मुखर हुई आने वाले कल की चिंता
- जिले भर में हुए कई कार्यक्रम ,हर ब्लॉक में हुई कार्यशाला
बाड़मेर 'वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्तर भारत में भूजल स्तर तेज़ी से गिरता जा रहा है और लाखों लोगों के लिए इसके गंभीर परिणाम होंगे.शोधकर्ताओं ने लिखा है कि सिंचाई और दूसरे मकसदों के लिए के लिए पानी की खपत सरकारी अनुमान से कहीं ज़्यादा तेज़ी से बढ़ी है.इस कारण कृषि उत्पादन ठप्प हो सकता है और पीने के पानी की भारी किल्लत हो सकती है.भूजल उस पानी को कहा जाता है जो बारिश और अन्य स्रोत्रों के कारण ज़मीन में चला जाता है और जमा होता रहता है.नए शोध के मुताबिक उत्तर भारत में भूजल स्तर 2002 से 2006 के बीच हर साल चार सेंटीमीटर नीचे गया है.' यह कहना है जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के अधीक्षण अभियंता व्रत बाड़मेर ओ पी व्यास का। उन्होंने यह बात राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल जागरूकता सप्ताह के दोरान जिला स्तरीय कार्यशाला में कही। उन्होंने कहा कि राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में बहुत ज़्यादा पानी बर्बाद हुआ है. वैज्ञानिकों ने इन बदलावों को समझने के लिए उपग्रह से मिले आकड़ों का इस्तेमाल किया है.उनके मुताबिक पानी के गिरते स्तर का कारण मौसम में बदलाव नहीं है क्योंकि जिस दौरान ये शोध किया गया था उस दौरान बारिश में कमी दर्ज नहीं की गई थी.सीसीडीयू के आईईसी कंसल्टेंट अशोक सिंह ने बताया कि राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल जागरूकता सप्ताह में जिले भर में आम के मुद्दे पर साथ जोड़ने के उदेश्य से कई कार्यक्रमो का आयोजन किया गया जिसमे बाड़मेर जिला स्तरीय कार्यशाला बाड़मेर प्रधान ढाई देवी के मुख्य आतिथ्य में आयोजित हुई। स्थानीय पंचायत समिति सभागार में आयोजित इस कार्यशाला में वर्षा जल संग्र्हण , भूजल पुनर्भरण , जल गुणवत्ता का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव , पिने का पानी केवल सुरक्षित जल स्रोतो से और शोधित जल के उपयोग विषय पर आम जनता में जल चेतना कि बात प्रेषित कि अगि। इस अवशर पर अधीक्षण अधिनता जे पि जोरवाल ने कहा कि सर्दी के मौसम में पानी की जरूरत वैसे ही कम होती है और इस बार तो मानसून ने भी बरसने का रिकॉर्ड बनाया है, लेकिन देश के तमाम शहरों और कस्बों में पानी की कमी अभी से महसूस की जाने लगी है। यह शिकायत आम है कि लोगों की जितनी जरूरत है, उन्हें उतना पानी नहीं मिल पा रहा। दिनोंदिन जल संकट के भयावह रूप धारण कर लेने से अब जल प्रबंधन प्रणाली में सुधार करने और पानी की परंपरागत प्रणाली को पुनर्जीवित करने की जरूरत महसूस की जाने लगी है। इस अवशर पर भूजल के गिरते स्तर पर हर किसी ने चिंता व्यक्त की। इस कार्यशाला को संजय जैन ,दीपाराम, जमील अहमद गोरी, महेश शर्मा, और आरती परिहार ने भी सम्बोधित किया। जिला स्तर पर आयोजित हुई कार्यशाला के साथ साथ मंगल वर को ही बायतु ,शिव,चोहटन,सिणधरी,पचपदरा,सिवानाऔर धोरीमना ब्लाक स्तर पर भी कार्य शाला का आयोजन किया गया जिसमे बटोर मुख्य अतिथि प्रधान और उपखंड अधिकारी मौजूद रहे । जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग और सीसीडीयू राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल जागरूकता सप्ताह में जिला शिक्षा अधिकारी , महिला एवं बाल विकास अधिकारी , मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ,मुख्य करकरी अधिाकरी , जिला परिषद् एवं अधिशाषी अभियंता और जल संसाधन विभाग सहयोगी विभागो तोर पर साथ रहे।
