कराची प्लेन Hijack: भारत की इस बेटी की मौत पर PAK भी रोया, बचाईं थी सैकड़ों जिंदगियां
भारत लगातार आतंकवाद का सामना कर रहा है। हमारे सैनिक आतंकियों को निशाना बना रहे हैं। साथ ही हमारे वीर जवान शहीद भी हो रहे हैं। हम आपको एक ऐसी भारतीय वीरांगना की कहानी बताने जा रहे हैं। जिसने बहादुरी का परिचय देते हुए अपनी जान गंवा कर भी सैकड़ों लोगों को नई जिंदगी दी। भारतीय इतिहास में जब भी वीरांगनाओं की बात हो, इन्हें भूला नहीं जा सकता है। ये कहानी नीरजा भनोट की। नीरजा भनोट ने आतंकियों का सामना करते हुए 359 लोगों की जान बचाई थी।
आज पठानकोट में आतंकी हमला हुआ। हमारे जाबाज सैनिकों ने मुंहतोड़ जवाब देते हुए 4 आतंकियों को मार गिराया। हम आपको ऐसी ही एक आतंकी घटना की दास्तां बताने जा रहे हैं, जिसमें एक भारतीय महिला ने आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब दिया।
कौन थी नीरजा भनोट?
नीरजा का जन्म 7 सितंबर 1964 को चंडीगढ़ में हुआ था। उनके पिता का नाम हरीश भनोट और मां का नाम रमा भनोट था। नीरजा को बचपन से ही प्लेन में बैठने और आकाश में उड़ने की इच्छा थी। साल 1985 में नीरजा की शादी हुई, लेकिन दहेज के दबाव के कारण उनके रिश्तों में खटास आ गई और वे शादी के दो महीने बाद ही मुबंई लौट आई थी। जिसके बाद 1986 में उन्होंने पैन एम (PAN AM) एयर लाइंस ज्वाइन की। 5 सितंबर 1986 का दिन उनके लिए इस दुनिया में आखिरी दिन था।
आखिर 5 सितंबर को ऐसा क्या हुआ?
5 सितंबर 1986 की सुबह पैन एम विमान कराची में उतरा। प्लेन ने मुंबई से उड़ान भरी थी और उसे फ़्रंकफ़र्ट होते हुए न्यूयॉर्क शहर जाना था। इस विमान में भारतीय ,जर्मन, अमेरिकी और पाकिस्तानी पैसेंजर्स सवार थे। दुर्भाग्यवश जब ये विमान कराची के जिन्ना अन्तराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर खड़ा अपने पायलट का इंतजार कर रहा था तब इसे हाईजैक कर लिया गया। हथियारों से लैस चार आतंकी विमान में दाखिल हुए। इसी फ्लाइट में नीरजा भनोट एयरहोस्टेस थी।
कैसे बचाई लोगों की जान?
प्लेन हाईजैक करने के बाद आतंकवादियों ने पाकिस्तान सरकार पर दबाव बनाया कि वह जल्द से जल्द पायलट को भेजें। किन्तु पाकिस्तानी सरकार ने मना कर दिया। तब आतंकियों ने नीरजा और उसकी सहयोगियों को बुलाया और सभी पैसेंजर्स के पासपोर्ट एकत्रित करने को कहा। ताकि वो किसी अमेरिकन नागरिक को मारकर पाकिस्तान पर दबाव बना सके। उस वक्त नीरजा ने सभी पैसेंजर्स के पासपोर्ट एकत्र किए और विमान में बैठे 5 अमेरिकी यात्रियों के पासपोर्ट छुपाकर बाकी सभी आतंकियों को सौंप दिए। उसके बाद आतंकियों ने एक ब्रिटिश को विमान के गेट पर लाकर पाकिस्तानी सरकार को धमकी दी कि यदि पायलट नहीं भेजे तो वह उसको मार देगे। किन्तु नीरजा ने उस आतंकी से बात करके उस ब्रिटिश नागरिक को भी बचा लिया।
आतंकियों और पाक सरकार के बीच वार्ता फेल
आतंकी लगातार पाकिस्तान सरकार से डील कर रहे थे, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल रहा था। सरकार उनकी बात मानने को तैयार नहीं थी। इसी के साथ प्लेन का फ्यूल भी खत्म हो रहा था। आतंकियों ने सभी पैसेंजर्स को मारने की बात सोच ली, यह बात नीरजा ने भांप ली। जैसे ही फ्यूल खत्म हुआ चारों तरफ अंधेरा हो गया। नीरजा ने प्लेन के सभी इमरजेंसी डोर खोल दिए और लोग नीचे कूदने लगे। आतंकियों ने अंधेरे में फायरिंग करना शुरू कर दिया। तब तक नीरजा ने लगभग सभी पैसेंजर्स को बचा लिया था। वहीं पाकिस्तान सैनिकों ने प्लेन के अंदर आकर तीन आतंकियों को मौत की नींद सुला दिया था।
कैसे गई नीरजा भनोट की जान?
नीरजा फ्लाइट में मौजूद तीन बच्चों को खोज रही थी। आखिरकार उन्होंने बच्चों को ढूंढ लिया और उन्हें लेकर विमान के आपातकालीन दरवाजे की ओर बढ़ने लगी। उसी वक्त चौथा आतंकी नीरजा के सामने आ गया, लेकिन नीरजा ने खुद की जान की परवाह ना करते हुए बच्चों को बचाया। मगर आतंकी ने कई गोलियां उसके सीने में उतार डाली। इसके बाद नीरजा की मौत हो गई।
नीरजा के बलिदान को भारत-पाक दोनों ने किया सम्मानित
नीरजा के बलिदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च नागरिक सम्मान अशोक चक्र प्रदान किया। वहीं पाकिस्तान की सरकार ने भी नीरजा भनोट को तमगा-ए-इन्सानियत प्रदान किया। दोनों देश हमेशा नीरजा के बलिदान को याद रखेंगे।
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