रविवार, 6 अक्तूबर 2013

जिनके जीवन में परोपकार का गुण वहीं इंसान है - साध्वी प्रियरंजना श्री


जिनके जीवन में परोपकार का गुण वहीं इंसान है - साध्वी प्रियरंजना श्री 

बाड़मेर 06.10.2013, स्थानीय जिन कानितसागर सूरी आराधना भवन में चातुमासिक विराजित पूज्य मधुरभाषी व्याख्यात्री साध्वीवर्या श्री प्रिय रजंना श्री म.सा. ने आज धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि :- परोपकार याने क्या है ? पर यानो दूसरों का उपकार याने भला करना परोपकार है। हमें दसरों की भलार्इ के कार्य कर परोपकार परायण बनना हैं। किन्तु हम देख रहे है कि वर्तमान संसार स्वार्थ परायण बनते जा रहा है आज के जन-जीवन पर दृषिटपात करने से पता चलता है कि वह परोपकारी नहीं बल्की स्वार्थी बनते जा रहे हैं, उसके जीवन के केन्द्र में स्वार्थ आ गया है मैं और मेरा ही उसका संसार बन गया है।इन्सान सुखी होने के उददेष्य से स्वार्थी बनता है किन्तु उसकी यह विचारधारा सही नहीं है क्योंकि स्वार्थी इंसान कदापि सुखी नहीं हो सकता इसलिए भी परोपकार करना आवष्यक है। अपना व अपने परिवार का भरण पोषण तो जानवर भी कर लेते है यदि इंसान भी अपना एंव अपने परिवार का ही पालन पोषण करता रहा तो उससे पशु से अधिक क्या किया ? जीवन में परोपकार के कार्य करने होंगे अन्यथा इंसान की इन्सानियत ही क्या है ? आज बड़े अफसोस के साथ कहने में आ रहा है कि दुनिया की सब वस्तु काम में आ सकती है किन्तु इंसान इसान के काम नहीं आता।

कहते हदय कर जाता है कि कौए भी कांऊ काऊ कर भोजन के समय अपने जाति भार्इयों को एकत्रित करते है किन्तु अफसोस इस बात का है कि इंसान भोजन के समय इंसान को भूल जाता है क्योंकि वह स्वार्थी हो गया है बलिक उसका परम कर्तव्य है कि उसके पास कुछ भी है या नहंी यह देखने के बजाया उसके पास जो है वह समर्पित करने के लिए उसे हमेषा तैयार रहना चाहिए भाग्यषालियों प्राण देकर भी परोपकार करने वाले इस आर्यवर्त में पैदा हुए है। आजा हमें जो परोपकार करना है उसमें कही भी जान देने की बात कहा आती है ? हमें तो मात्र वस्त्र ,पात्र, औषध-मकान आदि देकर ही लोगों पर परोपकार करना है।

परस्परोपग्रहो जीवानाम परस्पर एक दूसरों को मदद करना ही जीव का स्वभाव है यह कभी न माने कि हमें ंकभी भी किसी की आवष्यकता नहीं पडे़गी एवं यह भी उतना ही सत्य है कि संसार में ऐसी कोर्इ वस्तु नहीं है जो हमारेे काम नहीं आएगी। तृण और राख भी कभी-कभी हमें उपयोगी होती है अत: ऐसा अहंकार करने की आवष्यकता नहंी है कि हमें किसी की आवष्यकता नहीं है।

सध्वी डा. दिव्याजना श्री ने कहा कि यदि इतना हम समझ गए तो अपने आप परोपकार परायणता हमारे जीवन का अंग बन जाएगी। जिनके जीवन में परोपकार का गुण है वहीं तो इंसान है अन्यथा वह तो पशु है इंसान के रूप में यदि आप अपनी गणना करना चाहते है तो विधा, दान, तप, शील एवं परोपकार का गुण आपमें होना आवष्यक है।

साध्वी प्रिय शुभाजंना श्री ने कहा कि परोपकार पुण्य के लिए है एवं पर को पीडा पाप का बंध करने वाली है। अत: पुण्य के अर्थी लोगों ने हमेषा परिणाम का विचार किए बिना परोपकार के कार्य करते ही रहना चाहिए परोपकार दो प्रकार के होते है लौकिक उपकार एवं लोकोतर उपकार।

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