नई दिल्ली।। दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि रिश्ते में भाई-बहन लगने वाले हिंदू युवक-युवती ईसाई धर्म अपनाकर आपस में शादी कर सकते हैं।
अदालत ने यह फैसला देते हुए एक रिटायर्ड जज की याचिका खारिज कर दी। रिटायर्ड जज ने अपने मैजिस्ट्रेट बेटे के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिसने धर्म बदलने के बाद अपने मामा की बेटी से शादी कर ली थी।
जस्टिस सुरेश कैत ने शादी की वैधता को कायम रखते हुए कहा, 'प्रतिवादियों (दंपती) का धर्म परिवर्तन भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम की धारा तीन के तहत उचित है। इसलिए इनकी शादी ऐसे संबंध के तहत नहीं आती, जो हिंदू विवाह अधिनियम के तहत प्रतिबंधित है।'
अपने बेटे के खिलाफ मामला दर्ज कराने पर पिता को फटकार लगाते हुए अदालत ने कहा, 'इस तरह की सोच नई पीढ़ी की व्यापक सोच को खत्म करती है और कई बार इसका नतीजा झूठी शान के लिए की जाने वाली हत्याओं के रूप में दिखता है।'
अदालत ने याचिकाकर्ता ओ पी गोगने पर 'विचार न करने योग्य मामला' दर्ज करने पर 10,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया।
अदालत ने यह फैसला देते हुए एक रिटायर्ड जज की याचिका खारिज कर दी। रिटायर्ड जज ने अपने मैजिस्ट्रेट बेटे के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिसने धर्म बदलने के बाद अपने मामा की बेटी से शादी कर ली थी।
जस्टिस सुरेश कैत ने शादी की वैधता को कायम रखते हुए कहा, 'प्रतिवादियों (दंपती) का धर्म परिवर्तन भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम की धारा तीन के तहत उचित है। इसलिए इनकी शादी ऐसे संबंध के तहत नहीं आती, जो हिंदू विवाह अधिनियम के तहत प्रतिबंधित है।'
अपने बेटे के खिलाफ मामला दर्ज कराने पर पिता को फटकार लगाते हुए अदालत ने कहा, 'इस तरह की सोच नई पीढ़ी की व्यापक सोच को खत्म करती है और कई बार इसका नतीजा झूठी शान के लिए की जाने वाली हत्याओं के रूप में दिखता है।'
अदालत ने याचिकाकर्ता ओ पी गोगने पर 'विचार न करने योग्य मामला' दर्ज करने पर 10,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया।