बीकानेर। गिद्धों की गतिविधियों पर अब उपग्रह के माध्यम से अनुसंधान होगा। जी हां, यह सच है। लुप्त होने की कागार पर पहुंचे गिद्ध प्रवास के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटाने के लिए अमेरीका की वेस्ट वर्जिनिया यूनिवर्सिटी व महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग ने साझी परियोजना पर काम शुरू किया है। उम्मीद की जा रही है कि उपग्रह के माध्यम से होने वाले अनुसंधान से गिद्धों के बारे में कई नई जानकारी मिलेगी। परियोजना के तहत जनवरी में अलग-अलग प्रजाति के दस गिद्धों की पीठ पर उपग्रह से कनेक्ट ट्रांसमीटर लगाया जाएगा।
इस ट्रांसमीटर में एक सोलर पैनल भी लगा होगा, जिससे इसे चार्ज होने में दिक्कत नहीं आएगी। गिद्ध की पीठ पर लगने वाले इस ट्रांसमीटर का उपग्रह के जरिए परियोजना पर काम कर रहे वर्जिनिया यूनिवर्सिटी व महाराजा गंगासिंह विवि के पर्यावरण विभाग के वैज्ञानिकों से संपर्क रहेगा। दोनों विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिक ट्रांसमीटर में लगी डिवाइस के जरिए इन गिद्धों के मुख्य आवास एवं प्रवास स्थल पर होने वाली गतिविधियों का अध्ययन करेंगे।
प्रायोगिक तौर पर एक गिद्ध की पीठ के ऊपरी हिस्से में ट्रांसमीटर लगाकर परीक्षण किया जा चुका है। इस प्रयोग में यह पता लगाया गया कि कहीं ट्रंासमीटर गिद्ध के शरीर को हानि या फिर इसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव तो नहीं डाल रहा। गिद्ध के शरीर एवं स्वास्थ्य पर ट्रांसमीटर का प्रतिकूल असर नहीं दिखा।
गिद्धों की स्थानीय प्रजातियां
गिद्धों की राजस्थान में चार स्थानीय प्रजातियां निवास करती हैं। इनमें लौंगबिल्ड वल्चर, वाइटरम्पड वल्चर, किंग वल्लचर और इजीçप्शियन वल्चर शामिल हैं। इन प्रजातियों के गिद्ध मुख्यत: बीकानेर, जोधपुर, नागौर सहित अरावली व चंबल के बीहड़ों में निवास करते हैं।
साल भर अध्ययन
परियोजना के प्रधान खोजबीनकर्ता वैज्ञानिक एमजीएसयू के पर्यावरण विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अनिल छंगाणी हैं। डॉ. छंगाणी ने बताया कि इस परियोजना में जिन गिद्धों को शामिल किया जाएगा, उनकी हर गतिविधि पर एक साल तक अध्ययन किया जाएगा। परियोजना पर काम शुरू करने से पहले वेस्ट वर्जिनिया यूनिवर्सिटी के डॉ. जोनाथन हॉल व डॉ. ओडरा ने बीकानेर जिले सहित विभिन्न स्थानों पर गिद्धों के प्रवास स्थलों का दौरा किया। इसमें उन्होंने गिद्धों की विभिन्न प्रजातियों और उनके हेबिटाट के बारे में जानकारी हासिल की।
इस ट्रांसमीटर में एक सोलर पैनल भी लगा होगा, जिससे इसे चार्ज होने में दिक्कत नहीं आएगी। गिद्ध की पीठ पर लगने वाले इस ट्रांसमीटर का उपग्रह के जरिए परियोजना पर काम कर रहे वर्जिनिया यूनिवर्सिटी व महाराजा गंगासिंह विवि के पर्यावरण विभाग के वैज्ञानिकों से संपर्क रहेगा। दोनों विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिक ट्रांसमीटर में लगी डिवाइस के जरिए इन गिद्धों के मुख्य आवास एवं प्रवास स्थल पर होने वाली गतिविधियों का अध्ययन करेंगे।
प्रायोगिक तौर पर एक गिद्ध की पीठ के ऊपरी हिस्से में ट्रांसमीटर लगाकर परीक्षण किया जा चुका है। इस प्रयोग में यह पता लगाया गया कि कहीं ट्रंासमीटर गिद्ध के शरीर को हानि या फिर इसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव तो नहीं डाल रहा। गिद्ध के शरीर एवं स्वास्थ्य पर ट्रांसमीटर का प्रतिकूल असर नहीं दिखा।
गिद्धों की स्थानीय प्रजातियां
गिद्धों की राजस्थान में चार स्थानीय प्रजातियां निवास करती हैं। इनमें लौंगबिल्ड वल्चर, वाइटरम्पड वल्चर, किंग वल्लचर और इजीçप्शियन वल्चर शामिल हैं। इन प्रजातियों के गिद्ध मुख्यत: बीकानेर, जोधपुर, नागौर सहित अरावली व चंबल के बीहड़ों में निवास करते हैं।
साल भर अध्ययन
परियोजना के प्रधान खोजबीनकर्ता वैज्ञानिक एमजीएसयू के पर्यावरण विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अनिल छंगाणी हैं। डॉ. छंगाणी ने बताया कि इस परियोजना में जिन गिद्धों को शामिल किया जाएगा, उनकी हर गतिविधि पर एक साल तक अध्ययन किया जाएगा। परियोजना पर काम शुरू करने से पहले वेस्ट वर्जिनिया यूनिवर्सिटी के डॉ. जोनाथन हॉल व डॉ. ओडरा ने बीकानेर जिले सहित विभिन्न स्थानों पर गिद्धों के प्रवास स्थलों का दौरा किया। इसमें उन्होंने गिद्धों की विभिन्न प्रजातियों और उनके हेबिटाट के बारे में जानकारी हासिल की।
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