रक्षाबंधन कब मनाएं, 20 को या 21 को?
--भद्रा के फेर में रक्षाबंधन, राखी 20 या 21 को?
पंडित दयानन्द शास्त्री*
पंडित दयानन्द शास्त्री*
लोकप्रिय त्योहार रक्षाबंधन इस बार भद्रा के फेर में फंस गया है।
श्रावणी उपाकर्म और रक्षाबंधन की तिथि पर ऊहापोह की स्थिति उत्पन्न हो गई है। कुछ विद्वान जहां 20 अगस्त को त्योहार मनाने के पक्षधर हैं, वहीं कुछ 21 तारीख को।
दोनों ही तिथियों के पक्ष में उनके अपने-अपने तर्क हैं। ऐसी स्थिति में सामान्य जन के लिए त्योहार मनाने की तारीख तय करने में मुश्किल पेश आ रही है।
पंडितों के अनुसार 20 अगस्त को 10 बजकर 22 मिनट पर पूर्णिमा तिथि शुरू होगी इसके साथ ही भद्रा भी शुरू हो जाएगा। शास्त्रों के अनुसार भद्रा काल में राखी नहीं बांधनी चाहिए। भद्रा के कारण रक्षाबंधन समेत अन्य शुभ कार्यों पर भी असर पड़ेगा।
ऐसे में भाइयों की कलाई पर राखी बांधने के लिए व्रत रहने वाली बहनों को पूर्णिमा के भद्रा मुक्त होने का इंतजार करना पड़ेगा। 20 तारीख की रात साढ़े आठ बजे भद्रा समाप्त हो जाएगा। इसके बाद बहनें अपने भाईयों की कलाई पर राखी बांध सकती हैं। लेकिन सूर्योस्त के बाद राखी बांधना भी शास्त्रानुसार उचित नहीं है, ऐसे में बहनों के लिए उलझन है कि वो अपने भैया की कलाई पर राखी कब बांधे।
पूर्णिमा मंगलवार 20 अगस्त को दिन में नौ बजकर 21 मिनट से शुरू हो रही है। पूर्णिमा का आधा हिस्सा भद्रा होता है। इस प्रकार रात 8.25 तक भद्रा लगी रहेगी। भद्रा में श्रावणी और होली मनाना वर्जित है।
मंगलवार को रात 8.29 के बाद से रक्षाबंधन और श्रावणी दोनों ही मनाया जा सकता है। शास्त्र की दृष्टि से संगत होते हुए भी श्रावणी और रक्षाबंधन दोनों ही अगले दिन मनाना उचित है। राखी बांधने से पहले उपवास का विधान है। रात्रि में रक्षाबंधन होने पर दिन भर भाई-बहन को व्रत करना पड़ेगा।
इसी प्रकार श्रावणी का स्नान रात को उचित नहीं जान पड़ता है। बुधवार को सुबह 7.25 तक पूर्णिमा मिल रही है। लिहाजा सुबह दोनों ही त्योहार मनाए जा सकते हैं।
श्रावणी पूर्णिमा (रक्षाबंधन पर्व) 20 अगस्त मंगलवार को श्रवण नक्षत्र तथा सौभाग्य योग के अंतर्गत आ रही है। इस वर्ष श्रावणी पूर्णिमा रक्षाबंधन श्रवण नक्षत्र के साथ आ रही है जो शुभ संयोग है। श्री आर्य भट्ट पंचांग दिल्ली के अनुसार
सुबह 10 .25 से रात्रि 20 :47 तक भद्रा है। भद्रा में रक्षाबंधन निषेध है।
21 तारीख को तीन मुहूर्ती पूर्णिमा के न होने से शास्त्रोक्त नियमानुसार रक्षाबंधन नहीं माना जाना चाहिए। नियम तो श्रावण पूर्णिमा में ही है, जबकि 21 तारीख को पंचक के साथ कृष्ण पक्ष भाद्रपद लग जाता है इसलिए भाद्रपद कृष्ण पक्ष में रक्षाबंधन का शुभ पर्व मनाना ठीक नहीं रहेगा /
इस विषय में एक बात और है हमारे सनातन धर्म में उदया तिथि को ज्यादा मानते है जैसे जो तिथि सूर्योदय के समय है वो पुरे दिन मानी जाती है .इसलिए मानाने वाले 21 अगस्त को भी रक्षाबंधन का पर्व मना सकते है ..
