नई दिल्ली।PM मोदी के विमान की संचार व्यवस्था में सेंध का खुलासा, दुश्मन सुन सकते हैं उनकी टॉप सीक्रेट बातचीत
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिन बोइंग विमानों में यात्रा करते हैं, उनकी संचार व्यवस्था में सेंध लगाई जा सकती है और ग्राउंड स्टेशन पर बैठे लोगों के साथ उनकी अति गोपनीय बातचीत को दुश्मन सुन सकते हैं। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की संसद में पेश की गई रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला खुलासा किया गया है।
रक्षा अनुसंधान एव विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा प्रधानमंत्री के विमान के लिए मेघदूत परियोजना के तहत अभेद्य संचार व्यवस्था विकसित की जानी थी जो इस वर्ष तक विमानों में नहीं लगाई जा सकी है। इस व्यवस्था में अति विशिष्ट व्यक्ति को ग्राउंड स्टेशन पर बैठे लोगों से वीडियो, वायस और फैक्स के जरिये संपर्क की सुविधा मुहैया करानी थी।
लेखा परीक्षण के दौरान कैग को बताया गया कि अमेरिका से खरीदे गए इन तीनों विमानों में वीडियो टेली कांफ्रेन्सिग की व्यवस्था पहले से ही मौजूद थी लेकिन वह कूटबद्ध नहीं थी इसलिए उसका इस्तेमाल करना असुरक्षित था। इन तीनों विमानों को वायु सेना द्वारा उड़ाया जा रहा है। कूटबद्ध संदेशों या जानकारी को केवल अधिकृत व्यक्ति ही पढ़ सकते हैं इसलिए यह सबसे सुरक्षित होता है लेकिन प्रधानमंत्री के विमान में संदेश को कूटबद्ध करने की व्यवस्था नहीं है।
कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि इन विमानों में यह व्यवस्था अक्टूबर 2006 से लेकर अगस्त 2015 तक प्रभावी नहीं हो पाई और ये इनके बिना ही उड़ाये जा रहे हैं। कैग की रिपोर्ट के अनुसार रक्षा मंत्रालय ने इन विमानों के लिए अभेद्य संचार व्यवस्था विकसित करने के वास्ते अगस्त 2007 में एक प्रस्ताव को मंजूरी दी और इसकी जिम्मेदारी बेंगलुरू स्थित सेंटर फॉर आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस एंड रोबोटिक्स (सीएआईआर )को दी गयी।
नौ करोड 76 लाख रूपये की इस परियोजना को मेघदूत नाम दिया गया और इसे दो वर्षों में 2009 तक पूरा किया जाना था। इस परियोजना की निगरानी का काम एक संचालन तथा निगरानी एवं समीक्षा समिति को सौंपा गया। सीएआईआर ने इसके लिए यह विमान बनाने वाली अमेरिकी कंपनी बोइंग के साथ अनुबंध किया। संचार व्यवस्था को विकसित करने और उसका डिजायन बनाने के बाद सीएआईआर ने छह करोड 61 लाख रुपये की लागत से हार्डवेयर प्लेटफार्म के लिए गाजियाबाद स्थित बीईएल को आर्डर दिया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जब यह सिस्टम विमान में लगाया गया और इसके परीक्षण किये गये तो इसमें तापमान से जुड़ी तकनीकी खराबी आ गयी। इस समस्या को दूर करने के लिए परियोजना को पूरा करने की समय सीमा दिसम्बर 2013 तक बढा दी गयी। सीएआईआर ने जून 2015 में कैग को बताया कि तकनीकी खामी को दूर कर लिया गया है और इस सिस्टम को वायु सेना को सौंप दिया गया है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अभी तक वायु सेना ने इसे मंजूर नहीं किया है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिन बोइंग विमानों में यात्रा करते हैं, उनकी संचार व्यवस्था में सेंध लगाई जा सकती है और ग्राउंड स्टेशन पर बैठे लोगों के साथ उनकी अति गोपनीय बातचीत को दुश्मन सुन सकते हैं। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की संसद में पेश की गई रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला खुलासा किया गया है।
रक्षा अनुसंधान एव विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा प्रधानमंत्री के विमान के लिए मेघदूत परियोजना के तहत अभेद्य संचार व्यवस्था विकसित की जानी थी जो इस वर्ष तक विमानों में नहीं लगाई जा सकी है। इस व्यवस्था में अति विशिष्ट व्यक्ति को ग्राउंड स्टेशन पर बैठे लोगों से वीडियो, वायस और फैक्स के जरिये संपर्क की सुविधा मुहैया करानी थी।
लेखा परीक्षण के दौरान कैग को बताया गया कि अमेरिका से खरीदे गए इन तीनों विमानों में वीडियो टेली कांफ्रेन्सिग की व्यवस्था पहले से ही मौजूद थी लेकिन वह कूटबद्ध नहीं थी इसलिए उसका इस्तेमाल करना असुरक्षित था। इन तीनों विमानों को वायु सेना द्वारा उड़ाया जा रहा है। कूटबद्ध संदेशों या जानकारी को केवल अधिकृत व्यक्ति ही पढ़ सकते हैं इसलिए यह सबसे सुरक्षित होता है लेकिन प्रधानमंत्री के विमान में संदेश को कूटबद्ध करने की व्यवस्था नहीं है।
कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि इन विमानों में यह व्यवस्था अक्टूबर 2006 से लेकर अगस्त 2015 तक प्रभावी नहीं हो पाई और ये इनके बिना ही उड़ाये जा रहे हैं। कैग की रिपोर्ट के अनुसार रक्षा मंत्रालय ने इन विमानों के लिए अभेद्य संचार व्यवस्था विकसित करने के वास्ते अगस्त 2007 में एक प्रस्ताव को मंजूरी दी और इसकी जिम्मेदारी बेंगलुरू स्थित सेंटर फॉर आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस एंड रोबोटिक्स (सीएआईआर )को दी गयी।
नौ करोड 76 लाख रूपये की इस परियोजना को मेघदूत नाम दिया गया और इसे दो वर्षों में 2009 तक पूरा किया जाना था। इस परियोजना की निगरानी का काम एक संचालन तथा निगरानी एवं समीक्षा समिति को सौंपा गया। सीएआईआर ने इसके लिए यह विमान बनाने वाली अमेरिकी कंपनी बोइंग के साथ अनुबंध किया। संचार व्यवस्था को विकसित करने और उसका डिजायन बनाने के बाद सीएआईआर ने छह करोड 61 लाख रुपये की लागत से हार्डवेयर प्लेटफार्म के लिए गाजियाबाद स्थित बीईएल को आर्डर दिया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि जब यह सिस्टम विमान में लगाया गया और इसके परीक्षण किये गये तो इसमें तापमान से जुड़ी तकनीकी खराबी आ गयी। इस समस्या को दूर करने के लिए परियोजना को पूरा करने की समय सीमा दिसम्बर 2013 तक बढा दी गयी। सीएआईआर ने जून 2015 में कैग को बताया कि तकनीकी खामी को दूर कर लिया गया है और इस सिस्टम को वायु सेना को सौंप दिया गया है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अभी तक वायु सेना ने इसे मंजूर नहीं किया है।
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