जसवंत सिंह के जन्मदिन पर जिले में विभिन आयोजन। दीर्घायु की कामनाएं
आज पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का जन्म दिन है। इस साल दुर्घटना के बाद उन्हें कुछ रोज पूर्व ही अस्पताल से छूटी मिली। जसवंत सिंह के समर्थको ने बाड़मेर जिले में उनकी दीर्घायु के लिए आयोजन रखे ,अस्पताल में मरीजों को फल वितरित करने के साथ उनकी लम्बी उम्र के लिए यज्ञ किया गया जिसमे जसवंत सिंह के सेकड़ो समर्थक शामिल हुए।
राजस्थान में बाड़मेर जिले के जसोल गांव में 3 जनवरी 1938 को राजपूत परिवार में इनका जन्म हुआ।
इनके पिता का नाम ठाकुर सरदारा सिंह और माता का नाम कुंवर बाई सा था।
जसवंत सिंह का विवाह शीतल कंवर से हुआ। इनके दो बेटे हैं। बड़े बेटे मानवेंद्र सिंह बाड़मेर के शिव विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं।
जसवंत सिंह ने मशहूर शिक्षण संस्थान मेयो कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। इसके अलावा नेशनल डिफेंस एकेडमी, खड़गवासला से भी प्रशिक्षण हासिल किया। वे सेना में अधिकारी भी रहे हैं।
ऎसे की सियासत की शुरूआत
साठ के दशक में इन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। राजनीति में जहां वे कई सीढियां चढ़ते हुए केंद्र में मंत्री तक बने, वहीं अनेक विवाद भी इनके साथ जुड़े। शुरूआती दौर में राजनीति इन्हें कोई खास पहचान नहीं दिला सकी।
उन दिनों वे जनसंघ की राजनीति में सक्रिय हुए थे। पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत के साथ भी उनकी नजदीकी रही है। राजनीति में उन्हें पहली सफलता अस्सी के दशक में मिली जब वे राज्यसभा के लिए चुने गए। वे जोधपुर के पूर्व महाराजा गजसिंह के करीबी भी माने जाते हैं।
सर्वश्रेष्ठ सांसद का खिताब
1996 में जब अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनी तो जसवंत सिंह वित्त मंत्री चुने गए, लेकिन वे कुछ दिन ही इस पद पर रहे, क्योंकि इसके बाद वाजपेयी सरकार गिर गई। पुन: सत्ता में आने के बाद वे 1998 में वाजपेयी सरकार में विदेश मंत्री बने।
इस दौरान उन्होंने पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश की। साल 2000 में वे देश के रक्षामंत्री बने और अगले ही वर्ष इन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद का का सम्मान भी दिया गया। वर्ष 2002 में जसवंत सिंह एक बार फिर वित्त मंत्री बने और वाजपेयी सरकार के कार्यकाल तक इसी पद पर रहे।
जीत के साथ जुड़े कई विवाद
कहा जाता है कि राजनीति में हार के साथ जीत और तारीफ के साथ विवादों का लंबा रिश्ता रहा है। यही इनके साथ भी हुआ। वर्ष 2012 में जसवंत सिंह एनडीए की ओर से उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार भी बनाए गए, लेकिन नतीजे उनके पक्ष में नहीं आए।
जसवंत सिंह एक मंझे हुए राजनेता की तरह ही अच्छे लेखक भी हैं। उनकी किताबों में किए गए दावों की वजह से खासा बवाल मचा है। उन्होंने किताब लिखकर यह दावा किया था कि नरसिम्हा राव सरकार के समय पीएमओ में एक भेदिया था। इसी प्रकार 2009 में उन्होंने भारत-पाक विभाजन पर किताब लिखकर एक और विवाद पैदा कर दिया।
इस पर पार्टी ने उन्हें निष्कासित कर दिया था। हालांकि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की वजह से वे फिर भाजपा में आ गए। लेकिन उनके साथ जुड़े विवादों का अंत यहीं नहीं होता।
2014 में हुए लोकसभा चुनावों में उन्हें भाजपा ने टिकट नहीं दिया जिसके वे प्रबल दावेदार माने जा रहे थे। इस बार उन्होंने अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार कर्नल सोनाराम के सामने निर्दलीय के रूप में ताल ठोंक दी लेकिन पराजित हो गए।
चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने एक इंटरव्यू में भाजपा के पुराने मुद्दे राम मंदिर के बारे में कहा था - मैंने तो आडवाणी जी से पहले ही कहा था कि एक राम मंदिर और बन जाने से या न बनने से भगवान राम की महत्ता बढ़ या घट नहीं जाएगी। ये मुद्दा है ही नहीं और विकास इससे बड़ा मुद्दा है।
सुदूर क्षेत्र में भी पाई विजय
जसवंत सिंह अपने राजनीतिक करियर में काफी लोकप्रिय नेता रहे हैं। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2009 में इन्होंने राजस्थान से सुदूर दार्जीलिंग से चुनाव लड़ा। यह क्षेत्र सीपीआई-एम और कांग्रेस का गढ़ रहा है लेकिन उन्होंने यहां से जीत दर्ज कर भाजपा को पहली विजय दिलाई।
अगस्त 2014 को वे बाथरूम में फिसलकर गिर गए और उनके सिर में चोट लगी। उन्हें तुरंत आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां वे कोमा में चले गए। हाल में उनकी सेहत में सुधार होने के बाद उन्हें छुट्टी दी गई है। हालांकि अभी उनका उपचार जारी है।