यह शुभ मंत्र बोलकर राखी बांधे जिसे रक्षा सूत्र कहते हैं—
मन्त्र :-
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामनु बध्नामि रक्षेमाचल मा चल।।
पंचांग के मुताबिक रक्षाबंधन का त्योहार पूर्णिमा तिथि में मनाया जाता है। 21 तारीख की सुबह 7 बजकर 25 मिनट तक पूर्णिमा तिथि रहेगी। इसलिए बहनों के लिए उचित होगा कि 21 तारीख की सुबह भद्रा मुक्त समय में भाईयों की कलाई पर राखी बांधे। जो लोग भगवान को राखी बांधते हैं उन्हें 21 तारीख की सुबह 7.25 तक भगवान का पूजन और रक्षासूत्र बांधना होगा।
20 तारीख को 3 बजकर 30 मिनट से 4 बजकर 28 मिनट भद्रा पुच्छ रहेगा। विशेष परिस्थिति में इस समय राखी का त्योहार मनाया जा सकता है।
जानिए भद्रा क्या है ...?
श्रावणी उपाकर्म और रक्षाबंधन की तिथि पर ऊहापोह की स्थिति उत्पन्न हो गई है। कुछ विद्वान जहां 20 अगस्त को त्योहार मनाने के पक्षधर हैं, वहीं कुछ 21 तारीख को।
दोनों ही तिथियों के पक्ष में उनके अपने-अपने तर्क हैं। ऐसी स्थिति में सामान्य जन के लिए त्योहार मनाने की तारीख तय करने में मुश्किल पेश आ रही है।
पंडितों के अनुसार 20 अगस्त को 10 बजकर 22 मिनट पर पूर्णिमा तिथि शुरू होगी इसके साथ ही भद्रा भी शुरू हो जाएगा। शास्त्रों के अनुसार भद्रा काल में राखी नहीं बांधनी चाहिए। भद्रा के कारण रक्षाबंधन समेत अन्य शुभ कार्यों पर भी असर पड़ेगा।
ऐसे में भाइयों की कलाई पर राखी बांधने के लिए व्रत रहने वाली बहनों को पूर्णिमा के भद्रा मुक्त होने का इंतजार करना पड़ेगा। 20 तारीख की रात साढ़े आठ बजे भद्रा समाप्त हो जाएगा। इसके बाद बहनें अपने भाईयों की कलाई पर राखी बांध सकती हैं। लेकिन सूर्योस्त के बाद राखी बांधना भी शास्त्रानुसार उचित नहीं है, ऐसे में बहनों के लिए उलझन है कि वो अपने भैया की कलाई पर राखी कब बांधे।
पूर्णिमा मंगलवार 20 अगस्त को दिन में नौ बजकर 21 मिनट से शुरू हो रही है। पूर्णिमा का आधा हिस्सा भद्रा होता है। इस प्रकार रात 8.25 तक भद्रा लगी रहेगी। भद्रा में श्रावणी और होली मनाना वर्जित है।
मंगलवार को रात 8.29 के बाद से रक्षाबंधन और श्रावणी दोनों ही मनाया जा सकता है। शास्त्र की दृष्टि से संगत होते हुए भी श्रावणी और रक्षाबंधन दोनों ही अगले दिन मनाना उचित है। राखी बांधने से पहले उपवास का विधान है। रात्रि में रक्षाबंधन होने पर दिन भर भाई-बहन को व्रत करना पड़ेगा।
इसी प्रकार श्रावणी का स्नान रात को उचित नहीं जान पड़ता है। बुधवार को सुबह 7.25 तक पूर्णिमा मिल रही है। लिहाजा सुबह दोनों ही त्योहार मनाए जा सकते हैं।
श्रावणी पूर्णिमा (रक्षाबंधन पर्व) 20 अगस्त मंगलवार को श्रवण नक्षत्र तथा सौभाग्य योग के अंतर्गत आ रही है। इस वर्ष श्रावणी पूर्णिमा रक्षाबंधन श्रवण नक्षत्र के साथ आ रही है जो शुभ संयोग है। श्री आर्य भट्ट पंचांग दिल्ली के अनुसार
