गुरुवार, 6 मई 2010

BARMER NEWS TRACK



बाड़मेर: सारे मानवाधिकार कार्यकर्ता छुपे बैठे हैं बिलों में या फ़िर लगे हैं अत्याचारियों को बचाने में। 1947-48 में पाकिस्तान में हिंदुओं की संख्या कुल जनसंख्‍या का 16 से 20 फीसदी थी। ये मैं नहीं कह रहा, ये पाकिस्तान की जनगणना के आंकड़ें बताते हैं। लेकिन, हिंदुओं पर इन 63 सालों में पाकिस्तान में इतने जुल्म ढाये गए कि उन्हें या तो वहां से भाग कर अपनी जान और अपने परिजनों की जान बचानी पड़ी, या फिर मौत को गले लगाना पड़ा। उन्‍हें एक और रास्ता चुनना पड़ता था, जो पाकिस्तान के कठमुल्ले जबरन थोपते थे… इस्लाम अपनाने का रास्‍ता। हिंदुओं को जबरन मुस्लिम बनाया जाता… वहां इन सब जुल्मों के चलते हालात ये हो गये हैं कि पाकिस्तान में हिंदुओं की जनसंख्या घटकर 1.6 फीसदी से भी कम रह गयी है। वहां हिंदुओं को अपनी सम्पति छोड़ कर भागना पड़ा है, अपनी बहु-बेटियों की इज्जत खोनी पड़ी है। लेकिन, इस पर दुनिया में तो क्या भारत में भी कोई हल्ला नहीं बोलेगा।

पिछले चार सालों में पाकिस्तान से करीब पांच हजार हिंदू तालिबान के डर से भारत आ गए, कभी वापस न जाने के लिए। अपना घर, अपना सबकुछ छोड़कर, यहां तक की अपना परिवार तक छोड़कर। हालांकि, इस तरह सब कुछ छोड़ कर आना आसान नहीं है। लेकिन, इन लोगों का कहना है कि उनके पास वहां से भागने के अलावा कोई चारा नहीं था। 2006 में पहली बार भारत-पाकिस्तान के बीच थार एक्सप्रेस की शुरुआत की गई थी। हफ्ते में एक बार चलनी वाली यह ट्रेन कराची से चलती है और भारत में राजस्‍थान के बाड़मेर जिले के मुनाबाओ बॉर्डर से दाखिल होकर जोधपुर तक जाती है। पहले साल में 392 हिंदू इस ट्रेन के जरिए भारत आए। 2007 में यह आंकड़ा बढ़कर 880 हो गया। पिछले साल कुल 1240 पाकिस्तानी हिंदू भारत आए, जबकि इस साल अगस्त तक एक हजार लोग भारत आए और वापस नहीं लौटे। वे इस उम्मीद में यहां रह रहे हैं कि शायद उन्हें भारत की नागरिकता मिल जाए, इसलिए वह लगातार अपने वीजा की अवधि बढ़ा रहे हैं।

गौर करने लायक बात यह है कि ये आंकड़े आधिकारिक हैं, जबकि सूत्रों का कहना है कि ऐसे लोगों की संख्या कहीं अधिक है, जो पाकिस्तान से यहां आए और स्थानीय लोगों में मिल कर अब स्थानीय निवासी बन कर रह रहे हैं। अधिकारियों का इन विस्थापितों के प्रति नरम व्यवहार है क्योंकि इनमें से ज्यादातर लोग पाकिस्तान में भयावह स्थिति से गुजरे हैं। वह दिल दहला देने वाली कहानियां सुनाते हैं।

रेलवे स्टेशन के इमिग्रेशन ऑफिसर हेतुदन चरण का कहना है, ‘भारत आने वाले शरणार्थियों की संख्या अचानक बढ़ गई है। हर हफ्ते 15-16 परिवार यहां आ रहे हैं। हालांकि, इनमें से कोई भी यह स्वीकार नहीं करता कि वह यहां बसने के इरादे से आए हैं। लेकिन, आप उनका सामान देखकर आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि वह शायद अब वापस नहीं लौटेंगे।’ राना राम पाकिस्तान के पंजाब में स्थित रहीमयार जिले में अपने परिवार के साथ रहते थे। अपनी कहानी सुनाते हुए वे कहते हैं कि वे तालिबान के कब्जे में थे। उनकी बीवी को तालिबान ने अगवा कर लिया। उसके साथ रेप किया और जबरदस्ती इस्लाम कबूल करवाया। इतना ही नहीं, उसकी दोनों बेटियों को भी इस्लाम कबूल करवाया। यहां तक की जान जाने के डर से उन्‍होंने भी इस्लाम कबूल कर लिया। इसके बाद उसने वहां से भागना ही बेहतर समझा और वह अपनी दोनों बेटियों के साथ भारत भाग आया। उसकी पत्नी का अभी तक कोई अता-पता नहीं है। एक और विस्थापित डूंगाराम ने बताया कि पिछले दो सालों में हिंदुओं के साथ अत्याचार की घटनाएं बढ़ी हैं, खासकर परवेज़ मुशर्रफ के जाने के बाद।

अब कट्टरपंथी काफी सक्रिय हो गए हैं। हम लोगों को तब स्थायी नौकरी नहीं दी जाती थी, जब तक हम इस्लाम कबूल नहीं कर लेते थे। बाड़मेर और जैसलमेर में शरणार्थियों के लिए काम करने वाले ‘सीमांत लोक संगठन’ के अध्यक्ष हिंदू सिंह सोढ़ा कहते हैं, ‘भारत में शरणार्थियों के लिए कोई पॉलिसी नहीं है। यही कारण है कि पाकिस्तान से भारी संख्या में लोग भारत आ रहे हैं।’ सोढ़ा ने कहा, ‘पाकिस्तान के साथ बातचीत में भारत सरकार शायद ही कभी पाकिस्तान में हिदुंओं के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार व अत्याचार का मुद्दा उठाती है।’ उन्होंने कहा, ‘2004-05 में 135 शरणार्थी परिवारों को भारत की नागरिकता दी गई, लेकिन बाकी लोग अभी भी अवैध तरीके से यहां रह रहे हैं। यहां पुलिस इन लोगों पर अत्याचार करती है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘पाकिस्तान के मीरपुर खास शहर में दिसंबर 2008 में करीब 200 हिदुओं को इस्लाम धर्म कबूल करवाया गया। बहुत से लोग ऐसे हैं, जो हिंदू धर्म नहीं छोड़ना चाहते, लेकिन वहां उनके लिए सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं हैं।’

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