बाड़मेर। भयंकरों दुःखों से परिपूर्ण होगा छठा आरा : साध्वी सुरंजनाश्री
रिपोर्ट :- चन्द्रप्रकाश छाजेड़ बी. / बाड़मेर
बाड़मेर। ६ वर्ष की बालिका गर्भ धारण कर बालको को जन्म देगी वो भी 1 या 2 नहीं सूअर के समान सद्रश अधिकाधिक बच्चे पैदा कर महा क्लेश का अनुभव करेगी, अतिशय दुःख के कारण अशुभ कर्म उपार्जन कर नरक- त्रियंच गति प्राप्त करेंगे, यह छठा आरा भयंकरों दुःखों से परिपूर्ण होगा। यह उद्बोधन साध्वी सुरंजनाश्री महाराज ने चातुर्मासिक प्रवचनमाला के दौरान रविवार को स्थानीय जैन न्याति नोहरा में उपस्थित जनसमुदाय को दिया।
साध्वी श्री ने छठे आरें की भयंकरता का वर्णन करते हुए कहा कि अभी पांचवा आरा चल रहा हे, और पांचवे आरे के अंत में और छठे आरे में इंसान का क्या हाल होगा शायद ही कुछ लोगो को मालूम होगा। उन्होंने कहा कि हम लोग अभी 5वें आरे के अंदर जी रहे हैं। यहां एक उत्तरता काल है और यह साढ़े 18 हजार साल चलने वाला है। बाद में छठा आरा शुरू होगा और यह भी 21 हजार साल का रहेगा। यह दुखों से भरा रहेगा, इस काल के अंदर रोटी, कपड़ा, मकान, झाड़, पान, पत्ते, धातु वगैरह कुछ भी नहीं रहेगा। इसके बाद का 21 हजार साल का पहला आरा चलेगा जो आगे का छठे और जैसा होगा। इन 42 हजार साल के अंदर बिल्कुल बारिश भी नहीं होगी और इस समय के लोग झील यानी कि गुफा में रहेंगे और गंगा नदी में से पानी पिएंगे और इस नदी में से मिली मछली, कच्छ, वगैरह जलचर आदि का प्राणी आहार करेगा। दूसरा आरा बैठेगा तभी आषाढ़ सुदी एकम से लेकर भद्रावती चौथ तक कुल 49 दिन का ऐसा 7 हफ्ते में से 5 हफ्ते सतत बारिश होगी और 2 हफ्ते सूखा जाएगा और इसके कारण 68 प्रकार के धन-धान्य पैदा होंगे। फिर शाकाहारी बन जाएंगे और बाकी के मांसाहारी रहेंगे और ऐसा करके शाकाहारी लोग संवत्सर यानी कि नई जिंदगी जीना चालू करेंगे।
इसी काल चक्र के पांचवे आरे के अंत में अग्नि की बारिश होगी, और उसमे भरत क्षेत्र के बहुत से लोग जल जायेंगे, कुछ लोग वैताढय पर्वत के बिल में रहेंगे। वहां पर मनुष्य का शरीर एक हाथ जितना होगा और आयुष्य 20 वर्ष का ही होगा, दिन में सक्त ताप, और रात में भयंकर ठण्ड रहेगी। बिलवासी मानव सूर्योदय के समय मछलिया और जलचरो को पकड़ कर रेती में दबा कर रखेंगे दिन में इतनी प्रचंड गर्मी पड़ेगी की वो रेती में दबाया हुवा मछली आदि अपने आप भुन जायेगा, और फिर रात में उसका भक्षण करेंगे परस्पर कलेश वाले, दीन-हीन, दुर्बल, रोगीष्ठ, अपवित्र, नग्न, आचारहीन और माता-बहन-पत्नी के प्रति विवेकहीन होंगे, और ६ वर्ष की बालिका गर्भ धारण कर बालको को जन्म देगी वो भी 1 या 2 नहीं सूअर के समान सद्रश अधिकाधिक बच्चे पैदा कर महा क्लेश का अनुभव करेगी, अतिशय दुःख के कारण अशुभ कर्म उपार्जन कर नरक- त्रियंच गति प्राप्त करेंगे, इस आरे में दुःख ही दुःख हे। अब आप सोच रहे होंगे की इतना दुःख हे वहा तो सुख कहा और कैसे प्राप्त करना, क्यों की ये तो हमने भूमिका मात्र बताई हे वहा दुःख की पूरी जानकारी अभी आपको बताएँगे तो आपके रौंगटे खड़े हो जाये, अभी अगर आपको छ्टे आरे में जन्म ना लेना हो और सुखी जीवन जीकर अपना जीवन सफल बनाना हो तो उसके लिए वीर प्रभु फरमाते हे उसे जीवन भर रात्रि भोजन का त्याग करना चाहिए, नहीं तो रात्रि भोजन और कन्दमूल आदि के कुसंस्कार वाले छ्टे आरे में जन्म धारण करने के फल स्वरूप अनेकविध कष्ठ, दुःख और यातनाओ के भागी बनेंगे, इस प्रकार कषाय की परंपरा से दुखों की परंपरा का सर्जन होता हे।
