सुख मिलता है पुण्य के उदय से और गुण प्रकट होते है पुरूषार्थ से साध्वी प्रियरंजना
बाड़मेर क्षुद्र व्यकित धर्म के लायक नही है। अपात्र है। संसार चलाने के लिए भी लायक नही है। तथा क्षुद्र व्यकित अपना संसार परिवार को भी व्यसिथत नही चला सकता । सुख की अढलक सम्पति के बीच में भी उसके चित में समाधि नही रह सकती। क्योंकि उसका हदय तुच्छ हैंं। एक वर्ष मात्र एक ही दिन सब्जी में नमक डालना भुल जाने पर वो एक दम गुस्से में आ जाता हैं। दो पैसो के लिए मैत्री को तोडने के लिए तत्पर बन जाता है। चार पैसो के लिए आराम से Öाूठ बोल देता हैं।
ऐसा क्षुद्र व्यकित ऐसे तुच्छ व्यवहार से कदाचित रूपये बचा सकता है परन्तु अपने परिवार से प्रेम सदा के लिए खो देता हैं। रूपयों की पुर्ति पूर्ण कर सकता हैं। प्रेम की पुर्ति कभी नही कर सकते है क्षुद्र व्यकित को प्रेम व मैत्री की कीमत ज्यादा नही होती है जिंवत्र व्यकित से भी ज्यादा जड. वस्तु की कीमत ज्यादा करता है इसलिए जड. के साथ प्रीत करता करता व्यकित भी जड. जैसा हो जाता है। उसमें दुनिया से स्नेह पे्रम संवेदनशीलता जैसे गुण ही नही होते है।
साध्वी ने चार प्रकार के व्यकित बताये
1. दुसरे को सुखी करके खुश हो तो उत्तम
2. दुसरे को सुखी देखकर खुश हो वो मध्यम
3. दुसरे को दुखी देखकर खुश हो वो अधम
4. दुसरे को दुखी करके खुश हो वो अधमाधम
क्षुद्र व्यकित का नम्बर अधमाधम कक्षा में आता है अपने आसपास जितने दुखी हो उसे देखकर उसको आनद आना।
सम्यक्तव के बिना सारी आराधना व्यर्थ जाती है ़़ साध्वी दिव्याजना
साध्वी श्री ने समÖााते हुए कहा कि सम्यग दर्शन धर्मरूपी महल में प्रवेश करने के लिए द्वार समान है।
धर्मरूपी महल में तभी प्रवेश कर सकते जब सम्यक्तव रूपी द्वार खोल दिया हो। सम्यगदर्शन के बिना की सारी साधना आराधना तप त्याग क्षार पर लिपण के समान माने गए हैं। जैसे क्षार पर लिपण कभी नही टिकता वैसे सम्यक्तव के बिन सारी आराधना व्यर्थ जाती है
सम्यक्तव के बिना कितना भी ज्ञान क्यों न हो वह सारा अज्ञान ही कहलाता है। सम्यक्तव को धारण करने वाले मात्र पांच समिति और तीन गुपित मिलाकर अष्ट प्रवचन माता का ज्ञान रखने वाले ज्ञानी माने गए है।
जीवदया और अहिंसा पर धारा प्रवाह घण्टों तक बोलने वाला व्यकित शास्त्रों के आधार एंव उदाहरण देकर राजा महाराजाओं के मुकुट उतरा देगा किन्तु अपने स्वंय के जीवन में कुछ नहीं। ऐसा ज्ञान किस काम का।
हमारे ज्ञानियों ने सम्यक्तव के पांच प्रकार बताए हैं उनमें पहला सम्यक्तव औपशामिक दुसरा क्षायोपशमिक सम्यक्तव तीसरा क्षायिक सम्यक्तव चौथा वेदक सम्यक्तव और सास्वादन सम्यक्तव ।
दोपहर शनिवारीय शिवीर में साध्वी श्री ने कन्याओ एंव युवतियों को परमात्मा के मंदिर में किन किन बातों की शुधिद रखनी चाहिए तथा दशात्रिक के बारे में विस्तृत जानकारी दी साथ ही साथ चरित्राचार के बारे में बताया कि हमारा चरित्र कैसा हो। हमें हमारे चरित्र के प्रति लापरवाह नही बनना चाहिए। शिविरार्थी बहुत अच्छी संख्या में उपसिथत रहे।
मनिदर में Öाुठे मुह नही जाना मनिदर की साम्रगी का उपयोग करना चौरासी आसतनाओं से बचना मनिदर विधि पुजा चैत्यवदंन के बारे में विस्तुत बताया।
आज के आयोजन
स्थानीय जिनकानितसागर श्री आराधना भवन में रविवार को प्रात: 6.00 बजे से 7.00 बजे तक तत्वज्ञान व बोधज्ञान का स्वाध्याय , 9.00 बजे से 10.30 बजे तक चारित्र वन्दनावली पर विशेष प्रवचन एवं प्रवचन के पश्चात कौन बनेगी सुपर मम्मी प्रतियोगिता का आयोजन दोपहर को 2.00 बजे से 4.00 बजे तक बच्चोेंं का शिविर आयोजित होंगा । जिसमें बच्चों को सुसस्कांर शिक्षा के बारे में बताया जायेगा।
