अजमेर राजस्थान का पाचवां बड़ा शहर है। पर्वतीय क्षेत्र में बसा अजमेर अरावली पर्वतमाला का एक हिस्सा है। देश के सबसे पुराने पहाड़ी किलों में से एक तारागढ़ किला अजमेर शहर की रक्षा करता है। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह दरगाह अजमेर शरीफ का भारत में बड़ा महत्व है।
ख्वाजा मोइनुद्धीन चिश्ती की दरगाह-ख्वाजा साहब या ख्वाजा शरीफ अजमेर आने वाले सभी धर्मो के लोगों के लिए एक पवित्र स्थान है। सूफी संत ख्वाजा मोइउद्दीन चिश्ती की दरगाह पर हर साल उर्स का आयोजन होता है। विश्व प्रसिद्ध अजमेर उर्स के मौके पर लाखों लोग चादर चढ़ाने आते हैं। चांदी के दरवाजे वाली इस दरगाह का निर्माण कई चरणों में हुआ जहां संत की मूल कब्र है जो संगमरमर की बनी है। मक्का के बाद सभी मुस्लिम तीर्थ स्थलों में इसका दूसरा स्थान हैं, इसलिए इसे भारत का मक्का भी कहा जाता हैं।
आनासागर झील
अजमेर शहर के बीच बनी यह सुंदर कृतिम झील यहां का सबसे रमणीक स्थल है। आनासागर झील 13 किमी के क्षेत्र में फैली है जो पृथ्वी राज चौहान के पितामह अनाजी चौहान द्वारा निर्मित की गई थी। इसके जल में संध्या के समय किनारे पर खड़े विशाल नाग पहाड़ का प्रतिबिंब झलकता है।
पुष्कर-
पुष्कर राजस्थान के अजमेर जिले में एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थान है। पुष्कर राजस्थान में विख्यात तीर्थस्थान है। पर्यटकों का स्वर्ग तीर्थराज पुष्कर में प्रतिवर्ष प्रसिद्ध पुष्कर मेला लगता है जिसमें बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक भी आते हैं। यहां पवित्र पुष्कर झील है और नजदीक में ब्रह्मा जी का पवित्र मंदिर है जिससे प्रति वर्ष अनेक तीर्थयात्री यहां आते हैं।
अढाई दिन का झोपड़ा-
यह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह से आगे कुछ ही दूरी पर स्थित है। इस खंडहरनुमा इमारत में 7 मेहराब एंव हिन्दू-मुस्लिम कारीगिरी के 70 खंबे बने हैं तथा छत पर भी शानदार कारीगिरी की गई है। आधे दिन का झोपड़ा एक मस्जिद है। कहा जाता है कि इसे केवल ढाई दिन के समय में बनाई गई। यह मस्जिद भारतीय-मुस्लिम वास्तुशैली का एक अच्छा उदाहरण है।
सोनी जी की नसियां
करोली के लाल पत्थरों से बना यह ख़ूबसूरत दिगंबर मंदिर जैन तीर्थंकर आदिनाथ का मंदिर है। लाल पत्थरों से बना होने के कारण इसे लाल मंदिर भी कहा जाता है। यह 1864-1865 ईस्वी का बना हुआ हैं।
अकबर का किला-
अकबर का किला एक राजकीय संग्रहालय भी है। यहां प्राचीन मूर्तियां, सिक्के, पेंटिंग्स, कवच आदि रखे हुए हैं। अंग्रेजों ने यहीं से जनवरी 1616 में मुगल बादशाह जहांगीर से भारत में व्यापार करने की इजाजत मांगी थी। अकबर प्रति वर्ष ख्वाजा साहब के दर्शन करने तथा राजपुताना के युद्धों में भाग लेने के लिए यहां आया जाया करते थे।
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