ज्ञान पंचमी की आराधना सोमवार को- खरतरगच्छ चातुर्मास समिति के सहसंयोजक मनसुखदास पारख व शिवाजी गु्रप अध्यक्ष कैलाश मेहता ने बताया कि सोमवार को गुरूमैया की निश्रा में स्थानीय जैन न्याति नोहरा में ज्ञान पंचमी की आराधना करवाई जायेगी तथा विभिन्न मंडलों के सहयोग से ज्ञान के उपकरणों की सजवाट की जायेगी व ज्ञान की पूजा की जायेगी। ज्ञान की वृद्धि के लिए पुस्तक, कलम आदि ज्ञान के उपकरण चढ़ाये जायेगें।
सामुहिक 1008 आयंबिल का आयोजन 25 को- खरतरगच्छ चातुर्मास समिति के मिडिया प्रभारी चन्द्रप्रकाश छाजेड़ व खरतरगच्छ जैन युवक परिषद के वीरचंद भंसाली ने बताया कि कलिकाल कल्पतरू जैन जगत के तृतीय दादा गुरूदेव जिनकुशलसूरिजी की 739वीं जन्म जयंती के उपलक्ष में दिनांक 25 नवम्बर रविवार को गुरूमैंया श्री सुरंजनाश्रीजी म.सा. की पावन प्रेरणा व निश्रा में सामुहिक 1008 आयंबिल का आयोजन खरतरगच्छ संघ द्वारा किया गया है। सम्पूर्ण आयंबिल करवाने का लाभ नेमीचंद बोहरीदास पारख परिवार हरसाणीवालों द्वारा लिया गया है। आयंबिल की व्यवस्था वसी कोटड़ा चौबीस गांव भवन में की गई है।
रिपोर्ट :- चन्द्रप्रकाश छाजेड़ बी. / बाड़मेर
बाड़मेर। ६ वर्ष की बालिका गर्भ धारण कर बालको को जन्म देगी वो भी 1 या 2 नहीं सूअर के समान सद्रश अधिकाधिक बच्चे पैदा कर महा क्लेश का अनुभव करेगी, अतिशय दुःख के कारण अशुभ कर्म उपार्जन कर नरक- त्रियंच गति प्राप्त करेंगे, यह छठा आरा भयंकरों दुःखों से परिपूर्ण होगा। यह उद्बोधन साध्वी सुरंजनाश्री महाराज ने चातुर्मासिक प्रवचनमाला के दौरान रविवार को स्थानीय जैन न्याति नोहरा में उपस्थित जनसमुदाय को दिया।
साध्वी श्री ने छठे आरें की भयंकरता का वर्णन करते हुए कहा कि अभी पांचवा आरा चल रहा हे, और पांचवे आरे के अंत में और छठे आरे में इंसान का क्या हाल होगा शायद ही कुछ लोगो को मालूम होगा। उन्होंने कहा कि हम लोग अभी 5वें आरे के अंदर जी रहे हैं। यहां एक उत्तरता काल है और यह साढ़े 18 हजार साल चलने वाला है। बाद में छठा आरा शुरू होगा और यह भी 21 हजार साल का रहेगा। यह दुखों से भरा रहेगा, इस काल के अंदर रोटी, कपड़ा, मकान, झाड़, पान, पत्ते, धातु वगैरह कुछ भी नहीं रहेगा। इसके बाद का 21 हजार साल का पहला आरा चलेगा जो आगे का छठे और जैसा होगा। इन 42 हजार साल के अंदर बिल्कुल बारिश भी नहीं होगी और इस समय के लोग झील यानी कि गुफा में रहेंगे और गंगा नदी में से पानी पिएंगे और इस नदी में से मिली मछली, कच्छ, वगैरह जलचर आदि का प्राणी आहार करेगा। दूसरा आरा बैठेगा तभी आषाढ़ सुदी एकम से लेकर भद्रावती चौथ तक कुल 49 दिन का ऐसा 7 हफ्ते में से 5 हफ्ते सतत बारिश होगी और 2 हफ्ते सूखा जाएगा और इसके कारण 68 प्रकार के धन-धान्य पैदा होंगे। फिर शाकाहारी बन जाएंगे और बाकी के मांसाहारी रहेंगे और ऐसा करके शाकाहारी लोग संवत्सर यानी कि नई जिंदगी जीना चालू करेंगे।
