नई दिल्ली। बीजेपी अपने प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को ओबीसी बताकर अन्य पिछड़ा वर्ग को लुभाने में लगी हुई है और दूसरी ओर कांग्रेस इसका तोड़ निकालने में जुटी हुई है।
कांग्रेस जाट समुदाय को आरक्षण देने की घोषणा के कर सकती है। सूत्रों के मुताबिक संप्रग सरकार जल्द ही केंद्र सरकार की नौकरियों में जाटों को आरक्षण देने का ऎलान कर सकती है। हालांकि इससे जुड़े कुछ तकनीकी पहलुओं को सुलझाया जाना बाकी है।
एक तरफ बीजेपी मोदी को ओबीसी बताकर आगामी लोकसभा चुनाव में ओबीसी वोटर को अपनी ओर लुभाने में लगी है। और इधर कांग्रेस पार्टी का रूख भी जाट आरक्षण को लेकर सकारात्मक है।
हाल ही कांग्रेस पार्टी ने जाट आरक्षण के मुद्दे पर मंत्री समूह का भी गठन किया था। पार्टी को इस बात का एहसास हो गया है कि मोदी की ओबीसी वाली आइडेंटिटी को झुठलाया नहीं जा सकता है।
कांग्रेस नेतृत्व का मानना है कि मोदी की इस पहचान का तोड़ नहीं ढूंढ़ा गया तो यह सपा, बसपा (यूपी), राजद और जदयू (बिहार) की तरह भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकता है।
कांग्रेस के रणनीतिकारों की माने तो ध्रुवीकरण की स्थिति में ये निश्चित नहीं है कि ओबीसी वोटर किस तरफ जाएगा? क्या वो क्षेत्रवाद को महत्ता देगा या मोदी की तरफ खिंचा चला जाएगा। जबकि ये तय है कि मुस्लिम वोट बंट जाएंगे।
उनका कहना है कि किसी भी स्थिति में पार्टी के लिए आधार वोट जुटाने की कोशिश है। उन्होंने ने कहा कि अगर भाजपा मोदी की ओबीसी पहचान को लेकर बहुत ज्यादा आक्रामक नहीं होती, तो शायद कांग्रेस पार्टी ये दांव नहीं चलती।
भाजपा ने केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद की टिप्पणी "गंगू तेली" को मोदी के साथ पूरे पिछड़ा वर्ग का अपमान बताया था। हिंदी पट्टी के राज्यों (उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और मध्यप्रदेश) में जाट समुदाय के लोग चुनावों में बड़ी भूमिका निभाते है।
कुछ राज्यों में जाट समुदाय को ओबीसी कैटेगरी में शामिल किए जाने के बाद केंद्र की सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने की मांग उठने लगी थी।
कांग्रेस के सूत्रों ने इस बात को स्वीकार किया है जाटों को ओबीसी वर्ग में जगह दिए जाने पर विरोध हो सकता है। लेकिन कांग्रेस, क्षेत्रीय पार्टियों की तरह कभी भी ओबीसी केंद्रित पार्टी नहीं रही है। कांग्रेस रणनीतिकारों के मुताबिक ओबीसी वोटर कभी भी एक पार्टी को एकमुश्त वोट नहीं करता और उनके अपने विभिन्न कारक है। कांग्रेस पार्टी इसी कोण को पकड़ नया दांव चलने की तैयारी में है।
हालांकि, कांग्रेस पार्टी को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग (एनसीबीसी) ने जाट आरक्षण की मांग को खारिज कर दिया था।
एनसीबीसी के एक सदस्य के मुताबिक साल 2011 में आयोग पर पुर्नविचार के लिए जोर डाला गया था। साथ ही आईसीएसएसआर की ओर से एक आयोग का गठन किया गया था। ताकि जाटों के सामाजिक और आर्थिक स्थिति का विश्लेषण किया जा सके।
उन्होंने कहा कि रिपोर्ट के मिलने के बाद भी आयोग के लिए अपना निर्णय बदलना और उसके विपरीत खड़ा होना आसान नहीं होगा। लेकिन जो भी हो सरकार जाटों के लिए आरक्षण की घोषणा कर सकती है।
