महिला सशक्तिकरण के कार्यक्रमों से वंचित महिलाएं नदारद आखिर इनकी अनदेखी क्यों ?
चंदन सिंह भाटी ,बाड़मेर न्यूज़ ट्रैक
अक्सर महिला सशक्तिकरण के कार्यक्रमों में महिलाओ की भीड़ करना मुख्य उद्देश्य रह गया ,महिला कार्यक्रमों में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ,सहायिकाएं ,सरकारी मुलाज़िम महिलाओ को बुलाकर महिला सशक्तिकरण के कार्यक्रम निपटाए जा रहे हैं ,जिसके कारन महिला सशक्क्तिकरण के ऐसे कार्यकर्मो की सार्थकता और उद्देश्य खत्म से हो गए ,महिलाओ के कार्यक्रमों से टारगेट ग्रुप की अशिक्षित ,शोषित ,पीड़ित ,संघर्षरत ,समाज की मुख्य धारा से वंचित ,भिक्षावृति से जुडी महिलाएं,विधवाए ,वीरांगनाएं ऐसे कार्यक्रमों से नदारद हैं ,जबकि महिला सशक्तिकरण के कार्यक्रमों का मूल उद्देश्य ही वंचित महिलाओ को मुख्य धारा से जोड़ना होता हैं ,मगर महिला कार्यक्रमों में टारगेट ग्रुप की महिलाओ को न तो आमंत्रित किया जाता हैं न ही उन्हें सरकारी योजनाओ से जोड़ने के प्रयास किये जाते हैं ,अमूमन महिलाओ से सम्बंधित कार्यक्रमों में आजकल आंगनवाड़ी कार्यक्रताओ ,सहायिकाओं ,परिचारिकाओं ,नर्सिंग प्रशिक्षणार्थियों ,और अन्य सरकारी विभागों में कार्यरत महिलाओ को बुला कर भीड़ कर ली जाती हैं ,उन्हें भाषण पिलाकर रवाना कर दिया जाता हैं ,यह किसी एक जिले की कहानी नहीं हैं ,बल्कि हर जगह यही होरहा हैं ,देखा जाये तो केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार ,उनके द्वारा महिलाओ के सशक्तिकरण ,स्वावलम्बन से जुड़े कार्यक्रम आयोजित करने का उद्देश्य ही वंचित महिलाओ को जोड़ना होता हैं ,मगर कच्ची बस्ती में हाड तोड़ मेहनत कर मजदूरी के जारी अपने परिवार का पेट पलने वाली महिला हो या समाज की मुख्य धारा से वंचित ,शोषित ,पीड़ित ,जरूरतमंद महिलाओ को ऐसे कार्यक्रमों में न तो आमंत्रित किया जाता हैं न ही उन्हें मुख्य धरा में जोड़ने के प्रयास किये जाते हैं ,ये महिलाए न तो महिला स्वावलम्बन का न ही महिला सशक्तिकरण का मतलब जानती हैं ,ऐसे में महिला दिवस हो या अन्य महिलाओ से जुड़े कार्यक्रमों की सार्थकता खत्म हो जाती हैं ,महिला से जुड़े भव्य कार्यक्रमों में आने वाले हुकमरानो को भी महिलाओं के वंचित वर्ग को मुख्य धारा में जोड़ने की याद नहीं आती। महज कार्यक्रम करना उद्देश्य होने की बजाय कार्यक्रम की सार्थकता को महत्व देना जरूरीहें ,जब तक वंचित वर्ग को ऐसे कार्यक्रमों से नहीं जोड़ेंगे तब तक ऐसे कार्यक्रम सिर्फ भीड़ एकत्रित करने वाले कार्यक्रम बन कर रह जायेंगे, जिन्हे ऐसे कार्यक्रमों की आवश्यकता हे उन्हें बुलाया नहीं जाता जिन्हे बुलाया जाता हे उन्हें ऐसे कार्यक्रमों से कोई सरोकार नहीं। इसी के चलते महिला सशक्तिकरण की योजनाए दम तोड़ रही हे या कागज़ी दस्तावेज बन कर रह गयी हैं,
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