नई दिल्ली।आडवाणी को आशंका, देेश में फिर लग सकती है इमरजेंसी
25 जून को इमरजेंसी की बरसी से पूर्व भाजपा के संस्थापक सदस्य और पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने इमरजेंसी को लेकर आशंका जाहिर की । उनका कहना है कि भारत की राजनीतिक व्यवस्था में आज भी इमरजेंसी की आशंका है।
इसके साथ समान रूप से भविष्य में नागरिक स्वतंत्रता के निलंबन की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। वर्तमान समय में ताकतें संवैधानिक और कानूनी कवच होने के बावजूद लोकतंत्र को कुचल सकती हैं।
गौरतलब है कि देश में इंदिरा गांधी ने 40 साल पहले 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा की थी। यह इमरजेंसी भारी विरोध के बाद 1977 में समाप्त हुई थी। उस समय इंदिरा गांधी ने विपक्षी दलों के नेताओं को जेल में डाल दिया था।
एक प्रमुख अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में आडवाणी ने कहा कि 1975-77 में आपातकाल के बाद के सालों में मैं नहीं सोचता कि कुछ भी किया गया है जिससे मैं आश्वस्त रहूं कि नागरिक स्वतंत्रता फिर से निलंबित या नष्ट नहीं की जाएगी। ऐसा कुछ भी नहीं। उन्होंने कहा कि जाहिर है कोई भी इसे आसानी से नहीं कर सकता। लेकिन ऐसा फिर से नहीं हो सकता, मैं यह नहीं कह पाऊंगा। ऐसा फिर से हो सकता है कि मौलिक आजादी में कटौती कर दी जाए।
आडवाणी ने कहा अपनी राज्य व्यवस्था में मैं ऐसा कोई संकेत नहीं देख रहा जिससे आश्वस्त रहूं। नेतृत्व से भी वैसा कोई उत्कृष्ट संकेत नहीं मिल रहा।
लोकतंत्र को लेकर प्रतिबद्धता और लोकतंत्र के अन्य सभी पहलुओं में कमी साफ दिख रही है। आज मैं यह नहीं कह रहा कि राजनीतिक नेतृत्व परिपक्व नहीं है, लेकिन कमियों के कारण विश्वास नहीं होता। मुझे इतना भरोसा नहीं है कि फिर से इमरजेंसी नहीं थोपी जा सकती।
2015 के भारत में पर्याप्त सुरक्षा कवच नहीं
एक अपराध के रूप में इमरजेंसी को याद करते हुए आडवाणी ने कहा कहा कि इंदिरा गांधी और उनकी सरकार ने इसे बढ़ावा दिया था।
उन्होंने कहा कि ऐसा संवैधानिक कवच होने के बावजूद देश में हुआ था। आडवाणी ने कहा 2015 के भारत में पर्याप्त सुरक्षा कवच नहीं हैं।
यह फिर से संभव है कि इमरजेंसी एक दूसरी इमरजेंसी से भारत को बचा सकती है, ऐसा ही जर्मनी में हुआ था। वहां हिटलर का शासन हिटलरपरस्त प्रवृतियों के खिलाफ विस्तार था।
इसकी वजह से आज के जर्मनी शायद ब्रिटिश की तुलना में लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर ज्यादा सचेत है। इमरजेंसी के बाद चुनाव हुआ और इसमें जिसने इमरजेंसी थोपी थी उसकी बुरी तरह से हार हुई। यह भविष्य के शासकों के लिए डराने वाला साबित हुआ कि इसे दोहराया गया तो मुंह की खानी पड़ेगी।
आज के युग में मीडिया ताकतवर
आडवाणी ने कहा आज की तारीख में निरंकुशता के खिलाफ मीडिया बेहद ताकतवर है, लेकिन यह लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों के लिए एक वास्तविक प्रतिबद्धता है, मुझे नहीं पता।
इसकी जांच करनी चाहिए। सिविल सोसायटी ने उम्मीदें जगाई हैं। हाल ही में भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के नेतृत्व में लोग लामबंद हुए।
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