होटल मरुधरा पैलेस के अवैध निर्माण का मामला
बाड़मेर कलेक्टर कर रहे है लोकायुक्त को गुमराह
सबलसिंह | ९८२९६६९९०१
बाड़मेर | शहर के ह्रदय स्थल एवं अतिव्यस्त अहिंसा सर्कल के समीप होटल मरुधरा के अवैध निर्माण के सम्बन्ध में लोकायुक्त सचिवालय, राजस्थान में विचाराधीन परिवाद के सन्दर्भ में जिला कलेक्टर बाड़मेर को दिनांक 15 जनवरी को व्यक्तिगत तलब किया था, लेकिन होटल मरुधरा के रसूखदार मालिक बाबूलाल को नाजायज़ फायदा एवं सरकारी खजाने को नुकसान पहुचाने कि नियत से स्वयं उपस्थिति से बचते हुवे अपने विशेष वाहक के साथ परिवाद के आरोपी नगर परिषद आयुक्त द्वारा की गई जाँच रिपोर्ट का हवाला देते हुवे अवैध होटल निर्माण मामले से अपना पल्ला झाडा, एवं उक्त रिपोर्ट को सही दर्शाते हुवे तथा पूर्व में उपखंड अधिकारी की जाँच को धत्ता बताते हुवे लोकायुक्त को गुमराह किया| क्या है मामला ? होटल मालिक बाबूलाल ने स्टेट ग्रांट एक्ट के तहत भूमि का आवासीय पट्टा ले कर शहर की बेशकीमती ज़मीन हडपने की नियत से नगर पालिका अधिकारीयों से मिलीभगत कर आवासीय भूमि पर तीन मंजिला होटल निर्माण की अवैध अनुमति ले कर सात मंजिला होटल का निर्माण कर दिया| होटल निर्माण हेतु अनुमति प्राप्त करने के नक़्शे में अंडर ग्राउंड पार्किंग स्थल दर्शाया गया परन्तु पार्किंग स्थल पर दुकानों का निर्माण कराया गया| इस प्रकार अनुमति और नक़्शे के विपरीत किये गये अवैध निर्माण में समस्त कानूनों का खुलमखुला उलंघन किया गया, प्रशासन एवं अधिकारीयों के मूक दर्शक बने रहने के कारण आम आदमी द्वारा तत्कालीन जिला कलेक्टर को 2010 में शिकायत पेश की, उक्त प्रकरण को सतर्कता समिति में दर्ज कर उपखंड अधिकारी गुढामालानी को सोपी गई, लम्बी कशमकस के बाद अपनी जाँच रिपोर्ट सतर्कता समिति के सामने इस आशय कि पेश की, कि होटल का निर्माण अवैध हुआ है, होटल निर्माण स्थल का पट्टा प्राप्त करने हेतु दस्तावेजों में व्यापक काट-छाट कर कूट रचना के आधार पर स्टेट ग्रांट का पट्टा प्राप्त किया एवं इजाजत से दुगना निर्माण कार्य करवाया तथा पार्किंग की जगह दुकानों का व्यवसायिक निर्माण कर दिया| पुरे प्रकरण में नगर पालिका के अधिकारीयों की भूमिका अत्यंत संदेहास्पद दर्शाते हुवे, अधिकारीयों एवं कर्मचारियों के विरुद्ध सख्त क़ानूनी कार्यवाही के साथ मामले की विस्तृत जाँच करवाने के लिए अनुशंषा की थी| जिस पर जिला कलेक्टर ने नगर पालिका के अधिकारियों के असहयोगात्मक रवैये के मद्देनज़र कर्मचारियों के विरुद्ध तत्काल एफ.आई.आर. दर्ज करवाने के आदेश दिए थे. जो कि आज तक दर्ज नही हो पाई और नगर पालिका के बोर्ड की बैठक में उक्त प्रकरण का निस्तारण स्वयं आरोपियों द्वारा कर दिया गया| जिसकी आड़ में कलेक्टर द्वारा सतर्कता समिति से मामला ड्राप कर दिया गया, जिसके विरुद्ध में उपरोक्त परिवाद लोकायुक्त सचिवालय में पंहुचा| कैसे किया गुमराह ? जिले के सर्वोच्च अधिकारी को जब लोकायुक्त द्वारा व्यक्तिगत उपस्थिति के निर्देश गये तब आननफानन में आरोपी नगर परिषद आयुक्त की विस्तृत जाँच रिपोर्ट, जो कि पूर्व में उच्च अधिकारी द्वारा की गयी जाँच से इतफाक नही रखती है, उसे आधार मानते हुवे कार्यवाही के बजाय लीपापोती के उद्देश्य से प्रकरण में हुवे व्यापक भ्रष्टाचार को गोण करते हुवे, लोकायुक्त को गुमराह करते हुवे प्रेषित की. मामले का भौतिक सत्यापन यदि करवाया जाए तो आरोपी आयुक्त, नगर परिषद् कि रिपोर्ट की पोल खुल सकती है, साथ ही भ्रष्टचारियों के बचाव में उतरे ज़िले के सर्वोच्च अधिकारी भी नप सकते है|
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