नई दिल्ली/जयपुर। राजस्थान के टोंक जिले के उनियारा पंचायत समिति के गांव रानीपुरा में काले हिरणों और वन्यजीवों की सुरक्षा एवं सरंक्षण में कार्यरत संस्था श्री दादू पर्यावरण संस्थान को राष्ट्रीय अमृतादेवी विश्नोई वन्य प्राणी संरक्षण पुरस्कार-2010 देकर समानित किया गया है।
केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण सचिव डॉ. वी. राजागोपालन ने नई दिल्ली के हेबीटॉट सेन्टर में मंगलवार को समारोह में संस्था के अध्यक्ष बाबू लाल मीणा और संस्था के सरंक्षक आईएएस पीआर मीणा को पुरस्कार स्वरूप एक लाख रूपये नकद तथा प्रशस्ति पत्र देकर समानित किया गया।
समारोह के बाद संस्था के अध्यक्ष मीणा ने बताया कि अस्सी के दशक में इस क्षेत्र के ग्रामीणों ने हिरणों के शिकार का विरोध करते हुए काले हिरणों एवं अन्य वन्यजीवों का बचाने का बीडा उठाया था। यहां के ग्रामीण वर्षो से बिना किसी सरकारी सहायता के चारा-पानी आदि की व्यवस्था भी कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि इसे और सुव्यवस्थित तरीके से चलाने के लिये वर्ष 2004 में स्थानीय युवकों और ग्रामीणों ने संगठित हो कर श्री दादू पर्यावरण संस्थान नामक संगठन बनाया और पूरे क्षेत्र में शिकार रोकथाम, चारागाह विकास, जल-चारा व्यवस्था का कार्य शुरू किया गया। इसी का परिणाम है कि आज इस क्षेत्र में 1200-1400 से अधिक कृष्णमृग निर्भिक होकर घूमते नजर आते हें।
उन्होंने बताया कि राजस्थान सरकार ने इस क्षेत्र में कृष्णमृगों की बहुलता को देखते हुए इस क्षेत्र को 1984 में आखेट निषिद्घ क्षेत्र घोषित कर दिया है, लेकिन स्थानीय ग्रामीण ही खेतों-खलिहानों में इन्हें सुरक्षा एवं संरक्षण प्रदान कर रहे हैं।
केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण सचिव डॉ. वी. राजागोपालन ने नई दिल्ली के हेबीटॉट सेन्टर में मंगलवार को समारोह में संस्था के अध्यक्ष बाबू लाल मीणा और संस्था के सरंक्षक आईएएस पीआर मीणा को पुरस्कार स्वरूप एक लाख रूपये नकद तथा प्रशस्ति पत्र देकर समानित किया गया।
समारोह के बाद संस्था के अध्यक्ष मीणा ने बताया कि अस्सी के दशक में इस क्षेत्र के ग्रामीणों ने हिरणों के शिकार का विरोध करते हुए काले हिरणों एवं अन्य वन्यजीवों का बचाने का बीडा उठाया था। यहां के ग्रामीण वर्षो से बिना किसी सरकारी सहायता के चारा-पानी आदि की व्यवस्था भी कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि इसे और सुव्यवस्थित तरीके से चलाने के लिये वर्ष 2004 में स्थानीय युवकों और ग्रामीणों ने संगठित हो कर श्री दादू पर्यावरण संस्थान नामक संगठन बनाया और पूरे क्षेत्र में शिकार रोकथाम, चारागाह विकास, जल-चारा व्यवस्था का कार्य शुरू किया गया। इसी का परिणाम है कि आज इस क्षेत्र में 1200-1400 से अधिक कृष्णमृग निर्भिक होकर घूमते नजर आते हें।
उन्होंने बताया कि राजस्थान सरकार ने इस क्षेत्र में कृष्णमृगों की बहुलता को देखते हुए इस क्षेत्र को 1984 में आखेट निषिद्घ क्षेत्र घोषित कर दिया है, लेकिन स्थानीय ग्रामीण ही खेतों-खलिहानों में इन्हें सुरक्षा एवं संरक्षण प्रदान कर रहे हैं।
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