पश्चिमी राजस्थान के इस मरुकुंभ मेले में आएँगे 10 लाख श्रद्धालु, 5 योग पर 5 पावन स्थानों के जल से होगा पवित्र स्नान
बाड़मेर: राजस्थान में अनेक त्यौहार व मेले लगते है, इन मेलों की अनूठी परम्परा एवं संस्कृति अन्यत्र मिलना कठिन है। यहां का प्रत्येक मेला एवं त्यौहार लोक जीवन की किसी न किसी ऐतिहासिक कथानक से जुड़ा हुआ है। इसलिए इनके आयोजन में सम्पूर्ण लोक जीवनपूर्ण सक्रियता से भाग लेता है। इन मेलों में राजस्थान की संस्कृति जीवंत हो उठती है। इन मेलों के अपने गीत हैं, जिनके प्रति जन साधारण की गहरी आस्था दृष्टिगोचर होती है। इससे लोग एकता के सूत्र में बंधें रहते हैं। राजस्थान में अधिकांश मेले पर्व व त्यौहार के साथ जुड़े हुए हैं। जहां पर मेला लगता है वहां दूर-दूर से लोग आते हैं। इन मेलों में एक ऐसा भी मेला लगता है, जिनकी खासियत भी कुछ अलग है, जो रेगिस्तान के सूखे बियाबान मरूस्थलीय इलाके से सम्बन्ध रखता है,
रेगिस्तान में पेयजल संकट से जूझने वाले आम जन के लिये पीने का पानी जहां एक बड़ा संकट है, और पानी कितना अमूल्य धरोहर है, यह बात तो मरू वासियों के जहन में सदियों से बैठी हुई है। वहीं पश्चिमी रेगिस्तान में सतही जल, पारंपरिक जल स्त्रोतो जैसे तालाब, बेरी, टांकों, से उपलब्ध होता है। इन स्त्रोतो में बरसात का पानी संग्रह करके रखा जाता है।वहीं देश की पवित्र नदियों के त्रिवेणी संगम स्थलों पर पवित्र स्नान के लिये कुम्भ के मेले भी यहां लगते है, यहाँ के मरूस्थलीय इलाके चौहटन में मरुकुम्भ के नाम से विख्यात सुईंया पोषण मेला देश मे अपनी अलग पहचान रखता है।
मान्यताओं के अनुसार चौहटन के डूंगरपुरी मठ के सानिध्य में लगने वाला सुईंया मेला कुम्भ के मेलों से भी उच्च मान्यता और पवित्रता के लिए प्रसिद्ध है। यहां लगने वाली छाप अन्य स्थलों की छाप से ऊपर ही लगाई जाती है, ऐसी मान्यता है। पाण्डवो की तपो भूमि एवं ईश्वर अवतार डूंगरपुरी महाराज की कर्मस्थली चौहटन मे 12 साल के लंबे अंतराल व इन्तजार के बाद मरु कुम्भ के नाम से विख्यात सुईंया धाम पौषण स्नान मेला आगामी 18 दिसम्बर 2017 तदनुसार वि.स. 2074 पौष वदी सोमवती अमावस्या को भरा जायेगा!
सुईंया पोषण मेले के दौरान एक अनुमान के मुताबिक दस लाख श्रद्धालु महिला पुरूष मरु कुम्भ में पवित्र स्नान के लिये आएंगे। मेले को लेकर जहां ध्वजारोहण के साथ साधुसंतों के पहुंचने का क्रम शुरू हो जाएगा। वहीं 16 की रात और 17 को सवेरे से ही श्रद्धालुओं के पहुंचने का दौर शुरू होगा। अठठारह को प्रातः छः बजे से दोपहर बारह बजे के पवित्र स्नान मुहुर्त में स्नान के बाद श्रद्धालुओं के लौटने का क्रम शुरू हो जाएगा।
पांच योग बनने पर सजता है सुईंया: हिंदी कलेंडर वर्ष में पौष माह, अमावस्या, सोमवार, मूलनक्षत्र एवं व्यातिपात योग आदि पांच योग एक ही समय मे मिलने पर ही सुईंया का पवित्र स्नान मेला लगता है। इस पांच योग के पवित्र संगम के अवसर पर पांच पवित्र स्थलों के पवित्र जल से श्रद्धालू पवित्र स्नान का लाभ प्राप्त करने की मान्यता है।
पवित्र स्नान की है परंपरा: सुईंया मेला को मरुकुम्भ पवित्र स्नान की मान्यता है। यहां लाखों श्रद्धालू महिला पुरुष कड़कड़ाती सर्दी में पवित्र स्नान करने पहुँचते है। इस दिन यहां सुईंया महादेव मंदिर का झरना, कपालेश्वर महादेव मंदिर का झरना, विष्णु पगलिया मंदिर का झरना, धर्मराज की बेरी व इंद्रभान तालाब के पांच स्थानों के पवित्र मिश्रित जल से स्नान कर श्रद्धालू अपने पाप-कर्मो को धोकर शुद्धता का अनुभव करते है। दिसम्बर में आयोजित मेले में पवित्र स्नान का मुहुर्त अठठारह दिसम्बर को सवेरे छः बजे से दोपहर बारह बजे तक माना गया है।
ये हैं मुख्य दर्शनीय स्थल: डूंगरपुरीजी के मठ सहित यहां धर्मराज मन्दिर, इन्द्रभाण, एक हजार साल पुराना सुईंया महादेव मन्दिर एव झरना, कपालेश्वर महादेव मन्दिर व पवित्र झरना, विष्णु पगलिया मन्दिर व झरना, सरगा सैरी, अंधेरी कोठी, हिगलाज माता का मंदिर, कस्बे में जगदम्बा माता के मन्दिर, हनुमान मदिर, खीमपुरी की धूणा, रामदेव मंदिर, हनुमान एवं राधा कृष्ण मंदिर, वांकल-धाम विरात्रा, वैरमाता मंदिर सहित दर्जनों दर्शनीय एवं पूज्य स्थल है। जहां श्रद्धालू नतमस्तक होकर मन्नतें मांगते हे।
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