सुबह 10 .25 से रात्रि 20 :47 तक भद्रा है। भद्रा में रक्षाबंधन निषेध है।
21 तारीख को तीन मुहूर्ती पूर्णिमा के न होने से शास्त्रोक्त नियमानुसार रक्षाबंधन नहीं माना जाना चाहिए। नियम तो श्रावण पूर्णिमा में ही है, जबकि 21 तारीख को पंचक के साथ कृष्ण पक्ष भाद्रपद लग जाता है इसलिए भाद्रपद कृष्ण पक्ष में रक्षाबंधन का शुभ पर्व मनाना ठीक नहीं रहेगा /
इस विषय में एक बात और है हमारे सनातन धर्म में उदया तिथि को ज्यादा मानते है जैसे जो तिथि सूर्योदय के समय है वो पुरे दिन मानी जाती है .इसलिए मानाने वाले 21 अगस्त को भी रक्षाबंधन का पर्व मना सकते है ..
यह शुभ मंत्र बोलकर राखी बांधे जिसे रक्षा सूत्र कहते हैं—
मन्त्र :-
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामनु बध्नामि रक्षेमाचल मा चल।।
पंचांग के मुताबिक रक्षाबंधन का त्योहार पूर्णिमा तिथि में मनाया जाता है। 21 तारीख की सुबह 7 बजकर 25 मिनट तक पूर्णिमा तिथि रहेगी। इसलिए बहनों के लिए उचित होगा कि 21 तारीख की सुबह भद्रा मुक्त समय में भाईयों की कलाई पर राखी बांधे। जो लोग भगवान को राखी बांधते हैं उन्हें 21 तारीख की सुबह 7.25 तक भगवान का पूजन और रक्षासूत्र बांधना होगा।
20 तारीख को 3 बजकर 30 मिनट से 4 बजकर 28 मिनट भद्रा पुच्छ रहेगा। विशेष परिस्थिति में इस समय राखी का त्योहार मनाया जा सकता है।
जानिए भद्रा क्या है ...?
धर्मशास्त्र के अनुसार जब भी उत्सव काल त्योहार या पर्व काल पर चौघड़िए तथा पाप ग्रहों से संदर्भित काल की बेला में निर्दिष्ट निषेध समय दिया गया है, वह समय शुभ कार्य के लिए त्याज्य है।
पुरुषार्थ चिंतामणिकार ने भद्रा के दो नियम बताए हैं,
पूर्णिमा के अपरान्ह काल में भद्रा हो और दूसरे दिन पूर्णिमा मुहूर्तत्रय व्यापीनी हो तो, चाहे भद्रा अपरान्ह से पूर्व ही समाप्त हो जाय तो भी दूसरे दिन ही रक्षाबंधन मनाना चाहिए, और दूसरा नियम मे , दूसरे दिन मुहूर्तत्रय व्यापीनी नहीं हो तो इस दिन साकल्यापादित पूर्णिमा भी नहीं रहेगी अतः पहले दिन ही भद्रा पश्चात प्रदोश के उत्तरार्ध मे रक्षाबंधन मनाना चाहिए।
20 अगस्त मंगलवार को भद्रा का वास स्वर्गलोक मे है, अतः यह अशुभ नहीं रहेगी और प्रातः 10:23 पश्चात रक्षाबंधन मनाया जा सकता है।
अगर किसी को फिर भी भद्रा छोडनी ही हो तो तो श्रेष्ठ समय रात्रि 8:48 के पश्चात का भी है। अतः 20 तारीख को ही रक्षाबंधन मनाना चाहिए।
परम्परा वश अगर किसी व्यक्ति को परिस्थितिवश भद्रा-काल में ही रक्षा बंधन का कार्य करना हों, तो भद्रा मुख को छोड्कर भद्रा-पुच्छ काल में रक्षा - बंधन का कार्य करना शुभ रहता है. शास्त्रों के अनुसार में भद्रा के पुच्छ काल में कार्य करने से कार्यसिद्धि और विजय प्राप्त होती है.
