बाड़मेर। कलियुग में सत्संग कना ही सबसे उतम है - संत डाॅ. रामस्वरूप शास्त्री
बाड़मेर। रामस्नेही प्रांगण मंे चल रही श्रीमद भागवत कथा के अंतिम दिन शनिवार को रामस्नेही संत डाॅ. रामस्वरूप शास्त्री ने कहा कि वर्तमान के भौतिकवादी कलियुग समय में अपने भव को सुधारने के लिए सतसंग ही सबसे उतम साधन है। क्योंकि सत्संग में भाव की जागृति होती है, सत्संग समस्त साधनों का द्वार है इससे अपना जीवन सफल बना सकते है।
रामस्नेही भक्त राजाराम सर्राफ ने बताया कि कथा के अंतिम दिन कथा व्यास संत डॅा. रामस्वरूप शास्त्री ने कृष्ण वासुदेव उपदेश का प्रसंग बताया। इस पर भजन गायक ने ‘‘मन लागों मेरे राम फकीरेी में ..........’’का भजन गाकर भक्तों को भक्ति रस से सरोकार कर दिया। संत डाॅ. शास्त्री ने कहा कि अंहकारी व्यक्ति कभी भी भक्ति नहीं कर सते है और भक्ति व अंहकार का कई मेल नहीं है। व्यक्ति को हमेशा निर्मल मन रखना चाहिए। तो भगवान भी आपके साथ रहेगें। इस पर संत श्री ने कहा कि निर्मल मन जन सोई जन पावा निम्रल मन भगवान भक्ति के लिए प्रेरित करता रहता है। कथा में 24 गुरूओं का वृतान्त सुनाया और कहा कि परमात्मा की माया सर्वत्र व्याप्त है। परमात्मा की भक्ति करने से मुक्ति संभव है। अन्यथा भक्ति मोह माया में फंसा रहता है। संत ने कहा कि भक्ति को समय न अन्न का अपना नहंी करना चाहिए। इनका सम्मान करना व्यक्ति के उत्थान का प्रतीत है।
संत श्री ने कहा कि ज्ञान विज्ञान और समस्त वेदों का सार आपके सामने सात दिनों से श्रीमद भागवत कथा के माध्यम से आपके समक्ष श्रज्ञवण करवा दिया है। आप सभी प्रभु का स्मरण करते रहे। सर्राफ ने बताया कि कथा के अंत में संत सुखराम महाराज द्वारा किर्तन व भण्डार के संत रमताराम द्वारा आर्शीवचन कहे गए। मनोहरलाल ओम प्रकाश मुथा परिवार द्वारा व्यास पीठ संत डाॅ. रामस्वरूप शास्त्री मण्डार के संत रमताराम, बालोतरा के संत सुखराम केलवा के संत रामशरण, बाडत्रमेर के संत विजयराम, बीकानेर के संत मनमोहनराम का बहुमान किया गया। रामस्नेही रामद्वारा सत्संग मंडल की ओर से मुख्य यजमान ओमप्रकाश मुािा व उनकी पत्नी व पुत्र निखिल मुथा का साफा पहना माल्यार्पण व साल ओढाकर किया गया। बालोतरा के भक्तों द्वारा यजमानेां के राधे कृष्ण की तस्वीर भेंट की गई। तत्पश्चात भागवत जी को सिर पर उठाकर जयकारों के साथ यथा स्थान पहुंचाया गया।
बाड़मेर। रामस्नेही प्रांगण मंे चल रही श्रीमद भागवत कथा के अंतिम दिन शनिवार को रामस्नेही संत डाॅ. रामस्वरूप शास्त्री ने कहा कि वर्तमान के भौतिकवादी कलियुग समय में अपने भव को सुधारने के लिए सतसंग ही सबसे उतम साधन है। क्योंकि सत्संग में भाव की जागृति होती है, सत्संग समस्त साधनों का द्वार है इससे अपना जीवन सफल बना सकते है।
रामस्नेही भक्त राजाराम सर्राफ ने बताया कि कथा के अंतिम दिन कथा व्यास संत डॅा. रामस्वरूप शास्त्री ने कृष्ण वासुदेव उपदेश का प्रसंग बताया। इस पर भजन गायक ने ‘‘मन लागों मेरे राम फकीरेी में ..........’’का भजन गाकर भक्तों को भक्ति रस से सरोकार कर दिया। संत डाॅ. शास्त्री ने कहा कि अंहकारी व्यक्ति कभी भी भक्ति नहीं कर सते है और भक्ति व अंहकार का कई मेल नहीं है। व्यक्ति को हमेशा निर्मल मन रखना चाहिए। तो भगवान भी आपके साथ रहेगें। इस पर संत श्री ने कहा कि निर्मल मन जन सोई जन पावा निम्रल मन भगवान भक्ति के लिए प्रेरित करता रहता है। कथा में 24 गुरूओं का वृतान्त सुनाया और कहा कि परमात्मा की माया सर्वत्र व्याप्त है। परमात्मा की भक्ति करने से मुक्ति संभव है। अन्यथा भक्ति मोह माया में फंसा रहता है। संत ने कहा कि भक्ति को समय न अन्न का अपना नहंी करना चाहिए। इनका सम्मान करना व्यक्ति के उत्थान का प्रतीत है।
संत श्री ने कहा कि ज्ञान विज्ञान और समस्त वेदों का सार आपके सामने सात दिनों से श्रीमद भागवत कथा के माध्यम से आपके समक्ष श्रज्ञवण करवा दिया है। आप सभी प्रभु का स्मरण करते रहे। सर्राफ ने बताया कि कथा के अंत में संत सुखराम महाराज द्वारा किर्तन व भण्डार के संत रमताराम द्वारा आर्शीवचन कहे गए। मनोहरलाल ओम प्रकाश मुथा परिवार द्वारा व्यास पीठ संत डाॅ. रामस्वरूप शास्त्री मण्डार के संत रमताराम, बालोतरा के संत सुखराम केलवा के संत रामशरण, बाडत्रमेर के संत विजयराम, बीकानेर के संत मनमोहनराम का बहुमान किया गया। रामस्नेही रामद्वारा सत्संग मंडल की ओर से मुख्य यजमान ओमप्रकाश मुािा व उनकी पत्नी व पुत्र निखिल मुथा का साफा पहना माल्यार्पण व साल ओढाकर किया गया। बालोतरा के भक्तों द्वारा यजमानेां के राधे कृष्ण की तस्वीर भेंट की गई। तत्पश्चात भागवत जी को सिर पर उठाकर जयकारों के साथ यथा स्थान पहुंचाया गया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें