नई दिल्ली। शहीद भगत सिंह वो नाम है जो हंसते-हंसते देश की आजादी के लिए 23 साल की उम्र में फांसी पर चढ़ गया। उन से सिर्फ जोश और जज्बे की ही सीख नहीं मिलती, बल्कि आज भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
देश की आजादी के लिए अपने जुनून से ब्रिटिश साम्राज्य को हिलाने वाले भगत सिंह के उस समय भी आज के वक्त को देखते हुए बहुत उदारवादी थे।
देश के लिए फांसी पर चढ़ने वाले इस क्रांतिकारी ने अपनी फांसी की सजा से पहले सितंबर 1929 से लेकर 22 मार्च,1931 तक 404 पेज की एक डायरी लिखी थी जिसमें उनके सकारात्मक विचारों का पता चलता है।
27 सितंबर को भगत सिंह की 106 की जयंती मनाई गई। अपनी डायरी में उन्होंने अमरीकी कवि चार्ललोट पर्किस का हवाला देते हुए बाल श्रम की तीखी आलोचना की है। समान अवसर और सामाजिक मामलों पर उनके विचारों की आज भी मिसाल दी जाती है।
उन्होंने अपनी डायरी में लिखा की जब तक आर्थिक असामनता खत्म नहीं होगी, तब तक लोगों के बीच गैर-बराबरी की खाई दूर नहीं होगी,चाहे फिर वो राजनीति की बात हो या कानून की।
भगत सिंह लैंगिग समानता के पक्षधर थे, उन्होंने लिखा है कि बिना समानता के शादी एक तरीके से बंधुआ मजदूरी की तरह है और यहां तक उसे कानूनी वेश्यावृति तक बता डाला है। हालांकि अंग्रेजों की नजर मे वे एक बागी थे।
भगत के पड़पोते यदविंदर सिंह ने कहा कि उस समय भी लोकतंत्र मे पूर्ण आस्था रखने वाला यह महान क्रांतिकारी इस बात का समर्थक था कि अगर कोई राजनेता जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता है, तो उसे वापस (राइट टू रिकॉल) बुला लिया जाए।
फांसी की सजा सुनाए जाने के बावजूद भगत सिंह मृत्युदंड के पक्षधर थे। युवा क्रांतिकारी जिंदा रहते भारत को आजाद देखना चाहते थे, लेकिन उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका। 23 वर्ष की उम्र में अंग्रेजों ने उन्हें सूली पर चढ़ा दिया था।
हालांकि, भगत सिंह ने कहा था कि उनकी विरासत को लोग भविष्य में भी याद करेंगे।
देश की आजादी के लिए अपने जुनून से ब्रिटिश साम्राज्य को हिलाने वाले भगत सिंह के उस समय भी आज के वक्त को देखते हुए बहुत उदारवादी थे।
देश के लिए फांसी पर चढ़ने वाले इस क्रांतिकारी ने अपनी फांसी की सजा से पहले सितंबर 1929 से लेकर 22 मार्च,1931 तक 404 पेज की एक डायरी लिखी थी जिसमें उनके सकारात्मक विचारों का पता चलता है।
27 सितंबर को भगत सिंह की 106 की जयंती मनाई गई। अपनी डायरी में उन्होंने अमरीकी कवि चार्ललोट पर्किस का हवाला देते हुए बाल श्रम की तीखी आलोचना की है। समान अवसर और सामाजिक मामलों पर उनके विचारों की आज भी मिसाल दी जाती है।
उन्होंने अपनी डायरी में लिखा की जब तक आर्थिक असामनता खत्म नहीं होगी, तब तक लोगों के बीच गैर-बराबरी की खाई दूर नहीं होगी,चाहे फिर वो राजनीति की बात हो या कानून की।
भगत सिंह लैंगिग समानता के पक्षधर थे, उन्होंने लिखा है कि बिना समानता के शादी एक तरीके से बंधुआ मजदूरी की तरह है और यहां तक उसे कानूनी वेश्यावृति तक बता डाला है। हालांकि अंग्रेजों की नजर मे वे एक बागी थे।
भगत के पड़पोते यदविंदर सिंह ने कहा कि उस समय भी लोकतंत्र मे पूर्ण आस्था रखने वाला यह महान क्रांतिकारी इस बात का समर्थक था कि अगर कोई राजनेता जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता है, तो उसे वापस (राइट टू रिकॉल) बुला लिया जाए।
फांसी की सजा सुनाए जाने के बावजूद भगत सिंह मृत्युदंड के पक्षधर थे। युवा क्रांतिकारी जिंदा रहते भारत को आजाद देखना चाहते थे, लेकिन उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका। 23 वर्ष की उम्र में अंग्रेजों ने उन्हें सूली पर चढ़ा दिया था।
हालांकि, भगत सिंह ने कहा था कि उनकी विरासत को लोग भविष्य में भी याद करेंगे।
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