, मगर उसका लाभ रुकमा जैसी जरुरतमन्द कलाकार को नहीं मिलता। आखिर अपने र्दद को किसके आगे बयां करे रुकमा! ‘कृष्णा संस्था’ के सचिव चन्दन सिंह भाटी ने बताया कि रुकमा के पेंशन की कार्यवाही कर ली गई है। उनकी आर्थिक मदद के प्रयास जारी है।

मंगलवार, 4 मई 2010

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बाड़मेर: पाकिस्‍तान की सीमा से सटे राजस्थान के बाड़मेर जिले के सरहदी गांव खच्चरखडी की मुस्लिम बस्ती में लड़की के जन्म पर खुशियां मनाने की अनूठी परम्परा है। शिव तहसील के इस गांव में करीब चालीस परिवारों की मुस्लिम बस्ती है, जहां बेटी की पैदाइश पर खुशियां मनाई जाती हैं तथा खास तरह के नृत्य का आयोजन होता है। किसी भी घर में बेटी के जन्म पर गांव भर में गुड़ बांटा जाता है और सामुहिक भोजन की अनूठी परम्परा का निर्वाह किया जाता है।

इस सीमावर्ती जिले के कई गांवों में भ्रूण हत्या की कुप्रथा की वजह से जहां सदियों से बारातें नहीं आईं, वहीं खच्चरखडी की लड़कियों के लिए अच्छे परिवारों से रिश्तों की कोई कमी नहीं रहती है। अच्छे नाक-नक्श वाली इस गांव की खूबसूरत लडकियां और महिलाएं कांच कशीदाकारी में सिद्धहस्त होती हैं। हस्तशिल्प की इस कला से उन्हें खूब काम मिलता है। इससे घर चलाने लायक पैसा आ जाता है। हस्तशिल्प कला में अग्रणी इस गांव की लडकियों के रिश्ते आसानी से होने और साथ ही, ससुराल पक्ष द्वारा शादी-विवाह का खर्चा देने की परम्परा के चलते भी यहां बेटियों का जन्म खुशियों का सबब बना हुआ है।

इसी गांव के खुदा बख्‍श बताते हैं, ‘सगाई से लेकर निकाह तक सारा खर्चा लड़के वालों की तरफ से होता है। निकाह के कपड़े, आभूषण, भोजन आदि का खर्चा लड़के वाले ही उठाते हैं। यहां तक की मेहर की राशि भी लड़के वाले अदा करते हैं। लड़की जितनी अधिक सुन्दर और गुणवान होगी, निकाह के वक्त उतनी ही अधिक राशि मिलती है।’ गांव की बुजुर्ग महिला सखी बाई ने बताया कि गांव की लडकियों के रिश्‍ते की मांग अच्छे परिवारों में लगातार बनी हुई है।

भारत-पाकिस्तान विभाजन से पहले सिन्ध से (वर्तमान में पाकिस्‍तान का एक प्रांत) इस गांव की लडकियों के रिश्ते बहुत आते थे। इस गांव की लड़कियां गजब की खुबसूरत, घरेलू कामकाज में निपुण और गुणी होती हैं। बहरहाल, भारत-पाक सरहद पर बसे खच्चरखडी गांव में उच्च प्राथमिक विद्यालय की जरूरत गांव के लोगों को महसूस हो रही हैं।ताकि बेटियों को पढ़ाई सही तरीके से चल सके।

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सोमवार, 3 मई 2010

विकलांगता से नहीं, मुफलिसी से हारीं माण्ड गायिका रुकमा देवी

विकलांगता से नहीं, मुफलिसी से हारीं माण्ड गायिका रुकमा देवी

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सरहद पर पानी के लिए मारा-मारी, बंदूकों के साये में पानी की सुरक्षा