- जिले भर में हुए कई कार्यक्रम ,हर ब्लॉक में हुई कार्यशाला
बाड़मेर 'वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्तर भारत में भूजल स्तर तेज़ी से गिरता जा रहा है और लाखों लोगों के लिए इसके गंभीर परिणाम होंगे.शोधकर्ताओं ने लिखा है कि सिंचाई और दूसरे मकसदों के लिए के लिए पानी की खपत सरकारी अनुमान से कहीं ज़्यादा तेज़ी से बढ़ी है.इस कारण कृषि उत्पादन ठप्प हो सकता है और पीने के पानी की भारी किल्लत हो सकती है.भूजल उस पानी को कहा जाता है जो बारिश और अन्य स्रोत्रों के कारण ज़मीन में चला जाता है और जमा होता रहता है.नए शोध के मुताबिक उत्तर भारत में भूजल स्तर 2002 से 2006 के बीच हर साल चार सेंटीमीटर नीचे गया है.' यह कहना है जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के अधीक्षण अभियंता व्रत बाड़मेर ओ पी व्यास का। उन्होंने यह बात राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल जागरूकता सप्ताह के दोरान जिला स्तरीय कार्यशाला में कही। उन्होंने कहा कि राजस्थान, पंजाब और हरियाणा में बहुत ज़्यादा पानी बर्बाद हुआ है. वैज्ञानिकों ने इन बदलावों को समझने के लिए उपग्रह से मिले आकड़ों का इस्तेमाल किया है.उनके मुताबिक पानी के गिरते स्तर का कारण मौसम में बदलाव नहीं है क्योंकि जिस दौरान ये शोध किया गया था उस दौरान बारिश में कमी दर्ज नहीं की गई थी.सीसीडीयू के आईईसी कंसल्टेंट अशोक सिंह ने बताया कि राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल जागरूकता सप्ताह में जिले भर में आम के मुद्दे पर साथ जोड़ने के उदेश्य से कई कार्यक्रमो का आयोजन किया गया जिसमे बाड़मेर जिला स्तरीय कार्यशाला बाड़मेर प्रधान ढाई देवी के मुख्य आतिथ्य में आयोजित हुई। स्थानीय पंचायत समिति सभागार में आयोजित इस कार्यशाला में वर्षा जल संग्र्हण , भूजल पुनर्भरण , जल गुणवत्ता का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव , पिने का पानी केवल सुरक्षित जल स्रोतो से और शोधित जल के उपयोग विषय पर आम जनता में जल चेतना कि बात प्रेषित कि अगि। इस अवशर पर अधीक्षण अधिनता जे पि जोरवाल ने कहा कि सर्दी के मौसम में पानी की जरूरत वैसे ही कम होती है और इस बार तो मानसून ने भी बरसने का रिकॉर्ड बनाया है, लेकिन देश के तमाम शहरों और कस्बों में पानी की कमी अभी से महसूस की जाने लगी है। यह शिकायत आम है कि लोगों की जितनी जरूरत है, उन्हें उतना पानी नहीं मिल पा रहा। दिनोंदिन जल संकट के भयावह रूप धारण कर लेने से अब जल प्रबंधन प्रणाली में सुधार करने और पानी की परंपरागत प्रणाली को पुनर्जीवित करने की जरूरत महसूस की जाने लगी है। इस अवशर पर भूजल के गिरते स्तर पर हर किसी ने चिंता व्यक्त की। इस कार्यशाला को संजय जैन ,दीपाराम, जमील अहमद गोरी, महेश शर्मा, और आरती परिहार ने भी सम्बोधित किया। जिला स्तर पर आयोजित हुई कार्यशाला के साथ साथ मंगल वर को ही बायतु ,शिव,चोहटन,सिणधरी,पचपदरा,सिवानाऔर धोरीमना ब्लाक स्तर पर भी कार्य शाला का आयोजन किया गया जिसमे बटोर मुख्य अतिथि प्रधान और उपखंड अधिकारी मौजूद रहे । जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग और सीसीडीयू राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल जागरूकता सप्ताह में जिला शिक्षा अधिकारी , महिला एवं बाल विकास अधिकारी , मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग ,मुख्य करकरी अधिाकरी , जिला परिषद् एवं अधिशाषी अभियंता और जल संसाधन विभाग सहयोगी विभागो तोर पर साथ रहे।
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