सोमवार, 29 जुलाई 2013

राजनीति में फंसी रिफाइनरी

राजनीति में फंसी रिफाइनरी

राजस्थान के सरहदी जिले बाड़मेर में रिफाइनरी लगाने के सरकारी ऐलान के बाद राजनीति अपने चरम पर है. नेताओं के दौरे, बयान, इस्तीफे सबकुछ हो रहे हैं. कारण यह कि रिफाइनरी के नाम पर राजस्थान का यह सरहदी जिला दो भाग में बंट गया है. पहले जिस लीलाना में रिफाइनरी लगाई जानी थी, अब उस जगह से स्थान बदलकर पचपदरा कर दिया गया है. करीब 40 हजार करोड़ की इस परियोजना के हाथ से निकल जाने के बाद अब लीलानावासी चाहते हैं कि किसी भी कीमत पर रिफाइनरी वापस वहीं लगाई जाए. जबकि पचपदरा के नेता और किसान चाहते हैं कि अब परियोजना पचदरा से बाहर न जाए. लेकिन जिस तरह से रिफाइनरी पर रिफाइन्ड राजनीति हो रही है उसे देखते हुए लगता है कि अगले पचास साल तक राजस्थान में रिफायनरी नहीं लग पायेगी.

राजस्थान में रिफायनरी स्थापना के निर्णय ने राजस्थान में विकास की उम्मीदें जगाई थी. राजस्थान के बाड़मेर जिले के बायतु क्षेत्र के लीलाना में रिफायनरी लगाने की सुगबुगाहट तीन साल पहले शुरू हो गई थी. बाड़मेर के निवासी काफी खुश थे ज़ब मुख्यमंत्री ने चार माह पूर्व लीलाना में रिफायनरी लगाने की घोषणा की. सभी ने इसका स्वागत किया. मगर भूमि के मुआवजे का लालच किसानों के सिर चढ़कर बोलने लगा. एक तरफ सरकार लीलाना में रिफायनरी लगाने के सरकारी जतन शुरू किये. कंपनी एच पी सी एल के साथ एमओयू करने के साथ ही लीलाना में मृदा परीक्षण भी करवा दिया .फ़िजिबिलिटी रिपोर्ट भी तैयार करवा दी. मगर इसी बीच लीलना के किसानों ने जमीन नहीं देने के लिए आन्दोलन शुरू कर दिया.

क़िसनों ने एक स्वर में भूमि नहीं देने का अपना निर्णय जिला प्रशसन को बता दिया. ज़िला प्रशसन और स्थानीय जन प्रतिनिधियों की लाख समझाइस के बाद भी किसान टस से मस नहीं हुए. ज़िला प्रशासन ने सख्ती दिखाई तो एक बीघा जमीन के बदले एक करोड़ रुपये की मांग कर डाली. इस मांग से सरकार, जिला प्रशासन एवं जन प्रतिनिधियों के कान खड़े हो गए क़िसनो ने एक करोड़ रुपये प्रति बीघा के साथ एनी सुविधाओ की मांग राखी जिसे पूरा किया जाना संभव नहीं थी. इस आन्दोलन से सत्ता पक्ष के जन प्रतिनिधियों ने अपने आप को अलग कर रखा था. जिला प्रशासन के आग्रह पर सांसद और जिला प्रमुख किसानो से बात करने लीलाना पहुंचे मगर किसानों ने उनकी बात सुनने से भी इनकार दिया. चूंकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मंशा आगामी विधानसभा चुनाव राजस्थान में विकास और रिफायनरी के मुद्दे पर लड़ने की थी, इसी रणनीति के तहत जुलाई के अंत तक लीलाना ने यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गाँधी को लाकर शिलान्यास करने की योजना थी, मगर किसानों के आन्दोलन ने इस रणनीति पर पानी फेर दिया.

इसके बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने लीलाना को छोड़ पचपदरा में रिफायनरी लगाने की संभावनाएं तलाशने के लिए अधिकारियोंको कहा. अधिकारियों ने कई दौरों के बाद पचपदरा को रिफायनरी के लिए उचित बताया तो गहलोत ने रिफायनरी का स्थान लीलाना से पचपदरा शिफ्ट करने की घोषणा कर एचपीसीएल के साथ पुनः पचपदरा के लिए एमओयू साइन कर लिया, तो बाड़मेर की राजनीति में आग लग गयी. स्थानीय जन प्रतिनिधियों को इस निर्णय से अपनी राजनीतिक जमीन खिसकने का डर सताने लगा. क़िसानों ने भी रिफायनरी बायतु में लगाने के लिए मोर्चा खोल दिया. बायतु विधायक कर्नल सोनाराम चौधरी की अगुवाई में हज़ारों किसानो और बाड़मेरवासियों ने धरना प्रदर्शन कर रिफायनरी लीलाना में लगाने का दम भर दिया.

इसका नतीजा यह हुआ कि बाड़मेर ज़िला रिफायनरी के मुद्दे पर दो भागों बायतु और पचपदरा में बंट गया. ज़िले के लोगों में अलगाव जैसी स्थिति हो गयी. दोनों क्षेत्रों के लोग रिफायनरी अपने अपने क्षेत्र में लगाने की जोर आजमाईश कर रहे हैं. जिस तरह बाड़मेर जिले का सौहार्द पूर्ण वातावरण ख़राब हुआ. लोगो में अविश्वास पैदा हुआ ,जन नेताओ पर आरोप लगे उससे स्पष्ट है कि रिफायनरी बाड़मेर में ऐसे अगले पचास साल नहीं लग पाएगी. कल तक जमीन नहीं देने वाले किसान आज ना केवल जमीन देने को तैयार हो गए बल्कि एक करोड़ मांगनेवाले पांच से सात लाख रूपये बीघे की दर से जमीन देने के लिए तैयार हो गये हैं.

लेकिन रिफाइनरी पर हो रही इस राजनीति में सिर्फ किसान ही दोषी नहीं है। किसानों के साथ साथ नेता भी दोषी हैं. अगर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने बायतु और पचपदरा की जमीनों की खरीद फरोख्त में मंत्रियों और बड़े लोगों का हाथ होने का आरोप लगाकर सनसनी फेला दी तो कर्नल सोनाराम चौधरी ने अशोक गहलोत द्वारा अपने पुत्र वैभव गहलोत को पचपदरा से चुनाव लड़ने की योजना का खुलासा कर सबको चौंका दिया. वर्तमान में बाड़मेर के सारे जन प्रतिनिधि मानते है कि रिफायनरी पचपदरा में लगाने की प्रक्रिया इतनी आगे बढ़ चुकी है कि उसे वापस बायतु लाना संभव नहीं है. इसी के चलते राजस्व मंत्री हेमाराम चौधरी ने इस्तीफा दे दिया. मगर बायतु विधायक कर्नल सोनाराम ने आस नहीं छोडी है. उन्होंने स्पष्ट कह दिया है कि रिफायनरी लगेगी तो लीलाना में ही लगेगी.

बहरहाल अभी तक एचपीसीएल की इस प्रस्तावित रिफाइनरी को केबिनेट की मंजूरी नहीं मिली है. सितम्बर से पहले मंजूरी मिलेगी इसमें शक हैं. तब तक प्रदेश में आसन्न चुनाव के मद्देनजर आचार संहिता लग जाएगी, ऐसे में आपसी खींचतान और राजनीति में रिफायनरी उलझ कर ना रह जाये.

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