मंगलवार, 4 फ़रवरी 2014

यौनकर्मी महोत्सव: 'सेवा के बदले लेती हूं पैसे'


महोत्सव में जुटे दो सौ से ज्यादा यौनकर्मी



पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में इन दिनों छह दिवसीय यौनकर्मी महोत्सव चल रहा है।

देश के विभिन्न राज्यों से अपनी मांगों के समर्थन में दो सौ से ज्यादा यौनकर्मी, उनके हितों की लड़ाई में जुटे संगठनों के प्रतिनिधि और लोक कलाकार इस महोत्सव में पहुंचे हैं।


'पेशे को तौर पर मिले मान्यता'

सोनागाछी रिसर्च एंड ट्रेनिंग सेंटर के प्रिंसिपल डॉक्टर समरजीत जाना कहते हैं, "दुर्बार महिला समन्वय समिति की ओर से आयोजित इस छह-दिवसीय उत्सव का मकसद महिलाओं की खरीद-फरोख्त रोकना, यौनकर्मियों को मौलिक अधिकार दिलाना और उनको उनने हक के प्रति जागरूक बनाना है।"समरजीत जाना का कहना है कि यौनकर्मियों को भी एक पेशेवर के तौर पर मान्यता मिलनी चाहिए। दूसरे पेशों की तरह इसे भी कानूनी तौर पर पेशे का दर्जा दिया जाना चाहिए।

इस उत्सव की थीम है ‘प्रतिवादे नारी, प्रतिरोधे नारी' यानी महिलाओं का विरोध, महिलाओं का बचाव।

इस मौके पर बीबीसी ने कुछ यौनकर्मियों से उनके अतीत, इस पेशे की मौजूदा स्थिति और उनके हक की लड़ाई के बारे में बातचीत की।

सुनीता बारा, झारखंड
मैं अब स्वावलंबी और आत्मनिर्भर हूं। मैं पर्याप्त कमा लेती हूं। किसी को सेवा देती हूं तो बदले में मुझे पैसे मिल जाते हैं।हम लोग अपने अधिकारों की लड़ाई के लिए यहां आए हैं। यौनकर्मियों को समाज में बहुत खराब निगाहों से देखा जाता है। मैं चाहती हूं कि दूसरी कामकाजी महिलाओं की तरह हमें भी इज्जत की निगाह से देखा जाए।हम लोग दूसरी महिलाओं की तरह सम्मान और बराबरी का अधिकार चाहते हैं। आखिर हम भी एक सामान्य महिला हैं।

भाग्या, मैसूर
भाग्या, मैसूर
अपने बच्चों के पालन-पोषण और उनके स्कूल का खर्च उठाने के लिए मैं इस पेशे में आई थी। यह पेशा अच्छा है। इसकी कमाई से बच्चों का लालन-पालन बेहतर तरीके से हो रहा है और मैं भी बेहतर जिंदगी जी रही हूं।मुझे इस पेशे में आने का कोई अफसोस नहीं है। हम चाहते हैं कि सरकार हमारा भी आधार कार्ड और पैन कार्ड बनवा दे। हमें सरकारी योजनाओं की जानकारी नहीं मिलती।
विभिन्न योजनाओं के तहत मिलने वाली सहायता भी हम तक नहीं पहुंचती। हमें पेंशन मिलनी चाहिए। हम अपने हक की लड़ाई को मजबूत करने यहां आए हैं।


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