सुनो सरकार जैसाण की पुकार
डी एन पी के पिंजरे में कैद सवा लाख जनता को आज़ाद करे
राष्ट्रीय मरू उद्यान: सुविधाओं पर ताला, 40 गांवों तक सड़क नहीं पहुंची, 30 में आज तक बिजली नहीं
जैसलमेर जैसलमेर_बाड़मेर के राष्ट्रीय मरु उद्यान(डीएनपी) क्षेत्र में आने वाले 73 गांव व 200 ढाणियों की 1 लाख 15 हजार की आबादी को बंदिशों की बेड़ियों ने जकड़ रखा है। डीएनपी क्षेत्र में आने वाले गांवों में पानी, बिजली, सड़क सरीखी आधारभूत सुविधाओं पर भी प्रतिबंध है। नतीजतन 38 साल से विकास सिर्फ सपना ही बना है। हर बार चुनाव में नेताओं ने डीएनपी से निजात दिलाने के खूब वादे किए, लेकिन अभी तक आधारभूत सुविधाओं की छूट तक नहीं दिला पाए हैं। इतना ही नहीं यहां के किसानों से जमीन बेचान और कर्ज लेने का अधिकार ही छीन लिया गया है। इस वजह से डीएनपी क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीण मानों पिंजरे में कैद हैं। बाड़मेर-जैसलमेर के बॉर्डर से सटे 73 सरहदी गांवों के 3162 वर्गकिमी में मूलभूत सुविधाएं भी मय्यसर नहीं है। डीएनपी के 73 गांवों के हालात की दर्दभरी दास्तां…
पानी : इस क्षेत्र में सरकार ने करोड़ों रुपए खर्च कर जीएलआर बना दिए। पानी की सप्लाई के अभाव में सालों से ग्रामीण पेयजल संकट से जूझ रहे हैं। हालात यह है कि गांवों के लोग अपने बूते पर बेरियों के पानी से प्यास बुझाने को मजबूर है। सरहदी गांवों के लोग पानी की बूंद-बूंद को सहेज कर रखते है। इसके लिए बाकायदा हर घर में टांके बना रखे हैं।
- बिजली: सबसे बड़ा मुद्दा बिजली का है। 30 गांव और 200 ढाणियों में आज भी बिजली नहीं पहुंची है। अंधेरे में जीवन यापन करने को मजबूर लोगों के लिए टीवी, फ्रिज, पंखा सिर्फ सपना ही है। खास बात यह है कि मोबाइल चार्जिंग के लिए सौर ऊर्जा की प्लेटें लगानी पड़ रही हैं और कुछ लोग दूसरे गांव जाकर मोबाइल चार्ज करते हैं ।
- सड़क: यहां 38 साल से सड़कों की मंजूरी पर रोक है। पुरानी सड़कों का पेचवर्क तक बंद है। 40 गांव व 150 ढाणियां अभी तक डामर की सड़क से नहीं जुड़े हैं। ऐसे में लोगों को कच्चे रास्तों या ग्रेवल सड़क पर चार से पांच किलोमीटर का सफर तय कर बस पकड़नी पड़ती है।भारत माला परियोजना के तहत जैसलमेर से म्याजलार तक बनने वाली सम्मरिक महत्व की एक सौ किलोमीटर सड़क का निर्माण डी एन पी की बंदिशों के चलते नहीं हो पा रहा।
- चिकित्सा: डीएनपी के गांवों व ढाणियों से 20 किमी की दूरी में एक भी सीएचसी व पीएचसी नहीं है। कहीं पर सब सेंटर है, लेकिन एएनएम की नियुक्ति नहीं होने से लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। हालात यह है कि इमरजेंसी में मरीज को उपचार भी नसीब नहीं होता है। इससे कई गंभीर लोग बीच रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं।
- नेटवर्क: सबसे बड़ी दुविधा मोबाइल नेटवर्क की है। बॉर्डर से सटे गांवों में टावर नहीं होने से किसी भी कंपनी का नेटवर्क उपलब्ध नहीं है। कुछ गांवों के लोग रेत के टीलों या पेड़ों पर चढ़कर मोबाइल से बात करते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि मोबाइल नेटवर्क की सुविधा के अभाव में रिश्तेदारों व परिजनों से बात तक नहीं कर सकते हैं।
सुविधाओं के लिए कदम-कदम पर ठोकरें
- भारत-पाक बॉर्डर के अंतिम गांवों में 60 साल से पानी का संकट बरकरार है। सरकार ने कागजों में लाखों रुपए खर्च कर लाइनें बिछाकर जीएलआर बना दिए, लेकिन एक बार भी पानी की सप्लाई शुरू नहीं की गई। इस स्थिति में लोगों को बेरियों के पानी से प्यास बुझानी पड़ती है। अधिकतर लोग 500 से 700 रुपए देकर टैंकर मंगवाने को मजबूर हैं।पेयजल समस्या का कोई स्थाई समाधान नहीं ,
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