बाड़मेर: पाकिस्तान की सरहद से सटे राजस्‍थान के रेगिस्तानी जिले बाड़मेर में तापमान बढ़ने के साथ-साथ पानी की समस्या विकराल होती जा रही है। सरहदी गांवों में ग्रामीण पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस रहे हैं। पानी की विकट समस्या के कारण गांवों में पलायन की स्थिति बन गई है। गांवों में पारंपरिक पेयजल स्रोत सूख गए हैं। लगातार छठे साल पड़े अकाल के कारण पारंपरिक कुएं, तालाब, बावडि़यों, बेरियों तथा टांकों का पानी सूख चुका है। हालात ये हैं कि जिले के लगभग 860 गांव पेयजल की किसी योजना से जुड़े नहीं हैं। इन कमीशंड, नॉन कमीशंड गांवों में प्रशासन द्वारा पानी के टेंकरों की व्यवस्था की गई है, मगर, यह महज खानापूर्ति तक ही सीमित है। गांवों में टैंकर पहुंच ही नहीं पा रहे हैं। ऐसे में गांवों में लोगों ने पानी पर पहरेदारी शुरू कर दी है।



जिले के सीमावर्ती क्षेत्र चौहटन के विषम भोगोलिक परिस्थितियों में बसे गफनों के 14 गांवों में पेयजल सबसे बडी त्रासदी है। इन 14 गांवों- रमजान की गफन, आरबी की गफन, तमाची की गफन, भोजारिया, भीलों का तला, मेघवालों का तला, रेगिस्तानी धोरों के बीच बसे हुए हैं। इन गांवों में पहुंचने के लिए कोई रास्ता तक नहीं है। ऐसे में ग्रामीण अपनी छोटी-छोटी पानी की बेरियों पर ताले लगा कर रखते हैं। तालों के साये में पानी रखना यहां की परम्परा और जरूरत है। इन गांवों के लोग पानी की एक-एक बूंद की कीमत और उपयोगिता जानते हैं।



पानी के कारण गांवों में होने वाले झगडों के कारण ग्रामीण मजबूरी में पानी को सुरक्षित रखने के लिए ताले लगा कर रखते हैं ताकि पानी चोरी ना हो जाए। मगर, इस बार पानी की जानलेवा किल्लत ने ग्रामीणों को पानी की सुरक्षा के लिए बंदूकों का सहारा लेने पर मजबूर कर दिया। गांव के सलाया खान निवासी तमाची की गफन ने संवाददाता को बताया कि टांकों पर ताले जड़ने के बाद भी पानी चोरी हो जाता है। पानी की समस्या इस कदर है कि ग्रामीण अपनी जान जोखिम में डाल कर पानी चोरी कर ले जाते हैं। चोरों का पता लगाने का प्रयास भी किया मगर सफलता नहीं मिली, तो ग्रामीणों ने पंचायत बुलाकर निर्णय लिया कि जिन ग्रामीणों के पास लाइसेंसी बंदूकें हैं, वो अपनी बंदूकों के साथ पानी की सुरक्षा करेंगे।



उन्होंने बताया कि ग्रामीणों का इरादा किसी की जान लेने का नहीं है, मगर पानी की सुरक्षा के लिए बंदूको के पास में होने से चोरों में भय पैदा होगा। पानी की सुरक्षा की इससे बेहतर व्यवस्था नहीं हो सकती। उन्होंने बताया कि चालीस किलोमीटर के दायरे में पेयजल का कोई स्रोत नहीं है। पानी का एक टैंकर टांके में डलवाते हैं, तो प्रति टैंकर छह सौ रूपए का खर्चा आता है। ऐसे में पानी चोरी होने से आर्थिक नुकसान के साथ पानी की समस्या भी खड़ी हो जाती है। हालांकि, इस समस्या और ग्रामीणों द्वारा की जा रही सुरक्षा व्यवस्था पर कोई प्रशासनिक अधिकारी बोलने को तैयार नहीं। मगर, यह सच है कि रेगिस्तानी इलाकों में प्रशासनिक लापरवाही और उपेक्षा के चलते ग्रामीणों को पानी की सुरक्षा के लिए बंदूकें उठानी पड रही हैं। यह है भारत के लोकतंत्र का नजारा। बाड़मेर जिले के गांवों में पानी की समस्या कोई नई बात नहीं है। मगर, प्रशासनिक लापरवाही के चलते हालात इतने विकट होंगे, यह किसी ने नहीं सोचा था।

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