बीकानेर रियासत की चित्रकला में बारहमासा, राग-रागिनी
साथ ही ऐतिहासिक घटनाओं के चित्र तथा लोक कथानकों के चित्रों की भी बीकानेरी शैली के रूप में पहचान है।
बीकानेर की चित्रशैली राजस्थान की अन्य रजवाड़ों की शैलियों से भिन्न रही है। रियासतकाल में इस कला को संरक्षण मिला है।
बीकानेर स्थित राजकीय संग्रहालय में 18वीं शताब्दी की चित्रमाला लगी हुई है। बीकानेरी शैली के चित्रों में राजस्थान की अन्य चित्रशैलियों की तरह भले ही रंगों की तड़क-भड़क नहीं हो,
परन्तु इस शैली की अलग पहचान है, जिसमें राजसी जीवन के सुखद क्षणों और मानवीय संवेदनाओं के आन्तरिक बोध को उकेरा गया है।
इस शैली के हर चित्र के ऊपर बृजभाषा में छंद, दोहा और सवैया अंकित है। इन चित्रों में मास विशेष में प्रियतम से बिछुडऩ होने से विरहणी नायिका की चित्रों के माध्यम से मनोदशा को बताया गया है।
संग्रहालय में चित्रकारों की ओर से शासकों को भेंट चित्र रखे गए हैं। महाराजा गज सिंह की छवि चित्रकार सहाबु²ीन ने बनाई हुई है।
दीर्घा में बीकानेर रिसायत के अलावा बूंदी, नाथद्वारा, जोधपुर, जयपुर एवं मुगल शैली के चित्र भी रखे गए हैं। बीकानेर में जूनागढ़ किले के चन्द्र महल एवं फूल महल की साल के चित्र उच्च कोटि के हैं।
इनकी प्रतिकृति को इस चित्र दीर्घा में लगाया गया है। बीकानेर स्थित पुरातत्व एवं संग्रहालय अधीक्षक जफ्फरउल्ला खां ने बताया कि बीकानेरी ाशैली में दरबार, जय जंगलधर बादशाहा, युध्द तथा राग-रागिनी, बारहमासा, नायिकाभेद, रसिकप्रिया के विषय समाहित है। इन चित्रों के कारण बीकानेर की अलग पहचान है।
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