शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

भवाल माता के चढ़ाते हैं ढाई गिलास शराब

भवाल माता के चढ़ाते हैं ढाई गिलास शराब

जयपुर। राजस्थान के नागौर जिले में भवाल माता का मंदिर ऎसा है जहां श्रद्धालु कालीमाता को प्रसाद के रूप में ढाई गिलास शराब चढ़ाते हैं। जिले की मेड़ता तहसील के भवाल गांव से एक किलोमीटर दूरस्थित मंदिर में नवरात्र के मौके पर पूरे नौ दिन मेला चलता है और इन दिनों भक्तों को मन्नत के लिए माता को प्रसाद के रूप में ढाई गिलास शराब चढ़ाने के लिए इंतजार करना पड़ रहा है।

मंदिर के पुजारी बजरंग गिरी ने बताया कि माता के श्रद्धालु मन्नतपूरी होने या मन्नत के लिए कभी भी शराब चढ़ा सकते हैं लेकिन इन दिनों मेला लगने के कारण स्थानीय लोगों के अलावा मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में काम कर रहे राजस्थान के लोगों का तांता लगा हुआ है।

मंदिर में ब्रह्माणी एवं काली माता की दो मूर्तियां है जिनमें बह्माणी माता के मिठाई आदि प्रसाद चढ़ाया जाता है जबकि काली माता क ी मूर्ति को प्रसाद के रूप में ढाई गिलास शराब चढ़ाई जाती है। किसी श्रद्धालु के मन्नत में कमी रहने या कोई अन्य चूक होने पर माता शराब ग्रहण नहीं करती।

उन्होंने बताया कि काली माता के मूर्ति के मुंह के आगे शराब का गिलास रखकर पीछे मुंह करने पर पलक झपकते ही प्याला खाली हो जाता है। इसी तरह दूसरा प्याला भी खाली हो जाता है लेकिन तीसरा प्याला आधा ही खाली होता है। आधा बचा हुआ गिलास श्रद्धालु प्रसाद के रूप में लेते हैं। इस कारण माना जाता है कि देवी केवल ढाई गिलास ही ग्रहण करती है।

हालांकि कई लोग इसे केवल अंधविश्वास मानते है जबकि कई देवी की कृपा मानकर श्रद्धा से ढाई प्याला शराब चढ़ाकर अपनी मन की मुरादे पूरी करते हैं। मंदिर के बारे में अनेक किवंदतियां जुड़ी हुई है और इस पर पुजारी ने बताया कि 12 एवं 13वीं शताब्दी में यह मंदिर बना है। उन्होंने बताया कि मंदिर में एक शिलालेख भी है जिसमें विक्रम संवत 1170 लिखा हुआ है।

मंदिर लाल पत्थर में बना हुआ है तथा दीवारों पर कलात्मक देवी देवताओं की मूर्तियां खुदी हुई है जो दीवारों के बाहर एवं भीतरी दोनों तरफ है। पुजारी ने बताया कि मंदिर में उनकी यह चौथी पीढ़ी है जो मंदिर में सेवा कर रही है। उन्होंने बताया कि उनके पूर्वजों एवं किवंदतियां के मुताबिक मंदिर के स्थान पर पहले एक चबूतरा बना हुआ था और उस पर देवी की दो मूर्तियां थी।

एक रात कुछ डाकू कहीं डाका डालने के बाद वहां विश्राम कर रहे थे कि उन्हें कुछ देवी शक्ति का आभास हुआ और उन्होंने डाका डालना बंद कर दिया और वहंा लूट के माल से मंदिर बनाने का निर्णय किया तब से यहां मंदिर बन गया और दूरदराज से सैकड़ों लोगों के माता के दर्शन करने तथा बाद में मन्नत के लिए ढाई प्याला शराब चढ़ाने का सिलसिला चला आ रहा है।

मंदिर में बीड़ी, सिगरेट एवं चमडा आदि विशेष वस्तु के प्रवेश होने पर माता प्रसाद ग्रहण नहीं करती। महिला श्रद्धालुओं द्वारा जागरण करने की मन्नत के तहत महिलाएं रात भर माता के गीत गाती है और मंदिर के बाहर दीवार पर मेंहदी के हाथ के चिह्न लगाकर अपनी मन्नतें पूरी करती है।

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