इसी काल चक्र के पांचवे आरे के अंत में अग्नि की बारिश होगी, और उसमे भरत क्षेत्र के बहुत से लोग जल जायेंगे, कुछ लोग वैताढय पर्वत के बिल में रहेंगे। वहां पर मनुष्य का शरीर एक हाथ जितना होगा और आयुष्य 20 वर्ष का ही होगा, दिन में सक्त ताप, और रात में भयंकर ठण्ड रहेगी। बिलवासी मानव सूर्योदय के समय मछलिया और जलचरो को पकड़ कर रेती में दबा कर रखेंगे दिन में इतनी प्रचंड गर्मी पड़ेगी की वो रेती में दबाया हुवा मछली आदि अपने आप भुन जायेगा, और फिर रात में उसका भक्षण करेंगे परस्पर कलेश वाले, दीन-हीन, दुर्बल, रोगीष्ठ, अपवित्र, नग्न, आचारहीन और माता-बहन-पत्नी के प्रति विवेकहीन होंगे, और ६ वर्ष की बालिका गर्भ धारण कर बालको को जन्म देगी वो भी 1 या 2 नहीं सूअर के समान सद्रश अधिकाधिक बच्चे पैदा कर महा क्लेश का अनुभव करेगी, अतिशय दुःख के कारण अशुभ कर्म उपार्जन कर नरक- त्रियंच गति प्राप्त करेंगे, इस आरे में दुःख ही दुःख हे। अब आप सोच रहे होंगे की इतना दुःख हे वहा तो सुख कहा और कैसे प्राप्त करना, क्यों की ये तो हमने भूमिका मात्र बताई हे वहा दुःख की पूरी जानकारी अभी आपको बताएँगे तो आपके रौंगटे खड़े हो जाये, अभी अगर आपको छ्टे आरे में जन्म ना लेना हो और सुखी जीवन जीकर अपना जीवन सफल बनाना हो तो उसके लिए वीर प्रभु फरमाते हे उसे जीवन भर रात्रि भोजन का त्याग करना चाहिए, नहीं तो रात्रि भोजन और कन्दमूल आदि के कुसंस्कार वाले छ्टे आरे में जन्म धारण करने के फल स्वरूप अनेकविध कष्ठ, दुःख और यातनाओ के भागी बनेंगे, इस प्रकार कषाय की परंपरा से दुखों की परंपरा का सर्जन होता हे।
ज्ञान पंचमी की आराधना सोमवार को- खरतरगच्छ चातुर्मास समिति के सहसंयोजक मनसुखदास पारख व शिवाजी गु्रप अध्यक्ष कैलाश मेहता ने बताया कि सोमवार को गुरूमैया की निश्रा में स्थानीय जैन न्याति नोहरा में ज्ञान पंचमी की आराधना करवाई जायेगी तथा विभिन्न मंडलों के सहयोग से ज्ञान के उपकरणों की सजवाट की जायेगी व ज्ञान की पूजा की जायेगी। ज्ञान की वृद्धि के लिए पुस्तक, कलम आदि ज्ञान के उपकरण चढ़ाये जायेगें।
सामुहिक 1008 आयंबिल का आयोजन 25 को- खरतरगच्छ चातुर्मास समिति के मिडिया प्रभारी चन्द्रप्रकाश छाजेड़ व खरतरगच्छ जैन युवक परिषद के वीरचंद भंसाली ने बताया कि कलिकाल कल्पतरू जैन जगत के तृतीय दादा गुरूदेव जिनकुशलसूरिजी की 739वीं जन्म जयंती के उपलक्ष में दिनांक 25 नवम्बर रविवार को गुरूमैंया श्री सुरंजनाश्रीजी म.सा. की पावन प्रेरणा व निश्रा में सामुहिक 1008 आयंबिल का आयोजन खरतरगच्छ संघ द्वारा किया गया है। सम्पूर्ण आयंबिल करवाने का लाभ नेमीचंद बोहरीदास पारख परिवार हरसाणीवालों द्वारा लिया गया है। आयंबिल की व्यवस्था वसी कोटड़ा चौबीस गांव भवन में की गई है।
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