मिच्छामी दुक्कड़म, मिच्छामी दुक्कड़म
पयुर्षण पर्व का आठंवा दिन
पयुर्षण पर्व का आठंवा दिन
बाड़मेर, 17 सितम्बर। श्री जिन कांतिसागर सूरी आराधना भवन में विराजीत गुरूवर्या सुलक्षणा श्री जी म.सा. की पावन निश्रा में प्रातः 7 बजे सकल संघ के साथ चैत्य परिपाटी का आयोजन हूआ।
चैत्य परिपाटी में सबसे ढ़ोल-वादक, पौषध (साधु जीवन में) वाले श्रावक, साध्वी मण्डल, पौषध धारी महिलाएं व श्राविकाए चल रही थी। आराधना भवन से जयकारों के साथ रवाना होकर पाधर स्थित शान्तिनाथ जिनालय, आदिनाथ जिनालय, दादावाड़ी चिन्तामणी पारसनाथ, महावीर स्वामी, जिनालय होता हुआ साधना भवन पहुचें। जहा अचलगच्छीय साध्वी भगवंतो के दर्षन-वंदन कर मिच्छामी दुक्कड़म कर तैरापंथ भवन पंहुच कर वहां विराजीत साध्वी भगवन्तो के दर्षन-वंदन के बाद आराधना भवन पहंुचे।
आराधना भवन में मूल ‘‘बारसा सूत्र’’ की वांचना पूज्या साध्वी प्रिय स्नेहजंना श्रीजी द्वारा की गई।
खरतरगच्छ संघ के अध्यक्ष रतनलाल संकलेचा ने बताया कि सांय 5 बजे वसी कोटडा भवन में पुरूष वर्ग का व आराधना भवन की तीन मंजिल में महिला वर्ग का ‘‘ संवत्सरी प्रतिक्रमण’’ का आयोजन हुआ। जिसमें सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं ने ‘‘ संवत्सरी प्रतिक्रमण’’ कर 84 लाख जीव योनी से क्षमा याचना की ! परस्पर एक-दूसरे के साथ जाने-अनजाने में हुई भूल के लिये मन, वचन और काया से क्षमा याचना कर ‘‘मिच्छामी दुक्कडम्’’ किया गया।
चैत्य परिपाटी में सबसे ढ़ोल-वादक, पौषध (साधु जीवन में) वाले श्रावक, साध्वी मण्डल, पौषध धारी महिलाएं व श्राविकाए चल रही थी। आराधना भवन से जयकारों के साथ रवाना होकर पाधर स्थित शान्तिनाथ जिनालय, आदिनाथ जिनालय, दादावाड़ी चिन्तामणी पारसनाथ, महावीर स्वामी, जिनालय होता हुआ साधना भवन पहुचें। जहा अचलगच्छीय साध्वी भगवंतो के दर्षन-वंदन कर मिच्छामी दुक्कड़म कर तैरापंथ भवन पंहुच कर वहां विराजीत साध्वी भगवन्तो के दर्षन-वंदन के बाद आराधना भवन पहंुचे।
आराधना भवन में मूल ‘‘बारसा सूत्र’’ की वांचना पूज्या साध्वी प्रिय स्नेहजंना श्रीजी द्वारा की गई।
खरतरगच्छ संघ के अध्यक्ष रतनलाल संकलेचा ने बताया कि सांय 5 बजे वसी कोटडा भवन में पुरूष वर्ग का व आराधना भवन की तीन मंजिल में महिला वर्ग का ‘‘ संवत्सरी प्रतिक्रमण’’ का आयोजन हुआ। जिसमें सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं ने ‘‘ संवत्सरी प्रतिक्रमण’’ कर 84 लाख जीव योनी से क्षमा याचना की ! परस्पर एक-दूसरे के साथ जाने-अनजाने में हुई भूल के लिये मन, वचन और काया से क्षमा याचना कर ‘‘मिच्छामी दुक्कडम्’’ किया गया।
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