आज पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का जन्म दिन है। इस साल दुर्घटना के बाद उन्हें कुछ रोज पूर्व ही अस्पताल से छूटी मिली। जसवंत सिंह के समर्थको ने बाड़मेर जिले में उनकी दीर्घायु के लिए आयोजन रखे ,अस्पताल में मरीजों को फल वितरित करने के साथ उनकी लम्बी उम्र के लिए यज्ञ किया गया जिसमे जसवंत सिंह के सेकड़ो समर्थक शामिल हुए।
राजस्थान में बाड़मेर जिले के जसोल गांव में 3 जनवरी 1938 को राजपूत परिवार में इनका जन्म हुआ।
इनके पिता का नाम ठाकुर सरदारा सिंह और माता का नाम कुंवर बाई सा था।
जसवंत सिंह का विवाह शीतल कंवर से हुआ। इनके दो बेटे हैं। बड़े बेटे मानवेंद्र सिंह बाड़मेर के शिव विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं।
जसवंत सिंह ने मशहूर शिक्षण संस्थान मेयो कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की। इसके अलावा नेशनल डिफेंस एकेडमी, खड़गवासला से भी प्रशिक्षण हासिल किया। वे सेना में अधिकारी भी रहे हैं।
ऎसे की सियासत की शुरूआत
साठ के दशक में इन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। राजनीति में जहां वे कई सीढियां चढ़ते हुए केंद्र में मंत्री तक बने, वहीं अनेक विवाद भी इनके साथ जुड़े। शुरूआती दौर में राजनीति इन्हें कोई खास पहचान नहीं दिला सकी।
उन दिनों वे जनसंघ की राजनीति में सक्रिय हुए थे। पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत के साथ भी उनकी नजदीकी रही है। राजनीति में उन्हें पहली सफलता अस्सी के दशक में मिली जब वे राज्यसभा के लिए चुने गए। वे जोधपुर के पूर्व महाराजा गजसिंह के करीबी भी माने जाते हैं।
सर्वश्रेष्ठ सांसद का खिताब
1996 में जब अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनी तो जसवंत सिंह वित्त मंत्री चुने गए, लेकिन वे कुछ दिन ही इस पद पर रहे, क्योंकि इसके बाद वाजपेयी सरकार गिर गई। पुन: सत्ता में आने के बाद वे 1998 में वाजपेयी सरकार में विदेश मंत्री बने।
इस दौरान उन्होंने पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश की। साल 2000 में वे देश के रक्षामंत्री बने और अगले ही वर्ष इन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद का का सम्मान भी दिया गया। वर्ष 2002 में जसवंत सिंह एक बार फिर वित्त मंत्री बने और वाजपेयी सरकार के कार्यकाल तक इसी पद पर रहे।
जीत के साथ जुड़े कई विवाद
कहा जाता है कि राजनीति में हार के साथ जीत और तारीफ के साथ विवादों का लंबा रिश्ता रहा है। यही इनके साथ भी हुआ। वर्ष 2012 में जसवंत सिंह एनडीए की ओर से उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार भी बनाए गए, लेकिन नतीजे उनके पक्ष में नहीं आए।
जसवंत सिंह एक मंझे हुए राजनेता की तरह ही अच्छे लेखक भी हैं। उनकी किताबों में किए गए दावों की वजह से खासा बवाल मचा है। उन्होंने किताब लिखकर यह दावा किया था कि नरसिम्हा राव सरकार के समय पीएमओ में एक भेदिया था। इसी प्रकार 2009 में उन्होंने भारत-पाक विभाजन पर किताब लिखकर एक और विवाद पैदा कर दिया।
इस पर पार्टी ने उन्हें निष्कासित कर दिया था। हालांकि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की वजह से वे फिर भाजपा में आ गए। लेकिन उनके साथ जुड़े विवादों का अंत यहीं नहीं होता।
2014 में हुए लोकसभा चुनावों में उन्हें भाजपा ने टिकट नहीं दिया जिसके वे प्रबल दावेदार माने जा रहे थे। इस बार उन्होंने अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार कर्नल सोनाराम के सामने निर्दलीय के रूप में ताल ठोंक दी लेकिन पराजित हो गए।
चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने एक इंटरव्यू में भाजपा के पुराने मुद्दे राम मंदिर के बारे में कहा था - मैंने तो आडवाणी जी से पहले ही कहा था कि एक राम मंदिर और बन जाने से या न बनने से भगवान राम की महत्ता बढ़ या घट नहीं जाएगी। ये मुद्दा है ही नहीं और विकास इससे बड़ा मुद्दा है।
सुदूर क्षेत्र में भी पाई विजय
जसवंत सिंह अपने राजनीतिक करियर में काफी लोकप्रिय नेता रहे हैं। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2009 में इन्होंने राजस्थान से सुदूर दार्जीलिंग से चुनाव लड़ा। यह क्षेत्र सीपीआई-एम और कांग्रेस का गढ़ रहा है लेकिन उन्होंने यहां से जीत दर्ज कर भाजपा को पहली विजय दिलाई।
अगस्त 2014 को वे बाथरूम में फिसलकर गिर गए और उनके सिर में चोट लगी। उन्हें तुरंत आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां वे कोमा में चले गए। हाल में उनकी सेहत में सुधार होने के बाद उन्हें छुट्टी दी गई है। हालांकि अभी उनका उपचार जारी है।
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