कांग्रेस जाट समुदाय को आरक्षण देने की घोषणा के कर सकती है। सूत्रों के मुताबिक संप्रग सरकार जल्द ही केंद्र सरकार की नौकरियों में जाटों को आरक्षण देने का ऎलान कर सकती है। हालांकि इससे जुड़े कुछ तकनीकी पहलुओं को सुलझाया जाना बाकी है।
एक तरफ बीजेपी मोदी को ओबीसी बताकर आगामी लोकसभा चुनाव में ओबीसी वोटर को अपनी ओर लुभाने में लगी है। और इधर कांग्रेस पार्टी का रूख भी जाट आरक्षण को लेकर सकारात्मक है।
हाल ही कांग्रेस पार्टी ने जाट आरक्षण के मुद्दे पर मंत्री समूह का भी गठन किया था। पार्टी को इस बात का एहसास हो गया है कि मोदी की ओबीसी वाली आइडेंटिटी को झुठलाया नहीं जा सकता है।
कांग्रेस नेतृत्व का मानना है कि मोदी की इस पहचान का तोड़ नहीं ढूंढ़ा गया तो यह सपा, बसपा (यूपी), राजद और जदयू (बिहार) की तरह भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकता है।
कांग्रेस के रणनीतिकारों की माने तो ध्रुवीकरण की स्थिति में ये निश्चित नहीं है कि ओबीसी वोटर किस तरफ जाएगा? क्या वो क्षेत्रवाद को महत्ता देगा या मोदी की तरफ खिंचा चला जाएगा। जबकि ये तय है कि मुस्लिम वोट बंट जाएंगे।
उनका कहना है कि किसी भी स्थिति में पार्टी के लिए आधार वोट जुटाने की कोशिश है। उन्होंने ने कहा कि अगर भाजपा मोदी की ओबीसी पहचान को लेकर बहुत ज्यादा आक्रामक नहीं होती, तो शायद कांग्रेस पार्टी ये दांव नहीं चलती।
भाजपा ने केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद की टिप्पणी "गंगू तेली" को मोदी के साथ पूरे पिछड़ा वर्ग का अपमान बताया था। हिंदी पट्टी के राज्यों (उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और मध्यप्रदेश) में जाट समुदाय के लोग चुनावों में बड़ी भूमिका निभाते है।
कुछ राज्यों में जाट समुदाय को ओबीसी कैटेगरी में शामिल किए जाने के बाद केंद्र की सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने की मांग उठने लगी थी।
कांग्रेस के सूत्रों ने इस बात को स्वीकार किया है जाटों को ओबीसी वर्ग में जगह दिए जाने पर विरोध हो सकता है। लेकिन कांग्रेस, क्षेत्रीय पार्टियों की तरह कभी भी ओबीसी केंद्रित पार्टी नहीं रही है। कांग्रेस रणनीतिकारों के मुताबिक ओबीसी वोटर कभी भी एक पार्टी को एकमुश्त वोट नहीं करता और उनके अपने विभिन्न कारक है। कांग्रेस पार्टी इसी कोण को पकड़ नया दांव चलने की तैयारी में है।
हालांकि, कांग्रेस पार्टी को कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग (एनसीबीसी) ने जाट आरक्षण की मांग को खारिज कर दिया था।
एनसीबीसी के एक सदस्य के मुताबिक साल 2011 में आयोग पर पुर्नविचार के लिए जोर डाला गया था। साथ ही आईसीएसएसआर की ओर से एक आयोग का गठन किया गया था। ताकि जाटों के सामाजिक और आर्थिक स्थिति का विश्लेषण किया जा सके।
उन्होंने कहा कि रिपोर्ट के मिलने के बाद भी आयोग के लिए अपना निर्णय बदलना और उसके विपरीत खड़ा होना आसान नहीं होगा। लेकिन जो भी हो सरकार जाटों के लिए आरक्षण की घोषणा कर सकती है।
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