पाक से आए और यही के होकर रह गए शरणार्थी
बाड़मेर। थार के रेगिस्तान का जितना बड़ा भू-भाग है उतना ही विशाल इस मरुधरा का हृदय। आजादी के बाद से करीब 62082 शरणार्थी पाकिस्तान छोड़ यहां आकर बसे। अभावों में जीने वाले इस इलाके के लोगों ने इन्हें एेसे अपणायत दी कि शरणार्थी बनकर आए चौहटन के तरुणराय कागा विधायक बन गए हैं।
विधायक बन गए कागा
1965 के बाद आए शरणार्थियों में चौहटन के तरुणराय कागा भी शामिल हैं। कागा ने यहां पहले सरकारी नौकरी की और इसके बाद वे लोगों से इतने जुड़ गए कि राजनीति में कदम रखा तो उनको विजयी बना लोगों ने विधानसभा तक भेज दिया। कागा कहते हैं कि भारत से उनको दिल से लगाव है। इस वतन ने इतना कुछ दिया है कि हर दिन हिन्दुस्तान जिंदाबाद कहता हूं।
आरएएस अधिकारी हैं कई
शरणार्थी परिवारों की खुशहाली का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां आने के बाद अब इनके परिवार के सदस्य आरएएस, आईएफएस, डॉक्टर, इंजीनियर और बड़े पदों पर पहुंच रहे हैं। महेश दादाणी बताते हैं कि पहली पीढ़ी से आए लोग भी सरकारी सेवाओं में पहुंच गए और इसके बाद यहां रहते हुए हमारे परिवारों ने शिक्षा को अपनाते हुए खुद को आगे बढ़ाया। अब आरएएस और अन्य सेवाओं में पहुंच रहे हैं।
आने का सिलसिला जारी
पाकिस्तान से 1947, 1965 और 1971 में बड़ी संख्या में शरणार्थी आए। यह सिलसिला आज भी जारी है। थार एक्सप्रेस चलने के बाद हर फेरे में एक-दो परिवार यहां पहुंचकर जोधपुर और बाड़मेर में आकर बस रहे हैं।
रोटी-बेटी का रिश्ता
शरणार्थी यहां आने के बाद रोटी-बेटी के रिश्ते से जुड़े और उनके परिवारों के संबंध यहां बसे लोगों से भी हो रहे हैं। एेसे में रोटी-बेटी के इस रिश्ते ने शरणार्थियों को नई पहचान दी है।
जिंदगी ही बदल दी
शहर के बेरियों का बास में बसे शरणार्थी परिवारों की जिंदगी ही अलग हो गई है। इन लोगों की तीसरी पीढ़ी अब यहां है। दूसरी पीढ़ी में ही अधिकांश सरकारी नौकरियों में लग गए। राजनीति से लेकर हर क्षेत्र में इन परिवारों की पहचान है। डॉ. हितेश आचार्य कहते हैं कि भारत हमारे पुरखे आए थे। इसके बाद रिश्तेदार भी आए। इस वतन ने हम लोगों को शरणार्थी नहीं परिवार का सदस्य बनाकर रखा।
इस कारण मनाते हैं यह दिवस
जिन देशों में जाति, धर्म या भाषा के नाम पर गृहयुद्ध होते हैं या दूसरे देश का आक्रमण होने पर वहां आबादी का एक बड़ा हिस्सा पलायन कर अन्य देश में शरण लेता है तो उसे अपना सबकुछ छोडऩा पड़ता है। ये लोग रोटी, कपड़ा व मकान सहित कई समस्याओं से घिर जाते हैं। इस वक्त दुनिया में 4 करोड़ 33 लाख लोग शरणार्थी हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने शरणार्थियों की समस्याओं और मानवाधिकार के प्रति जागरूक करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने हर वर्ष 20 जून को शरणार्थी दिवस मनाने की घोषणा की। इसके बाद 20 जून 2001 से यह दिवस मनाया जा रहा है।
ये है शरणार्थियों की समस्याएं
- शरणार्थियों को यहां स्थायीवास पर रहने की अनुमति है, इसका शुल्क 100 रुपए सालाना है। जिसे 10 रुपए करने की मांग की जा रही है।
- सात साल बाद भारत की नागरिकता मिलती है। शरणार्थियों की मांग है कि यह समय पांच साल किया जाए।
- शरणार्थियों को यहां आते ही पाकिस्तान से हासिल की गई उनकी डिग्री के आधार पर सरकारी नौकरी व अन्य कार्य में तवज्जो दी जाए। वे यहां आकर दिहाड़ी मजदूरी को मजबूर हैं।
- शरणार्थियों को आवंटित जमीनों के मामलों का निपटारा किया जाए, ताकि वे यहां पर अपने स्थायी आवास बना रह सकें।
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