भद्रा के अशुभ प्रभाव से रक्षा वैसे तो व्रत आदि के विधान बताए गए हैं, किंतु आसान उपायों में सुबह भद्रा के 12 नाम मंत्र का स्मरण कार्यसिद्धि के साथ विघ्र, रोग, भय को दूर कर ग्रहदोषों को भी शांत करने वाला माना गया है। जानते हैं भद्रा योग के दौरान बोले जाने वाला मंत्र विशेष -
धन्या दधिमुखी भद्रा महामारी खरानना। कालरात्रिर्महारुद्रा विष्टिश्च कुलपुत्रिका।
भैरवी च महाकाली असुराणां क्षयंकरी। द्वादशैव तु नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत्।।
न च व्याधिर्भवेत् तस्य रोगी रोगात्प्रमुच्यते। ग्रह्य: सर्वेनुकूला: स्युर्न च विघ्रादि जायते।।
पुरुषार्थ चिंतामणिकार ने भद्रा के दो नियम बताए हैं,
पूर्णिमा के अपरान्ह काल में भद्रा हो और दूसरे दिन पूर्णिमा मुहूर्तत्रय व्यापीनी हो तो, चाहे भद्रा अपरान्ह से पूर्व ही समाप्त हो जाय तो भी दूसरे दिन ही रक्षाबंधन मनाना चाहिए, और दूसरा नियम मे , दूसरे दिन मुहूर्तत्रय व्यापीनी नहीं हो तो इस दिन साकल्यापादित पूर्णिमा भी नहीं रहेगी अतः पहले दिन ही भद्रा पश्चात प्रदोश के उत्तरार्ध मे रक्षाबंधन मनाना चाहिए।
20 अगस्त मंगलवार को भद्रा का वास स्वर्गलोक मे है, अतः यह अशुभ नहीं रहेगी और प्रातः 10:23 पश्चात रक्षाबंधन मनाया जा सकता है।
अगर किसी को फिर भी भद्रा छोडनी ही हो तो तो श्रेष्ठ समय रात्रि 8:48 के पश्चात का भी है। अतः 20 तारीख को ही रक्षाबंधन मनाना चाहिए।
परम्परा वश अगर किसी व्यक्ति को परिस्थितिवश भद्रा-काल में ही रक्षा बंधन का कार्य करना हों, तो भद्रा मुख को छोड्कर भद्रा-पुच्छ काल में रक्षा - बंधन का कार्य करना शुभ रहता है. शास्त्रों के अनुसार में भद्रा के पुच्छ काल में कार्य करने से कार्यसिद्धि और विजय प्राप्त होती है.
भद्रा के अशुभ प्रभाव से रक्षा वैसे तो व्रत आदि के विधान बताए गए हैं, किंतु आसान उपायों में सुबह भद्रा के 12 नाम मंत्र का स्मरण कार्यसिद्धि के साथ विघ्र, रोग, भय को दूर कर ग्रहदोषों को भी शांत करने वाला माना गया है। जानते हैं भद्रा योग के दौरान बोले जाने वाला मंत्र विशेष -
धन्या दधिमुखी भद्रा महामारी खरानना। कालरात्रिर्महारुद्रा विष्टिश्च कुलपुत्रिका।
भैरवी च महाकाली असुराणां क्षयंकरी। द्वादशैव तु नामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत्।।
न च व्याधिर्भवेत् तस्य रोगी रोगात्प्रमुच्यते। ग्रह्य: सर्वेनुकूला: स्युर्न च विघ्रादि जायते।।
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