रुद्रप्रयाग। 11वें ज्योर्तिलिंग भगवान केदारनाथ के कपाट रविवार को सुबह छह बजे मेष लग्न पर पूजा-अर्चना के बाद श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए गए। इस बीच, शनिवार को भगवान केदारनाथ की उत्सव डोली केदारनाथ पहुंच गई। अभी तक केदारनाथ यात्रा के लिए सात सौ स्थानीय लोगों समेत एक हजार से ज्यादा लोगों ने पंजीकरण कराया है। हालांकि, यात्रा पड़ावों पर व्यवस्थाएं अभी आधी अधूरी ही हैं।
भगवान केदारनाथ की उत्सव डोली ने गत शुक्रवार को गौरीकुंड में विश्राम किया। शनिवार सुबह मंदिर के पुजारियों एवं वेदपाठियों ने भगवान केदारनाथ की पंचमुखी उत्सव डोली की पूजा-अर्चना की। इसके पश्चात भगवान केदार की डोली ने ग्रीष्मकालीन निवास स्थान केदारनाथ की ओर प्रस्थान किया। उत्सव डोली जंगलचट्टी, रामबाडा, लिनचोली आदि स्थानों से होते हुए शाम को केदारनाथ पहुंची।
शंकराचार्य गद्दी व गाडू घड़ा पहुंचा बदरीनाथ मंदिर:
बदरीनाथ : श्री बदरीनाथ धाम के कार्यवाहक रावल के तिलपात्र के बाद अब पांच मई को बदरीनाथ धाम के कपाट खोलने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। नरेंद्रनगर स्थित टिहरी महाराजा के दरबार से लक्ष्मीनारायण मंदिर सिमली के बाद गाडू घड़ा यात्रा योग ध्यान बदरी मंदिर पहुंच गई है। जोशीमठ नृसिंह मंदिर से आदि गुरु शंकराचार्य गद्दी भी इस यात्रा के साथ पांडुकेश्वर लाई गई। रविवार को कुबेर जी और उद्धव की उत्सव डोली के साथ शंकराचार्य गद्दी व गाडू घड़ा बदरीनाथ धाम पहुंचेगा। शनिवार सुबह नृसिंह मंदिर जोशीमठ में पूजा अर्चना के बाद भगवान को भोग लगाया गया। ठीक 11 बजे नृसिंह मंदिर मठांगण से आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी के साथ गाडू घड़ा यात्रा कार्यवाहक रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी के संरक्षण में योगध्यान बदरी मंदिर पांडुकेश्वर के लिए रवाना हुई। शंकराचार्य गद्दी के योगध्यान बदरी मंदिर में पहुंचने के बाद सबसे पहले कार्यवाहक रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी व उसके बाद अन्य श्रद्धालुओं ने भी पूजा अर्चना की। रविवार सुबह 10 बजे उद्वव, कुबेर, शंकराचार्य गद्दी व गाडू घड़ा कार्यवाहक रावल की अगुवाई में बदरीनाथ धाम के लिए रवाना होगा।
पंचतीर्थो का जल ग्रहण करेंगे पुजारी:
भले ही नायब रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी का तिलपात्र कर बदरीनाथ धाम के कार्यवाहक रावल की जिम्मेदारी सौंपी जा चुकी हो। लेकिन, बदरीनाथ मंदिर में पूजा करने से पहले रावल को पंचतीर्थो का जल ग्रहण करना पड़ेगा। बदरीनाथ में ऋषिगंगा, कुर्मधारा, प्रह्लाद धारा, तप्तकुंड व अलकनंदा का जल ग्रहण करने के बाद ही रावल मंदिर की पूजाओं में शामिल हो सकते हैं। यह परंपरा रविवार को यात्रा के बदरीनाथ पहुंचने के तुरंत बाद निभाई जाएगी।
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