बाड़मेर क्षुद्र व्यकित धर्म के लायक नही है। अपात्र है। संसार चलाने के लिए भी लायक नही है। तथा क्षुद्र व्यकित अपना संसार परिवार को भी व्यसिथत नही चला सकता । सुख की अढलक सम्पति के बीच में भी उसके चित में समाधि नही रह सकती। क्योंकि उसका हदय तुच्छ हैंं। एक वर्ष मात्र एक ही दिन सब्जी में नमक डालना भुल जाने पर वो एक दम गुस्से में आ जाता हैं। दो पैसो के लिए मैत्री को तोडने के लिए तत्पर बन जाता है। चार पैसो के लिए आराम से Öाूठ बोल देता हैं।
ऐसा क्षुद्र व्यकित ऐसे तुच्छ व्यवहार से कदाचित रूपये बचा सकता है परन्तु अपने परिवार से प्रेम सदा के लिए खो देता हैं। रूपयों की पुर्ति पूर्ण कर सकता हैं। प्रेम की पुर्ति कभी नही कर सकते है क्षुद्र व्यकित को प्रेम व मैत्री की कीमत ज्यादा नही होती है जिंवत्र व्यकित से भी ज्यादा जड. वस्तु की कीमत ज्यादा करता है इसलिए जड. के साथ प्रीत करता करता व्यकित भी जड. जैसा हो जाता है। उसमें दुनिया से स्नेह पे्रम संवेदनशीलता जैसे गुण ही नही होते है।
साध्वी ने चार प्रकार के व्यकित बताये
1. दुसरे को सुखी करके खुश हो तो उत्तम
2. दुसरे को सुखी देखकर खुश हो वो मध्यम
3. दुसरे को दुखी देखकर खुश हो वो अधम
4. दुसरे को दुखी करके खुश हो वो अधमाधम
क्षुद्र व्यकित का नम्बर अधमाधम कक्षा में आता है अपने आसपास जितने दुखी हो उसे देखकर उसको आनद आना।
सम्यक्तव के बिना सारी आराधना व्यर्थ जाती है ़़ साध्वी दिव्याजना
साध्वी श्री ने समÖााते हुए कहा कि सम्यग दर्शन धर्मरूपी महल में प्रवेश करने के लिए द्वार समान है।
धर्मरूपी महल में तभी प्रवेश कर सकते जब सम्यक्तव रूपी द्वार खोल दिया हो। सम्यगदर्शन के बिना की सारी साधना आराधना तप त्याग क्षार पर लिपण के समान माने गए हैं। जैसे क्षार पर लिपण कभी नही टिकता वैसे सम्यक्तव के बिन सारी आराधना व्यर्थ जाती है
सम्यक्तव के बिना कितना भी ज्ञान क्यों न हो वह सारा अज्ञान ही कहलाता है। सम्यक्तव को धारण करने वाले मात्र पांच समिति और तीन गुपित मिलाकर अष्ट प्रवचन माता का ज्ञान रखने वाले ज्ञानी माने गए है।
जीवदया और अहिंसा पर धारा प्रवाह घण्टों तक बोलने वाला व्यकित शास्त्रों के आधार एंव उदाहरण देकर राजा महाराजाओं के मुकुट उतरा देगा किन्तु अपने स्वंय के जीवन में कुछ नहीं। ऐसा ज्ञान किस काम का।
हमारे ज्ञानियों ने सम्यक्तव के पांच प्रकार बताए हैं उनमें पहला सम्यक्तव औपशामिक दुसरा क्षायोपशमिक सम्यक्तव तीसरा क्षायिक सम्यक्तव चौथा वेदक सम्यक्तव और सास्वादन सम्यक्तव ।
दोपहर शनिवारीय शिवीर में साध्वी श्री ने कन्याओ एंव युवतियों को परमात्मा के मंदिर में किन किन बातों की शुधिद रखनी चाहिए तथा दशात्रिक के बारे में विस्तृत जानकारी दी साथ ही साथ चरित्राचार के बारे में बताया कि हमारा चरित्र कैसा हो। हमें हमारे चरित्र के प्रति लापरवाह नही बनना चाहिए। शिविरार्थी बहुत अच्छी संख्या में उपसिथत रहे।
मनिदर में Öाुठे मुह नही जाना मनिदर की साम्रगी का उपयोग करना चौरासी आसतनाओं से बचना मनिदर विधि पुजा चैत्यवदंन के बारे में विस्तुत बताया।
आज के आयोजन
स्थानीय जिनकानितसागर श्री आराधना भवन में रविवार को प्रात: 6.00 बजे से 7.00 बजे तक तत्वज्ञान व बोधज्ञान का स्वाध्याय , 9.00 बजे से 10.30 बजे तक चारित्र वन्दनावली पर विशेष प्रवचन एवं प्रवचन के पश्चात कौन बनेगी सुपर मम्मी प्रतियोगिता का आयोजन दोपहर को 2.00 बजे से 4.00 बजे तक बच्चोेंं का शिविर आयोजित होंगा । जिसमें बच्चों को सुसस्कांर शिक्षा के बारे में बताया जायेगा।
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