दि मांगणियार सिडक्शन…
जयपुर के जवाहर कला केन्द्र में 8 दिवसीय नवरस समारोह का हुआ आगाज। 36 झरोखों से निकले धोरां री धरती के राग और ताल। रॉयस्टन एबेल द्वारा निर्दिशित “मांगणियार सिडक्शन” की प्रस्तुति का राजस्थान की पहचान बन चुके मांगणियार कलाकारों ने बुल्लशाहों के कलामों से सूफियत की नई इबारत लिखी।
36 कलाओं के प्रतीक 36 झरोखेइस प्रस्तुति का मुख्य आकर्षण छत्तीस झरोखों वाला चार खंडीय सेट रहा…..ये झरोखे खूबसूरत होने के साथ साथ हमारी संस्कृति की छत्तीस कलाओं का प्रतिनिधित्व करते भी नजर आए ….हर खंड में नौ झरोखे बनाए गए जिनमें बैठकर कलाकारों ने आकर्षक लाइट इफेक्ट के बीच प्रस्तुति दी….खास बात ये रही कि इसमें एक एक कलाकार की कला और वाद्धयों की लय ताल निजी रूप से फोकस हुई अन्यथा सामान्य बैठक वाली प्रस्तुतियों में दबकर रह जाती है…
जवाहर कला केन्द्र में “नवरस”कमायचा, ढोलक, खड़ताल, मुरली, सारंगी, मोरचंग, भपंग,अलगोजा और ढोल की धुनों के साथ राजस्थानी लोकगीतों की खूबसूरती 30 फीट के क्यूबिकल बाँक्सेज से निकलकर आई….मौका था जवाहर कला केंद्र की ओर से आयोजित परफाँर्मिंग आर्ट फेस्टिवल नवरस में राँयस्टेन एबल निर्देशित मांगणियार सिडक्शन की प्रस्तुति का….जैसलमेर और बाड़मेर के कलाकारों ने बाबा बुल्लेशाह के कलाम के साथ लोक गीतों की ऐसी महफिल सजाई कि एक एक दर्शक तालियाँ बजाता दिखा….यह परर्फामेंस थिएटर और म्यूजिकल प्रस्तुतियों का खूबसूरत संयोजन था….कार्यक्रम में सीएम और आर्ट एंड कल्चर डिपार्टमेंट के प्रिंसिपल सेक्रेटरी शैलेन्द्र अग्रवाल भी मौजूद थे।
मांगणियार परिवारों ने संजोई कलाराजा महराजाओं के समय से ही मांगणियार परिवारों का संगीत से जुड़ाव है और इसलिए आज भी मांगणियार परिवार का हर सदस्य इसमें योगदान दे रहा है….जैसलमेर और बाड़मेर के कलाकारों ने राजस्थान के फोक म्यूजिक को विश्वभर में पहुंचाया है।
जयपुर के जवाहर कला केन्द्र में 8 दिवसीय नवरस समारोह का हुआ आगाज। 36 झरोखों से निकले धोरां री धरती के राग और ताल। रॉयस्टन एबेल द्वारा निर्दिशित “मांगणियार सिडक्शन” की प्रस्तुति का राजस्थान की पहचान बन चुके मांगणियार कलाकारों ने बुल्लशाहों के कलामों से सूफियत की नई इबारत लिखी।
36 कलाओं के प्रतीक 36 झरोखेइस प्रस्तुति का मुख्य आकर्षण छत्तीस झरोखों वाला चार खंडीय सेट रहा…..ये झरोखे खूबसूरत होने के साथ साथ हमारी संस्कृति की छत्तीस कलाओं का प्रतिनिधित्व करते भी नजर आए ….हर खंड में नौ झरोखे बनाए गए जिनमें बैठकर कलाकारों ने आकर्षक लाइट इफेक्ट के बीच प्रस्तुति दी….खास बात ये रही कि इसमें एक एक कलाकार की कला और वाद्धयों की लय ताल निजी रूप से फोकस हुई अन्यथा सामान्य बैठक वाली प्रस्तुतियों में दबकर रह जाती है…
जवाहर कला केन्द्र में “नवरस”कमायचा, ढोलक, खड़ताल, मुरली, सारंगी, मोरचंग, भपंग,अलगोजा और ढोल की धुनों के साथ राजस्थानी लोकगीतों की खूबसूरती 30 फीट के क्यूबिकल बाँक्सेज से निकलकर आई….मौका था जवाहर कला केंद्र की ओर से आयोजित परफाँर्मिंग आर्ट फेस्टिवल नवरस में राँयस्टेन एबल निर्देशित मांगणियार सिडक्शन की प्रस्तुति का….जैसलमेर और बाड़मेर के कलाकारों ने बाबा बुल्लेशाह के कलाम के साथ लोक गीतों की ऐसी महफिल सजाई कि एक एक दर्शक तालियाँ बजाता दिखा….यह परर्फामेंस थिएटर और म्यूजिकल प्रस्तुतियों का खूबसूरत संयोजन था….कार्यक्रम में सीएम और आर्ट एंड कल्चर डिपार्टमेंट के प्रिंसिपल सेक्रेटरी शैलेन्द्र अग्रवाल भी मौजूद थे।
मांगणियार परिवारों ने संजोई कलाराजा महराजाओं के समय से ही मांगणियार परिवारों का संगीत से जुड़ाव है और इसलिए आज भी मांगणियार परिवार का हर सदस्य इसमें योगदान दे रहा है….जैसलमेर और बाड़मेर के कलाकारों ने राजस्थान के फोक म्यूजिक को विश्वभर में पहुंचाया है।
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